Author : Chen Xi

Published on Oct 28, 2020 Updated 0 Hours ago

अगर हमें ये समझने में इतना ही अधिक वक़्त लगता है कि दुनिया की बड़ी ताक़तों के बीच वैश्विक स्तर पर सहयोग ज़रूरी है. घरेलू स्तर पर सामाजिक समानता बनाए रखना आवश्यक है. तो तय है कि अमेरिका हो या चीन, या फिर दुनिया के अन्य देश. सबके दलदल में धंस जाने का ख़तरा है.

‘सामाजिक असमानता को मिटाने के प्रयास: अमेरिका के अनुभव से भारत क्या सबक़ ले सकता है’

अमेरिका इस समय दो बिल्कुल विरोधाभासी चुनौतियों का सामना कर रहा है. एक तरफ़ तो उसे अपने यहां के औसत परिवारों का संरक्षण करना है. वहीं, दूसरी तरफ़ वो पूरी दुनिया में मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना चाहता है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप विश्व व्यापार की मौजूदा व्यवस्था को मिटाकर उसकी जगह अपने देश में अधिक से अधिक रोज़गार पैदा करना चाहते हैं, जिससे कि वो मतदाताओं का दिल जीत सकें. लेकिन, ट्रंप के इस क़दम भर से अमेरिका की घरेलू चुनौतियों का समाधान नहीं निकाला जा सकता. क्योंकि, अमेरिका की घरेलू समस्या की बुनियाद में है, वहां की सामाजिक असमानता. अमेरिका के हालात, पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण हैं. जिससे ये सबक़ मिलता है कि आर्थिक विकास के साथ-साथ हम कैसे सामाजिक समानता को बनाए रख सकते हैं.

अमेरिका की घरेलू समस्या की बुनियाद में है, वहां की सामाजिक असमानता. अमेरिका के हालात, पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण हैं. जिससे ये सबक़ मिलता है कि आर्थिक विकास के साथ-साथ हम कैसे सामाजिक समानता को बनाए रख सकते हैं.

अमेरिका के लिए वास्तविक चुनौती क्या है?

1990 के दशक में दुनिया की सबसे मूल्यवान कंपनियां जापान की हुआ करती थीं. जैसे कि बैंक ऑफ़ मित्शुबिशी, सुमितोमा मित्सुई बैंक, इंडस्ट्रियल बैंक, फुजी बैंक और डाए-इची कांग्यो बैंक, एनटीटी डोकोमो और टोयोटा. अब इनकी जगह अमेरिकी कंपनियों ने ले ली है. जैसे कि एप्पल, अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, फ़ेसबुक, बर्कशायर हैथवे, वीज़ा, मास्टरकार्ड, जे.पी. मोर्गन, जॉनसन ऐंड जॉनसन, वालमार्ट और पी एंड जी. इन अमेरिकी कंपनियों का कुल बाज़ार मूल्य 11 हज़ार 98 अरब डॉलर (28 अगस्त 2020 को) से भी अधिक है. जो वर्ष 2019 में जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और इटली की कुल जीडीपी (11 हज़ार 389.5 अरब डॉलर) के बराबर है. या फिर इन कंपनियों का कुल बाज़ार मूल्य अमेरिका की कुल जीडीपी (जो वर्ष 2019 में लगभग 21 हज़ार 427.7 अरब डॉलर थी) का 52 प्रतिशत है. आज की तारीख़ में केवल कुछ गिनी चुनी सबसे मूल्य कंपनियां ही दूसरे देशों की हैं. मिसाल के तौर पर अलीबाबा, टेंसेंट, टीएसएमसी (TSMS), नेस्ले और रोशे.

इन सभी कंपनियों ने विश्व व्यापार के अत्यधिक भूमंडलीकरण का लाभ उठाया है. उदाहरण के लिए वर्ष 2002 में माइक्रोसॉफ्ट का राजस्व 28.3 अरब डॉलर था. जो अगले 17 वर्षों में 343.66 प्रतिशत बढ़ कर वर्ष 2019 में 125.8 अरब डॉलर हो गया. कंपनी के कुल राजस्व में से बाक़ी दुनिया की हिस्सेदारी साल 2002 में जहां केवल 26.5 प्रतिशत (7.5 अरब डॉलर थी). जो वर्ष 2019 में बढ़ कर 48.98 प्रतिशत (61.64 फ़ीसद) हो गई. इसी तरह साल 2002 से 2019 के बीच, एप्पल का कुल टर्नओवर 44.63 गुना बढ़ गया. साल 2002 में ये 5.7 अरब डॉलर था. जो 2019 में बढ़ कर 260.1 अरब डॉलर हो गया. एप्पल की दुनिया के अन्य देशों से कमाई साल 2002 में जहां कुल आमदनी का 43 प्रतिशत या 2.47 अरब डॉलर थी. वहीं,  वर्ष 2019 में एप्पल की कुल आमदनी में से बाक़ी दुनिया से होने वाली कमाई 60.69 प्रतिशत बढ़ कर 157.9 अरब डॉलर हो गई.

इसी दौरान, अमेरिका में प्रति व्यक्ति व्यय योग्य आमदनी 76.76 प्रतिशत बढ़ गई. (साल 2002 में ये 28 हज़ार 153 डॉलर प्रति व्यक्ति थी. जो वर्ष 2019 में बढ़ कर 49 हज़ार 763 डॉलर हो गई). इसका नतीजा ये हुआ कि अमेरिका में अमीर और ग़रीब के बीच की खाई बहुत चौड़ी हो गई है. अमेरिका की तुलना में चीन की क्या स्थिति है? चीन के शहरों में रहने वाले लोगों की प्रति व्यक्ति ख़र्च योग्य आमदनी इस दौरान 298.98 प्रतिशत बढ़ गई. वर्ष 2002 में चीन के शहरी बाशिंदों की प्रति व्यक्ति व्यय योग्य आमदनी 1122 डॉलर थी. जो साल 2019 में बढ़ कर 4477 डॉलर हो गई. चीन की जनसंख्या 1.4 अरब है. और आज से आठ साल पहले वहां के दस करोड़ लोग चीन की ग़रीबी रेखा के पैमाने से नीचे रहते थे. लेकिन, अब चीन ने असमानता को दूर करने की दिशा में काफ़ी प्रगति की है. उदाहरण के लिए पश्चिमी चीन के होंग शैन गांव में आज हाई स्पीड ट्रेन पहुंच चुकी है. 5G नेटवर्क है. डेटा सेंटर है और क्लाउड कंप्यूटिंग की सुविधाएं हैं. यही नहीं खेतों में उर्वरक डालने के लिए मानव रहित विमानों (UAV) का इस्तेमाल किया जाता है. मिट्टी और पौधों पर निगरानी रखने, खेतों का तापमान और नमी पर नज़र रखने, हर फल पर निगाह रखने के लिए इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (रिमोट मॉनिटरिंग) का प्रयोग किया जाता है. इसके अलावा खेती के उत्पाद बेचने के लिए ई-बिज़नेस के इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास किया जा चुका है. आज होंग शैन गांव के निवासियों की औसत आमदनी 2900 डॉलर प्रति व्यक्ति है. अमेरिका की तुलना में ये बहुत अधिक नहीं है. लेकिन, इससे पता चलता है कि चीन, सामाजिक असमानता दूर करने के लिए सही रास्ते पर चल रहा है.

चीन ने असमानता को दूर करने की दिशा में काफ़ी प्रगति की है. उदाहरण के लिए पश्चिमी चीन के होंग शैन गांव में आज हाई स्पीड ट्रेन पहुंच चुकी है. 5G नेटवर्क है. डेटा सेंटर है और क्लाउड कंप्यूटिंग की सुविधाएं हैं. यही नहीं खेतों में उर्वरक डालने के लिए मानव रहित विमानों (UAV) का इस्तेमाल किया जाता है. 

अमेरिका के लिए क्या समाधान उपलब्ध हैं?

ट्रंप प्रशासन ने कई वैश्विक कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. इनमें चीन की कंपनियां भी शामिल हैं. इससे वैश्विक व्यवस्था में उथल पुथल मच गई है. ट्रंप ने अमेरिका की बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर टैक्स लगाने की धमकी दी है. ट्रंप की सरकार ने अपने यहां के फेडरल रिज़्व पर दबाव बनाया है कि वो ब्याज दरें नीची रखे. यही नहीं, प्रेसीडेंट ट्रंप ने कोविड-19 के ख़िलाफ़ घरेलू स्तर पर चलाए जा रहे अभियानों के ख़िलाफ़ भी दबाव बनाया है. दुर्भाग्य की बात ये है कि इससे अमेरिका में न तो रोज़गार सृजन होगा. और न ही इससे वहां के लोगों की नौकरियां बचाई जा सकेंगी. इससे एक औसत अमेरिका परिवार की ज़िंदगी भी लंबी अवधि में बेहतर नहीं होगी. एक तरफ़ तो हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि अत्यधिक भूमंडलीकरण से अमेरिका के एक औसत परिवार के जीवन का ख़र्च कम होता है. अमेरिका की छोटी और मध्यम दर्जे की कंपनियों के लिए अवसरों के नए द्वार खुलते हैं. अमेरिका को दुनिया भर से क़ाबिल कामकाजी लोग मिलते हैं. वहीं, दूसरी तरफ़ अगर एप्पल अपने कारख़ानों को अमेरिका ले जाती है, तो क्या अमेरिका में इस बात की क्षमता है कि वो एप्पल के उत्पादों के निर्माण और निर्यात के लिए ज़रूरी सप्लाई चेन का निर्माण कर सके? ऐसा नहीं है. क्योंकि अमेरिका में इसके लिए आवश्यक हुनरमंद कामगारों की कमी है. और ऐसे लोग हैं भी तो उन्हें एप्पल को भारी रक़म तनख़्वाह के तौर पर देनी पड़ेगी. इससे उसकी लागत बढ़ जाएगी. अगर अमेरिकी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट दुनिया के अन्य देशों में अपने दफ़्तर बंद करके अमेरिका में लोगों को नौकरियां देती है. तो क्या माइक्रोसॉफ्ट, अन्य कंपनियों से कम लागत वाले मुक़ाबले में जीत सकेगी? ऐसा भी नहीं है. क्योंकि, तब माइक्रोसॉफ्ट को प्रतिभाशाली इंजीनियरों की ज़रूरत होगी, जिससे वो अपने सबसे अधिक मुनाफ़ा देने वाले ग्राहकों को अपने साथ जोड़े रख सकें. अगर अमेरिका अपने 5G नेटवर्क के लिए नोकिया, एरिक्सन या सैमसंग से उपकरण ख़रीदता है, तो क्या वो अन्य देशों से मुक़ाबला करने लायक़ हो सकेगा? हां, ऐसा संभव है. लेकिन, इससे अमेरिका की लागत बढ़ जाएगी. इससे अमेरिका के राष्ट्रीय डिजिटलीकरण अभियान की प्रक्रिया धीमी हो जाएगी. और इस नेटवर्क का इस्तेमाल करने वालों को अस्थिर सिग्नल ही मिल सकेंगे.

ट्रंप की सरकार ने अपने यहां के फेडरल रिज़्व पर दबाव बनाया है कि वो ब्याज दरें नीची रखे. यही नहीं, प्रेसीडेंट ट्रंप ने कोविड-19 के ख़िलाफ़ घरेलू स्तर पर चलाए जा रहे अभियानों के ख़िलाफ़ भी दबाव बनाया है. दुर्भाग्य की बात ये है कि इससे अमेरिका में न तो रोज़गार सृजन होगा. और न ही इससे वहां के लोगों की नौकरियां बचाई जा सकेंगी. 

तो फिर, इसके बजाय अमेरिकी सरकार को क्या करना चाहिए?

इसके लिए अमेरिका को क्रांतिकारी तकनीक के विकास में निवेश करना होगा. और अधिक से अधिक लोगों को ज़रूरी हुनर सिखाने होंगे . अमेरिका को अपने ग़रीब परिवारों को शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सब्सिडी देनी होगी. अमेरिकी सरकार को चाहिए कि वो इस महामारी के दौरान मिलने वाले वैज्ञानिक सुझावों (जैसे कि अमेरिका के सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन और विश्व स्वास्थ्य संगठन) का सम्मान करना होगा. अगर अमेरिका ये चाहता है कि दुनिया भर के क़ाबिल लोग उसके यहां काम करने आएं, तो उसे कम लागत वाले पारंपरिक और सूचना एवं संचार तकनीक संबंधी बुनियादी ढांचे की सुविधा देनी पड़ेगी. इससे औसत अमेरिकी परिवारों को अपने घरेलू बाज़ार में खपत के लिए प्रोत्साहन मिल सकेगा. दुर्भाग्य से न तो डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन ये क़दम उठाएंगे. और, न ही अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ही ऐसा करेंगे. अमेरिका के घरेलू पूंजीवादी लोग, सरकार की ओर से सामाजिक समानता को बढ़ावा देने वाले ऐसे अभियानों का पुरज़ोर विरोध करेंगे. क्योंकि उन्हें तो अपने नुक़सान की फ़िक्र होगी. मिसाल के तौर पर जलवायु परिवर्तन या सबको सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा देने मात्र के क़दम का ही ख़र्च एक हज़ार अरब डॉलर से अधिक आएगा. इससे अमेरिकी सरकार का क़र्ज़ काफ़ी बढ़ने की आशंका है. या फिर इससे संस्थागत वित्तीय जोखिमों का डर बढ़ जाएगा. इसके विपरीत, अमेरिका की वित्तीय या तकनीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां वैश्विक और घरेलू संघर्ष की सबसे बड़ी लाभार्थी रही हैं. उदाहरण के लिए अगर टिक टॉक नहीं होगा, तो फ़ेसबुक उसकी जगह बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा लेगा. अगर सार्वजनिक स्वास्थ्य की व्यवस्था के प्रस्ताव लागू नहीं किए जाते, तो उनकी जगह स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी अमेरिकी कंपनियां ले लेंगी. और इतिहास ने हमें दिखाया है कि किसी भी संघर्ष की स्थिति में सैन्य और ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां तो हर बार मुनाफ़ा कमाती आई हैं. ऐसे में इस बात की संभावना बेहद कम है कि आने वाले कुछ वर्षों के दौरान अमेरिका में कोई बदलाव आएगा. फिर चाहे जो बाइडेन राष्ट्रपति चुने जाएं, या डोनाल्ड ट्रंप ही सत्ता में बने रहें. हर सूरत में औसत अमेरिकी परिवार के हितों को बलि वेदी पर चढ़ा दिया जाएगा. भले ही हमें ऊपरी तौर पर ये लगता हो कि अमेरिका के नेता, आम लोगों के हितों की ही लड़ाई लड़ रहे हैं. इसके साथ-साथ अमेरिका अगर संरक्षणवादी नीतियां अपनाता है, तो इसे दुनिया के सामने खड़ी फौरी साझा चुनौतियों से निपटने में अमेरिका की क्षमताओं पर भरोसा घटता है. जैसे कि कम विकसित देशों के लोगों को आसानी से वैक्सीन उपलब्ध कराना और महामारी से निपटने के लिए दुनिया के तमाम देशों के साथ मिलकर सघन अभियान चलाना, खाने का संकट, जलवायु परिवर्तन और डिजिटल सुरक्षा के मोर्चे.

भले ही हमें ऊपरी तौर पर ये लगता हो कि अमेरिका के नेता, आम लोगों के हितों की ही लड़ाई लड़ रहे हैं. इसके साथ-साथ अमेरिका अगर संरक्षणवादी नीतियां अपनाता है, तो इसे दुनिया के सामने खड़ी फौरी साझा चुनौतियों से निपटने में अमेरिका की क्षमताओं पर भरोसा घटता है. 

निष्कर्ष

इन चुनौतियों का सामना करने की कुंजी, सामाजिक असमानता दूर करने में निहित है. न कि घरेलू समस्याओं से मुक्ति के लिए वैश्विक व्यापार व्यवस्था में उथल पुथल मचाना और दुनिया की दूसरी समस्याओं की ओर ध्यान भटकाना. लेकिन, अमेरिका में सामाजिक असमानता दूर करने की कोशिशें किए जाने की संभावना बेहद कम है. और ये दुनिया के सभी देशों के लिए बड़ा सबक़ है. भले ही आर्थिक विकास एक प्राथमिकता है. लेकिन, अगर सामाजिक समानता नहीं होगी, तो इसका दंड पूरे समाज को भुगतना होगा. वैश्विक चुनौतियों के कारण घरेलू संघर्ष और बढ़ जाएंगे. गुड गवर्नेंस (जैसे कि डिजिटल तकनीक पारिस्थितिकी और सार्वजनिक स्वास्थ्य का मेल) की ज़रूरत हर शहर और देश को है. समाज में समानता लाने और उसे बनाए रखन से तमाम देशों की केंद्रीय भूमिका होगी.

भले ही हमें ऊपरी तौर पर ये लगता हो कि अमेरिका के नेता, आम लोगों के हितों की ही लड़ाई लड़ रहे हैं. इसके साथ-साथ अमेरिका अगर संरक्षणवादी नीतियां अपनाता है, तो इसे दुनिया के सामने खड़ी फौरी साझा चुनौतियों से निपटने में अमेरिका की क्षमताओं पर भरोसा घटता है. 

अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी की वर्ष 2020 की वार्षिक बैठक का सूत्र वाक्य है- Drain the Swamp यानी दलदल को सुखाना. 19वीं सदी से लेकर 1970 के दशक तक अमेरिकी समाज में व्यापक रूप से ये बात मानी जाती थी कि मच्छरों से निजात पाने या हाइवे का निर्माण करने के लिए दलदल को साफ करना ज़रूरी है. लेकिन, अमेरिका की जनता, उसके सांसदों और क़ानून लागू कराने वालों तथा वैज्ञानिकों के लिए इस बात को समझने का पर्याप्त समय मिला है कि जिन इलाक़ों में पानी भरा होता है, उनकी पारिस्थितिकी और आब-ओ-हवा की अपनी अहमियत है. उदाहरण के लिए मछलियों या परिंदों की रिहाइश वाले इलाक़ों में ये जीव पानी को साफ करते हैं, बाढ़ की आमद को कमज़ोर करते हैं और साफ पानी व हरियाली को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं. 1970 के दशक में बने अमेरिकी क़ानून क्लीन वाटर एक्ट के बाद से दलदलों को क़ानूनी संरक्षण मिला हुआ है. ऐसे में अगर हमें ये समझने में इतना ही अधिक वक़्त लगता है कि दुनिया की बड़ी ताक़तों के बीच वैश्विक स्तर पर सहयोग ज़रूरी है. घरेलू स्तर पर सामाजिक समानता बनाए रखना आवश्यक है. तो तय है कि अमेरिका हो या चीन, या फिर दुनिया के अन्य देश. सबके दलदल में धंस जाने का ख़तरा है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.