इस साल एक नवंबर, 2020 के दिन अफ़ग़ानिस्तान और श्रीलंका के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 62वीं वर्षगांठ है. इस मौके पर पर जश्न मनाने के लिए, अफ़गान और श्रीलंकाई नेताओं ने एक दूसरे को बधाई संदेश भेजे और देशों के बीच संबंधों को और गहरा करने के लिए अपने-अपने स्तर पर पारस्परिक प्रतिबद्धता जताई.
इस मौके पर श्रीलंका के प्रधान मंत्री महिंदा राजपक्षे ने ट्वीट कर कहा कि, “आज, श्रीलंका और अफ़ग़ानिस्तान राजनयिक संबंध स्थापित करने के 62 साल मना रहे हैं. दोनों देशों का नेतृत्व एक दूसरे को पारस्परिक रूप से लाभान्वित करने और दोनों देशों के बीच दोस्ती व द्विपक्षीय संबंधों को परस्पर रूप से जारी रखने और आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है.” राष्ट्रपति अशरफ़ गनी ने इसके जवाब में लिखा, “धन्यवाद, प्रधानमंत्री राजपक्षे. मैं इस शुभ अवसर पर आपको और श्रीलंका के लोगों को भी बधाई देना चाहता हूं. अफ़ग़ानिस्तान लंबे समय तक दोनों देशों के बीच रिश्तों को समृद्ध बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है. हमारे पास एक साझा विरासत है, और आने वाले भविष्य में हम क्षेत्रीय संपर्क कार्यक्रमों के ज़रिए इस विरासत को बनाए रखेंगे.”
यह सही है कि अफ़ग़ानिस्तान और श्रीलंका के बीच बौद्ध धर्म, इस्लाम और हिंदू धर्म जैसी प्रमुख विश्वास प्रणालियों के चलते, समय के अंतहीन अंतराल से, सांस्कृतिक संबंध रहे हैं और दोनों देशों ने एक ऐसी विरासत को साझा किया है, जिसमें गांधार क्षेत्र का वर्चस्व था. इसमें आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान शामिल है जहां से बौद्ध धर्म, दक्षिण, मध्य और पूर्वी एशिया तक फैला था. इतिहास बताता है कि स्वर्ग-द्वीप (paradise island) के रूप में पहचाने जाने वाले श्रीलंकाई क्षेत्र के शुरुआती निवासी, भारत के उत्तर-पश्चिमी इलाकों और सिंधु नदी क्षेत्र से आए, जहां तब से लेकर आज तक अफ़गान बसे हुए हैं.
अफ़ग़ानिस्तान की साम्राज्यवादी शक्तियां, जिन्होंने बाद में समृद्ध होते हमारे इस इलाके में इस्लाम को अपनाया और उसका प्रचार किया, उनमें बामियान के बुद्धों के लिए श्रद्धा थी और वह उनकी रक्षा करते थे.
बामियान के बुद्ध हमारी साझा विरासत और अफ़ग़ानिस्तान की सांस्कृतिक बहुलता व विविधता का वसीयतनामा हैं, जो आज अफ़ग़ानिस्तान और इसके लोगों की पहचान को रेखांकित करते हैं. यही वजह है कि अफ़ग़ानिस्तान की साम्राज्यवादी शक्तियां, जिन्होंने बाद में समृद्ध होते हमारे इस इलाके में इस्लाम को अपनाया और उसका प्रचार किया, उनमें बामियान के बुद्धों के लिए श्रद्धा थी और वह उनकी रक्षा करते थे. लेकिन चरमपंथ की राह पर चलने वाले तालिबान का संक्षिप्त कुशासन एक अपवाद था, क्योंकि अमेरिका पर 11 सितंबर को हुए हमले से कुछ महीनों पहले ही उन्होंने मार्च 2001 में छठी शताब्दी की इन मूर्तियों को नष्ट कर दिया. इस दिन को दुनिया भर में मौजूद अफ़ग़ान प्रवासी समुदाय सहित अफ़ग़ानिस्तान के लोग, सांस्कृतिक खज़ाने के लुटने और एक दुख़द नुकसान के शोक के रूप में मनाते हैं, और यह मानते हैं कि किसी भी रूप में यह फिर कभी नहीं होना चाहिए.
आधुनिक दौर में, अफ़ग़ानिस्तान और श्रीलंका ने एक नवंबर, 1958 को दोनों देशों के बीच, अनिवासी राजनयिक संबंधों (non-resident diplomatic relations) की स्थापना की. नई दिल्ली में मौजूद हमारे मिशनों ने ज़्यादातर द्विपक्षीय मामलों को संभाला, जो संघर्ष के सालों के दौरान आई कुछ रुकावटों व अंतरालों को छोड़कर, साल 2001 में तालिबान के पतन के बाद तक जारी रहा. अफ़ग़ानिस्तान ने श्रीलंका के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को बढ़ाने की कोशिशें कीं, जिसके तहत पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई और श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे जो वर्तमान में श्रीलंका के प्रधानमंत्री हैं, के बीच साल 2011 और 2012 में कई सफल वार्ताएं हुईं. साल 2013 में अफ़ग़ानिस्तान ने श्रीलंका में अपना दूतावास खोला, जिसके जवाब में श्रीलंका ने भी अफ़ग़ानिस्तान में अपना दूतावास स्थापित किया.
साझा हित और बढ़ते संबंध
दक्षिण एशिया के दो लोकतांत्रिक देशों के रूप में, अफ़ग़ानिस्तान और श्रीलंका के बढ़ते संबंध और साझेदारी, दोनों देशों के मज़बूत नेतृत्व और अनारक्षित समर्थन से सकारात्मक रूप से प्रभावित है. नवंबर 2019 में उल्लेखनीय चुनावी जीत के फौरन बाद, राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे और मेरे बीच एक बहुत ही दोस्ताना और सार्थक बैठक हुई, जिसमें हमने उन्हें राष्ट्रपति ग़नी की ओर से हार्दिक बधाई दी और द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता के बारे में बताया. राष्ट्रपति राजपक्षे ने इसका स्वागत किया. पिछले अगस्त के आम चुनावों में प्रधानमंत्री राजपक्षे, जो लंबे समय से अफगानिस्तान के मित्र रहे हैं, की प्रचंड जीत के बाद, उनके साथ एक फिर यह दोस्ताना आदान-प्रदान किया गया. राष्ट्रपति ग़नी ने इस मौके पर श्रीलंका के लोगों को बधाई दी और श्रीलंका व दक्षिण एशिया में लोकतंत्र की एक बड़ी जीत के रूप में इस परिणाम का स्वागत किया.
दोनों देशों के बीच, द्विपक्षीय व्यापार और निवेश की कमी को लेकर खासतौर पर बातचीत हुई, और इस बाबत हमने यथास्थिति को बदलने के लिए विश्वसनीय रूप से संपर्क तंत्र स्थापित करने के महत्व पर ज़ोर दिया है
इन दोनों बैठकों में, हमने अपने मौजूदा संबंधों की स्थिति की समीक्षा की और उन सभी द्विपक्षीय समझौतों (MOUs) को लागू करने के महत्व पर सहमति जताई, जिन पर अफ़ग़ानिस्तान और श्रीलंका ने अब तक हस्ताक्षर किए हैं. हमने लंबित समझौतों पर हस्ताक्षर को लेकर, प्रक्रियात्मक कार्यों में तेज़ी लाने के लिए भी सहमति जताई, जो हस्ताक्षर किए जा चुके ज्ञापन व समझौतों (MOUs) के अलावा, मिलकर राजनीतिक, सामाजिक-आर्थिक, सुरक्षा, रक्षा, और सांस्कृतिक क्षेत्रों में काम करने व दोनों देशों के बीच सहयोग कायम करने से संबंधित है. इस दौरान, दोनों देशों के बीच, द्विपक्षीय व्यापार और निवेश की कमी को लेकर खासतौर पर बातचीत हुई, और इस बाबत हमने यथास्थिति को बदलने के लिए विश्वसनीय रूप से संपर्क तंत्र स्थापित करने के महत्व पर ज़ोर दिया है, जिससे व्यावसायिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के ज़रिए दोनों देशों के लोगों के बीच संबंधों को भी गहरा किया जा सके.
नतीजतन, राष्ट्रपति राजपक्षे द्वारा श्रीलंकाई एयरलाइंस को कोलंबो-काबुल के बीच सीधी उड़ानों के लिए विकल्प तलाशने और ज़रूरी अध्ययन करने का काम सौंपा गया. यह काम अब तक पूरा हो गया होता, अगर फरवरी के बाद कोविड-19 की महामारी के कारण यात्राओं पर प्रतिबंध न लगा होता और व्यापक स्तर पर लॉकडाउन की कार्रवाई न की गई होती. हालांकि, यह मामला दोनों पक्षों के बीच विचार के लिए अब भी बना हुआ है, क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान और श्रीलंका साझा हितों को साधने के लिए हर रुप में संपर्क स्थापित करने को तत्पर हैं, फिर चाहे वह आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में हो या राजनीतिक व रक्षा के क्षेत्र में, क्योंकि दोनों पक्ष आतंकवाद, उग्रवाद और आपराधिकता के बढ़ते ख़तरों को लेकर चिंतित हैं, जिनका भारत-प्रशांत क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा पर खासा प्रभाव हो सकता है.
अफ़ग़ानिस्तान की शांति प्रक्रिया: श्रीलंका से सबक
लंबे समय के युद्धकाल के दौरान शांति की प्रक्रिया सहित संघर्ष को लेकर, श्रीलंका का अनुभव हमें काफी कुछ सिखा सकता है. श्रीलंका के विपरीत, अफ़ग़ानिस्तान में हिंसा और संघर्ष के क्षेत्रीय और वैश्विक, कई रूप हैं और आतंकवाद से लड़ने के अलावा ये देश कई आपराधिक समूहों से भी लड़ रहा है, जो तालिबान की छत्रछाया में अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी इलाकों में सुरक्षित ठिकानों से काम कर रहे हैं. साल 2014 में हस्तांतरण की प्रक्रिया खत्म होने के बाद से, जब नाटो के अधिकांश सैनिक अफगानिस्तान से निकल गए थे, हमारी बहादुर सेना ने अकेले अपने दम पर, अलक़ायदा और आईएसआईएस (ISIS) सहित आतंकवादी समूहों के ख़िलाफ़ 75 प्रतिशत से भी अधिक सैन्य कार्यवाहियों का संचालन किया है. अफ़ग़ान सैनिकों ने न केवल अफ़ग़ानिस्तान की रक्षा के लिए अपना बहुमूल्य जीवन दिया है, बल्कि उन्होंने क्षेत्रीय स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय शांति सुनिश्चित करने में भी मदद की है.
श्रीलंका के विपरीत, अफ़ग़ानिस्तान में हिंसा और संघर्ष के क्षेत्रीय और वैश्विक, कई रूप हैं और आतंकवाद से लड़ने के अलावा ये देश कई आपराधिक समूहों से भी लड़ रहा है, जो तालिबान की छत्रछाया में अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी इलाकों में सुरक्षित ठिकानों से काम कर रहे हैं.
ऐसे समय में जब हम बाहरी आक्रामकता के ख़िलाफ़ अपने देश का बचाव जारी रखते हैं, अफ़ग़ानिस्तान की सरकार ने तालिबान के साथ एक समझौता वार्ता के माध्यम से शांति का रास्ता अपनाया है. इस लेख के लिखे जाने तक, इस्लामिक रिपब्लिक की ओर से बातचीत करने वाला दल, दोहा में बना हुआ है और अपनी प्रमुख प्रतिबद्धताओं पर ख़रा उतरने के लिए तालिबान का इंतज़ार कर रहा है, जिसमें परिणाम-आधारित वार्ता प्रक्रिया और समूचे अफ़ग़ानिस्तान में हिंसा में उल्लेखनीय कमी का मुद्दा शामिल है. इसके बाद देश में मानवतावादी व स्थायी संघर्ष विराम लागू किया जाना होगा. ये अफ़ग़ान लोगों की मुख्य़ मांगें हैं, और इनके तहत हमारे प्रतिनिधियों ने पिछले साल अगस्त में एक सलाहकारी शांति जिरगा आयोजित कर मुलाकात की, जिसमें सरकार को गरिमापूर्ण तरीकों से और टिकाऊ शांति प्राप्त करने के लिए 5,000 से अधिक तालिबानी कैदियों को रिहा करने के लिए अधिकृत किया गया.
अब तक, तालिबान बातचीत में शामिल दलों के साथ रचनात्मक व सकारात्मक रूप से जुड़ने में लड़खड़ाया भी है, व कई मायनों में विफल भी रहा है. इस बीच अफ़ग़ानिस्तान के अधिकांश हिस्सों में हिंसा लगातार बढ़ती रही है, जिसमें हर दिन निर्दोष नागरिकों की हत्या हो रही है. इसमें काबुल विश्वविद्यालय पर हालिया आतंकवादी हमला शामिल है, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने निंदनीय करार दिया और इसे युद्ध अपराध कहा. लेकिन अगर तालिबान वास्तविक रूप में शांति बहाल करने के लिए आगे आता है और विदेशी प्रभाव और नियंत्रण को हटाकर इस प्रक्रिया को एक मौका दिया जाता है, तो अफ़ग़ानिस्तान में गरिमापूर्ण रूप से स्थायी शांति प्राप्त जा सकती है. निश्चित रूप से, संघर्ष के बाद शांति और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए, अफ़ग़ानिस्तान अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से सीख लेने की कोशिश करेगा, जिसमें श्रीलंका द्वारा सफल रूप से युद्ध-से-शांति में हस्तांतरण के सबक शामिल हैं. इसमें पूर्व लड़ाकों, अफ़ग़ानिस्तान वापस लौटे शरणार्थियों और आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों (internally displaced persons-आईडीपी) के सामाजिक पुनर्मिलन सहित प्रभावी रूप शांति-निर्माण कार्यक्रम लागू करना शामिल है.
ड्रग्स की समस्या का मिलकर सामना करना
आतंकवाद-रोधी सहयोग के अलावा अफ़ग़ानिस्तान, श्रीलंका और दक्षिण एशिया के बाकी हिस्सों में मादक पदार्थों की खेती, उत्पादन और तस्करी से पैदा हुए अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा ख़तरों से लड़ने में श्रीलंका के सहयोग व समर्थन का स्वागत करता है. यही कारण है कि हमने इस बाबत, राजदूत पियाल डी सिल्वा की नियुक्ति का स्वागत किया है, जो पूर्व नौसेना कमांडर होने के अलावा, प्रासंगिक रूप से नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने और इसे बंद करने में अनुभव रखते है. हम उनके साथ मिलकर काम करने को तत्पर हैं, और तालिबान-निर्मित नशीली दवाओं के श्रीलंका में प्रवाह को रोकने के लिए, आवश्यक सुरक्षा और कानून प्रवर्तन संस्थाओं को विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
श्रीलंका को 30 मिलियन से अधिक उपभोक्ताओं की आबादी वाले अफ़ग़ानिस्तान में अपनी बढ़ती मौजूदगी और उपस्थिति से बहुत फ़ायदा होगा, जहां श्रीलंका के राजनयिक देश के निजी क्षेत्र में निवेश के अवसरों का लाभ उठाने में मदद कर सकते हैं.
हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान में ड्रग्स का उत्पादन लगातार रूप से बढ़ती नशीले पदार्थों की क्षेत्रीय और वैश्विक मांग से प्रेरित है. यह पूरी तरह सही है कि वैश्विक रुप से सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य की इस चुनौती को हराने और ख़त्म करने के लिए समग्र रूप से अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है. अफ़ग़ानिस्तान ने अब तक इस समस्या के सबसे बड़े हिस्से को सुलझाने और उसका सामना करने का काम किया है. वह ड्रग्स के ख़िलाफ़ इस लड़ाई में अपने बहादुर पुलिसवालों और सैनिकों को लगभग रोज़ खो रहा है. अब यह ज़रूरी है कि हमारी सरकार द्वारा नशीले पदार्थों के ख़िलाफ़ की जा रही इस कार्यवाही का नेतृत्व और समर्थन करने के लिए अन्य लोग भी सामने आएं.
सिल्क रोड का रास्ता: निवेश के अवसर
जिस तरह श्रीलंका “हिंद महासागर का गहना” है वैसे ही अफ़ग़ानिस्तान “हार्ट ऑफ एशिया” है, जो सभी दिशाओं में, उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक, रेशम मार्ग (Silk road) के लिए प्रवेश द्वार है. हम दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के बीच भौगोलिक रूप से सही जगह पर स्थित हैं, और हम क्षेत्रीय सहयो ग और समर्थन के साथ स्थायी शांति प्राप्त करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, ताकि अफ़ग़ानिस्तान, उप-महाद्वीप, दक्षिण-पश्चिम एशिया और मध्य एशिया के बीच भूमि-सेतु के रूप में अपनी प्राकृतिक भूमिका निभा सकें.
हमारी भौगोलिक केंद्रीयता को देखते हुए व ऊर्जा संबंधी सहुलियत के चलते, पारगमन व्यापार की दृष्टि से कोई भी बड़ी संपर्क परियोजना अफ़ग़ानिस्तान के बग़ैर संभव नहीं है. यही कारण है कि श्रीलंका को 30 मिलियन से अधिक उपभोक्ताओं की आबादी वाले अफ़ग़ानिस्तान में अपनी बढ़ती मौजूदगी और उपस्थिति से बहुत फ़ायदा होगा, जहां श्रीलंका के राजनयिक देश के निजी क्षेत्र में निवेश के अवसरों का लाभ उठाने में मदद कर सकते हैं. इसके अलावा अफगानिस्तान में यह मौजूदगी, 70 मिलियन से अधिक उपभोक्ताओं की आबादी वाले मध्य एशिया में भी इसी तरह के अवसरों का पता लगाने के लिए इस्तेमाल की जा सकती है.
जैसे-जैसे हम दक्षिण एशिया में टकराव के ख़िलाफ़ सहयोग की दिशा में वक़ालत जारी रखते हैं, अफ़ग़ानिस्तान लगातार एक ऐसी विदेशी नीति अपनाता रहा है, जो प्रतिरक्षा संविदा रणनीतियों के मुक़ाबले, क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देती है.
इस परिस्थिति के मद्देनज़र, कोविड-19 की चुनौती के बावजूद, हमने हाल ही में, अफ़ग़ानिस्तान चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इनवेस्टमेंट (Afghanistan Chamber of Commerce and Investment-ACCI) और सिलॉन चैंबर ऑफ कॉमर्स (Ceylon Chamber of Commerce-CCC) के बीच सहयोग समझौते (MoU) पर हस्ताक्षर के लिए पिछले कुछ महीनों में कड़ी मेहनत की है. यह कोशिशें हमने दोनों पक्षों के बीच निवेश और व्यापार की असीम संभावनाओं को देखते हुए की हैं, क्योंकि हम मानते हैं कि दोनों पक्षों के लिए इसमें लाभ मौजूद हैं और इस दिशा में काम किया जाना चाहिए. जैसा कि हमने राष्ट्रपति राजपक्षे और प्रधान मंत्री राजपक्षे के साथ चर्चा की, कि जैसे ही दोनों देशों के बीच सीधा हवाई संपर्क स्थापित हो जाएगा, श्रीलंका का पर्यटन उद्योग, जिसमें चिकित्सा पर्यटन (medical tourism) और उच्च शिक्षा पर्यटन (higher education tourism) शामिल हैं, अफ़ग़ानिस्तान में पैदा हो रही मांग से अत्यधिक रूप में लाभान्वित होगा. हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस तरह के संपर्क के एक साल के भीतर आसानी से काबुल और कोलंबो के बीच दैनिक-फ्लाइट संचालित करने की आवश्यकता पड़ सकती है- जो पर्यटकों को आसान व त्वरित यात्रा की सुविधाएं प्रदान करे, उपचार के लिए श्रीलंका की यात्रा करने की मंशा रखने वालों के काम आए और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों के लिए सुलभ हो. इसके अलावा निवेश के अवसरों की तलाश करने वाले व्यवसायियों के लिए भी यह हवाई संपर्क, फ़ायदेमंद साबित होगा.
इसके अलावा, श्रीलंका के प्रमुख उत्पाद जैसे सिलॉन चाय; परिधान और वस्त्र; मसाले; खाद्य व पेय; और नारियल व नारियल पर आधारित उत्पाद आसानी से अफ़ग़ानिस्तान में लाभदायक बाज़ार पा सकते हैं. उदाहरण के लिए अफ़ग़ानिस्तान, पेय के रुप में चाय को अपनाने वाला राष्ट्र है, और प्रत्येक वयस्क अफ़ग़ान एक दिन में छह कप से अधिक चाय का उपभोग करता है. इसके बावजूद हम चाय का उत्पादन नहीं करते हैं. यही कारण है कि हम श्रीलंका के चाय उद्योग को एक कदम आगे ले जाने की क्षमता रखते हैं और हम लगातार इस उद्योग को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वह श्रीलंका के चुनिंदा और बेहतरीन उत्पादों को अफगानिस्तान निर्यात करने के बारे में सोचें, ताकि देश की स्वादिष्ट चाय की किस्मों को अफगानिस्तान तक पहुंचाया जा सके.
इसी के साथ, हमने श्रीलंका के आभूषण उद्योग से जुड़े लोगों को काबुल की यात्रा करने के लिए प्रोत्साहित किया है, ताकि वह खुद यह देख सकें कि अफ़ग़ानिस्तान में किस हद तक निवेश के अवसर मौजूद हैं. अफ़ग़ानिस्तान एक ऐसा देश है जो खनिजों के अनमोल भंडार और कीमती पत्थरों के खनिज संसाधनों के मामले में दुनिया का सबसे समृद्ध राज्य है. इस क्षेत्र में मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए अफ़ग़ानिस्तान को न केवल श्रीलंका की खोज और निष्कर्षण संबंधी तकनीकी सहयोग की ज़रूरत है, बल्कि अफ़ग़ानिस्तान के कीमती और अर्ध-कीमती पत्थरों के प्रसंस्करण, डिज़ाइन, और उन्हें हासिल करने में श्रीलंका के अनुभव और विशेषज्ञता की भी ज़रूरत है, ताकि परस्पर लाभ के लिए पन्ना, माणिक, लैपिस लाजुली, गार्नेट, टूयरम्लाइन, और अन्य धातुओं का इस्तेमाल किया जा सके.
सार्क: मतभेदों के ख़िलाफ़ परस्पर सहयोग
जैसे-जैसे हम दक्षिण एशिया में टकराव के ख़िलाफ़ सहयोग की दिशा में वक़ालत जारी रखते हैं, अफ़ग़ानिस्तान लगातार एक ऐसी विदेशी नीति अपनाता रहा है, जो प्रतिरक्षा संविदा रणनीतियों के मुक़ाबले, क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देती है. हमारा दृढ़ विश्वास है कि क्षेत्रीय स्तर पर टकराव संबंधी नीतियों को, सहकारी, परस्पर रूप से लाभकारी और भागीदारी में बदलने से क्षेत्र में मौजूदा अंतरराज्यीय तनाव कम हो जाएंगे.
यह दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) की बुनियादी अवधारणा को साकार करने की दिशा में भी सक्षम होगा क्योंकि दक्षिण एशिया एक अत्यंत युवा और स्वाभाविक रूप से संपन्न क्षेत्र है, जहां के नागरिक जो मुख्य़ रूप से युवा हैं, एक सामान्य व अन्योन्याश्रित पड़ोस चाहते हैं, जहां नौकरियों के अवसर हों और एक सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित किया जा सके. वास्तव में, यह तब तक संभव नहीं होगा जब तक कि दक्षिण एशियाई सरकारें युद्ध के पहले और बाद के यूरोप से सबक नहीं सीखती हैं. यह सीख उन्हें आर्थिक एकीकरण के माध्यम से पूरे क्षेत्र में साझा रूप से शांति और समृद्धि प्राप्त करने के लिए, यथास्थिति के ख़िलाफ़ मुश्किल लेकिन ज़रूरी नीतिगत विकल्प तलाशने की ओर क़दम बढ़ाने को प्रेरित करती है.
अफ़ग़ानिस्तान सरकार ने इस संबंध में अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी निभाई है, और वह ऐसा करना जारी रखेगा. हमारे देश के समक्ष मौजूद सुरक्षा संबंधी चुनौतियों के बावजूद, हमने अपने निकट और दूर के पड़ोसियों के कार्यान्वयन व अनुसरण के लिए एक रणनीतिक समाधान सामने रखा है. क्षेत्रीय सुरक्षा और सहयोग के ज़रिए, अफ़ग़ानिस्तान में स्थायित्व और सतत विकास के लिए स्थापित, ‘हार्ट ऑफ एशिया-इस्तांबुल प्रक्रिया यानी एचओए-आईपी’ (Heart of Asia–Istanbul Process -HOA-IP) और अफगानिस्तान के मसले पर क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग सम्मेलन (Regional Economic Cooperation Conference on Afghanistan- RECCA) अफ़ग़ानिस्तान में आर्थिक व क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने की मंशा से स्थापित की गई प्रक्रियाएं हैं, जिन्हें सार्क हमेशा से पूरा करने का प्रयास करता रहा है.
भले ही एचओए-आईपी (HOA-IP) और आरईसीसीए (RECCA) अब तक अविकसित रहे हों, यह भारत और पाकिस्तान सहित सभी देशों के निकट और दीर्घकालिक हित में है कि वह साझा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इन दोनों प्रक्रियाओं में भाग लें. इन परस्पर प्रक्रियाओं का लाभ उठाने के लिए वह जो भी ठोस कदम उठाते हैं, वह हर रुप में, आतंकवादी, चरमपंथी और आपराधिक सांठगांठ के ख़िलाफ़ उनकी स्वयं की और अन्य देशों की उन सुरक्षात्मक और सामाजिक-आर्थिक कमज़ोरियों को कम करने में मदद करेगा, जिनका शिकार अफ़ग़ानिस्तान लंबे समय से होता रहा है.
आगे का रास्ता
अफ़ग़ानिस्तान में पिछले चार दशकों से जारी संघर्ष ने इस बात को साबित कर दिया है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष साधनों के माध्यम से बाहरी आक्रमण जैसे कि तालिबान सहित दूसरे बलों की तैनाती, ने क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने में शायद ही कोई भूमिका निभाई है, भले ही हमारे पड़ोसियों की घोषित नीतियां हमेशा एक स्थिर और शांतिपूर्ण अफ़ग़ानिस्तान चाहती थीं, जो उनकी अपनी लघुकालिक व दीर्घकालिक आर्थिक व सुरक्षा ज़रूरतों के हित में हो.
राष्ट्रपति गनी ने हमारे पड़ोसी देशों का ध्यान लगातार कई तरीकों से खींचा है, ताकि यह समूचा क्षेत्र, अफ़ग़ानिस्तान में विस्तृत रुप से फैले और व्यापक प्रभाव वाले इस युद्ध का अंत करने की दिशा में साथ आ सके, इस युद्ध से कई स्तरों पर कई देश प्रभावित हुए हैं और इसकी समाप्ति से अफ़ग़ानिस्तान में शांति और सामान्य स्थिति की वापसी होगी. यह हर अफ़गान नागरिक की प्रमुख मांग और इच्छा है. इसलिए, हमने एक राजनीतिक समझौते के ज़रिए अफ़ग़ानिस्तान में स्थायी रूप से शांति बहाल करने के लिए क्षेत्रीय सहमति को और मज़बूत करने का प्रयास किया है. अफ़ग़ानिस्तान के इस राष्ट्रीय प्रयास का उद्देश्य इस्लामिक गणराज्य को संरक्षित करना, बेहद मुश्किल दौर से गुज़र कर प्राप्त किए गए लोकतांत्रिक लाभ को बनाए रखना (जिसमें महिलाओं के अधिकार और मानवाधिकार शामिल हैं) और साथ-साथ 1990 के दशक के अंत में तालिबान के कुशासन के दौरान पैदा हुई, राज्य की विफलता और पतन की स्थिति में दोबारा न लौटने की हमारी उल्लेखनीय उपलब्धियां शामिल हैं.
इस तरह के आवश्यक परिणाम जो संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा राज्य की संप्रभुता, स्वतंत्रता, और क्षेत्रीय अखंडता के सिद्धांतों के संरक्षक के रूप में माने गए हैं, हमें अपने पड़ोस, व्यापक क्षेत्रों और अन्य लोगों के साथ काम करने में सक्षम बनाते हैं, ताकि नियमों और परस्पर सौहार्द पर टिकी एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था विकसित की जा सके. वर्तमान में यह अवधारणा, ग़रीबी, जलवायु परिवर्तन, महामारी, आतंकवाद, उग्रवाद और संगठित अपराध जैसी, क्षेत्रीय और वैश्विक चुनौतियों के कारण ख़तरे में है.
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