Author : Sushant Sareen

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 24, 2023 Updated 0 Hours ago

पाकिस्तान की सेना इमरान ख़ान या फिर उनके समर्थकों को बख़्शने के मूड में नहीं है. फिर चाहे उनके सबसे बड़े रक्षक और संरक्षक बने जज साहिबान ही क्यों न हों.

पाकिस्तानी फ़ौज ग़ुस्से में मगर झुकने को तैयार नहीं इमरान

ये लेख हमारी सीरीज़, पाकिस्तान: दि अनरेवलिंग का एक हिस्सा है


पाकिस्तानी फौज के फॉर्मेशन कमांडर की चार दिन तक चली अभूतपूर्व कांफ्रेंस के बाद, इंटर सर्विसेज़ पब्लिक रिलेशंस (ISPR) ने सात जून को बेहदसख़्त लहजे वाला एक बयान जारी किया. प्रेस को जारी किया गया ये बयान, 9 मई को हुई घटनाओं को लेकर पाकिस्तानी फौज के ग़ुस्से और हम येकह सकते हैं कि खीझ को दिकाने वाला है. 9 मई को पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के समर्थकों ने सेना के ठिकानों पर हमला बोला था. उन्होंने स्मारकों मेंतोड़-फोड़ की थी और लाहौर के कोर कमांडर का घर जला डाला था. फॉर्मेशन कमांडर्स कांफ्रेंस (FCC) फौजी ठिकानों पर हमला करने वालों और उन्हेंअपवित्र करने वालोंपर फौजी अदालतों में मुक़दमा चलाकर उनको कड़ी से कड़ी सज़ा देने की प्रतिबद्धता दोहराई. ज़्यादातर विश्लेषक पाकिस्तानीफौज के इस बयान को इस बात का स्पष्ट संदेश मान रहे हैं कि फौज, इमरान ख़ान, उनके समर्थकों और उनके रक्षकों को बख़्शने के मूड में बिल्कुल नहींहै. ख़ास तौर से न्यायपालिका में बैठे इमरान समर्थकों से तो कोई मुरव्वत नहीं की जाएगी. पाकिस्तानी फ़ौज सत्ता पर अपने एकाधिकार और ताक़त कोचुनौती देने वालों से निपटने में तो मानव अधिकारों का ख़याल करेगी और ही आम नागरिकों के अधिकारों का. यही नहीं, अगरमुल्क दुश्मन इनताक़तों से निपटने के दौरान किसी ने बाधा डालने की कोशिश की (मतलब पाकिस्तान की अदालतें) तो फ़ौज उन्हें भी किसी क़ीमत पर बर्दाश्त नहींकरेगी’. बयान की घटिया अंग्रेज़ी को छोड़ दें, तो पाकिस्तानी फ़ौज ने अपने इरादे बिल्कुल साफ़ कर दिए हैं.

पाकिस्तानी फ़ौज सत्ता पर अपने एकाधिकार और ताक़त को चुनौती देने वालों से निपटने में न तो मानव अधिकारों का ख़याल करेगी और न ही आम नागरिकों के अधिकारों का. यही नहीं, अगर ‘मुल्क दुश्मन इन ताक़तों से निपटने के दौरान किसी ने बाधा डालने की कोशिश की (मतलब पाकिस्तान की अदालतें) तो फ़ौज उन्हें भी किसी क़ीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगी’. 

हालांकि, दिक़्क़त ये है कि ये अभी साफ़ नहीं है कि वो अपनी रास्ते मेंबाधाएंडालने वाली न्यायपालिका के ख़िलाफ़ किस तरह कीसख़्तीकाइस्तेमाल करेगी. जब तक फ़ौज और पाकिस्तान की सरकार, संविधान और क़ानून के दायरे में रहते हुए काम करेंगे, तब तक वो अदालत भी उन्हें इमरानख़ान और उनके समर्थकों की फौज के ख़िलाफ़ कोई भी कार्रवाई करने से नहीं रोक पाएंगी, जो अब तक इमरान और उनके समर्थकों का बचाव करती रहीहैं. ये शायद पहली दफ़ा है जब पाकिस्तानी फ़ौज को ऐसे हालात का सामना करना पड़ रहा है, जहां पाकिस्तान की अदालतें, फौज की तय की हुईलाइन पर नहीं चल रहे हैं. इससे पहले, पाकिस्तान के जज हमेशा, फौज के पाले में ही हुआ करते थे. इसकी वजह ये थी कि अक्सर सियासीकार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई फौजी तख़्तापलट के बाद होती थी. वैसी सूरत में अगर जज, फौजी तानाशाह का हुक्म नहीं मानते, तो उन्हें हटा दियाजाता था. लेकिन, इस बार न्यायपालिका दो टुकड़ों में बंट गई है. एक तरफ़ वो जज हैं, जो खुलकर इमरान ख़ान और उनके समर्थकों की हिमायत कर रहेहैं. वहीं दूसरी तरफ़ वो जज हैं, जो किसी का पक्ष नहीं ले रहे हैं.

पाकिस्तान की फ़ौज की भूमिका 

इमरान ख़ान के समर्थक जजों की अगुवाई पाकिस्तान के चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल कर रहे हैं, और उनके समर्थन में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट केकम से कम छह जज और हैं. इस्लामाबाद और लाहौर के हाई कोर्ट में भी इमरान को समर्थन मिल रहा है. पाकिस्तान में इस वक़्त मज़ाक़ चल रहा है किमुल्क में क़ानून के राज की जगह रिश्तेदारों के राज ने ले ली है. असल में लाहौर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के दामाद, पंजाब सूबे के पूर्व विधायक हैं. वहीं चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल की सास और उनके परिवार के बाक़ी सदस्य भी इमरान ख़ान की कट्टर समर्थक हैं. वहीं, कई और जजों ने भीइमरान ख़ान और उनकी पाकिस्तान तहरीक--इंसाफ़ पार्टी (PTI) के प्रति वफ़ादारी दिखाई है. साफ़ है कि जिस तरह इमरान ख़ान को जजों की तरफ़से हर बात पर ज़मानत मिल जा रही है, और जिस तरह पाकिस्तान की अदालतें किसी भी सूरत में इमरान ख़ान को गिरफ़्तार किए जाने के फ़रमान जारीकर रही हैं. उनके ख़िलाफ़ मुक़दमों को किसी सुनवाई के बग़ैर ख़ारिज कर रही हैं, उनके गिरफ़्तार समर्थकों को जिस तरह एकमुश्त ज़मानत दे दी जा रहीहै, उससे ऐसे हालात पैदा हो रहे हैं कि किसी किसी को तो इसमें दख़ल देना ही होगा. अगर सरकार अपना दायरा बढ़ाती है, या क़ानून को तोड़ते हुएइमरान समर्थक जजों से निजात पाने की कोशिश करती है, तो इसके गंभीर नतीजे निकल सकते हैं; अगर सरकार ऐसा नहीं करती, तो हो सकता है किपाकिस्तान की फ़ौज इस मामले में को अपने हाथ में ले ले और फिर अदालतों के हुक्म मानने से इनकार कर दे या फिर इस पूरी व्यवस्था को ही एकइंक़लाब के ज़रिए समेट दे.

पाकिस्तानी फ़ौज के कड़ा रुख़ अपनाने के बावजूद उन आशंकाओं को दूर नहीं किया जा सका है कि, पाकिस्तान आर्मी के आम फौजी किस हद तक अपने जनरलों के साथ हैं. माना जाता है कि इमरान ख़ान को फ़ौज के भीतर और फ़ौजी ख़ानदानों का समर्थन हासिल है.

हालांकि, पाकिस्तानी फ़ौज के कड़ा रुख़ अपनाने के बावजूद उन आशंकाओं को दूर नहीं किया जा सका है कि, पाकिस्तान आर्मी के आम फौजी किसहद तक अपने जनरलों के साथ हैं. माना जाता है कि इमरान ख़ान को फ़ौज के भीतर और फ़ौजी ख़ानदानों का समर्थन हासिल है. हो सकता है कि इनमें सेबहुत से लोग खुलकर इमरान ख़ान की वकालत कर रहे हों, क्योंकि इससे उनके लिए दिक़्क़तें पैदा हो सकती हैं. लेकिन, फौज के भीतर इमरान केलिए समर्थन है, इसमें कोई शक नहीं. ISPR के बयान में इस बात की कोशिश दिखाने की बू आती है कि फ़ौज पूरी तरह से अपने चीफ, जनरल आसिममुनीर के पीछे एकजुट होकर खड़ी है. इससे पहले पाकिस्तानी फ़ौज को अपने इरादे जताने के लिए इतने लंबे चौड़े बयान जारी करने की ज़रूरत कभी नहींपड़ती थी. फौज के बयान में एक असहाय स्थिति भी ज़ाहिर होती है. और, ऐसा लगता है कि फ़ौजी जनरल इस बात की उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इमरानख़ान और उनके समर्थक जज मौजूदा हक़ीक़त को समझ जाएंगे और पाकिस्तानी फ़ौज की तरफ़ से दी जा रही धमकी के आगे झुक जाएंगे. आख़िरकार, अगर फ़ौज जो चाहती थी, वो उसे मिल गया होता, तो ये तो पहले ही हो गया होता. लेकिन, आज अगर पाकिस्तानी सेना को सभी फ़ॉर्मेशन कमांडर कोबुलाकर चार दिन तक बैठक करके और एकजुटता का संदेश देना पड़ रहा है, तो इसका मतलब साफ़ है कि क़ानून के दायरे में रहते हुए पाकिस्तानी फ़ौजके पास भी ज़्यादा विकल्प हैं नहीं. ये विकल्प तब और सीमित हो जाते हैं, जब पाकिस्तान की अदालतें फौज के इशारे पर चलने से इनकार करती हैं. अबतक तो यही होता दिख रहा है.

इस दौरान, तमाम दबावों के बावजूद इमरान ख़ान ज़िद पर अड़े हुए हैं. जबकि उनकी पार्टी को टुकड़े टुकड़े किया जा रहा है. यहां तक कि उनके ख़िलाफ़अनगिनत केस दायर किए जा रहे हैं, जिनमें एक तो हत्या का मुक़दमा भी है. इससे एक बार फिर ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो की न्यायिक हत्या की यादें ताज़ाहो गई हैं. कुछ ख़बरों के मुताबिक़, इमरान को इस बात का यक़ीन है कि या तो फ़ौज के भीतर जनरल आसिम मुनीर के ख़िलाफ़ बग़ावत हो जाएगी याफिर सेना पर किसी तरह से ऐसा दबाव पड़ेगा कि उसे झुकना पड़ेगा और वो वापस सत्ता में लौट आएंगे. इमरान की ये सोच तो बहुत दूर की कौड़ी मालूमहोती है. लेकिन, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि, जिस तरह से पाकिस्तानी फ़ौज डंडा चला रही है, उससे पाकिस्तान के आम औरख़ास, सभी तबक़ों में नाराज़गी बढ़ रही है. नेताओं और कार्यकर्ताओं पर आत्मसमर्पण करने का पर दबाव बनाने के लिए महिलाओं और मां-बाप समेतपरिवार के सदस्यों की गिरफ़्तारी को अवाम के बीच पसंद नहीं किया जा रहा है. इमरान ख़ान के क़रीबी रहे पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के एक बड़े नेता केपिता को गिरफ़्तार करते वक़्त, उनके साथ बदसलूक़ी की गई, वो भी सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उनके कुछ रिश्तेदार अभी भी इमरान ख़ान की पार्टी में बनेहुए हैं. इमरान ख़ान के क़रीबी सहयोगी रहे एक नेता के पिता, जो गवर्नर भी रह चुके हैं, उनको जिस तरह घसीट कर ले जाया गया, उसकी चर्चा पूरेपाकिस्तान में हुई. छोटे शहरों और क़स्बों में तो इमरान समर्थकों पर और भी सख़्ती की जा रही है. सुरक्षाकर्मी लोगों के घरों के दरवाज़े तोड़कर दाख़िल होरहे हैं. पुलिस इमरान समर्थकों के घर में लूटपाट कर रही है, और परिवार के सदस्यों के साथ गाली-गलौज और मारपीट की जा रही है. पंजाब सूबे में इनहरकतों का पाकिस्तानी सेना की छवि और सम्मान पर बुरा असर पड़ेगा, जो लंबे समय तक बना रहेगा. लेकिन, फ़ौरी तौर पर ख़तरा ये है कि ऐसी सख़्तीके उल्टे नतीजे भी देखने को मिल सकते हैं.

इमरान को इस बात का यक़ीन है कि या तो फ़ौज के भीतर जनरल आसिम मुनीर के ख़िलाफ़ बग़ावत हो जाएगी या फिर सेना पर किसी तरह से ऐसा दबाव पड़ेगा कि उसे झुकना पड़ेगा और वो वापस सत्ता में लौट आएंगे. इमरान की ये सोच तो बहुत दूर की कौड़ी मालूम होती है.

अभी तो उम्मीद या आशंका यही है कि इमरान ख़ान को शायद गिरफ़्तार कर लिया जाएगा और फिर जेल में उनके इरादे तोड़ने की पुरज़ोर कोशिश कीजाएगी. अगर, इमरान ख़ान को सियासी तौर पर ख़त्म किया जा सका, तो शायद उन्हें कुछ रियायत मिल जाए. हालांकि, इमरान ख़ान की पार्टी कोतोड़ना और बड़े नेताओं को अलग करना ही काफ़ी नहीं होगा; लेकिन, अगर इमरान ख़ान सियासी तौर पर प्रासंगिक बने रहते हैं, तो उनके साथ आगे क्याहोगा, इसका बस अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है.

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Sushant Sareen

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Sushant Sareen is Senior Fellow at Observer Research Foundation. His published works include: Balochistan: Forgotten War, Forsaken People (Monograph, 2017) Corridor Calculus: China-Pakistan Economic Corridor & China’s comprador   ...

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