Published on Jul 27, 2017 Updated 0 Hours ago

अफगानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान अत्यधिक गरीबी को कम करते हुए आतंकवाद एवं कट्टरपंथ के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं।

अफगानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान: क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग की नायाब बानगी

वर्ष 2001 में तालिबान के पतन के बाद से ही अफगानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के आपसी रिश्‍ते निरंतर प्रगाढ़ होते जा रहे हैं। पिछले दो वर्षों के दौरान, विशेष रूप से, अफगानिस्तान की राष्ट्रीय एकता सरकार के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों का तेजी से विस्तार हुआ है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी और तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति गुरबांगुली बरदीमुहमदोव दोनों ही आपसी फायदे वाले आर्थिक सहयोग के विजन को साझा करते रहे हैं। इसकी झलक कई द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय आर्थिक और कनेक्टिविटी परियोजनाओं की शुरुआत एवं कार्यान्वयन में देखने को मिलती है। ये परियोजनाएं पूरे क्षेत्र में समृद्धि और सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए दोनों देशों में मुख्‍यत: आर्थिक विकास को नई गति प्रदान कर रही हें।

संक्षेप में, अफगानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान अत्यधिक गरीबी को कम करते हुए आतंकवाद और कट्टरपंथ के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। दरअसल, क्षेत्रीय और वैश्विक आतंकवादी नेटवर्क चरम गरीबी के हालात से लाभ उठाते हुए बेसहारा एवं दिशाहीन युवाओं को अपने जाल में फंसाकर उनमें कट्टरता के बीज बोते हैं एवं अपनी नापाक हरकतों को अंजाम देने के लिए उनकी भर्ती करते हैं, ताकि दक्षिण एशिया और मध्य एशिया को अस्थिर किया जा सके। घनघोर गरीबी और रोजगार अवसरों की कमी के कारण भी नशीली दवाओं के उत्पादन एवं नशीली दवाओं की तस्करी के लिए अनुकूल माहौल बन जाता है, जिससे क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्‍तर पर अपराध एकदम से बढ़ जाते हैं। यही नहीं, आपराधिक माहौल वाली अर्थव्यवस्था में जो राजस्‍व अर्जित होता है उसका इस्‍तेमाल आतंकवाद का वित्तपोषण करने, क्षेत्रीय स्थिरता को खोखला या कमजोर करने और इस प्रकार दक्षिण एशिया एवं मध्य एशिया में आर्थिक विकास को तगड़ा झटका देने में किया जाता है।

दोनों देशों के बीच अनेक उच्चस्तरीय राजकीय दौरों के आदान-प्रदान के बाद गनी ने 3 जुलाई 2017 को अशगबत का दौरा किया और अपने समकक्ष के साथ सात द्विपक्षीय सहयोग समझौतों एवं सहमति पत्रों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। इस दिशा में हुई अपेक्षित प्रगति का उपयोग दोनों नेताओं ने उन द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय बुनियादी ढांचागत, ऊर्जा और परिवहन परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में किया है जो अफगानिस्तान एवं तुर्कमेनिस्तान से होते हुए दक्षिण एशिया और मध्य एशिया को आपस में और ज्‍यादा जोड़ देंगी।

इन अत्‍यंत जरूरी परियोजनाओं के कार्यान्वयन में प्रगति से अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और अन्य देशों को अपनी व्‍यापक ऊर्जा एवं कनेक्टिविटी क्षमता का उपयोग उभरते एशिया के केंद्र में अपने सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पूरा करने में मदद मिलेगी।

विशेष रूप से, अफगानिस्तान की अर्थव्‍यवस्‍था-केंद्रित उस विदेश नीति के अनुरूप गनी ने तुर्कमेनिस्तान में बहुपक्षीय ऊर्जा और परिवहन परियोजनाओं के क्रियान्‍वयन की अहमियत पर जोर दिया, जिसमें पूर्ण-विस्‍तार या पहुंच वाली कनेक्टिविटी के जरिए क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने पर फोकस किया जा रहा है। गनी और उनके समकक्ष ने तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (तापी) प्राकृतिक गैस पाइपलाइन के निर्माण की दिशा में निरंतर प्रगति का स्वागत किया। इस पाइपलाइन के पूरी तरह तैयार हो जाने पर उस ‘जीरो-सम व्‍यवस्‍था (जितना लाभ, उतनी ही हानि)’ के सापेक्ष आर्थिक अंतर-निर्भरता सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी जो क्षेत्रीय आर्थिक विकास में बाधक होती है।

इसके अलावा, तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान (टीएपी) और तुर्कमेनिस्तान-उजबेकिस्तान-ताजिकिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान (टीयूटीएपी) बिजली परियोजनाओं पर भी चर्चा हुई। ये परियोजनाएं पूरी हो जाने पर शहरी और ग्रामीण इलाकों में ज्‍यादा बिजली सुलभ हो जाएगी, जिससे पूरे क्षेत्र में अवस्थित समस्‍त घर और छोटे एवं मझोले आकार के व्यवसाय सबसे ज्यादा लाभान्वित होंगे। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के ग्रामीण इलाकों में विद्युतीकरण से दोनों देशों को विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में अपने निराशाजनक सामाजिक विकास संकेतकों को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। उल्‍लेखनीय है कि ये दोनों ही क्षेत्र खास मायने रखते हैं क्‍योंकि इनमें गुणात्मक और मात्रात्मक सुधार होने से एक स्वस्थ एवं उत्पादक कार्यबल तैयार होगा जो दोनों ही देशों में सतत विकास सुनिश्चित करने के लिहाज से अत्‍यंत आवश्‍यक है।

दोनों पक्षों ने अफगानिस्तान-तुर्कमेनिस्तान-अजरबैजान-जॉर्जिया-तुर्की (लापीस लाजुली) व्यापार एवं पारगमन गलियारे (ट्रांजिट कॉरिडोर) के साथ-साथ ताजिकिस्तान-अफगानिस्तान-तुर्कमेनिस्तान (टीएटी) रेलवे पर भी चर्चाएं कीं, जिनके क्रियान्वित हो जाने पर पूरे क्षेत्र के लिए वैकल्पिक व्यापार मार्ग खुल जाएंगे।

दोतरफा प्रवाह सिर्फ व्यापार और निवेश नहीं है, बल्कि दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और यूरोप के लोगों के बीच आपसी संपर्क बढ़ने से अफगान निवासियों को सिल्क रोड के गोल चक्‍कर के रूप में अपने देश के पूर्व दर्जे को पुनः हासिल करने में मदद मिलेगी।

यही कारण है कि अफगानिस्तान ऐसे प्रत्येक क्षेत्रीय संगठन का एक सक्रिय सदस्य है जिसका उद्देश्‍य बुनियादी ढांचे का विस्‍तार करना और परिवहन कनेक्टिविटी बढ़ाना है। इस वर्ष अफगानिस्तान जहां एक ओर एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) से जुड़ गया, वहीं दूसरी ओर उसने चीन की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ पहल का जोरदार समर्थन किया। तुर्कमेनिस्तान की पहल पर अशगबत इस वर्ष नवंबर में अफगानिस्तान पर सातवें क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग सम्‍मेलन (आरईसीसीए VII) की मेजबानी करेगा। आरईसीसीए VII के दौरान कई प्रमुख ऊर्जा, बुनियादी ढांचागत और परिवहन परियोजनाओं की दिशा में अफगानिस्तान एवं उसके पड़ोसी देशों द्वारा की गई महत्‍वपूर्ण प्रगति पर प्रकाश डाला जाएगा। यही नहीं, इस दौरान उन भरोसेमंद निवेश अवसरों का उल्‍लेख किया जाएगा जिनसे क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय कारोबारी भरपूर लाभ उठा सकते हैं।

अफगानिस्तान की सरकार ने अफगान की जनता पर थोपे गए युद्ध और हिंसा के बावजूद ‘सबके फायदे वाले आर्थिक सहयोग’ के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक हितधारकों से एकजुट होने का आह्वान फि‍र से किया है। अफगानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के बीच निरंतर प्रगाढ़ होते आर्थिक रिश्‍ते अन्‍य देशों के लिए एक अनुपम अनुकरणीय उदाहरण है। अफगानिस्तान निरंतर पाकिस्तान सहित अपने सभी पड़ोसी देशों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाता रहा है, क्‍योंकि उसे इस बात का बखूबी अहसास है कि केवल अफगान सरकार के ‘सबके फायदे वाले आर्थिक विजन’ से ही सभी देशों का ‘सामूहिक सुरक्षित भविष्य’ सुनिश्चित किया जा सकता है।

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