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इस साल अवैध रूप से अमेरिकी सीमा पार करने की कोशिश में हर घंटे 10 भारतीय गिरफ्तार किए गए.
डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका के लगभग सभी हिस्सों में हिस्पैनिक मतदाताओं, युवाओं और बिना कॉलेज की डिग्री वाले लोगों का समर्थन जुटाकर अमेरिकी इलेक्टोरेट को नया रूप दे दिया है. रिपब्लिकंस ने लोकलुभावन चुनाव-अभियान चलाया था, जिसमें वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा से श्रमिकों को बचाने का वादा किया गया और करों में कटौती की पेशकश की. इसने कामकाजी वर्ग के मतदाताओं और गैर-श्वेत अमेरिकियों के बीच ट्रम्प की ताकत को बढ़ाया और लगभग हर जगह उनके वोट-शेयर में इजाफा हुआ.ट्रम्प की जीत में जिन तमाम फैक्टर्स ने योगदान दिया है, उनमें से शायद सबसे महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था की स्थिति रही है. सीएनएन एग्जिट पोल से पता चला है कि ट्रम्प के मतदाताओं में से 51% ने कहा था कि अर्थव्यवस्था सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है, जबकि 20% ने कहा था कि इमिग्रेशन का मसला सबसे जरूरी है.यहां पर आप धारणाओं का अंतर देख सकते हैं. हकीकत यह है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था हाल के वर्षों में अच्छा प्रदर्शन कर रही है, हालांकि मुद्रास्फीति के कारण बनने वाली धारणाओं के चलते एडिसन रिसर्च एग्जिट पोल में लगभग दो-तिहाई मतदाताओं ने कहा कि अर्थव्यवस्था खराब हालत में है. उनमें से 46% ने कहा कि उनकी वित्तीय स्थिति चार साल पहले (जब बाइडेन और हैरिस ने पिछला चुनाव जीता था) से भी बदतर है, जबकि 2020 में 20% ने ही ऐसा कहा था.धारणाएं किस तरह काम करती हैं, यह इससे स्पष्ट है कि अधिकांश डेमोक्रेट्स को लगा अर्थव्यवस्था बहुत अच्छी स्थिति में है, जबकि रिपब्लिकंस को लगा कि यह इतनी अच्छी नहीं है. जब एग्जिट पोल में पूछा गया कि चार साल पहले की तुलना में आपकी पारिवारिक स्थिति कैसी है तो 82% डेमोक्रेट्स ने कहा अच्छी है, जबकि 81% रिपब्लिकंस ने जवाब दिया खराब है.
सीएनएन एग्जिट पोल से पता चला है कि ट्रम्प के मतदाताओं में से 51% ने कहा था कि अर्थव्यवस्था सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है, जबकि 20% ने कहा था कि इमिग्रेशन का मसला सबसे जरूरी है.
ट्रम्प ने कहा कि अवैध इमिग्रेंट्स देश में घुसपैठ कर रहे हैं. उन्होंने उन्हें सभी प्रकार के अपराधों के लिए दोषी ठहराया. यह पूछे जाने पर कि कानूनी दस्तावेजों के बिना इमिग्रेंट्स के साथ क्या किया जाना चाहिए, 75% डेमोक्रेट्स ने कहा कि उन्हें कानूनी स्थिति के लिए आवेदन करने का मौका दिया जाना चाहिए, जबकि 87% रिपब्लिकंस ने कहा कि उन्हें देश से बाहर भेज देना चाहिए.अब सत्ता में आने के बाद ट्रम्प अवैध प्रवासियों के डिपोर्टेशन को प्राथमिकता देंगे. बाइडेन के कार्यकाल के पहले तीन वर्षों में अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर अवैध रूप से क्रॉसिंग औसतन 20 लाख थी, हालांकि तब से इसमें कमी आई है.अमेरिकी चुनावों में इमिग्रेशन का मसला कितना महत्वपूर्ण था, यह इस बात से स्पष्ट है कि ट्रम्प ने हिस्पैनिक मतदाताओं के बीच अपना समर्थन बढ़ाया. परम्परागत रूप से, मध्य और दक्षिणी अमेरिका से हिस्पैनिक इमिग्रेंट्स अमेरिका में प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या है. एडिसन रिसर्च द्वारा किए एक एग्जिट पोल के अनुसार, हिस्पैनिक मतदाताओं में ट्रम्प के हिस्से में 14% अंकों का तेज बदलाव हुआ.खुद को हिस्पैनिक बताने वाले करीब 46% मतदाताओं ने ट्रम्प को चुना, जबकि 2020 में ट्रम्प को उनके 32% ही वोट मिले थे. हिस्पैनिक अमेरिकियों को लगा कि कानूनी इमिग्रेशन का रास्ता खुला रहना चाहिए, लेकिन अवैध इमिग्रेशन से केवल अव्यवस्था ही फैलती है, जिसका उन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
यदि नया ट्रम्प प्रशासन इस रास्ते पर चलता है तो इससे कुशल भारतीय प्रवासियों के लिए रास्ता खुल सकता है.
नया ट्रम्प प्रशासन निश्चित रूप से अवैध इमिग्रेशन पर नकेल कसेगा और अमेरिका की वीजा नीतियों को भी सख्त करेगा. इनका असर भारत पर भी पड़ेगा. 2021 में, प्यू रिसर्च ने बताया था कि अमेरिका में करीब 725,000 भारतीय बिना दस्तावेजों के रह रहे हैं, जिसने उन्हें वहां तीसरा सबसे बड़ा ऐसा समूह बना दिया. इस साल अवैध रूप से अमेरिकी सीमा पार करने की कोशिश में हर घंटे 10 भारतीय गिरफ्तार किए गए.इसके अलावा ट्रम्प कुशल पेशेवरों को प्रभावित करने वाली नीतियां भी लागू करेंगे, विशेष रूप से एच-1बी, एफ-1 और एच4 (जीवनसाथी के लिए) वीजा रखने वाले. अमेरिकी प्रवेश को कम करने के अलावा वीजा प्राप्तकर्ताओं पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं. भारतीय छात्रों को भी एफ-1 (शिक्षा) वीजा पर प्रतिबंधों के साथ सख्त वीजा नियंत्रण का सामना करना पड़ सकता है.हालांकि ट्रम्प ने अपने पिछले कार्यकाल में कहा था कि वे कानूनी इमिग्रेशन के मार्ग के रूप में कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के समान अंक-आधारित प्रणाली के लिए खुले रहेंगे. यदि नया ट्रम्प प्रशासन इस रास्ते पर चलता है तो इससे कुशल भारतीय प्रवासियों के लिए रास्ता खुल सकता है.ट्रम्प की नई इमिग्रेशन नीति को लागू होने में दो साल तक लग सकते हैं. लेकिन इस अवधि में इससे हजारों भारतीयों के जीवन पर असर पड़ेगा- वे जो अमेरिका में रह रहे हैं और वे भी जो वहां जाने की योजना बना रहे हैं.
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Manoj Joshi is a Distinguished Fellow at the ORF. He has been a journalist specialising on national and international politics and is a commentator and ...
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