Author : Ramanath Jha

Published on Apr 06, 2019 Updated 0 Hours ago

हमारी गणना के अनुसार मोटे तौर पर शहरों के पास राष्ट्रीय बेंचमार्क की तुलना में अपने विशाल मेंडेट को लागू करने के लिए जितने संसाधन चाहिए उसकी तुलना में औसत रूप में सिर्फ एक-तिहाई ही होते हैं।

मुंबई में एक और पुल का ढहना: गहरे शहरी संकट का लक्षण

दिन भर काम के बाद, 14 मार्च 2019 को, मुंबई के मेहनतकश हमेशा की तरह घर पहुंचने के लिए बस या ट्रेन पकड़ने के लिए भाग रहे थे। उनमें से कुछ छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) की ओर फुटओवर ब्रिज द्वारा बढ़ रहे थे ताकि नीचे सड़क के भारी ट्रैफिक से बच सकें। उसी समय उस पुल का एक हिस्सा टूट कर नीचे सड़क पर जा गिरा। 6 लोग काल के गाल में समा गए और 30 अन्य घायल हो गए। पुल का जो हिस्सा नहीं गिरा था वह भी उसके बाद गिर गया। अभी एक साल भी नहीं हुआ था जब मुंबई के सबअर्ब अंधेरी में जुलाई 2018 में एक ओवरब्रिज भारी बारिश के बाद इसी तरह गिर गया था। उसमें भी दो लोगों की मौत हो गयी थी।

अंधेरी में ओवरब्रिज गिरने के बाद, ग्रेटर मुंबई के म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने 296 ढांचों का ऑडिट करने का आदेश दिया था जिसमें पुल, फुट ओवर ब्रिज और रेलवे ओवरब्रिज शामिल थे। ऑडिटर ने रिपोर्ट दी कि उनमें से 110 अच्छी स्थिति में हैं, 107 को छोटी-मोटी मरम्मत की जरूरत है और 61 को बड़े नवीनीकरण की जरूरत है। 18 अन्य ढांचों को ढहाने और दुबारा बनाने का सुझाव दिया गया।

जमा की गयी जानकारी से पता चलता है कि फुटब्रिज 1984-86 में बना था और इसका ऑडिट दिसम्बर 2016 में हुआ था। पुल की स्थिति के आकलन के लिए आवश्यक परीक्षण जुलाई 2017 में किए गए और अगस्त 2018 में एमसीजीएम (म्युनिसिपल कौंसिल ऑफ़ ग्रेटर मुंबई) को फाइनल रिपोर्ट सौंप दी गयी थी। स्ट्रक्चरल ऑडिटर ने रिपोर्ट दी थी कि पुल अच्छी हालत में हैं और ओवरब्रिज के किसी भी भाग में भविष्य में गड़बड़ी होने की कोई सम्भावना नहीं दिख रही है। स्ट्रक्चरल रिपोर्ट में छोटी-मोटी मरम्मत का सुझाव दिया गया था लेकिन मरम्मत के प्रकार और स्थान को साफ तौर पर नहीं बताया गया।

शुरुआती रिपोर्ट में एमसीजीएम ने यह नतीजा निकाला कि स्ट्रक्चरल रिपोर्ट में “पुल के महत्वपूर्ण तत्वों और उनकी स्थिति को पूरी तरह नज़रंदाज़ किया गया और इसके कारण यह दुखद त्रासदी हुई। पुल की स्ट्रक्चरल रिपोर्ट करवाने और उसके लिए सार्वजनिक धन खर्चने के बावजूद पुल की वास्तविक स्थिति पता नहीं चल सकी।”

शुरुआती रिपोर्ट के आधार पर, स्ट्रक्चरल ऑडिटर को मुंबई पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। अधिशासी अभियंता और सहायक अभियंता, जिनके ऊपर ऑडिट के निरीक्षण की जिम्मेदारी थी, उनको सस्पेंड कर दिया गया और मुख्य अभियंता और उप मुख्य अभियंता के खिलाफ जांच शुरू कर दी गयी। स्ट्रक्चरल ऑडिट फर्म को ब्लैकलिस्ट करने के बाद उसे कारण बताओ नोटिस दे दिया गया।

इस दुखद घटना ने एमसीजीएम को “फुल-फ्लेज़ (सर्वे-सर्वा) चीफ़ ब्रिज इंस्पेक्टर” के रूप में चुनने के लिए एक उपयुक्त अभ्यर्थी की तलाश करने के लिए मजबूर कर दिया। खास तौर पर इसलिए कि अर्बन लोकल बॉडी के पास 374 पुल हैं और उनकी संख्या बढ़ रही है। इंस्पेक्टर ब्रिज इंस्पेक्शन अथॉरिटी का प्रभारी होगा जिसका काम, अन्य चीजों के साथ, निम्नलिखित को देखना होगा:

  • कब-कब पुलों का निरीक्षण हो इसे तय करना और उसकी संख्या निश्चित करना,
  • अलग-अलग समय पर हुए निरीक्षण की गणना करना,
  • रिपोर्ट जमा करने के टेम्पलेट और फॉर्मेट का निर्धारण करना,
  • अलग-अलग पुल अभियंताओं की जिम्मेदारी को निश्चित करना,
  • पुल यदि खतरनाक स्थिति में हो तो सुधार के उपायों का सुझाव देना।

जैसा कि इस तरह की सभी नागरिक त्रासदियों के बाद देखा जाता है, एमसीजीएम की दुर्घटना के बाद भी लोगों ने हंगामा किया। मीडिया सिविक बॉडी के प्रधानों को दंडित करना चाहता है। एक तरह से इस तरह का गुस्सा स्वाभाविक है, क्योंकि गलती बहुत गंभीर है और कठोरता और कुकर्म की छाप बहुत ज्यादा है। हांलाकि, यह ऐसे कारण है जो सतह पर दिखते हैं और हमको गहराई में देखने से रोकते हैं। हम उस गहरी गड़बड़ी को नहीं देख पाते जो समय के साथ नगरपालिका के काम में छा गयी है। यदि इसे ठीक नहीं किया गया तो ऐसी और अनेक दुर्घटनाएं बार-बार होती रहेंगी और सिविक कर्मचारियों को एक उदाहरण बनने लायक दंड देने के बावजूद चीजें ठीक नहीं होंगी।

म्युनिसिपल फंक्शनरी में गवर्नेंस, वित्त और क्षमता तीन सबसे बड़ी समस्याएं हैं।

पहला सबसे ख़ास बिंदु जहां बुनियादी सुधारों की जरूरत है वह है शहरी गवर्नेंस। हमारे शहर इस तरह के गवर्नेंस सिस्टम पर चलते हैं कि अर्बन लोकल बॉडी के किसी भी भाग की जिम्मेदारी तय करना असम्भव है।

म्युनिसिपल कमिश्नर मुख्य प्रशासनिक अधिकारी होता है, लेकिन अधिकांश वित्तीय संस्तुति के अधिकार स्टैंडिंग समिति के पास होते हैं। इसके अलावा, स्टेट फंक्शनरी भी निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अनेक पॉवर सेंटर पर्दे के पीछे से काम करते हैं। वे राजनैतिक दलों से ताकत पाते हैं और ब्लैकमेल और ट्रांसफर द्वारा नगरपालिका के निर्णयों को प्रभावित करते हैं। जब तक एक सशक्त मेयर को सिस्टम में नहीं लाया जाता, जिसके पास पूरी और अंतिम निर्णय लेने की अथॉरिटी हो, तब तक जिम्मेदारी सिर्फ एक सफ़ेद हाथी ही बनी रहेगी जिसके बारे में वाद-विवाद, वर्कशॉप और सेमिनार में ही बातें होती रहेंगी।

दूसरा सबसे महत्वपूर्ण बिंदू है वित्त का मसला। हमारे शहरों का मेंडेट बहुत विशाल होता है लेकिन वे दुनिया के सबसे कुपोषित यूएलबी (अर्बन लोकल बॉडी) हैं। हमारी गणना के अनुसार मोटे तौर पर शहरों के पास राष्ट्रीय बेंचमार्क की तुलना में अपने विशाल मेंडेट को लागू करने के लिए जितने संसाधन चाहिए उसकी तुलना में औसत रूप में सिर्फ एक-तिहाई ही होते हैं। इस स्थिति में, यूएलबी कोई भी नया इन्फ्रास्ट्रक्चर जोड़ने और जो पहले से हैं उसकी देखभाल करने में असमर्थ रहती हैं। यह स्थिति मुंबई जैसी अमीर शहरी सरकार की भी है। इसकी अमीरी, और सटीक रूप से कहें तो गरीबी, इसके बजट के आकार, इसके बड़े भौगोलिक क्षेत्र, इसकी विशाल और बढ़ती हुई जनसंख्या, इसके विस्तृत मेंडेट फंक्शन और प्रत्येक फंक्शन के लिए प्रति व्यक्ति राजस्व के आधार पर तय होनी चाहिए।

परिणाम बेहद धीमे होते हैं। इस कारण से नए कामों की जरूरत के कारण इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने में कमी होती है और देखभाल में दुखद रूप से उपेक्षा होती है। यह बिलकुल साफ़ है कि रख-रखाव के लिए हर साल के एसेट कॉस्ट का कुछ प्रतिशत एसेट के रख-रखाव पर खर्च होना चाहिए। साल दर साल इसमें कमी होने पर यूएलबी एक खतरनाक रास्ते पर चल निकलती है जैसा कि देश भर में होने वाली घटनाएं साफ़ दर्शाती हैं।

तीसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र है यूएलबी के कर्मचारियों की क्षमता का विकास, खास तौर पर नगरपालिका के इंजीनियर, क्योंकि वह नगरपालिका की व्यवस्था में सबसे खास फंक्शनरी हैं। नगरपालिका के इंजीनियर की नौकरी हमारे देश की सबसे कम चाही जाने वाली नौकरी है।

तीसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र है यूएलबी के कर्मचारियों की क्षमता का विकास, खास तौर पर नगरपालिका के इंजीनियर, क्योंकि वह नगरपालिका की व्यवस्था में सबसे खास फंक्शनरी हैं। नगरपालिका के इंजीनियर की नौकरी हमारे देश की सबसे कम चाही जाने वाली नौकरी है।

निजी क्षेत्र का करियर, सार्वजनिक क्षेत्र के पद, केन्द्रीय और राज्य सरकार की नौकरियां इस देश के युवा की प्राथमिकता हैं। नगरपालिका में खराब स्तर के लोगों को लेना ट्रांसफर के सिस्टम के कारण और भी समझोतों का शिकार हो जाता है। जबकि ट्रांसफर इस उद्देश्य से किए जाते हैं कि निहित स्वार्थ और गलत कामों की वृद्धि को रोका जा सके। हर एक इंजीनियर को सिर्फ कुछ ही सालों में अलग-अलग विभागों में घुमाया जाता है – सड़क, नियमन, विकास योजना, जल, अवशिष्ट वगैरह। इससे निहित स्वार्थों और भ्रष्टाचार को रोकने में कोई मदद नहीं मिलती। बल्कि एक ठोस परिणाम यह निकलता है कि किसी भी इंजीनियर को नगर पालिका के किसी इंजीनियरिंग के काम में विशेषज्ञता हासिल नहीं होती। इन-हाउस विशेज्ञता के अभाव में हरेक काम जिसमें विशेषज्ञ ज्ञान की जरूरत होती है उसे आउटसोर्स करना पड़ता है। इसलिए एमसीजीएम के गलियारों में हर प्रकार के विशेषज्ञों की फ़ौज भरी रहती है। कुछ विशिष्ट शैक्षिक संस्थानों को छोड़ कर, औसत शैक्षिक संस्थान आम तौर पर शैक्षिक गुणवत्ता के मामले में पिछड़े होते हैं। इस कारण से व्यवसायिक गुणवत्ता के उत्पादन के मामले में देश के सामने चिंताजनक स्थिति है। साफ तौर से क्षितिज पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। यदि यूएलबी द्वारा सामना की जा रही समस्याओं को कालीन के नीचे सरका के नजरअंदाज किया जाता रहा तो इन बेचैन करने वाले हालात के बीच ही भारत इस बदहाली और दुर्दशा के साथ शहरीकरण करता रहेगा।

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