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सितंबर में कोरोना के केस के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद कोरोना के मामलों और मौतों में कमी को जैसे तय मान लिया गया. महामारी से निपटने में भारत की सापेक्षिक ‘सफलता’ के किस्से बार-बार दोहराए जाते हैं. हालांकि, फ़रवरी के महीने में भारत सरकार की प्रेस वार्ताओं में आंकड़ों और सूचनाओं से जुड़े दो महत्वपूर्ण ग्राफ़िक्स नदारद रहे. पहला, कोरोना के दैनिक मामलों का ग्राफ़ और दूसरा आंकड़ा, जो अब तक काफ़ी लोकप्रिय हो गया है, बीमारी से लड़कर स्वस्थ होने वालों का ग्राफ. इन आंकड़ों के नदारद रहने के स्पष्ट कारण भी मौजूद हैं- कोविड-19 के मामलों में चिंताजनक रूप से उछाल देखी गई है. ख़ासतौर से महाराष्ट्र के कुछ ज़िलों में, वहीं कुछ कम मात्रा में ही सही लेकिन केरल और दूसरे कुछ राज्यों में भी ऐसी बढ़त देखी गई है. इन सबके बीच भारत के कई राज्यों में अब स्कूल भी फिर से खोले जाने लगे हैं.
मोटे तौर पर फिलहाल महाराष्ट्र में बिगड़ते हालात के चलते भारत के औसत आंकड़ों में उछाल देखने को मिल रहा है.
पिछले कई महीनों में ऐसा पहली बार हुआ है जब कोरोना से ठीक होने की दर यानी रिकवरी रेट में पूरे हफ़्तेभर गिरावट देखी गई है (फ़िगर 1). इससे बदतर हो रहे हालात का पता चलता है. नवंबर 2020 में भी कुछ दिनों तक कोरोना के मामलों में एक समान गति से बढ़त के साथ रिकवरी रेट में इसी तरह की गिरावट देखने को मिली थी. हालांकि, बाद के महीनों में हालात में लगातार सुधार होता गया. वैसे इस बार रोज़ाना के मामलों में बढ़ोतरी के साथ इस वायरस के नए स्ट्रेन को लेकर भी चर्चाएं शुरू हो गई हैं. यहां तक कि वायरस में वैक्सीन के प्रभाव से बच निकलने वाले बदलाव होने को लेकर भी बात चल रही है. कई जगह फिर से लॉकडाउन की घोषणा भी की गई है.
महाराष्ट्र के बिगड़ते हालात की वजह से आंकड़ों में उछाल
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में कोरोना के सक्रिय मामलों की संरचना तेज़ी से बदल रही है (फ़िगर 2). 9 फ़रवरी को देश में कुल सक्रिय मामलों में से महाराष्ट्र और केरल में 71 प्रतिशत केस था. केरल में कुल केसों की बढ़ोतरी में सुस्ती आने के बावजूद 23 फरवरी को ये अनुपात बढ़कर 75 प्रतिशत तक पहुंच गया. ख़बरों के मुताबिक कम से कम 6 राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में कोरोना के नए मामलों में हफ़्ते भर के अंदर करीब 10 प्रतिशत तक का उछाल देखने को मिला है. ये राज्य हैं- महाराष्ट्र (81 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (43 प्रतिशत), पंजाब (31 प्रतिशत), जम्मू-कश्मीर (22 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (13 प्रतिशत) और हरियाणा (11 प्रतिशत). दिल्ली में भी बेहद धीमी रफ़्तार से ही सही पर कोरोना के मामले फिर से बढ़ रहे हैं. वैसे तो कोरोना के दैनिक मामले और मौतों के आंकड़े 11 फ़रवरी को अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे. उस दिन भारत में कोरोना के 10986 केस सामने आए थे और 89 लोगों की जान गई थी. 24 फ़रवरी को ये दोनों आंकड़े बढ़कर क्रमश: 16,930 और 141 हो गए. इन आंकड़ों में उछाल के पीछे मुख्य रूप से महाराष्ट्र का हाथ रहा है. मोटे तौर पर फिलहाल महाराष्ट्र में बिगड़ते हालात के चलते भारत के औसत आंकड़ों में उछाल देखने को मिल रहा है.
कुछ ज़िलों में कोरोना के केस फिलहाल भले ही काफ़ी कम हों लेकिन वहां जिस तेज़ी से मामले बढ़ते जा रहे हैं हो सकता है आने वाले हफ़्तों में वो हॉटस्पॉट बन जाएं.
कोरोना के नए हॉटस्पॉट की पहचान के लिए भारत के विभिन्न ज़िलों के विश्लेषण (फ़िगर 3) से पता चलता है कि महाराष्ट्र और केरल के बाहर की कई जगहों में जहां एक्टिव केस की संख्या अब तक अपेक्षाकृत काफी कम थी, वहां पिछले कुछ दिनों में कोरोना के संक्रमण में तेज़ी देखी गई है. 16 फ़रवरी 2021 को कुल 23 ज़िलों में कोरोना के 1000 से ज़्यादा एक्टिव मामले थे. 1000 से ज़्यादा सक्रिय मामलों वाले ज़िलों की तादाद 23 फ़रवरी 2021 को बढ़कर 28 हो गई. रुझानों से पता चलता है कि आने वाले हफ़्तों में इस आंकड़े में और बढ़ोतरी होने वाली है. इसी कालखंड में 100 से 1000 के बीच सक्रिय मामलों वाले ज़िलों की तादाद 91 से घटकर 82 हो गई. ऐसे में लगता यही है कि कोरोना संक्रमण में जो बढ़ोतरी हुई है वो आम तौर पर कोरोना की मार झेल रहे कुछ ख़ास ज़िलों में ही केंद्रित रही है. फ़रवरी के तीसरे हफ़्ते में 10 से कम एक्टिव केसों वाले ज़िलों की संख्या 228 थी. फ़रवरी के चौथे हफ़्ते में हालात और सुधरे और ऐसे ज़िलों की तादाद बढ़कर 241 हो गई. इससे साफ़ पता चलता है कि हाल ही में कोरोना के हालात बिगड़ने की जो ख़बरें आई वो समूचे देश की सच्चाई नहीं है. (तेलंगाना, दिल्ली, असम, सिक्किम और मणिपुर के मामलों में ज़िला स्तर पर सूचनाएं उपलब्ध नहीं थीं लिहाजा उनको इस विश्लेषण में शामिल नहीं किया गया). हालांकि, कुछ ज़िलों में कोरोना के केस फिलहाल भले ही काफ़ी कम हों लेकिन वहां जिस तेज़ी से मामले बढ़ते जा रहे हैं हो सकता है आने वाले हफ़्तों में वो हॉटस्पॉट बन जाएं.
भारत सरकार की हाल की प्रेस वार्ताओं में बताया गया कि भारत के सार्स कोव-2 जीनोमिक कन्सोर्टियम (आईएनएसएसीओजी) द्वारा अब तक 3500 सैंपल्स की सीक्वेंसिंग की गई है. इनमें से यूके स्ट्रेन के 187, द. अफ्रीका स्ट्रेन के 6 और ब्राज़ीलियन स्ट्रेन का एक मामला सामने आया है. इस कन्सोर्टियम की स्थापना ख़ासतौर से अंतरराष्ट्रीय यात्रियों और उनके संपर्कों की चौकसी और निगरानी करने के लिए की गई थी. इसका मतलब ये है कि फ़रवरी के तीसरे हफ़्ते में दक्षिण अफ्रीकी वेरिएंट वाले सिर्फ़ दो मरीज़ों की पहचान की गई क्योंकि बाकियों को तो पहले ही 16 फ़रवरी के बहीखाते में शामिल किया गया था. इसके अलावा मीडिया में अटकलों पर विराम लगाने के लिए सरकार ने ये साफ़ कर दिया कि महाराष्ट्र और कुछ दूसरे राज्यों में कोविड-19 के मामलों में हाल में आए उछाल का कोरोना वायरस के बदले हुए स्ट्रेन एन440के और ई484क्यू से कोई सीधा संबंध नहीं है. ये स्ट्रेन तो यहां पहले भी पाए जा चुके हैं. खुशक़िस्मती से भारत ने कोरोना संक्रमण की जांच में कमी नहीं आने दी. फ़रवरी में करीब 7 लाख नमूनों की हर रोज़ जांच की गई. महाराष्ट्र और केरल में तो फ़रवरी में कोरोना जांच की संख्या में भारी बढ़ोतरी देखी गई. केरल में टेस्ट पॉज़िटिविटी रेट में फ़रवरी के तीसरे हफ़्ते में सुधार देखा गया लेकिन महाराष्ट्र में हालात बदतर होते गए. इससे संकेत मिलते हैं कि महाराष्ट्र में बीमारी फैलने का ख़तरा बढ़ा है. (फ़िगर 4)
निजी क्षेत्र द्वारा टीके की बिक्री की योजना पर भी विचार चल रहा है. ऐसे में जल्दी ही फाइज़र और जॉनसन एंड जॉनसन के टीकों को भारत में नीतिगत स्तर पर होने वाली चर्चाओं में एक बार फिर से जगह मिल सकती है.
निजी क्षेत्र द्वारा टीके की बिक्री की योजना पर भी विचार
इन परिस्थितियों के मद्देनज़र कोविड-19 के टीके को जल्द से जल्द ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाना भारत के लिए अहम हो जाता है. भारत में 1 मार्च से आम लोगों को टीका लगना शुरू हो चुका है. 60 साल से ऊपर का हरेक व्यक्ति और 45 साल से ऊपर के ऐसे लोग जो किसी दूसरी बीमारी से ग्रसित हैं 10000 सरकारी केंद्रों में मुफ़्त में ये टीका लगवा सकते हैं. इसके साथ-साथ करीब 20000 निजी केंद्रों में शुल्क देकर भी वैक्सीन लगवा सकते हैं. निजी क्षेत्र द्वारा टीके की बिक्री की योजना पर भी विचार चल रहा है. ऐसे में जल्दी ही फाइज़र और जॉनसन एंड जॉनसन के टीकों को भारत में नीतिगत स्तर पर होने वाली चर्चाओं में एक बार फिर से जगह मिल सकती है. नई जांच से पता चला है कि फ़ाइज़र की वैक्सीन को पहले सोचे गए तापमान से थोड़े ज़्यादा तापमान पर भी सुरक्षित रूप से रखा जा सकता है. बताया जाता है कि अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने ये कहा है कि कोविड-19 की सिंगल-शॉट वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी है. इसके अलावा स्पूतनिक 5 वैक्सीन भी भारत में आपात इस्तेमाल के लिए मंज़ूरी पाने की रेस में शामिल है. अगर उसे मंज़ूरी मिल जाती है तो दूसरे घरेलू टीकों के साथ-साथ देश को वैक्सीन के और भी विकल्प मिल जाएंगे.
संक्षेप में कहें तो ये समय “रिकवरी रेट” के ग्राफ़ को छिपाने का नहीं बल्कि देश को ये आंकड़े दिखाने का है ताकि लोगों को इस बीमारी से जुड़े जोख़िमों की हक़ीक़त के बारे में पता चल सके. शायद इसी बहाने उन्हें टीकाकरण की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिल सकेगी
अबतक भारत के कोविड-19 वैक्सीन कार्यक्रम की सुस्त रफ़्तार की मुख्य वजह ये है कि टीकाकरण के जो दौर आयोजित किए गए उनमें पहले के तय किए गए लक्ष्य के मुक़ाबले औसत रूप से काफ़ी कम लोगों को टीका दिया गया. इसे विडंबना ही कहेंगे कि कोरोना के दैनिक मामलों और मौतों में जो सापेक्षिक ठहराव और लगातार सुधार देखने को मिला, उसके चलते भी टीकाकरण की रफ़्तार सुस्त हो गई. चूंकि अब कुछ राज्यों में कोरोना के रोज़ाना के मामलों में उछाल से चिंता बढ़ गई है लिहाजा ये उम्मीद की जा रही है कि आने वाले हफ़्तों में टीकाकरण की गति में तेज़ी से बढ़ोतरी देखने को मिलेगी.
सरकारी आंकड़ों से संकेत मिलते हैं कि टीकाकरण के हरेक आयोजन में औसतन सिर्फ़ 35 लोगों का टीकाकरण हुआ है. ये तय किए गए लक्ष्य का बस एक तिहाई है. ज़्यादातर टीकाकरण केंद्रों पर अगर टीके की मांग हो तो इसे आसानी से दुगुना या तिगुना भी किया जा सकता है. इसके साथ ही सरकार निजी क्षेत्र की मदद से हर दिन वैक्सीनेशन सेशन की संख्या को और तेज़ी से बढ़ाने की भी योजना बना रही है. संक्षेप में कहें तो ये समय “रिकवरी रेट” के ग्राफ़ को छिपाने का नहीं बल्कि देश को ये आंकड़े दिखाने का है ताकि लोगों को इस बीमारी से जुड़े जोख़िमों की हक़ीक़त के बारे में पता चल सके. शायद इसी बहाने उन्हें टीकाकरण की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिल सकेगी.
रजिस्टर कराने की बाध्यता मुश्किलें खड़ी करने वाली
कोरोना के नए केसों में बढ़ोतरी से टीकाकरण की रफ़्तार बढ़ाने की एक नैतिक ज़रूरत भी खड़ी हो गई है. बहरहाल, कोविन ऐप पर ख़ुद को रजिस्टर कराने की बाध्यता इस दिशा में एक बड़ी बाधा बन सकती है. प्यू रिसर्च सेंटर ने 2018 में उभरते हुए 11 विकासशील देशों में एक सर्वेक्षण किया था (फिगर 5). इसमें पता चला था कि भारत में बड़ी उम्र के बुज़ुर्गों के बीच स्मार्टफोन की उपलब्धता और उसका इस्तेमाल सबसे कम है. टीके के लिए हम जिस आबादी को अपना लक्ष्य मानकर चल रहे हैं उसके लिए पहले आओ पहले पाओ के फॉर्मूले से जुड़ने के लिए महंगे डिजिटल माध्यम से ख़ुद को रजिस्टर कराने की बाध्यता मुश्किलें खड़ी करने वाली है. इस आबादी के लिए डिजिटल माध्यम काफ़ी हद तक अनजाना है. भारत को ख़ुद नए-नए तरीकों से जोख़िम झेल रही इस आबादी तक तेज़ी से टीकाकरण की सुविधा पहुंचना सुनिश्चित करना होगा. कुछ विशेषज्ञों ने कहा भी है कि बीमारी से सुरक्षा पहुंचाने में देरी सुरक्षा न पहुंचाने के बराबर है. दुर्भाग्यवश हमारे पास इस मामले में ज़्यादा वक़्त नहीं है. आम तौर पर हर मामले में अपना बातूनी रूप दिखाने वाले हम भारतीयों के लिए इस नीतिगत सवाल पर टीका-टिप्पणी करने के लिए फालतू वक़्त नहीं है.
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