क्या भारत वेब 3.0 के लिए वैश्विक नीति तैयार कर सकेगा?
1990 के दशक की शुरुआत में भारतीय अर्थव्यवस्था का उदारीकरण कर उसे वैश्विक भागीदारी के लिए खोल दिया गया. उस वक़्त भारत की टेक्नोलॉजी कंपनियां मुख्य रूप से विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए बाहरी सेवा प्रदाता के तौर पर काम करती थीं. बाद के दशक में भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाओं (ITES) का उभार हुआ. Y2K से जुड़े अवसरों ने इसे और हवा दी. इस कालखंड में दुनिया भर में इंटरनेट और इंटरनेट द्वारा संचालित टेक्नोलॉजी या डिजिटल कारोबार का उदय हुआ. हालांकि, विकास की इस यात्रा से ज़्यादातर विकसित देशों की कंपनियों को ही फ़ायदा पहुंचा. ज़ाहिर तौर पर इंटरनेट से जुड़े कारोबार के वेब 1 और वेब 2 चरणों का आग़ाज़ ज़्यादातर पश्चिमी देशों की अगुवाई में हुआ. दोनों चरणों पर मुख्य रूप से इन्हीं देशों का प्रभाव रहा. इन विशाल वैश्विक प्लेटफ़ॉर्मों में से कुछ वैश्विक स्तर पर सामाजिक और सियासी विमर्श तक को प्रभावित करते रहे हैं. इंटरनेट युग के शुरुआती वर्षों में इंटरनेट के शासन-प्रशासन और इंटरनेट से जुड़ी संभावनाओं से जुड़े नीतिगत विकास के मसलों में हिस्सेदारी करने के लिए भारत के पास एक अर्थव्यवस्था और उपभोक्ता के तौर पर ज़रूरी रुतबे का अभाव था.
वेब के विकास के चरण
जिस वक़्त इंटरनेट की परिकल्पना की गई थी (जिसे आज वेब 1 काल के तौर पर देखा जाता है), उस वक़्त इसके प्रयोगकर्ताओं के लिए संवाद के बहुत कम अवसर मौजूद थे. उस समय उपलब्ध इंटरनेट कनेक्टिविटी और उसकी रफ़्तार बेहद धीमी थी. इसी वजह से वेब पेज गतिहीन और बेहद सुस्त या धीमे होते थे. ख़ास बा़्त ये है कि इन्हें केवल पढ़ा जा सकता था और इनके साथ किसी भी तरह के संवाद की कोई संभावना नहीं थी.
आम लहज़े में कहें तो वेब 3 को इंटरनेट पर नियंत्रण या प्रभाव जमाने से जुड़े विमर्शों के विकेंद्रीकरण के विचार के हिसाब से तैयार किया जा रहा है. इसकी बुनियाद ब्लॉकचेन के विचार पर टिकी है.
जनवरी 1999 में डेर्सी डिनुकी ने अपने लेख “फ़्रैगमेंटेड फ़्यूचर” में वेब 2 शब्दावली का ईजाद किया था. इंटरनेट के विकास के इसी चरण (यानी वेब 2) में प्रयोगकर्ता को हिस्सेदारी का मौक़ा मिला. इसी दौर में सोशल मीडिया का विचार भी उभरकर सामने आया. इसने प्रयोगकर्ता को समुदायों की तरह हिस्सा लेने का अवसर दिया. साथ ही यूज़र को ख़ुद की सामग्रियां तैयार करने की भी सहूलियत दी गई. इसने उपयोगकर्ता को टेक्स्ट, वीडियो, होस्टेड सर्विसेज़, वेब ऐप्लिकेशंस (जिन्हें हम ऐप्स के तौर पर जानते हैं) समेत तमाम सामग्रियों के इस्तेमाल की ताक़त दी. बहरहाल, इसी दौर में विकसित अर्थव्यवस्थाओं (प्रमुख रूप से अमेरिका) की कुछ मुट्ठीभर कंपनियों के मालिक़ाना हक़ में इंटरनेट के विशाल प्लेटफ़ॉर्मों का भी उदय हुआ. प्रभावी तौर पर यही इकाइयां इन तमाम प्लेटफ़ॉर्मों से जुड़े विमर्शों को ‘नियंत्रित’ करती हैं- चाहे वो, दुनिया क्या देखे या पढ़े, इससे जुड़ा सवाल ही क्यों न हो. कई बार तो डिजिटल कॉमर्स के तौर पर दुनिया क्या और किस तरह से उपभोग करे, इसपर भी इन्हीं विशाल इकाइयों का नियंत्रण होता है.
वेब 3 के उभार के साथ सामग्रियों के असल निर्माताओं को समान शक्ति मुहैया कराने की क़वायद जारी है. आम लहज़े में कहें तो वेब 3 को इंटरनेट पर नियंत्रण या प्रभाव जमाने से जुड़े विमर्शों के विकेंद्रीकरण के विचार के हिसाब से तैयार किया जा रहा है. इसकी बुनियाद ब्लॉकचेन के विचार (डिस्ट्रिब्यूटेड लेजर प्लेटफ़ॉर्म्स) पर टिकी है. वेब 3 के डेवलपर समुदायों में वैश्विक रूप से ये धीरे-धीरे लोकप्रिय होता जा रहा है. हालांकि, व्यापक स्तर पर ब्लॉकचेन के व्यापारिक इस्तेमाल की प्रक्रिया अभी उभार के दौर में है. व्यापारिक तौर पर इसको अपनाए जाने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिए ब्लॉकचेन मानकों और प्रोटोकॉल्स को ठीक-ठीक परिभाषित करने का काम भी बाक़ी है. फ़िलहाल विकेंद्रीकरण के लिए जिस तौर-तरीक़े का इस्तेमाल हो रहा है वो ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर आधारित लेनदेनों को भी सक्षम बना देती है. बहरहाल दूसरे डिजिटल उपायों के मुक़ाबले ये तरीक़ा धीमा है. हालांकि ये डेटा की अखंडता के ऊंचे स्तरो के साथ-साथ सुरक्षा से जुड़े पहलुओं और प्रक्रिया की मज़बूती मुहैया कराती है. इत्तेफ़ाक़न क्रिप्टोकरेंसी की विचारधारा भी वेब 3 के ऐप्लिकेशन से जुड़ी प्राथमिक संभावनाओं में से एक है. हालांकि ये विचार दुनिया के कई नीति-निर्माताओं को नापसंद है. भारतीय स्टार्ट अप जगत में वेब 3 धीरे-धीरे लोकप्रिय होता जा रहा है. महज़ पिछले कुछ महीनों में ही इसने अपने लिए तक़रीबन 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बराबर का निवेश सुरक्षित करने में कामयाबी पा ली है.
वेब 3 से जुड़ी क़वायद को तेज़ी से आकार देने वाला एक और मसला मेटावर्स से जुड़ा है. इसे अब तक ठीक से समझा नहीं जा सका है. क़ुदरती तौर पर तैयार इस दुनिया के साथ-साथ एक ‘वैकल्पिक डिजिटल संसार’ के वजूद से जुड़ा विचार नामी हस्तियों और वैश्विक उपभोक्ता ब्रांडों के बीच बड़ी तेज़ी से लोकप्रिय होता जा रहा है.
तकनीकी विकास की हर क़वायद व्यापारिक तौर पर लोकप्रियता हासिल करने के बाद ही मानवीय समस्याओं के समाधान में सक्षम हो सकती है. चाहे वो समस्याएं कारोबार के स्तर की हों या समाज के स्तर की. लिहाज़ा AI (आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस), ML (मशीन लर्निंग), NLP (नैचुरल लैंग्वेज प्रॉसेसिंग), IoT (इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स), AR (ऑगमेंटेड रिएलिटी) या VR (वर्चुअल रिएलिटी) टेक्नोलॉजी और बैटरी टेक्नोलॉजी से जुड़ी चर्चाएं कई लोगों को भ्रामक और ‘ग़ैर-कारगर’ दिखाई देती है. इन क्षेत्रों में तरक़्क़ी के साथ-साथ मशीनों के साथ संवाद की प्रक्रिया के इंसानी तौर-तरीक़ों जैसे ही बन जाने के आसार हैं. ऐसा कब तक होगा और सामाजिक तौर पर इससे किस तरह के खलल सामने आएंगे- ये लाख टके का सवाल है!
वेब 3 से जुड़ी क़वायद को तेज़ी से आकार देने वाला एक और मसला मेटावर्स से जुड़ा है. इसे अब तक ठीक से समझा नहीं जा सका है. क़ुदरती तौर पर तैयार इस दुनिया के साथ-साथ एक ‘वैकल्पिक डिजिटल संसार’ के वजूद से जुड़ा विचार नामी हस्तियों और वैश्विक उपभोक्ता ब्रांडों के बीच बड़ी तेज़ी से लोकप्रिय होता जा रहा है. ये विचार ख़ासतौर से युवा पीढ़ी को बहुत रास आ रहा है. यहीं पर वैश्विक स्तर पर नियामकों और नीति निर्माताओं समेत तमाम बड़ी उम्र वाले इंसानों के लिए सूझ-बूझ का मसला सामने आता है. दूसरी तरफ़ निजी निवेशक और टेक्नोलॉजी में निवेश करने वाले, वेब 3 से जुड़े विचारों पर बड़ी-बड़ी रकम लगा रहे हैं.
नीति निर्माता और बिग टेक
कम से कम पिछले दशक में और ख़ासतौर से अमेरिका और यूरोप की सरकारों को बिग टेक कंपनियों और प्लेटफ़ॉर्मों के साथ एकाधिकार से जुड़े एंटी-ट्रस्ट मसलों से जूझना पड़ा है. नियामक व्यवस्थाओं के तौर पर इनसे अरबों डॉलर के जुर्माने वसूले गए हैं. मिसाल के तौर पर हाल ही में यूरोपीय संघ (EU) एंटी-ट्रस्ट को लेकर नए नियम-क़ायदे लाने पर रज़ामंद हुआ है. डिजिटल मार्केट्स एक्ट के नाम से जाने जाने वाले इस क़ानून से इंटरनेट अर्थव्यवस्था और बाज़ार पर दबदबा बनाने की क़वायदों पर लगाम लग सकेगी. “ये नियम कम से कम 75 अरब यूरो (83 अरब अमेरिकी डॉलर) की बाज़ार पूंजी वाली कंपनियों या पिछले तीन वर्षों में यूरोपीय संघ के भीतर कम से कम 7.5 अरब यूरो का सालाना राजस्व कमाने वाली कंपनियों पर लागू होंगे. तथाकथित रूप से “पहरेदार” कही जाने वाली इन टेक कंपनियों के पास यूरोपीय संघ में कम से कम 4.5 करोड़ मासिक यूज़र्स या 10,000 कारोबारी उपयोगकर्ता होने ज़रूरी हैं.” इस तरह के नियम गूगल और मेटा जैसी विशाल टेक्नोलॉजी कंपनियों को अपने कारोबार का तौर-तरीक़ा बदलने पर मजबूर कर सकती है. ऐसी नियामक व्यवस्था दुनिया की दूसरी सरकारों के लिए भी नियंत्रण लाने के लिए नीतिगत निर्देश तैयार करने की मिसाल बन सकती है.
ज़ाहिर तौर पर दुनिया भर की सरकारों को ‘सियासी नियंत्रण गंवाने’ का डर है. इस डर की वजह से वाजिब चिंताओं और तमाम तरह की आशंकाओं का मिला-जुला रुख़ सामने आता है. नीति निर्माता समाज को सुरक्षित बनाने पर माथापच्ची करते रहते हैं. लिहाज़ा उभरती डिजिटल तकनीक की दख़लंदाज़ी भरी फ़ितरतों के चलते राज्यसत्ता की संप्रभुता का इम्तिहान होना तय है. इसके साथ ही उपभोक्ता डेटा के दुरुपयोग, निजता से जुड़े मसले और झूठे विमर्श फैलाने की समस्या भी मुंह बाए खड़ी है. एलगोरिदम में किसी तरह का पूर्वाग्रह होने पर अनुचित तौर-तरीक़ों को बढ़ावा मिलने की आशंका रहेगी. दरअसल तमाम नीति-निर्माताओं को भी इसी तरह की चिंताएं परेशान कर रही हैं: क्या इकाइयों पर उनका नियंत्रण घट जाएगा? क्या इकाइयों की वजह से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किसी तरह का ख़तरा या व्यवस्थागत जोख़िम तो पैदा नहीं हो जाएंगे? क्या इससे उपभोक्ता संरक्षण की क्षमताएं घट जाएंगी? हमने इतिहास में देखा है कि हरेक परिवर्तनकारी तकनीक सामाजिक प्रयोग और आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि जैसे सकारात्मक नतीजों के साथ-साथ कुछ नकारात्मक कारक भी साथ लाती रही हैं. मौजूदा डिजिटल युग में नीति निर्माताओं के पास वक़्त या मोहलत नहीं है. वो उभरती तकनीकों के इर्द-गिर्द नीतियां तैयार करने में यथास्थिति बनाकर नहीं रख सकते.
क़िताबी तौर पर वेब 3 की विकेंद्रीकरण की विचारधारा के साथ नीति-निर्माता पहले से ज़्यादा ख़ुश होंगे. उन्हें ये एहसास होगा कि इन बिग टेक प्लेटफ़ॉर्मों को भी मध्यस्थता की भूमिका से बाहर किया जा सकता है.
क़िताबी तौर पर वेब 3 की विकेंद्रीकरण की विचारधारा के साथ नीति-निर्माता पहले से ज़्यादा ख़ुश होंगे. उन्हें ये एहसास होगा कि इन बिग टेक प्लेटफ़ॉर्मों को भी मध्यस्थता की भूमिका से बाहर किया जा सकता है. उन्हें इस बात का भी इत्मीनान हो सकता है कि तमाम नतीजों पर इन विशाल कंपनियों के प्रभाव भी आगे चलकर घट सकते हैं. दरअसल सामग्रियों के निर्माण, देखरेख और उनतक पहुंच बनाने के अधिकार सामग्रियों के असल निर्माता के पास होंगे. लिहाज़ा ये तमाम फ़र्म अंतिम तौर पर उपयोगकर्ता द्वारा तैयार सामग्रियों का खंडन, नियंत्रण या उन्हें सेंसर नहीं कर सकेंगे. हालांकि यहां भी नीति निर्माताओं को परेशान करने वाले मसले बच जाते हैं. दरअसल उन्हें वास्तविक विमर्शों के लिए अनगिनत शख़्सों और सामग्री निर्माताओं के बेहिसाब छोटे-छोटे समूहों के साथ काम करना होगा. ज़ाहिर तौर पर इससे इंटरनेट जगत के नियमन का काम मुश्किल हो जाएगा. लिहाज़ा वेब पर नियम आधारित समाज सुनिश्चित करने के लिए बिल्कुल नए अंदाज़ से सोच विचार करने की ज़रूरत पड़ेगी.
भारत के लिए अवसर
साफ़ तौर से मौजूदा वक़्त दुनिया भर में सरकारों और ख़ासतौर से भारतीय नीति निर्माताओं के लिए मुफ़ीद है. वो अपने नीतिगत फ़ैसलों में औपचारिक तौर पर अपनाए जाने वाले विविध प्रकार की तकनीकों की सूची तत्काल तैयार कर सकते हैं. भारत पिछले कई सालों से नवाचार के क्षेत्र में कुशल खिलाड़ी की तरह तकनीक के इस्तेमाल में सूझबूझ दिखाता रहा है. चाहे, वो ई-गवर्नेंस का क्षेत्र हो या समावेशी कम लागत और उन्नत नवाचार पर आधारित वित्तीय बाज़ारों तक पहुंच से जुड़ी टेक्नोलॉजी का. यही मौक़ा है जब भारत को ये तय करना है कि क्या वो वेब 3 के इर्द गिर्द मानकों, प्रोटोकॉल्स और नीतिगत चिंतन तय करने से जुड़े वैश्विक मंच के प्रमुख सिरे तक पहुंचना चाहता है. दरअसल इन्हीं क़वायदों से तैयार नीतिगत उपायों को वैश्विक समुदाय अमल में लाता है.
हालांकि यहां राज्यसत्ता के फ़ैसलों और नीतिगत चिंतन में रफ़्तार लाने की दरकार है. भारत में क्रिप्टो नीति से जुड़ी चर्चा में घड़ी के पेंडुलम से भी ज़्यादा उतार-चढ़ाव देखा गया है. लंबे अर्से से जारी इस बहस का अबतक कोई नतीजा नहीं निकल सका है. हमलोग वेब 3 के दूसरे प्रयोगों मसलन NFT या क्रिप्टो टोकन्स को लेकर अब भी आशंकित हैं. मिसाल के तौर पर NFT को लेकर होने वाली किसी भी चर्चा में लाइसेंसिंग से जुड़ी चिंताएं उभरकर सामने आ जाती हैं. वैश्विक बाज़ार में लाइसेंसिंग के काम करने से जुड़े तमाम सवाल और टैक्स की क्षमताओं से जुड़े मामले हमारे सामने हैं. इनके अलावा बौद्धिक संपदा से जुड़े मसले और निवेशक के निवास स्थान यानी स्थानीय इलाक़े में उसकी पहचान का प्रश्न भी मुंह बाए खड़ा हो जाता है. इनके साथ वित्तीय परिसंपत्तियों की तरह बर्ताव करने और प्रतिभूति क़ानूनों से जुड़ावों, मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी चिंताएं, जुएबाज़ी से जुड़े क़ानूनों और भू-राजनीतिक आर्थिक प्रतिबंधों के चलते पैदा होने वाले मसले भी सामने आते हैं. ये सवाल खड़ा होता है कि इन परिसंपत्तियों के साथ किस तरह का बर्ताव किया जाए. मेटावर्स के मसले में इन इकाइयों के प्रशासनिक ढांचों से जुड़ी चिंताएं भी सामने आ जाती हैं. इनकी बौद्धिक संपदा के शासन-प्रशासन से जुड़ी चिंताएं भी पैदा होती हैं. साथ ही आमतौर पर अपनाए गए EULA (एंड यूज़र लाइसेंस एग्रीमेंट) को लेकर ये सवाल पैदा होगा कि किस राष्ट्रीय न्यायाधिकार में वो लागू होंगे! इससे भी ज़्यादा अहम बात ये है कि निजता से जुड़ी चिंताएं अब भी इस सेक्टर और नीति-निर्माताओं को समान रूप से परेशान कर रही हैं.
यही मौक़ा है जब भारत को ये तय करना है कि क्या वो वेब 3 के इर्द गिर्द मानकों, प्रोटोकॉल्स और नीतिगत चिंतन तय करने से जुड़े वैश्विक मंच के प्रमुख सिरे तक पहुंचना चाहता है. दरअसल इन्हीं क़वायदों से तैयार नीतिगत उपायों को वैश्विक समुदाय अमल में लाता है.
क्रिप्टोटेक पर नैस्कॉम इंडस्ट्री रिपोर्ट का अनुमान है कि भारतीय वेब-3 उद्योग में 2030 तक 8 लाख नई नौकरियों का निर्माण हो सकेगा. हालांकि विश्लेषकों को डर है कि नियामक स्तर पर स्पष्टता के अभाव और वेब 3 को लेकर सक्रिय रूप से नीति निर्माण के नदारद रहने के चलते इस प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है. भारत के वेब 3 उद्यमी पहले ही दुबई और सिंगापुर का रुख़ करने लगे हैं. वहां ऐसे उद्यमों को स्थापित करने और उनको आगे ले जाने के लिए बेहतर नियामक वातावरण उपलब्ध है. भले ही ऐसे उद्यमियों की तादाद इस वक़्त बहुत थोड़ी दिखाई दे, लेकिन ये ध्यान रखना होगा कि आगे चलकर ये रुझान बड़ा आकार (प्रतिभा और पूंजी) न ले ले. हमें अपने स्थानीय उद्योग को महज़ पृष्ठभूमि में रहकर प्रतिभा मुहैया कराने वाला उपक्रम (जैसे ITES) बनने से रोकना होगा.
क्रिप्टोटेक पर नैस्कॉम इंडस्ट्री रिपोर्ट का अनुमान है कि भारतीय वेब-3 उद्योग में 2030 तक 8 लाख नई नौकरियों का निर्माण हो सकेगा. हालांकि विश्लेषकों को डर है कि नियामक स्तर पर स्पष्टता के अभाव और वेब 3 को लेकर सक्रिय रूप से नीति निर्माण के नदारद रहने के चलते इस प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है.
एक राष्ट्र के तौर पर टेक्नोलॉजी से अगर हम अपनी चाहत पूरी करने में कामयाब रहते हैं और इसे लेकर होने वाले वैश्विक नीति संवादों में हिस्सा लेते हैं तो भारत वेब 3 अर्थव्यवस्था का एक अहम खिलाड़ी बन सकता है. हमारे पास ज़ेहनी ताक़त है, प्रतिभा है, लेकिन अब हमें अपनी नीतिगत क्षमताओं को सामने लाना होगा. आख़िरकार विश्वास पर आधारित भारतीय नीतियों को बढ़ावा देने की क़वायद में वेब 3 से जुड़ी नीतियों का कड़ा इम्तिहान होने वाला है. दरअसल 21वीं सदी की डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए अब हम वेब 3 को रणनीतिक तौर पर आर्थिक मोट के रूप में विकसित कर सकते हैं.
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