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विदेशी वैक्सीन की तलाश के चक्कर में अपनी संप्रभुता को बाधित होने से बचाने के लिए ज़रूरी, वैक्सीन उत्पादकता जुटाने हेतु, बांग्लादेश को विदेशी सहायता की आवश्यकता पड़ेगी.
कोविड-19 के बाद: वैक्सीन उत्पादन की कठिनाई से जूझता बांग्लादेश!
पहले से भी तीव्र गति से बढ़ते संक्रमण दर के क्रम में, कोरोना वायरस का ओमिक्रॉन वेरिएंट एक चिर-परिचित नाम बन चुका है, ऐसी स्थिति में दक्षिण-एशिया के देश जिस बेहतरीन तरीके से इस नई लहर से निपट रहे हैं, ख़ासकर तब-जब अप्रैल-जून 2021 में उनके द्वारा बरती गई अनियमतता उजागर हुई थी, तब इस ओर ध्यान दिया जाना अत्यंत ज़रूरी है. पिछले साल, बांग्लादेश में फैली महामारी के दूसरे लहर और उसके बाद फिर डेल्टा वेरिएंट के लहर ने जिस तरह से देश में उत्पात मचाने के बाद, इसे अंदरूनी तौर पर वैक्सीन की कमी के साथ जूझने के साथ ही देश की स्वायत्ता के लिए बाहरी ‘चुनौती’ भी पेश की है.
बांग्लादेश को उपहारस्वरूप दिए गए 500,000 सिनोफार्म डोज़ के उपरांत, बांग्लादेश में चीनी राजदूत; ली जिंमिंग ने चेतावनी दी, कि अगर बांग्लादेश इस क्वॉड गठबंधन से ख़ुद को जोड़ता है तो इस वजह से उनके बीच के द्विपक्षीय संबंधों में खटास आ सकती है.
चूंकि, भारत के वादानुसार किए जाने वाले वैक्सीन की आपूर्ति अचानक से बंद हो गई थी, वैसे में बांग्लादेश को बाकी अन्य दाता देशों से वैक्सीन प्राप्त करने को विवश होना पड़ा. मौके का फायदा उठाते हुए चीन जिस तरह से पूरे जोश के साथ बांग्लादेश की सहायता को तैयार हो गया, उसी तरह से उसने इस मौके का फायदा भी उठाने की कोशिश की और बांग्लादेश को ‘चीन विरोधी’ देशों के कैंप में जुडने से रोकने के अपने एजेंडे के रूप में इस्तेमाल करने के लिये किया. इसलिए, उनके द्वारा बांग्लादेश को उपहारस्वरूप दिए गए 500,000 सिनोफार्म डोज़ के उपरांत, बांग्लादेश में चीनी राजदूत; ली जिंमिंग ने चेतावनी दी, कि अगर बांग्लादेश इस क्वॉड गठबंधन से ख़ुद को जोड़ता है तो इस वजह से उनके बीच के द्विपक्षीय संबंधों में खटास आ सकती है. स्वाभाविक रूप से इस तरह के दिए गए गैर ज़िम्मेदारपूर्ण वक्तव्यों से आहत बांग्लादेश नें भी अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए ज़रूरी वक्तव्य जारी किया. परंतु वो गंभीर संकट और द्विपक्षीय संबंध की ज़रूरत के बावजूद, इन ख़ुराकों को मना नहीं कर सकते है. इस स्थिति से पार पाना, निस्संदेह बांग्लादेशी कूटनीतिक कौशल की कठिन परीक्षा है, लेकिन इसने घरेलू वैक्सीन उत्पादन की आवश्यकता को काफी बल दिया है.
निस्संदेह, इस साल की शुरुआत में, फ़रवरी 2021 में, बांग्लादेश स्थित नारायणगंज में, कुमुदिनी अंतरराष्ट्रीय मेडिकल साइंस और कैंसर अनुसंधान संस्थान की आधारशिला रखने के वक्त़ एक वर्चुअल प्रोग्राम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मेडिकल साइंस में और भी अनुसंधान की ज़रूरत पर काफी बल दिया, चूंकि देश में इस संबंध में वर्तमान समय में काफी सीमित गुंजाइश है. स्वाभाविक रूप से इस महामारी से निपटने के लिए, बांग्लादेश अपनी बढ़ती आबादी को वैक्सीन के माध्यम से सुरक्षित रखने के लिए पूरी तरह से अपने द्विपक्षीय संबंधों पर आश्रित था. हालांकि, दूसरी लहर के संकट से जूझने के सबक ने, इस देश को अपनी घरेलू उत्पाद व्यवस्था को गति प्रदान करने, और ये सुनिश्चित करने कि वे अपनी निश्चित क्रम में है अथवा नहीं, उसकी एक जल्द पुन: विवेचना के लिए प्रेरित किया है.
बांग्लादेश का पहला ख़ुद का स्वदेशी वैक्सीन – अनुमानित तौर पर ग्लोब बायोटेक लिमिटेड द्वारा विकसित, जो कथित तौर पर बंगावैक्स कहलायेगा, वो अपने क्लीनिकल परीक्षण के तीसरे दौर में था.
जैसा की अपेक्षित था, बांग्लादेश में, दक्षिण कोरिया संग, कोविड-19 वैक्सीन और अन्य वैक्सीन के उत्पादन हेतु, एक अंतरराष्ट्रीय मानक के संस्थान की स्थापना और उसके गुंजाइश संबंधी एक लेख बांग्लादेशी मीडिया घरानों ने प्रकाशित किया था. प्रधानमंत्री हसीना ने कहा था कि दोनों देशों के बीच, इसके लिये ज़रूरी टेक्नोलॉजी के परस्पर आदान प्रदान संबंधी वार्ता जारी है. कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन के लिए, तीन उद्योगी फर्म: इनसेप्टा फार्मास्यूटिकल, पोप्यूलर फार्मास्यूटिकल और हेल्थकेयर फार्मास्यूटिकल की क्षमता का भी मूल्यांकन जारी है.
प्रधानमंत्री ने ये भी जानकारी प्रदान की, कि बांग्लादेश का पहला ख़ुद का स्वदेशी वैक्सीन – अनुमानित तौर पर ग्लोब बायोटेक लिमिटेड द्वारा विकसित, जो कथित तौर पर बंगावैक्स कहलायेगा, वो अपने क्लीनिकल परीक्षण के तीसरे दौर में था. ये घोषणा इस बात को सत्यापित करने हेतु पर्याप्त था कि बांग्लादेश के लिए इस स्वदेश निर्मित वैक्सीन की बेहद ज़रुरत थी, क्योंकि पहले ही रेगुलेटरी बॉडी से इसके परीक्षण के लिए ज़रूरी अनुमति प्राप्त करने में इन्हे काफी विलंब हो चुका था. इस तेज़ी को बरक़रार रखते हुए, 2021 के नवंबर में, आख़िरकार बंगावैक्स ने, इस वैक्सीन के मानव परीक्षण के लिए ज़रुरी अनुमति बंगलादेश मेडिकल रिसर्च काउंसिल से प्राप्त कर ली थी. ग्लोब बायोटेक के अनुसार, ये एक ख़ुराक में लिए जाने वाली वैक्सीन, बाजार में उपलब्ध अन्य वैक्सीन की तुलना में कम महंगा होगा. हालांकि, दो महीनों के पश्चात, मानव-परीक्षण संबंधी रिपोर्ट का पब्लिक डोमेन पर रिपोर्ट प्रकाशित होना अभी भी बाकी है, और बंगावैक्स का इस्तेमाल अब-तक शुरू नहीं हुआ है, जिसके कारण देश टीकों या वैक्सीन की आपूर्ति के लिए अब भी दूसरे देशों द्वारा की जा रही आपूर्ति के ऊपर निर्भर है. इसके अलावे, स्थापित होने वाले वैक्सीन संस्थान के लिए हो रहे बांग्लादेश- दक्षिण कोरिया के बीच संधि कहाँ तक पहुंची है, इस बारे में भी कोई जानकारी प्राप्त नहीं है.
बांग्लादेश ने दावा किया है कि अगर उसे सही टेक्नोलॉजी प्रदान कर दी जाए तो वो प्रति वर्ष एक मिलियन कोविड ख़ुराकों का उत्पादन कर सकता है.
वैक्सीन उत्पादन के लिए अपने दूसरे प्रयास के तहत, बांग्लादेश और रूस, उनके स्पूतनिक V-कोविड टीकों के आयात के अलावा उनके साथ सह उत्पादन संबंधी समझौते के लिए राज़ी हो गए हैं. इस संदर्भ में, जुलाई 2021 को, मीडिया से आख़िरी बार प्राप्त रिपोर्ट के हवाले से, विदेश मंत्री अब्दुल मोमेन ने कहा,” चीजें अपनी आखिरी दौर में है”. इस स्पेक्ट्रम में अब तक किसी भी प्रकार की कोई गति अब तक दिखाई नहीं दे रही है. दूसरी तरफ अगस्त 2021 में, बांग्लादेशी सरकार ने, चीन के नेशनल फार्मास्यूटिकल और इनसेप्टा फार्मास्यूटिकल के साथ, सीनोफार्म के खुराक के घरेलू उत्पादन के लिए ज़रूरी एक त्रिपक्षीय एमओयू पर हस्ताक्षर किया है. इसके अनुसार, इसमें सम्मिलित पक्ष कुल पांच मिलियन सिनोफार्म खुराकों का, मिलकर उत्पादन करेंगे. इसके अनुसार, इन्सेप्टा द्वारा किए जाने वाले कच्चे मालों की आपूर्ति, और असल उत्पादन बीजिंग बायो-इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल प्रोडक्टस कंपनी लिमिटेड की मदद से पांच मिलियन सिनोफार्म खुराक का उत्पादन करेंगे. हालांकि, उत्पादन के बाकी अन्य चीज़ें जैसे बॉटलिंग, लेबलिंग और फिनिशिंग आदि के सारे अधिकार इनसेप्टा ने ख़ुद के पास ही रखें हैं. उत्पादन के पश्चात, बांग्लादेशी सरकार इन उत्पादित वैक्सीन की ख़ुराकों को खरीदेगी और अपने नागरिकों को मुफ़्त में मुहैया करवायेगी. सरकार का ये कदम इस वैक्सीन के ऊपर आने वाली लागत को कम करना, एवं देश में सस्ते दर पर इन टीकों को उपलब्ध करवाए जाने की है, इसलिए इस गठजोड़ के उद्देश्यों की सराहना की जाने चाहिए, इसके बावजूद इस योजना में कुछ त्रुटियाँ भी है. चीन से बांग्लादेश के बीच टेक्नॉलजी के हस्तांतरण के संदर्भ में, हस्ताक्षर किए गए एमओयू में स्पष्टता की काफी कमी है.
इस संदर्भ में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के डायरेक्टर-जनरल टेडरोस एडनॉम गेब्रियेसस ने अपने एक महत्वपूर्ण नोट में कहा कि, ”कोविड 19 टीकों का असामान्य वैश्विक वितरण एलएमआईसी के ऊपर सबसे ज्य़ादा बोझ उत्पन्न करेगी जिसकी वजह से सबसे ज्य़ादा आपत्तिजनक नैतिक विफ़लता के परिणाम प्राप्त होंगे.” ऐसी गुंजाइश अंततः इस महत्वपूर्ण ज़रूरत को रेखांकित करती है कि विदेशी आपूर्ति के पूरक के तौर पर, टीकों के स्थानीय स्तर पर उत्पादन, के लिए ज़रूरी टेक्नोलॉजी को निम्न से मध्यम आय श्रेणी के देशों (LMIC) जैसे बांग्लादेश आदि के उत्पादकों के साथ साझा किया जाना चाहिए.
इसलिए ये ध्यान इंगित करने योग्य है कि टीके के घरेलू स्तर पर उत्पादन हेतु, बांग्लादेश ने उपायों की श्रृंखला पर सिरे से कार्य किए हैं, परंतु उनकी मेहनत का अब तक कोई वांछित परिणाम नहीं निकला है. बांग्लादेश में, वैक्सीन के घरेलू उत्पादन संबंधी योजना अब तक मूर्त रूप नहीं ले सकी है, उसके पीछे एक महत्वपूर्ण वजह ये भी है अब तक भारत और दक्षिण अफ्रीका द्वारा, विकासशील देशों के भीतर उनके ख़ुद के कोविड टीकों के उत्पादन के लिए, विश्व व्यापार संघ के समक्ष बौद्धिक संपदा अधिकार (TRIPS) की शर्तों के विभिन्न पहलुओं पर लगायी गई चंद शर्तों में अस्थायी छूट दिए जाने की मांग की है और जो अब तक विचाराधीन ही है. इस मांग के पीछे का मकसद महज़ इतना भर था कि बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे पेटेंट, औद्योगिक डिज़ाइन, कॉपीराइट और अव्यक्त जानकारियों आदि के संरक्षण के कारण ये वैक्सीन या फिर सही समय पर मिलने वाली सस्ती स्वास्थ्य सेवा आपूर्ति, विकास, उत्पादन और कोविड-19 के अंतर्गत ज़रूरी स्वास्थ्य उपकरणों जो इस महामारी से लड़ने में मदद कर सकता है उससे वो वंचित न रह जाएं. बांग्लादेश ने दावा किया है कि अगर उसे सही टेक्नोलॉजी प्रदान कर दी जाए तो वो प्रति वर्ष एक मिलियन कोविड ख़ुराकों का उत्पादन कर सकता है.
हालांकि, इसके बाद भी, बांग्लादेश की अग्रणी अर्थशास्त्री फहमीदा ख़ातून का कहना है कि, “जेनेरिक और कोविड 19 टीकों के सस्ते संस्करण के उत्पादन के प्रयास के लिए ज़रूरी पेटेंट में छूट काफी संवेदनशील मुद्दा होगा, परंतु ये तो मात्र शुरुआती कदम है.” इसके बावजूद बांग्लादेश को सही टेक्नॉलजी दिये जाने की सूरत में, प्रति वर्ष एक मिलियन कोविड ख़ुराक बनाने के दावे किए हैं. परंतु बाकी देश अब भी अपने ज्ञान को साझा करने के लिए अनिच्छुक दिखते हैं, जो इस बाबत बांग्लादेश का इन देशों के साथ अस्थिर सहयोग का विवरण देती है. महामारी की इस ताज़ा लहर से निपटने में, अन्य देशों का अब भी परस्पर और कोवैक्स के ज़रिये विदेशी टीकों के ऊपर की निर्भरता बदस्तूर जारी है. देश में जहां अब भी 40 प्रतिशत से भी कम नागरिकों को टीके से सुरक्षित किया जा सका है, तो अब जहां ओमिक्रॉन धीरे-धीरे बांग्लादेश में डेल्टा वर्ज़न का स्थान ले रहा है, तो वहीं संक्रमण में भी काफी वृद्धि दर्ज की जा रही है.
देश को किसी अनावश्यक बयानबाज़ी से बचते हुए, टीके की आपूर्ति के लिए घरेलू उत्पादन में त्वरित तेज़ी लाने के तत्काल ज़रूरत पर ज़ोर देना ग़लत नहीं होगा. परंतु इसे प्राप्त करने के लिए, सरकार को ख़ुद के द्वारा उठाये गये कठोर कदम के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय सहायता की भी ज़रूरत होगी.
एक तरफ जहां ये वायरस दूसरे विभिन्न म्यूटेंट में परिवर्तित हो रहा है, वैसे में ये बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता है कि भविष्य में फिर से टीकों की कमी नहीं झेलनी पड़ेगी. ऐसी स्थिति में, देश को किसी अनावश्यक बयानबाज़ी से बचते हुए, टीके की आपूर्ति के लिए
घरेलू उत्पादन में त्वरित तेज़ी लाने के तत्काल ज़रूरत पर ज़ोर देना ग़लत नहीं होगा. परंतु इसे प्राप्त करने के लिए, सरकार को ख़ुद के द्वारा उठाये गये कठोर कदम के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय सहायता की भी ज़रूरत होगी.
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Sohini Bose is an Associate Fellow at Observer Research Foundation (ORF), Kolkata with the Strategic Studies Programme. Her area of research is India’s eastern maritime ...
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