अमेरिका में बाइडेन प्रशासन को करीब-करीब एक साल होने वाले हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की पराजय पक्की हो चुकी थी. बाइडेन सुपर पावर अमेरिका के राष्ट्रपति बनने की तैयारी में थे. बाइडेन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने से पहले न केवल अमेरिका बल्कि दुनियाभर के लोगों को उनसे कई तरह की उम्मीदें थी. अब उन्हें इस पद पर आसीन हुए क़रीब एक वर्ष का समय पूरा होने वाला है. ऐसे में सवाल उठता है कि बाइडेन प्रशासन का रिपोर्ट कार्ड क्या है ? क्या बाइडेन देश दुनिया की कसौटी पर खरे उतरे हैं ? अमेरिकी नागरिकों ने जो उम्मीदें उनसे लगाई थी, क्या वह पूरी हुई है ? आज चीन से लेकर ईरान तक सभी अमेरिका को अपना तेवर दिखा रहे हैं. ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका कमजोर हुआ है या अमेरिका की महाशक्ति की छवि कमजोर हुई है ? अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का फैसला कितना जायज़ रहा है ?
अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया ने अमेरिकी महाशक्ति की साख को धक्का पहुंचाया है.
अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद साख़ गिरी
1- प्रो. हर्ष वी पंत ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया ने अमेरिकी महाशक्ति की साख को धक्का पहुंचाया है. उन्होंने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का फैसला बाइडेन के पूर्ववर्ती ट्रंप के कार्यकाल में लिया गया था, लेकिन बाइडेन प्रशासन के वक्त अमेरिकी सैनिकों की वापसी हुई.
2- उन्होंने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति की पूरी दुनिया में काफी मजबूत छवि रहती है. हालांकि यही छवि उस वक्त कमजोर दिखाई दी, जब अफगानिस्तान में बिना राजनीतिक हल निकाले अमेरिकी सैनिकों की वापसी करा ली गई. अमेरिका ने जिस तरह यहां से अपने सैनिक बुलाए, वह दुनिया के सामने काफी कमजोर दिखाई दिया. इतना तक कहा गया कि अमेरिका तालिबान से हार गया है. बाइडेन अमेरिका के दुश्मन देशों के आगे कमजोर नज़र आ रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की हुकूमत का वापस आना और लोकतांत्रिक सरकार का पतन कहीं न कहीं अमेरिकी रणनीति के पराजय के रूप में देखा गया.
3- प्रो पंत ने कहा कि बाइडेन प्रशासन के पूर्व ट्रंप ने अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी एक तय एजेंडा के तहत निर्धारित की थी. इसके तहत सैनिकों की वापसी के पूर्व अफ़ग़ानिस्तान में एक लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना की जानी थी. बाइडेन प्रशासन ने जिस मोड़ पर आकर अफगान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का आदेश दिया उससे काबूल में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई. अफ़ग़ानिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार का पतन हुआ और सत्ता की बागडोर तालिबान के पास चली गई.
4- उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की हुकूमत का वापस आना और लोकतांत्रिक सरकार का पतन कहीं न कहीं अमेरिकी रणनीति के पराजय के रूप में देखा गया. जाहिर है कि इसे कहीं न कहीं बाइडेन प्रशासन की विफलता के रूप में देखा गया. बाइडेन प्रशासन के इस फैसले का देश के बाहर और अंदर निंदा हुई. इतना ही नहीं उनकी खुद की डेमोक्रेटिक पार्टी के कई सदस्य इस फैसले के ख़िलाफ थे. विपक्षी रिपब्लिकन ने इस मुद्दे को सीनेट में उठाया था.
5- अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद चीन ने ताइवान के मसले पर तंज किया था. अमेरिका पर अफ़ग़ानिस्तान से रण छोड़कर भागने का आरोप भी लगाया. उस वक्त चीन ने ताइवान को आगाह किया था कि अमेरिका का साथ टिकाऊ नहीं है. चीन ने कहा था कि वह अमेरिका के बल पर चीन से अलग रहने की कोशश नहीं करे.
चीन ने महाशक्ति अमेरिका को दी बड़ी चुनौती
1- प्रो. पंत ने कहा कि चीन के मोर्चे पर भी बाइडेन प्रशासन के कार्यकाल को बहुत सफल नहीं कहा जा सकता है. अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि ट्रंप प्रशासन के बाद अमेरिका-चीन के तनाव में कमी आएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. यह संयोग है कि बाइडेन के सत्ता में आने के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने कोई विदेश यात्रा नहीं की. हालांकि, बाइडेन और चिनफिंग के बीच वर्चुअल बैठकें हुईं, लेकिन वह दोनों देशों में चले आ रहे तनाव को कम नहीं कर सकी. बाइडेन प्रशासन चीन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने में एकदम असफल रहा.
चीन की वायु सेना ने कई बार ताइवान की सीमा का अतिक्रमण किया है. अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के बहाने उसने बाइडेन प्रशासन पर तंज कसकर अमेरिकी महाशक्ति को ललकारा था.
2- ट्रेड वार का मामला हो चाहे ताइवान को लेकर दोनों देशों के बीच रिश्ते पहले से ज्यादा तल्ख हुए हैं. बाइडेन के सत्ता में आने के बाद चीन ताइवान को लेकर और आक्रामक हुआ है. चीन की वायु सेना ने कई बार ताइवान की सीमा का अतिक्रमण किया है. अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के बहाने उसने बाइडेन प्रशासन पर तंज कसकर अमेरिकी महाशक्ति को ललकारा था.
3- हाइपरसोनिक मिसाइल के परीक्षण के बाद दोनों देशों के बीच शस्त्रों की एक नई होड़ शुरू हुई है. चीन की इस मिसाइल ने अमेरिका की नींद उड़ा दी. अमेरिकी महाशक्ति के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी.
4- बाइडेन प्रशासन उस क़ानून को भी लाने के पक्ष में नहीं है, जिसके तहत चीन के उस सामान के निर्यात पर रोक लगाई जाएगी, जिसे उइगर मुस्लिम समुदाय का उत्पीड़न करके तैयार किया गया है. बाइडेन और उनकी टीम बेशक ऐसा मानती है कि कड़ी प्रतिक्रिया के कारण संघर्ष हो सकता है,लेकिन उन्हें ये भी जानना जरूरी है कि कुछ नहीं कहना भी उन्हें कमजोर दिखाता है और ऐसा करना संघर्ष को रोकने की गारंटी नहीं देता है.
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