Published on Jul 25, 2019 Updated 0 Hours ago

चीन और बांग्लादेश के रिश्तों की जब भी बात होती है, तो उसमें भारत का ज़िक्र ज़रूर आता है. बांग्लादेश का पड़ोसी देश भारत ग्लोबल पावर बनना चाहता है. इस मामले में यह यात्रा भी अलग नहीं रही.

बांग्लादेश की पीएम शेख़ हसीना की चीन यात्रा से दोनों देशों के रिश्तों में आई नई गर्माहट!

प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की इस साल 1 से 5 जुलाई की यात्रा से बांग्लादेश और चीन के रिश्ते बेहतर हुए हैं. इस साल जनवरी में लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के बाद यह शेख़ हसीना की ये पहली चीन यात्रा थी. बांग्लादेश, चीन का रणनीतिक साझेदार है. इसलिए इस यात्रा पर दुनिया की नजरें थीं. चीन और बांग्लादेश ने 2016 में रणनीतिक साझेदारी का समझौता किया था. यात्रा के दौरान पीएम हसीना का चीन की सरकार ने गर्मजोशी से स्वागत किया. प्रीमियर ली केकियांग ने उनके सम्मान में विशेष रात्रिभोज का भी आयोजन किया. बांग्लादेश की नेता ने चीन के राष्ट्रपति शी ज़िनपिंग से भी मुलाकात की और दोनों ने कई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की. चीन और बांग्लादेश के बीच गर्मजोशी भरा जो रिश्ता है, पीएम हसीना की यात्रा से इस पर मुहर लग गई.

इस दौरान दोनों देशों के बीच रोहिंग्या मामले में मदद, आर्थिक व तकनीकी सहयोग, निवेश, बिजली, संस्कृति और पर्यटन के क्षेत्र में 9 समझौते भी हुए. इनमें ढाका बिजली वितरण कंपनी (डीपीडीसी) क्षेत्रीय परियोजना के तहत पावर सिस्टम के विस्तार और उसे मजबूत करने, डीपीडीसी क्षेत्रीय परियोजना के तहत पावर सिस्टम के विस्तार और उसकी मजबूती के लिए सस्ते कर्ज का करार, पावर ग्रिड नेटवर्क को मजबूत करने के लिए फ्रेमवर्क एग्रीमेंट शामिल हैं. इनके अलावा, तकनीकी और आर्थिक सहयोग बढ़ाने का समझौता, इनवेस्टमेंट को-ऑपरेशन वर्किंग ग्रुप के गठन के लिए एमओयू (समझौता पत्र), यालू झांग्बो-ब्रह्मपुत्र नदियों से जुड़ी हाइड्रोलॉजिकल सूचनाओं के आदान-प्रदान और उसे लागू करने का एमओयू, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और टूरिज्म प्रोग्राम पर एमओयू भी साइन किए गए. इनके अलावा, चीन ने बांग्लादेश में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए 2,500 टन चावल देने का भी वादा किया.

पीएम हसीना की यात्रा के दौरान एक संयुक्त बयान में बांग्लादेश और चीन के बीच जिन मुद्दों पर चर्चा हुई, उनकी जानकारी दी गई. इनमें खासतौर पर व्यापार और निवेश, मैरिटाइम (समुद्र संबंधी), रक्षा, क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन), दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने और साइंस जैसे क्षेत्रों को प्राथमिकता माना गया. बांग्लादेश और चीन के बीच जिन मुद्दों पर चर्चा हुई, उनकी कुछ खास बातें हम यहां दे रहे हैं:

चीन और बांग्लादेश के बीच समुद्री मामलों (मैरिटाइम अफेयर्स) पर बातचीत की सहमति बनी है. दोनों देश ब्लू इकोनॉमी (बिना दबाव डाले समुद्री संसाधनों के इस्तेमाल), मैरिटाइम मैनेजमेंट और समुद्री क्षेत्र पर मिलकर नजर रखने के लिए आपसी सहयोग बढ़ाने के रास्ते तलाशेंगे.

इसके अलावा, दोनों देशों ने बेल्ड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के लिए आपसी सहयोग बढ़ाने और बांग्लादेश, चीन, इंडिया, म्यांमार (बीसीआईएम) इकोनॉमिक कॉरिडोर को लेकर प्रतिबद्धता जताई. बीसीआईएम चार देशों की संयुक्त पहल है, जिसमें चीन के कुनमिंग शहर को बांग्लादेश और म्यांमार के जरिये कोलकाता से जोड़ा जाएगा. चीन ने इस प्रोजेक्ट को बाद में बीआरआई के तहत लाने का ऐलान किया था. यह याद रखना जरूरी है कि भारत बीआरआई का आलोचक रहा है और उसने उसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था. हालांकि, चीन दुनिया के कई देशों में बीआरआई के जरिये कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए पैसा दे रहा है और वह इसके मार्फत दुनिया में अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है.

बीसीआईएम चार देशों की संयुक्त पहल है, जिसमें चीन के कुनमिंग शहर को बांग्लादेश और म्यांमार के जरिये कोलकाता से जोड़ा जाएगा. चीन ने इस प्रोजेक्ट को बाद में बीआरआई के तहत लाने का ऐलान किया था.

एक बार फिर, चीन और बांग्लादेश ने रक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का वादा दोहराया. आतंकवाद के खिलाफ भी दोनों देश मिलकर काम करेंगे. इनमें सूचनाओं के आदान-प्रदान, आतंकवाद की चुनौती से निपटने के लिए क्षमता बढ़ाना और ट्रेनिंग जैसी पहल शामिल हैं.

बांग्लादेश और चीन ने कृषि, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई. दोनों देश क्लाइमेट चेंज के क्षेत्र में भी मिलकर काम करेंगे. चीन ने अधिक उत्पादकता वाली फसलों को बढ़ावा देने के लिए बांग्लादेश में क्लाइमेट चेंज सेंटर खोलने का भी वादा किया.

दोनों देशों के नागरिकों के बीच सहयोग बढ़ाने की अहमियत पर जोर देते हुए चीन ने बांग्लादेशी युवाओं के लिए कई स्कॉलरशिप जारी रखने की बात कही. वह बांग्लादेश के प्रतिभाशाली युवा वैज्ञानिकों को चीन में काम करने का मौका देगा और उनका खर्च उठाएगा.

पीएम हसीना की चीन यात्रा ऐसे वक्त में हुई, जब वह दो चुनौतियों का सामना कर रही हैं. इनमें से पहली रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजना और दूसरी, देश के आर्थिक विकास को मजबूत बनाए रखने के लिए फंडिंग का इंतजाम करना है. आर्थिक विकास के मुद्दे पर ही इस साल की शुरुआत में उनकी सत्ता में वापसी हुई थी. पीएम हसीना के चीन जाने से पहले बांग्लादेश की मीडिया ने लिखा था कि इस दौरे पर व्यापार, निवेश और रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे अहम होंगे.

पीएम हसीना की चीन यात्रा ऐसे वक्त में हुई, जब वह दो चुनौतियों का सामना कर रही हैं. इनमें से पहली रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजना और दूसरी, देश के आर्थिक विकास को मजबूत बनाए रखने के लिए फंडिंग का इंतजाम करना है.

रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजना पीएम हसीना सरकार की विदेश नीति की बड़ी चुनौती है. ये शरणार्थी अगस्त 2017 से बांग्लादेश में रह रहे हैं. वे प्रताड़ना के डर से म्यांमार के रखाइन क्षेत्र से भागकर यहां आए हैं. अभी तक उन्हें वापस भेजे जाने के मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो भी पहल हुई है, उसका सार्थक नतीजा नहीं निकला है. बांग्लादेश के लोगों का मानना है कि चीन के म्यांमार से अच्छे रिश्ते हैं. इसलिए वह इन शरणार्थियों को वापस बुलाने के लिए उसे राजी कर सकता है.

पीएम हसीना ने बांग्लादेश को 2040 तक विकसित देश बनाने का भी वादा किया है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारी निवेश की जरूरत है. चीन दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकत है, इसलिए वह बांग्लादेश में निवेश बढ़ाने की उम्मीद कर रही हैं. इसके अलावा, चीन से अच्छे रिश्तों की वजह से बांग्लादेश की उम्मीद भी बढ़ी है. बांग्लादेश उसे भरोसेमंद दोस्त की तरह देखता है, लेकिन पहले दोनों के बीच रिश्ते अच्छे नहीं थे. चीन ने 1971 के बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन का विरोध किया था. हालांकि, अतीत की इस गांठ को दोनों देशों ने मिलकर सुलझा लिया है. आज बांग्लादेश को चीन से काफी हथियार मिल रहे हैं. वह बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और चीन उसके विकास में भी बड़ी भूमिका निभा रहा है.

आज बांग्लादेश को चीन से काफी हथियार मिल रहे हैं. वह बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और चीन उसके विकास में भी बड़ी भूमिका निभा रहा है.

चीन की ‘गैर-राजनीतिक’ छवि ने मजबूत द्विपक्षीय रिश्तों में बड़ी भूमिका निभाई है. उसके यहां के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से अच्छे संबंध हैं. बांग्लादेश की बिल्कुल बंटी हुई राजनीति को देखते हुए चीन के लिए ऐसा करना जरूरी है. आखिर, इसी राजनीति से बांग्लादेश की विदेश नीति भी प्रभावित होती है. यही वजह है कि बांग्लादेश में सरकार बदलते ही भारत के साथ उसके रिश्ते बदल जाते हैं. इस लिहाज से चीन की इस नीति को बेहतर समझा जा सकता है. वह बांग्लादेश के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ आपसी संबंध पर सहमति बनाने में सफल रहा है. इस वजह से दोनों के बीच लंबी अवधि के संबंध बने हैं. बांग्लादेश के नेता किसी घरेलू राजनीतिक बाधा की चिंता किए बगैर चीन के साथ सहज संबंध बनाए रख सकते हैं. बांग्लादेश की सत्ताधारी अवामी लीग और चीन के रिश्तों में गर्मजोशी पिछले कुछ साल में आई है. खासतौर पर 2014 के चुनाव पर चीन के समर्थन के बाद, जिसका विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने बहिष्कार किया था.

पीएम हसीना की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच यही गर्मजोशी दिखी. चीन ने बांग्लादेश को दक्षिण एशिया में अपना बड़ा साझेदार बताया. इससे पता चलता है कि दोनों के रिश्ते किस कदर मजबूत हैं. शायद रिश्तों की इसी मजबूती के कारण बांग्लादेश के मीडिया ने इस यात्रा के नतीजों की नुक्ताचीनी नहीं की, जबकि भारत के मामले में हमेशा ऐसा होता आया है. इसके बावजूद, चीन के वादे पूरे करने को लेकर मीडिया ने आशंका जताई, खासतौर पर रोहिंग्या शरणार्थियों के मामले में. चीन ने इस मामले में सहयोग के संकेत तो दिए हैं, लेकिन इसके बावजूद संशय बना हुआ है. इस चिंता का कारण यह है कि म्यांमार रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस बुलाने को लेकर टालमटोल करता रहा है. 2017 में चीन के दखल देने के बाद इसके लिए बांग्लादेश और म्यांमार के बीच समझौता हुआ था, लेकिन अभी तक उसने एक भी शरणार्थी को वापस नहीं बुलाया है.

एक और निराशा इस बात से हुई कि चीन ने बांग्लादेश के साथ व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए खास उपायों का ऐलान नहीं किया. दोनों देशों के बीच यह एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. चीन-बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय व्यापार में चीन का पलड़ा बहुत भारी है. वैसे, पीएम हसीना की यात्रा के दौरान चीन ने इसे कम करने की जरूरत को स्वीकार किया और उसने बांग्लादेश से अधिक सामान खरीदने की भी बात कही, लेकिन उसने उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी नहीं दी. इस बीच, शेख़ हसीना ने चीन की कंपनियों को देश के 100 इकोनॉमिक जोन में निवेश का न्योता दिया. बांग्लादेश के चिट्टगांव में सिर्फ चीन की कंपनियों के लिए एक खास इकोनॉमिक जोन बनाया जा रहा है और इसे व्यापार असंतुलन को दूर करने के एक कदम के तौर पर पेश किया जा रहा है.

शेख़ हसीना ने चीन की कंपनियों को देश के 100 इकोनॉमिक जोन में निवेश का न्योता दिया. बांग्लादेश के चिट्टगांव में सिर्फ चीन की कंपनियों के लिए एक खास इकोनॉमिक जोन बनाया जा रहा है और इसे व्यापार असंतुलन को दूर करने के एक कदम के तौर पर पेश किया जा रहा है.

यात्रा के दौरान पीएम हसीना ने चीन से कर्ज की रकम जल्द देने और उसकी शर्तों को आसान बनाने की अपील भी की. 2016 में चीन ने कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए 28 अरब डॉलर का कर्ज देने का वादा किया था, लेकिन रकम मिलने में देरी हो रही है. हालांकि, दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के बाद चीन ने सबसे अधिक वित्तीय मदद बांग्लादेश की ही की है. चीन और बांग्लादेश के रिश्तों की जब भी बात होती है, तो उसमें भारत का जिक्र जरूरत आता है. बांग्लादेश का पड़ोसी देश भारत ग्लोबल पावर बनना चाहता है. इस मामले में यह यात्रा भी अलग नहीं रही. चीन  दौरे पर पीएम हसीना डालियान के वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में शामिल हुईं. वहां अपने भाषण में उन्होंने भारत से अपने देश के रिश्तों पर दो टूक जवाब दिया. उन्होंने कहा कि भारत, बांग्लादेश का स्वाभाविक साझेदार है, जबकि चीन के साथ उसके आर्थिक रिश्ते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि वह चीन और भारत के साथ सभी दोस्तों के साथ संतुलित रिश्ता बनाए रखना चाहती हैं.

इस संदर्भ में बांग्लादेश की भविष्य में विदेश नीति पर नजर रखना दिलचस्प होगा. खासतौर पर यह देखते हुए कि चीन कर्ज के बहाने अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. बांग्लादेश को चीन के दबाव के बीच अपनी निष्पक्षता बनाए रखने के लिए अक्लमंदी दिखानी होगी.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.