Published on Nov 26, 2020 Updated 0 Hours ago

साल 2021 से दिल्ली का नया मास्टर प्लान, 2021-41, भविष्य में होने वाले विकास का मार्गदर्शन करने के लिए लागू होगा. यह प्लान फिलहाल तैयार किया जा रहा है, और यह सही समय है, यह सुनिश्चित करने का, कि नया प्लान शहरीकरण द्वारा उत्पन्न समस्याओं के समाधान के लिए बेहतर रूपरेखा रखे. यह लेख, दिल्ली से संबंधित पिछली योजनाओं व रणनीतियों के बारे में समझ विकसित करने और आगामी योजनाओं से क्या अपेक्षाओं रखी जाएं यह समझने में मदद करेगा.

‘दिल्ली का मास्टर प्लान-2041: सटीक समाधान ढूंढने का बेहतरीन अवसर’

सन् 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद से दिल्ली ने अपने स्थानिक विकास (spatial development) में कई बदलाव देखे हैं. उस समय, शहर की आबादी एक मिलियन से भी कम थी, और एडविन लुटियंस द्वारा तैयार किया गया, नई दिल्ली का शहरी प्लान यानी मास्टर प्लान, स्वतंत्रता से पहले से ही विकास की दिशा निर्देशित करने के लिए लागू किया जा चुका था.

हालांकि, देश के विभाजन के बाद लोगों के पलायन और आव्रजन के साथ, दिल्ली की आबादी साल 1951 तक लगभग दोगुनी हो गई, और नए निवासियों के लिए व्यवस्था करना आवश्यक हो गया. अब तक लुटियन की योजना की अवधि समाप्त हो चुकी थी, और अगली अवधि के लिए एक मास्टर प्लान तैयार नहीं किया गया था. ऐसे में टाउनशिप, पुनर्वास कॉलोनियों, कार्यालय ब्लॉक, सुविधाओं के रूप में दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में, ‘दिल्ली का नया विकास’, तदर्थ तरीके से हड़बड़ी में किया गया. इसके चलते शहर का विकास बेहद बेतरतीब तरीके से हुआ और कुछ हद तक बाधित भी रहा.

टाउनशिप, पुनर्वास कॉलोनियों, कार्यालय ब्लॉक, सुविधाओं के रूप में दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में, ‘दिल्ली का नया विकास’, तदर्थ तरीके से हड़बड़ी में किया गया. इसके चलते शहर का विकास बेहद बेतरतीब तरीके से हुआ और कुछ हद तक बाधित भी रहा.

साल 1962 तक, दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने शहर में पैदा होती समस्याओं के समाधान के लिए बीस साल की अवधि (यानी, 1961-81) के लिए पहला मास्टर प्लान तैयार किया. फोर्ड फाउंडेशन की सहायता से तैयार की गई यह योजना, आवास और बुनियादी ढांचे की तत्कालीन यानी मौजूदा कमियों के आकलन पर आधारित थी. इसे अंतिम रूप देने से पहले, सार्वजनिक और अन्य हितधारकों से आपत्तियां और सुझाव आमंत्रित किए गए थे. नियोजित विकास के लिए, बड़े पैमाने पर भूमि का अधिग्रहण किया गया, और पूरी प्रक्रिया का नेतृत्व सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा किया गया था.

सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों का केंद्र

समय बीतने के साथ, दिल्ली में बदलाव जारी रहे और शहर की रूपरेखा बदली. शहर तेज़ी से गतिविधियों और निवेश का एक प्रमुख केंद्र बना, और देश के अलग-अलग हिस्सों से आए लोगों ने दिल्ली को अपना घर बनाया. इसके अलावा, 1982 के एशियाई खेलों की तैयारी चल रही थी, जिसमें कई होटल, फ्लाईओवर, स्टेडियम, गेम्स विलेज इत्यादि का निर्माण शामिल था. तब तक यानी 1981 में पहले मास्टर प्लान की अवधि समाप्त हो चुकी थी, और जनसंख्य़ा वृद्धि अपने चरम पर थी (यानी 1971 से 1981 के दौरान हुई 53% वृद्धि).

बढ़ती जनसंख्या और आर्थिक गतिविधियों ने कई तरह की समस्याएं पैदा कीं, जैसे- घरों की कमी, झुग्गियों, अनधिकृत कॉलोनियों, अतिक्रमण का प्रसार; सेवाओं (पानी, बिजली, सीवेज, कचरा निपटान आदि) की मांग और आपूर्ति के बीच बढ़ती खाई; ख़तरनाक उद्योगों की स्थापना; मोटर वाहनों और यातायात के साधनों में वृद्धि; वायु और जल प्रदूषण; खुली व हरी-भरी जगहों की कमी; ऐतिहासिक इमारतों और विरासत की उपेक्षा, आदि.

दूसरा मास्टर प्लान साल 1990 तक लागू हुआ और 1981-2001 की अवधि के लिए था. प्रवासन, जनसंख्य़ा वृद्धि और शहरीकरण के नकारात्मक परिणाम उस समय की प्रमुख चुनौतियां थीं, और इसलिए, इस प्लान ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) की क्षेत्रीय योजना की शुरुआत के साथ, दिल्ली की योजना बनाए जाने पर ज़ोर दिया.

1982 के एशियाई खेलों की तैयारी चल रही थी, जिसमें कई होटल, फ्लाईओवर, स्टेडियम, गेम्स विलेज इत्यादि का निर्माण शामिल था. तब तक यानी 1981 में पहले मास्टर प्लान की अवधि समाप्त हो चुकी थी, और जनसंख्य़ा वृद्धि अपने चरम पर थी.

साल 1988 में ‘एनसीआर प्लानिंग बोर्ड’ द्वारा अनुमोदित इस क्षेत्रीय योजना ने दिल्ली से सटे क्षेत्रों में मौजूद ग्रामीण और शहरी बस्तियों में काम के नए अवसर बनाए जाने की सिफ़ारिश की, यह क्षेत्र थे- हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से. साथ ही साथ क्षेत्रीय नेटवर्क, बुनियादी ढांचे और सुविधाएं विकसित किए जाने पर ज़ोर दिया गया ताकि, दिल्ली में प्रवासन (migration) को कम किया जा सके.

दिल्ली के संबंध में दूसरे प्लान ने, बढ़ती जनसंख्या को धारण करने की क्षमता (उच्च घनत्व विकास के माध्यम से) पर ज़ोर दिया, शहरी क्षेत्रों की सीमा के विस्तार {उप-शहरों (रोहिणी, द्वारका, नरेला)} और नई आवासीय कॉलोनियों (वसंत कुंज, सरिता विहार, धीरपुर) के विकास के माध्यम से. इस प्लान में शहरी केंद्रों के विकेंद्रीकरण, मल्टी-मॉडल एमआरटीएस गलियारे (multi-modal MRTS corridor) के विकास, परिधीय एक्सप्रेसवे (peripheral expressway) व फ्रेट कॉम्पलेक्स के विकास के अलावा, ख़तरनाक और प्रदूषणकारी उद्योगों के स्थानांतरण, संसाधनों व पर्यावरण के संरक्षण, विरासत के संरक्षण, और लुटियन के बंग्लो-ज़ोन के संरक्षण की सिफ़ारिश की गई.

उदारीकरण और पीपीपी मॉडल

1990 के दशक की शुरुआत में, भारत सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों और उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू की गई थी, और चूंकि सार्वजनिक एजेंसियों के पास प्रयोग करने योग्य ‘सेवित भूमि’ उपलब्ध नहीं थी, इसलिए शहरी विकास मंत्रालय ने आश्रय और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए डीडीए को निजी क्षेत्र के साथ भागीदारी की संभावनाएं तलाशने की सलाह दी.

साल 1988 में ‘एनसीआर प्लानिंग बोर्ड’ द्वारा अनुमोदित इस क्षेत्रीय योजना ने दिल्ली से सटे क्षेत्रों में मौजूद ग्रामीण और शहरी बस्तियों में काम के नए अवसर बनाए जाने की सिफ़ारिश की, यह क्षेत्र थे- हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से.

उसी समय यानी साल 1989 के आसपास, दिल्ली सरकार ने शहर में यात्रा, परिवहन, भीड़ और वाहनों से होने वाले उत्सर्जन जैसी समस्याओं को हल करने के लिए, सार्वजनिक-निजी-भागीदारी (पीपीपी) के आधार पर ‘मेट्रो रेल प्रणाली’ विकसित करने के लिए क़दम उठाए. दिल्ली मेट्रो रेल ने अंततः 2002 के बाद से परिचालन शुरू किया, और शहर और उपनगरों के भीतर रेल नेटवर्क को आज भी चरणों में बढ़ाया जा रहा है.

साल 1996 में शहरी मंत्रालय द्वारा उठाया गया एक और क़दम, शहरी विकास योजना निर्माण और कार्यान्वयन यानी यूडीपीएफआई (Urban Development Plans Formulation and Implementation-UDPFI) के तहत, दिशा-निर्देशों का गठन था. यह महसूस किया गया कि मास्टर प्लान कई मायनों में नाकाफ़ी हैं, और उनके उचित कार्यान्वयन में कमी है. इसलिए, बेहतर योजना तैयार करने में प्रशासकों और योजनाकारों की सहायता के लिए दिशानिर्देश तैयार किए गए थे, और यह सुनिश्चित करने के लिए भी कि ये प्रभावी रूप से लागू किए जाएं.

साल 1991 तक, दिल्ली की जनसंख्या दर कम होने लगी थी. साल 1971 से 1981 के बीच 53 प्रतिशत के आंकड़े से घटकर यह 1981 से 1991 में 51 प्रतिशत हो गई,  और 1991 से 2001 के बीच 47 प्रतिशत दर्ज की गई. सबसे महत्वपूर्ण गिरावट 2001 से 2011 के दौरान देखी गई, जब जनसंख्या विकास दर 21 प्रतिशत तक गिर गई.

जनगणना जनसंख्य़ा के आंकड़ों के आकलन से पता चलता है कि दिल्ली की आबादी अब पहले की तुलना में धीमी गति से बढ़ रही है और विकास, पड़ोसी राज्यों में स्थित शहरी केंद्रों में हो रहा है. उदाहरण के लिए, हरियाणा के फरीदाबाद व गुरुग्राम, और उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद व नोएडा अब नए विकास केंद्र बन गए हैं. हालांकि, दिल्ली की जनसंख्य़ा के आकार (2011 में 16.7 मिलियन) और पड़ोसी शहरों (लगभग एक से दो मिलियन) में बहुत बड़ा अंतर है.

जनगणना जनसंख्य़ा के आंकड़ों के आकलन से पता चलता है कि दिल्ली की आबादी अब पहले की तुलना में धीमी गति से बढ़ रही है और विकास, पड़ोसी राज्यों में स्थित शहरी केंद्रों में हो रहा है. 

इसके अलावा, दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में स्थित बस्तियों के साथ दिल्ली शहर के कार्यात्मक संबंध हैं. लगभग तीन राज्यों के इस मिलेजुले क्षेत्र जिसे, एनसीआर के रूप में जाना जाता है, में हर रोज़ लोगों और मोटर वाहनों की ज़बरदस्त आवाजाही होती है. आज एनसीआर, भारत में सबसे अधिक आबादी वाला शहरी क्षेत्र बन गया है.

जनसंख्य़ा के रुझान और आंकड़ों, कार्यात्मक संपर्क और शहरीकरण की उभरती स्थानीय और क्षेत्रीय चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, दिल्ली का तीसरा मास्टर प्लान साल 2007 में तैयार और अधिसूचित किया गया था. यह 2001-21  के लिए एक दृष्टिकोण प्रदान करता है, और यह दृष्टिकोण, “दिल्ली को एक वैश्विक महानगर और विश्व स्तरीय शहर” बनाने के मकसद से तैयार किया था.

तीसरा मास्टर प्लान और नए संशोधन

तीसरे मास्टर प्लान के मुताबिक, साल 2021 तक दिल्ली की अनुमानित आबादी 23 मिलियन है, और यह प्लान, उसकी आवास, बुनियादी ढांचे और सेवा संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के प्रस्ताव पेश करता है. इसके अलावा, इसके अंतर्गत, विभिन्न शहरी क्षेत्रों में समस्याओं को दूर करने के लिए कई तरह समाधान प्रदान किए गए हैं, जिसमें भूमि, आश्रय, ग़रीबों के लिए आवास, व्यापार और व्यवसाय, उद्योग, पर्यावरण संरक्षण, ऐतिहासिक इमारतें और विरासत, परिवहन, सामाजिक और भौतिक बुनियादी ढांचा, आदि शामिल हैं. इसमें, जनसंख्या के संतुलित विस्तार के लिए तीन नीतिगत उपाय प्रस्तावित किए गए हैं:

i) दिल्ली के बाहर आर्थिक अवसरों को बढ़ाना, राजमार्गों के विकास की योजना और इस क्षेत्र में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में तेज़ी लाकर एनसीआर के शहरों में आबादी के लिए रहन-सहन को बेहतर बनाकर.

(ii) पुनर्विकास और संशोधित विकास मानदंडों के माध्यम से दिल्ली के भीतर जनसंख्य़ा धारण क्षमता में वृद्धि, यानी, ज़मीनी क्षेत्र के अनुपात (floor area ratio-एफएआर) और इमारतों की ऊंचाई बढ़ाकर, आवासीय क्षेत्रों में मिश्रित उपयोग की अनुमति देकर.

(iii) नियोजित तरीके से किए गए, नए शहरी विस्तार में आबादी को बसाकर, जैसे कि मुख्य़ परिवहन गलियारों के साथ लगे क्षेत्र, और दिल्ली की परिधि में मौजूद शहरी क्षेत्रों के आसपास.

इस योजना के कार्यान्वयन के लिए इस प्लान में सार्वजनिक और निजी संसाधनों, भूमि संघटन, विकास और आवास के बेहतर और किफ़ायती उपयोग व स्थानीय विकास के लिए भागीदारी के दृष्टिकोण को अपनाकर, विकेंद्रीकृत स्थानीय क्षेत्र योजना लागू करने की सिफ़ारिश की गई है.

साल 2011 में एक मध्यावधि समीक्षा के आधार पर, तीसरे प्लान में कई संशोधन किए गए, जैसे: आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 15 प्रतिशत एफ़एआर का संग्रह करना, शिक्षा सुविधाओं, अस्पतालों, होटलों, शॉपिंग सेंटरों, बाज़ारों के एफ़एआर को बढ़ाना, लैंड-पूलिंग यानी ज़मीन के एक ही हिस्से को अलग-अलग कामों के लिए इस्तेमाल योग्य बनाना, साथ ही पारगमन उन्मुख विकास यानी टीओडी (transit oriented development) की शुरुआत करना, आदि.

तीसरे मास्टर प्लान (2001-21) की अवधि के दौरान, कई भारतीय शहरों में स्थानिक विकास यानी इलाकों का शहरीकरण और जनसंख्य़ा विस्तार हुआ. ये नए इलाके अब अधिक आबादी वाले, गतिशील शहर बन गए, और बुनियादी सुविधाओं व सेवाओं की उनकी ज़रूरतों में बदलाव आया. इस नए घटनाक्रम और इसके चलते पैदा हुई नई चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, शहरी मास्टर प्लान तैयार करने की प्रक्रिया में ‘क्षेत्र’ (region) के आयाम को जोड़ने की आवश्यकता महसूस की गई.

कई भारतीय शहरों में स्थानिक विकास यानी इलाकों का शहरीकरण और जनसंख्य़ा विस्तार हुआ. ये नए इलाके अब अधिक आबादी वाले, गतिशील शहर बन गए, और बुनियादी सुविधाओं व सेवाओं की उनकी ज़रूरतों में बदलाव आया.

इसने 1996 की यूडीपीएफआई दिशानिर्देशों को संशोधित किया, जिन्हें “शहरी और क्षेत्रीय विकास योजना निर्माण और कार्यान्वयन- यूडीपीएफआई दिशानिर्देश, 2014″, के रूप में फिर से नामित किया गया.

आगे की राह कैसी हो?

वर्तमान में, दिल्ली का चौथा मास्टर प्लान तैयार किया जा रहा है,  जो अगले बीस वर्षों के लिए, यानी 2021-41 के लिए एक परिप्रेक्ष्य प्रदान करेगा. डीडीए की वेबसाइट और मीडिया रिपोर्टिंग के मुताबिक, अलग-अलग विषयों की एक लंबी सूची को लेकर, विविध समूहों- निवासियों, निवासी कल्याण संघों (आरडब्ल्यूए), बाज़ार और व्यापारियों संघों (एमटीए), युवाओं, विकलांग व्यक्तियों, झुग्गी निवासियों सहित अनधिकृत कॉलोनियों, ग्रामीणों, पेशेवर निकायों आदि के साथ ऑनलाइन परामर्श किए जा रहे हैं.

एक इंटरैक्टिव माइक्रोसाइट, जिसका नाम है, “एमपीडी-2020 के लिए जन भागीदारी पोर्टल”, डीडीए द्वारा बनाया गया है, ताकि शहरी योजना की इस प्रक्रिया में अधिक से अधिक संख्य़ा में जनता की भागीदारी को सुनिश्चित किया जा सके.

इस आधार पर, मसौदे के रूप में एक प्लान दिसंबर 2020  तक उपलब्ध कराया जाएगा. इसके अलावा, एक इंटरैक्टिव माइक्रोसाइट, जिसका नाम है, “एमपीडी-2020 के लिए जन भागीदारी पोर्टल”, डीडीए द्वारा बनाया गया है, ताकि शहरी योजना की इस प्रक्रिया में अधिक से अधिक संख्य़ा में जनता की भागीदारी को सुनिश्चित किया जा सके. यह भी उम्मीद की जा रही है कि मास्टर प्लान को तैयार करने की प्रक्रिया को यूडीपीएफआई, 2014 के दिशानिर्देशों से लाभ मिलेगा.

इस कार्रवाई के तहत डीडीए, राष्ट्रीय राजधानी के भविष्य में होने वाले विकास के मार्गदर्शन के लिए, बेहतर नीतियों और नियोजन रणनीतियों को विकसित करने का प्रयास किया है,  लेकिन इन प्रयासों की सफ़लता को लेकर दिल्लीवासियों में चिंता बरक़रार है. लोगों की राय में, पिछले प्लान वांछित परिणाम नहीं दे पाए हैं, और दिल्ली शहर में जीवन की गुणवत्ता (quality of life) समय के साथ बद से बदतर हो गई है. यानी शहर की परिधि में मौजूद क्षेत्र बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं, झुग्गी-झोपड़ियों और अनाधिकृत कॉलोनियों में रहन-सहन अस्त-व्यस्त है, परिवहन गलियारे ठप हैं, आवासीय कॉलोनियों में पार्किंग की व्यवस्था नहीं है, फुटपाथ और साइकिल लेन उपलब्ध नहीं हैं, कचरा प्रबंधन की कमी है, और हवा की गुणवत्ता बहुत ख़राब है. इसके अलावा, कोविड-19 की महामारी ने लोगों की ज़िंदगी और गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, जिसके चलते, भविष्य में दिल्ली को लेकर बनाए जाने वाली योजनाओं में पर्याप्त बदलाव की आवश्यकता है. यही वजह है कि अब जिस नए प्लान को लेकर वर्तमान में तैयारी की जा रही है, वह डीडीए के लिए शहरीकरण से उत्पन्न समकालीन और भविष्य की समस्याओं को प्रभावी ढंग से संबोधित करने और उनके सटीक समाधान प्रस्तावित करने का बेहतरीन अवसर है.

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