Published on Jan 06, 2021 Updated 0 Hours ago

उर्सुला वॉन डेर लेयेन के इस दावे के बावजूद कि सीएआई समझौता यूरोपीय संघ की बहुपक्षीयता का बचाव करने में मदद करेगा, सीआईए किसी भी रूप में बहुपक्षीय नहीं हैf. यह एक द्विपक्षीय क़रार है जिसके केंद्र में सत्तावादी ताक़त है, और बहुपक्षीयता को लेकर जिसकी समझ बेहद अलग है.

‘यूरोपीय संघ, सीएआई समझौता और गहराता गर्त’

30 दिसंबर 2020 को, यूरोपीय संघ के माध्यम से जारी की गई एक प्रेस विज्ञप्ति में गर्व के साथ यह घोषणा की गई कि “नेताओं ने मिलकर यूरोपीय संघ और चीन के बीच निवेश संबंधी व्यापक समझौते यानी सीएआई (EU-China Comprehensive Agreement on Investment-CAI) पर बातचीत के ज़रिए आम सहमति बना ली है.” बातचीत और आम सहमति के इस चरण (व्यावहारिक रूप से इस समझौते को अभी भी यूरोपीय संसद की जांच का सामना करना पड़ेगा) का नतीजा यह निकला कि इस संबंध में राय और टिप्पणियों का एक कुटीर उद्योग शुरु हो चुका है.

अर्थशास्त्र और क़ानून के क्षेत्र से जुड़े दिग्गज और महान विचारक इस मामले में उपलब्ध जानकारियों (जो कि अब भी सीमित हैं) के आधार पर कई तरह की अटकलें लगा रहे हैं. इस बीच शैक्षणिक चर्चाओं में भी इस मुद्दे को लेकर अलग अलग विमर्श जारी हैं कि, सभी पक्षों के लिए एक समान ज़मीन तैयार करने के रूप में इस समझौते का क्या मतलब हो सकता है, यूरोपीय संघ ने अपने लिए जो शर्तें तय की हैं वह अमेरिका और चीन के पहले चरण के समझौते की तुलना में कितनी बेहतर हैं (इस बात पर ध्यान देने के साथ कि भले ही यूरोपीय संघ और चीन के बीच क़रार उस वक्त किया गया था जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापार जारी था लेकिन फिर भी इस क़रार में, प्रौद्योगिकी के जबरन हस्तांतरण जैसे मुद्दे शामिल हैं). इसके अलावा इस बात पर भी बहस जारी है कि जिन सामाजिक और पर्यावरणीय धाराएं को यूरोपीय संघ अपने लिए बड़ी जीत मान रहा है, उन्हें ज़मीनी आधार पर किस तरह लागू किया जाएगा और इस तरह की तमाम अन्य कई बातें. लेकिन इस ज्ञान और विमर्श का ज़्यादातर हिस्सा, तकनीकज्ञ संरक्षण और सुरक्षा (टेकनोक्रैटिक सेफ्टी बबल) में जितना सम्मोहक लगता है यह उतना ही हमें रोम के उस राजा नीरो की याद दिलाता है जिसके लिए कथित रूप से कहा जाता कि जब रोम जल रहा था तो वह संगीतवादन में व्यस्त था. यह तिनका-तिनका जोड़ कर आर्थिक लाभ और नुकसान गिनने का समय भी नहीं है. यूरोपीय संघ जो लंबे समय से गर्त की खाक़ छान रहा है, और इस क़रार को लेकर टकटकी लगाए हुए था, वह लगातार अपने आस पास के माहौल और बदलाव को भांपने की कोशिश में है.

हमारी नज़र उस जल्दबाज़ी पर अटक सकती है और इसे लेकर कई विमर्श किए जा सकते हैं, कि किस तेज़ी के साथ यूरोपीय संघ ने, जिसे आम तौर पर एक लंबरदार, जटिल और नौकरशाही में क़ैद इकाई के रूप में देखा जाता है, इस सौदे को आगे बढ़ाया है

गर्त में यूरोपीय संघ 

इस डील में ऐसा बहुत कुछ है जिसे लेकर प्रणालीगत रूप से यानी इस पर सहमति बनाए जाने की नज़र से और उसके अमल में आने के बाद पड़ने वाले प्रभाव के आधार पर कई बातें इंगित की जा सकती हैं.

हमारी नज़र उस जल्दबाज़ी पर अटक सकती है और इसे लेकर कई विमर्श किए जा सकते हैं, कि किस तेज़ी के साथ यूरोपीय संघ ने, जिसे आम तौर पर एक लंबरदार, जटिल और नौकरशाही में क़ैद इकाई के रूप में देखा जाता है, इस सौदे को आगे बढ़ाया है. या हम इस बात का सुझाव दे सकते हैं कि जिस जादुई शर्बत को पी कर ब्रसेल्स में नौकरशाही इस तरह हरकत में आई है, उसे अब हमेशा के लिए वहां का आधिकारिक पेय बना दिया जाना चाहिए. हम इस तथ्य पर भौंह भी चढ़ा सकते हैं कि अंतिम वार्ता उस समय हुई जिसे आमतौर पर साल का सबसे शांत समय माना जाता है, यानी जिस वक्त लगभग सब कुछ लंबी छुट्टियों के तहत बंद रहता है, समाचार पत्रों के कार्यालयों में अधिक लोग नहीं होते और साल भर की भागदौड़ से थके हुए नागरिक इस अवधि में आराम से दो घड़ी सांस लेने का मन बना चुके होते हैं, जिसे जर्मन भाषा में बेहद सम्मोहक ढंग से “ज़्विशेन डेन जेरेन” यानी एक साल से दूसरे साल में जाने के बीच के सुस्त और शांत समय के रूप में परिभाषित किया गया है. हमारी चढ़ी हुई भौहें शायद तब और भी अधिक चढ़ जाएं अगर हमारा ध्यान इस तथ्य की ओर जाए कि लगभग पूरे यूरोप में आम लोग इस वक्त कोरोनोवायरस महामारी की दूसरी लहर में फंसे हुए हैं (जिस दिन इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, जर्मनी में कोविड-19 की माहामारी से मरने वालों का दैनिक आंकड़ा एक नए और निराशाजनक रिकॉर्ड तक पहुंच गया था). हम इस बात की सराहना भी कर सकते हैं कि दुनियाभर में फैली महामारी और छुट्टी का यह दौर इस ‘प्रणालीगत प्रतिद्वंद्विता’ (systemic rivalry) को अमल में आने से नहीं रोक पाया.

श्रम और पर्यावरणीय मानकों के मूल्यों को कम करने को लेकर टेक्नोक्रेट्स के झुकाव के विपरीत, इन मूल्यों में लोकतंत्र, उदारवाद, बहुलवाद, और अनेकतावाद के सिद्धांत शामिल हैं.

हम न केवल यूरोपीय संघ और चीन के बीच जारी इस मेल मिलाप और जश्न के समय पर सवाल उठा सकते हैं बल्कि जिन नायकों ने इसे अंजाम तक पहुंचाया उनके चुनाव को भी प्रश्नों के घेरे में डाल सकते हैं, जैसे- इस बैठक में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों  किस क्षमता और किस कारण मौजूद थे? इस बैठक को लेकर जारी की गई कुछ सीमित तस्वीरें यह धारणा पैदा करती हैं कि यूरोप की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं- जर्मनी और फ्रांस- ड्राइवर की सीट पर हैं. यानी अपने सभी अन्य 25 सदस्यों (जो संख्या 31 दिसंबर को ब्रिटेन से बाहर होने के साथ 24 तक कम होती है) के प्रतिनिधित्व को लेकर और उनके प्रति जवाबदेही के नज़रिए से यूरोपीय संघ जिस बात का दावा करता है, वह केवल कहने भर के लिए है यानी लिप-सर्विस से अधिक कुछ नहीं है.

हम यह भी कर सकते हैं- अगर हमारे भीतर इस बात की इच्छा हो कि- हम विनम्रता से इस बात की ओर इशारा करें कि हम यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के इस दावे से किसी भी रूप में आश्वस्त नहीं हैं. हम नहीं मानते कि यह “समझौता हमारे हितों को बनाए रखेगा और यूरोपीय संघ के मूल मूल्यों को बढ़ावा देगा. या फिर कि यह हमें मज़बूर रूप से किए जाने वाले श्रम को खत्म करने की दिशा में एक लीवर प्रदान करता है. इस समझौते के अंतर्गत शामिल की गई शर्तें, कम से कम वह जिनका ज़िक्र यूरोपीय संघ की प्रेस विज्ञप्ति में किया गया है, वे बेहद कमज़ोर हैं. ये वास्तव में इतने कमज़ोर हैं, कि इन्हें एक भद्दा मज़ाक मानते हुए, हर तरफ ‘लाफ़ आउट लाउड’ (Laugh Out Loud On Labour standards) की छवि अंकित की जा सकती है, अगर इस बात को एक क्षण के लिए भुला दिया जाए कि शिनजियांग में मानवाधिकारों के हनन के किस क़दर भयावह मामले सामने आए हैं.

हम यह सभी मुद्दे उठा सकते हैं और इस तर्ज पर आगे तक की बहस कर सकते हैं, लेकिन फिर भी हम मुद्दे की जड़ तक नहीं पहुंच पाएंगे क्योंकि यह एक क़दम है जो अपनी प्रकृति में बेहद राजनीतिक है.

गर्त वापिस घूर रहा है 

अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश- इन मुद्दों को लेकर कई अर्थशास्त्रियों और वकीलों के बीच जो मत प्रचलित हैं वह स्वाभाविक रूप से अपने कलेवर में राजनीतिक हैं. चीन के उदय के संदर्भ में यह और भी अधिक राजनीतिक हो गए हैं, न केवल इसलिए कि ग़ैर बाज़ारोन्मुख अर्थव्यवस्थाओं द्वारा बहुपक्षीय नियमों का उपयोग और दुरुपयोग किया जा रहा है (जिस पर कि सीएआई के रक्षक सबसे अधिक ध्यान केंद्रित करते रहे हैं), बल्कि इसलिए भी कि उन मूल्यों के बीच मूल रूप से अंतर है, जिनके आधार पर बहुपक्षीय सहयोग के लक्ष्यों को परिभाषित किया जाना चाहिए. श्रम और पर्यावरणीय मानकों के मूल्यों को कम करने को लेकर टेक्नोक्रेट्स के झुकाव के विपरीत, इन मूल्यों में लोकतंत्र, उदारवाद, बहुलवाद, और अनेकतावाद के सिद्धांत शामिल हैं. साथ ही अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश को, विशेष रूप से एक ऐसी दुनिया में जहां अन्योन्याश्रितता को हथियार बनाया जा सकता है, अनुशासनात्मकता या टेकनोक्रेट्स के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता. सीएआई (CAI) केवल निवेश का मामला नहीं है या “सिर्फ” मानकों से जुड़ा मामला नहीं है, यह एक ऐसा मामला है जिस के संभावित रूप से गंभीर सुरक्षा संबंधी निहितार्थ और परिणाम हो सकते हैं. यह नाटकीय रूप से इस बाद को बदलना शुरू कर देता है कि हम समाज, समुदाय और लोगों के रूप में बुनियादी रूप से कौन हैं.

यह एक द्विपक्षीय समझौता है जो बहुपक्षवाद की बहुत अलग समझ रखता है. यह विशेष रूप से एक ऐसे अनियत समय पर आया है, जब इसका सही आकलन और इसके प्रभाव पर चर्चा बेहद मुश्किल है.

चीन ने साल 2020 में पहले के मुक़ाबले यूरोप को इन मतभेदों के बारे में सोचने के कहीं अधिक पर्याप्त कारण व सबूत दिए हैं. चीन ने इस वर्ष लोकतांत्रिक राष्ट्र ऑस्ट्रेलिया को धमकी दी और उस पर अपना ज़ोर आज़माने की कोशिश की क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने कोविड-19 की महामारी की उत्पत्ति पर एक जांच को आगे बढ़ाने की दिशा में सहयोग किया और संबंधित कार्रवाई की. चीन के नए सुरक्षा क़ानून ने हांगकांग के लिए “एक देश दो प्रणालियों” के वादे को खत्म कर दिया है. साथ ही, पड़ोसी देशों और उनके आस पास मौजूद समुद्री इलाकों को लेकर चीन का रोमांच और उसकी गतिविधियां लगातार बढ़ती गई हैं. भारत के साथ चीन का सीमा संघर्ष भी एक नए स्तर पर पहुंच गया है. इस के साथ ही चीन की “भेड़िये की तरह हमलावर कूटनीति” (wolf-warrior diplomacy) के बढ़ते उपयोग ने ऐसे कई मुद्दों पर बातचीत के ढोंग को भी अब ख़त्म कर दिया है, जो कभी लोकतंत्र को अहम मानने वाले लोगों के दिल के क़रीब थीं.

इन सभी स्पष्ट उकसावों के बावजूद, यूरोपीय संघ ने अपनी रणनीति में सकारात्मक बदलाव करने को लेकर बहुत कम प्रयास किए हैं. वह पूरे जतन के साथ साल 2019 के अपने मंत्र को दोहराता रहा कि वह चीन को अपने साथी, प्रतिस्पर्धी और प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता है. यह, वास्तव में और कुछ नहीं बल्कि कोई फ़ैसला न लेने और मैदान में उतरने के बजाय बाहर बैठ कर तमाशा देखने की रणनीति के अलावा कुछ भी नहीं था. अब सीएआई (CAI) वार्ता के समापन के साथ, यूरोपीय संघ ने अपने खुद के लोगों, अपने सहयोगियों और चीन को स्पष्ट रूप से यह बता दिया कि वह किस पक्ष में रहना पसंद करता है.

सीएआई (CAI) को लेकर वॉन डेर लेयेन के इस दावे के बावजूद कि इससे यूरोपीय संघ को बहुपक्षवाद का बचाव करने में मदद मिलेगी, यह किसी भी रूप में बहुपक्षीय नहीं है. यह एक सत्तावादी क़रार है जो उसे और अधिक मज़बूत बनाता है जिसके हाथ में ताक़त है. यह एक द्विपक्षीय समझौता है जो बहुपक्षवाद की बहुत अलग समझ रखता है. यह विशेष रूप से एक ऐसे अनियत समय पर आया है, जब इसका सही आकलन और इसके प्रभाव पर चर्चा बेहद मुश्किल है. यह पूरी तरह से चीन को इस बात का संकेत देता है कि यूरोपीय संघ अब न केवल उस के प्रति आंखें मूंद ले रहा है, बल्कि वास्तव में उसके बढ़ते आक्रामक व्यवहार को लेकर ईयू को कोई आपत्ति नहीं है. यह बताता है कि यूरोपीय संघ में अपने निकटतम सहयोगी, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों को लेकर और चीन के प्रति अमेरिकी रवैये के लिए शायद ही कोई लिहाज़ है. ध्यान रहे कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन ने स्पष्ट रूप से यह इच्छा ज़ाहिर की थी कि चीन के मामले पर वह यूरोपीय संघ के साथ मिल कर काम करना चाहेंगे. यह अन्य लोकतांत्रिक देशों के लिए भी कोई आश्वस्त करने वाला क़दम नहीं है- जैसे कि ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत. साथ ही यह समान विचारधारा रखने वाले खिलाड़ियों के साथ गठजोड़ की क्षमता को कम करता है. इसके अलावा यह सौदा बहुपक्षवाद के चेहरे पर एक थप्पड़ की तरह है. यह दिखाता है कि, बहुपक्षवाद के सुधार के नाम पर यूरोपीय संघ वास्तव में एक ऐसे देश के साथ द्विपक्षीय समझौते को मंज़ूरी दे रहा है जिसने इस व्यवस्था और प्रणाली को तोड़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, यहां तक कि कोई कसर नहीं छोड़ी.

आज यूरोपीय संघ में मौजूद कई लोग चीन की तरह अधिक हो गए हैं. यह समझौता यूरोपीय संघ को ‘मूल्यों’ के बजाय ‘मूल्यांकन’ और ‘आदर्शों’ के बजाय ‘व्यापार’ की दिशा में ले जाता है. 

1990 के दशक में, कई लोग “मध्य साम्राज्य” को अपनाने और इसे बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था के साथ एकीकृत करने के विचार को लेकर दृढ़ थे. इस मामले में उनका तर्क यह था कि इससे वह चीन को अपने ढंग में ढाल सकेंगे और चीन को अपने जैसा बनाने में सक्षम होंगे. यह बात बेहद निराशाजनक है कि असल में उलटा स्वरूप सामने आया है. आज यूरोपीय संघ में मौजूद कई लोग चीन की तरह अधिक हो गए हैं. यह समझौता यूरोपीय संघ को ‘मूल्यों’ के बजाय ‘मूल्यांकन’ और ‘आदर्शों’ के बजाय ‘व्यापार’ की दिशा में ले जाता है.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये सभी वो विकल्प हैं, जो यूरोपीय संघ ने खुद अपने लिए चुने हैं. इन्हें चीन के पाले में नहीं डाला जा सकता क्योंकि चीन ने केवल अपने हित में लाभ जनित राजनीति का एक खेल खेला है. इसके उलट, यूरोप ने खुद अपने हाथों खुद को कमज़ोर बनाने की कार्रवाई की है. उस ने स्वयं अपने मूल्यों का ह्रास किया है, उन्हें छोटा किया है और अपने साथियों व सहयोगियों की स्थिति को कमज़ोर बनाया है.

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Authors

Samir Saran

Samir Saran

Samir Saran is the President of the Observer Research Foundation (ORF), India’s premier think tank, headquartered in New Delhi with affiliates in North America and ...

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Amrita Narlikar

Amrita Narlikar

Dr. Amrita Narlikar’s research expertise lies in the areas of international negotiation, World Trade Organization, multilateralism, and India’s foreign policy & strategic thought. Amrita is non-resident ...

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