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चुनौतियां
कोविड 19 महामारी, युद्ध, जलवायु परिवर्तन और भविष्य की महामारियों के जोख़िम संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने में प्रमुख बाधाएं हैं. बेरोज़गारी, असमानता और ख़राब स्वास्थ्य कुछ ऐसी चुनौतियां हैं जिन्हें महामारी ने बढ़ा दिया है. साल 2022 में ग़रीबी में रहने वाले लोगों की संख्या विश्व स्तर पर 657 मिलियन और 676 मिलियन के बीच रहने का अनुमान लगाया गया था और 2021 में 828 मिलियन लोग भूख से प्रभावित थे (लकनेर एवं अन्य 2022). कोविड 19 महामारी (बेज्रुकी और मून, 2021) के दौरान स्वास्थ्य संकटों के प्रबंधन में तमाम सीमाएं देखी गई थी.
बाज़ार आधारित प्रोत्साहनों के माध्यम से कंपनियों और निवेशकों द्वारा सामाजिक और पर्यावरणीय हस्तक्षेप की रूपरेखा को लाभ या सामाजिक उद्देश्यों द्वारा संचालित किया जा सकता है (फ्रीबर्ग, रोजर्स और सेराफीम 2020). एक प्रमुख स्टेकहोल्डर (हितधारक) के तौर पर निजी क्षेत्र कम और मध्यम आय वाले देशों में G20 सदस्यों और स्टेकहोल्डर्स के लिए विकास, रेजिलियेंस और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए एकीकृत ढांचे के माध्यम से एसडीजी की दिशा में प्रगति को आगे बढ़ा सकते हैं.
हालांकि इन्हें अमली जामा पहनाना निगमों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण काम है (जुंगहून और अन्य 2022). एसडीजी के चार प्राथमिकता वाले क्षेत्रों- वैश्विक स्वास्थ्य, ग़रीबी, भुखमरी और जलवायु परिवर्तन पर तत्काल कार्रवाई के आह्वान को जी20 सदस्य देशों द्वारा निजी क्षेत्रों की भागीदारी के परिमाण का आकलन करके संबोधित करने की ज़रूरत है.
निजी क्षेत्र विकासशील देशों (ओसीईडी/डब्ल्यूटीओ 2015) में लगभग 90 प्रतिशत औपचारिक और अनौपचारिक नौकरियों में योगदान करते हैं. बहुराष्ट्रीय उद्यमों (एमएनई), सूक्ष्म, लघु और मध्यम स्थानीय उद्यमों, या अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों के निजी उद्यमी लोगों के जीवन को बेहतर बनाने, घरेलू कर राजस्व बढ़ाने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने वाली वस्तुओं और सेवाओं को प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. विकासशील देशों में निजी क्षेत्र का निर्यात बाज़ार में भी अहम भूमिका होती है और उत्पन्न विदेशी मुद्रा व्यापक आर्थिक स्थिरता, पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं और निर्यात प्रतिस्पर्धा के लिए महत्वपूर्ण है. एसडीजी को पूरा करने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी, निवेश दृष्टिकोण और बेहतर स्वास्थ्य के लिए ग़रीबी और भूख को कम करने के लिए प्राथमिकताएं आवश्यक है. इसे अक्सर डोनर एजेंसियों द्वारा एक सतत विकास समाधान के रूप में देखा जाता है. इस बात के पुख़्ता प्रमाण हैं कि निजी निवेश के माध्यम से निजी क्षेत्र के नेतृत्व वाली उत्पादकता वृद्धि होती है जो एक परिवर्तनकारी शक्ति है (लिंडाहल 2006). निजी क्षेत्र की भूमिका नीतिगत हस्तक्षेपों और संवादों के माध्यम से वैश्विक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और स्थानीय एसडीजी 2030 एज़ेंडे में योगदान देना है. निजी क्षेत्र के बेहतर तरीक़ों को एकीकृत करने वाला एक साक्ष्य-आधारित नीतिगत ढांचा, जैसे कि नए साझेदारी मॉडल, ज्ञान प्रसार और विभिन्न सहयोग के तौर-तरीक़ों के माध्यम से डिजिटल ढांचा, पॉलिसी इम्पेरेटिव, विकास के प्रयासों को समृद्ध और विविधतापूर्ण बना सकती हैं.
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जी 20 की भूमिका
अदीस अबाबा एक्शन एज़ेंडा (एएएए) जिसे 2030 एज़ेंडा के कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिए 2015 में अपनाया गया था, कोविड-19 महामारी, भू-राजनीतिक तनाव और यूक्रेन में युद्ध के व्यापक परिणामों के चलते प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ है. ग़रीब और कमज़ोर आबादी के बारे में अधिक समझ विकसित करने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी और नीतिगत हस्तक्षेप बॉटम ऑफ द पिरामिड (बीओपी) को कैसे प्रभावित करते हैं, इसकी जांच करने की आवश्यकता है. सक्रिय रूप से फाइनेंशियल फ्लो बढ़ाकर निजी क्षेत्र के फाइनेंस के माध्यम से परस्पर जुड़ी दुनिया में एसडीजी में सुधार निम्न और मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं की प्रगति को प्रभावित कर सकते हैं.
निजी क्षेत्र की जिम्मेदारियों के 3 सी – कोऑपरेशन, कोलैबोरेशन और कोहेजन (सहयोग, सहयोग और सामंजस्य) – वैश्विक सामूहिकता के 3 डी – डायलॉग, डेलिगेशन और डिप्लोमेसी (संवाद, प्रतिनिधिमंडल और कूटनीति) में प्रमुख स्टेकहोल्डर हैं – और एविडेंस बेस्ड सॉल्यूशन के ज़रिए ग़रीबी, भूख, स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन जैसे प्रमुख मुद्दों को संबोधित कर सकते हैं. यह आगे सामाजिक लचीलापन और साझा समृद्धि को बढ़ावा देगा जो एसडीजी के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अहम है.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक भारत की G20 की अध्यक्षता एज़ेंडा एकता की सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने के लिए समावेशी, महत्वाकांक्षी, क्रिया-उन्मुख और निर्णायक होगी. [1] जी20 राष्ट्रों की प्राथमिकताओं को ना केवल जी20 भागीदार देशों बल्कि वैश्विक दक्षिण में अन्य प्रतिभागियों के साथ परामर्श करके आकार दिया जा सकता है जिनकी आवाज़ अक्सर अनसुनी कर दी जाती है.
2012 और 2020 के बीच, निजी क्षेत्र द्वारा बैंक गारंटी, सिंडिकेट ऋण, सामूहिक निवेश वाहनों (सीआईवी) में शेयरों, कंपनियों में प्रत्यक्ष निवेश (डीआईसी), विशेष प्रयोजन वाहनों (एसपीवी), क्रेडिट लाइन, या विकास सहायता समिति (ओईसीडी 2023) के सदस्यों द्वारा सरल सह-वित्तपोषण द्वारा 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर मोबिलाइज किया गया. सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के विकास और कार्यान्वयन के लिए फाइनेंस के लिए एएएए के माध्यम से कार्रवाई के बावज़ूद फाइनेंसिंग गैप में 56 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है जो कि 2020 में पूर्व-कोविड समय की तुलना में 2021 में 3.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है. (ओईसीडी 2022; एक्सेल और इवरसन 2020). ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट ने सतत विकास रणनीतियों के रूप में संसाधन जुटाने के लिए नेट जीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करने के लिए निजी क्षेत्र को शामिल करने का आह्वान किया, जिस पर कॉप 26 बैठक में कई देशों द्वारा सहमति व्यक्त की गई थी. [2] हालांकि विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने का लक्ष्य 2021 में पूरा नहीं हुआ था. दुनिया भर में इस बढ़ते अंतर ने डेवलपमेंट कोऑपरेशन बज़ट को प्रभावित किया.
प्राथमिक एसडीजी से संबंधित क्षेत्रों में निजी क्षेत्र का निवेश अपेक्षाकृत कम है और निवेश में निजी क्षेत्र की भागीदारी क्षेत्र-विशिष्ट है. कुछ क्षेत्रों में दूसरों के मुक़ाबले अधिक निजी निवेश देखा गया, जैसे बिजली और नवीकरणीय ऊर्जा, परिवहन और पानी, और स्वच्छता, जो उपयुक्त दृष्टिकोण, बाज़ार की स्थितियों और उचित सुरक्षा तंत्र के कारण मुमकिन हो सका. जलवायु परिवर्तन अनुकूलन जैसे क्षेत्रों में रिस्क रिटर्न इन्वेस्टमेंट मॉडल तैयार करने में कठिनाई के कारण, निजी संस्थाओं के वर्टिकल में निवेश करने की संभावना कम होती है. शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसे क्षेत्रों में या तो काफी अधिक मात्रा में निजी क्षेत्र के हित की आवश्यकता होती है, क्योंकि वे मुख्य सार्वजनिक क्षेत्र की ज़िम्मेदारियां हैं और निजी क्षेत्र की भागीदारी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं. यह उन क्षेत्रों में निवेश करने के लिए निजी क्षेत्र की अनिच्छा की व्याख्या करता है जहां सार्वजनिक निवेश मौलिक और महत्वपूर्ण रहता है. हालांकि, सार्वजनिक क्षेत्र से कई विकासशील देशों में सभी वित्त पोषण मांगों को पूरा करने की उम्मीद करना अवास्तविक है, जो निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए रणनीतिक साझेदारी और कदमों को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण बनाता है. [3]
अपने G20 अध्यक्षता के दौरान भारत कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था में अवसरों का लाभ उठाने के लिए निजी क्षेत्र की वकालत कर सकता है. निजी क्षेत्र के साथ सहयोग से ग्रीन सप्लाई-साइड इन्फ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से वित्त जुटाने में मदद मिलेगी. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के एक अध्ययन ने इस बात की पुरजोर वकालत की कि नेट जीरो कार्बन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकारों को निजी क्षेत्र को साझेदारी और सहयोग के माध्यम से जोड़ने के लिए सतत प्रयास करने की आवश्यकता है, जो सरकारी नीतिगत निर्णयों (आईईए 2021) द्वारा समर्थित हैं. एसडीजी में तेजी लाने के लिए मेकेनिज्म सक्रिय रूप से वित्तीय प्रवाह को बढ़ाएगा. भारत निजी निवेश जुटाने सहित इनोवेटिव फाइनेंस सोर्स और उपकरणों के माध्यम से निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए और निवेश का भी समर्थन करता है.
क्लाइमेट फाइनेंस, निजी क्षेत्र के संगठनों के माध्यम से, क्लाइमेट चेंज मिटिगेशन ( जलवायु परिवर्तन शमन) और अनुकूलन कार्यों का समर्थन कर सकता है. निजी क्षेत्र के माध्यम से बढ़ाया गया सहयोग आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी के रास्ते में आने वाली अड़चनों को दूर करने का साधन बन सकता है. टेक्नोलॉजी का लाभ उठाने और निजी क्षेत्र के निवेश के माध्यम से इनोवेशन को बढ़ावा देने से सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा मिलेगा, जैसे कि बेरोज़गारी, ग़रीबी, भूख और बेहतर स्वास्थ्य जैसी सबसे अधिक दबाव वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए या फिर अंतिम मील तक डिजिटल दुनिया में वैल्यू डिलीवरी करने के लिए इसे अमल में लाना होगा.
इस पॉलिसी ब्रीफ में तर्क दिया गया है कि फाइनेंसिंग के लिए लागत प्रभावी वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय नेट-जीरो फ्रेमवर्क के माध्यम से एसडीजी का रणनीतिक कार्यान्वयन जी20 देशों के लिए प्राथमिकता है. निजी क्षेत्र के फाइनेंसिंग, संस्थागतकरण और इंगेजमेंट फ्रेमवर्क के माध्यम से समुदाय-उन्मुख रणनीतियों की पहचान कर लोगों तक साझा रेजिलियेंस और समृद्धि के मौक़े पैदा किए जा सकेंगे.
नीतिगत दृष्टिकोण
संभावित पॉलिसी इंपरेटिव्स को निम्नलिखित प्रश्नों के माध्यम से प्रस्तावित और तैयार किया गया है, जो निवेश-आधारित सहयोग, जुड़ाव, कार्यान्वयन और उत्तरदायित्व ढांचे पर ध्यान केंद्रित करते हैं.
विचार-विमर्श के बाद जो मुद्दे उभर कर सामने आए हैं वो इस प्रकार हैं:
- निजी वित्त पोषण G20 देशों में नीतिगत निर्णयों को कैसे प्रभावित करेगा?
- निवेश बुनियादी ढांचा बीओपी में इनोवेशन, दक्षता में सुधार और परिणामों को कैसे प्रेरित करेगा?
- निजी क्षेत्र के वित्तपोषण के लिए रणनीतियों को लागू करते समय प्राथमिकता वाले क्षेत्र कौन से हैं?
- निजी क्षेत्र के वित्तीय हस्तक्षेपों के माध्यम से युवाओं को कैसे जोड़ा जाएगा?
- वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय नीति को अपनाने में क्या बाधाएं हैं?
- जी 20 सदस्य देशों की मौज़ूदा और भविष्य की चुनौतियों को कम करने के लिए एसडीजी गैप को एड्रेस करते हुए, सार्वजनिक और निजी भागीदारी के तालमेल के लिए नए साझेदारी मॉडल क्या हो सकते हैं?
इन संदर्भों के आधार पर जी20 सदस्य राष्ट्रों में कई भागीदारों के बीच आम सहमति, बीओपी सेगमेंट में समुदाय के योगदान को बढ़ाने के लिए एक कुशल, समावेशी, लचीला, सस्ती, जवाबदेह और एकीकृत प्रणाली की ज़रूरत है.
प्रस्तावित नीतिगत ढांचा
G20 को सिफ़ारिशें
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