Issue BriefsPublished on Mar 27, 2023
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मुखर होने लगा है चीन का नवसंभ्रांत वर्ग

  • Kalpit A Mankikar

    चीन के नवसंभ्रांत वर्ग में अब इस बात को लेकर विचार-विमर्श होने लगा है कि कैसे सीपीसी तथा सरकारी संस्थाओं का पुनर्गठन कर इन्हें कोविड के बाद के दौर में उत्तरदायी बनाया जा सके. 

चीन में आयोजित होने वाली नेशनल पीपुल्स कांग्रेस और चीनी पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस की वार्षिक संसदीय बैठकों के ‘‘दो सत्रों’’ में 'चुनौतियों का सामना करने' और 'परिवर्तन के साथ निरंतरता' बनाए रखने के प्रेरक होते हैं अथवा इन दोनों की ही बात आमतौर पर होती है. ऐसे में इस महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम की कार्यवाही और इसमें शामिल होने वाले अभिजात वर्ग के संबोधनों को चीन की नीति प्रक्षेपवक्र और अधिक महत्वपूर्ण रूप से एक दशक में एक बार होने वाले नेतृत्व परिवर्तन को डिकोड करने अर्थात समझने के लिए आकलन किया जा रहा है.

चीन ने कोविड-19 को लेकर जो नीति अपनाई थी, उसकी वज़ह से कोरोना वायरस के झटकों से धमाकेदार वापसी करने वाले दुनिया के देशों में वह पहला था. लेकिन 2022 में शी जिनपिंग की पसंदीदा जीरो-कोविड पॉलिसी पर सख़्ती से अमल को लेकर की गई राजनीतिक गणना ने बाद में उसके आर्थिक विकास को प्रभावित कर दिया.

शी-अर्थशास्त्र से आगे निकलना 

चीन की नीतिगत गलतियों की वज़ह से आज चीन के सामने अनेक चुनौतियां खड़ी हैं. शी-इकोनॉमिक्स को प्रधानता देने का अर्थ यह था कि चीन ने अपना ध्यान पारंपरिक आर्थिक विकास पर केंद्रित करना छोड़ते हुए इससे आगे निकलने की कोशिश करना शुरू कर दिया है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण कोविड-19 को लेकर अपनाई गई उसकी नीति को देखकर समझा जा सकता है. चीन ने कोविड-19 को लेकर जो नीति अपनाई थी, उसकी वज़ह से कोरोना वायरस के झटकों से धमाकेदार वापसी करने वाले दुनिया के देशों में वह पहला था. लेकिन 2022 में शी जिनपिंग की पसंदीदा जीरो-कोविड पॉलिसी पर सख़्ती से अमल को लेकर की गई राजनीतिक गणना ने बाद में उसके आर्थिक विकास को प्रभावित कर दिया. जीरो-कोविड नीति के कारण लागू सख़्त क्वारंटाइन पाबंदियों और आइसोलेशन के आदेश की वज़ह से कारोबार ठप्प हो गया. इसकी वज़ह से घरेलू आय और रोज़गार के अवसर प्रभावित हुए. 2022 में, चीन की अर्थव्यवस्था दशकों में अपनी सबसे धीमी रफ़्तार से बढ़ी. यहां तक कि मौजूदा संसदीय सम्मेलन ने भी कमज़ोर वैश्विक मांग का आकलन करते हुए इस वर्ष के लिए लगभग 5 प्रतिशत के मामूली विकास लक्ष्य को हासिल करने का लक्ष्य ही तय किया है. पारंपारिक रूप से तेज आर्थिक उन्नति को लेकर चीन ने जो नीति अपनाई थी उसकी वज़ह से सैकड़ों लोगों को गरीबी रेखा के बाहर निकलने में सहायता मिली थी. लेकिन उसकी वज़ह से असमानता का भी विस्तार हुआ था. इसे देखते हुए शी ने अपना ध्यान ‘समान संपन्नता’ पर केंद्रित करते हुए इसे राजनीतिक अभियान बना दिया. इसके फलस्वरूप चीन में बिग टेक अर्थात बड़ी तकनीकी कंपनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई. इस कार्रवाई का चीन में निवेश करने के इच्छुक लोगों पर भी प्रभाव पड़ा. प्रौद्योगिकी कंपनियों के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई का एक और कारण यह भी था कि शी को लगता था कि वित्तीय ताक़त हासिल कर लेने की वज़ह से चीन का निजी क्षेत्र अब देश की निर्णय प्रक्रिया में भी अपनी हिस्सेदारी की मांग करेगा. फिलहाल निर्णय प्रक्रिया का अधिकार सीपीसी के पास है. इसी वज़ह से 2020 में जब अलीबाबा के संस्थापक जैक मा ने चीन के नियामकों की आलोचना की तो वे अचानक इसके बाद सार्वजनिक परिदृश्य से ओझल हो गए थे. 

महामारी-रोकथाम की रणनीति ने चीन के सामाजिक कॉम्पैक्ट अर्थात सामाजिक समझौते को भी संकट में डाल दिया था. इस समझौते के तहत नागरिक आर्थिक लाभ के बदले में अपने अधिकारों का त्याग करते है. इन रणनीति के कारण सीपीसी के ख़िलाफ़ एक उग्र असंतोष पनपता देखा गया. इसका उदाहरण घरों के कर्ज़ का भुगतान न करने और विभिन्न शहरों में दिसंबर 2022 में हुए छात्रों के आंदोलन के रूप में देखा जा सकता है. ये सभी आंदोलन जीरो-कोविड नीति को निरस्त करने का दबाव बनाने के लिए आयोजित किए गए थे. इन सारे आंदोलनों के बाद सीपीसी ने एक के बाद एक अपनी नीति में संशोधन किए थे. ऐसे में यह धारणा बनने लगी थी कि सीपीसी को यह डर सता रहा है कि कमज़ोर लोगों का आंदोलन कहीं सर्वशक्तिशाली पार्टी पर भारी न पड़ जाएं. अब सीपीसी का आकलन है कि जैसे-जैसे आर्थिक अनिश्चितता बढ़ेंगी, वैसे-वैसे उसे शैक्षणिक संस्थानों से नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. इसका कारण यह है कि अगर चीन के जेन नेक्स्ट अर्थात नई पीढ़ी के सामने आर्थिक परेशानियां बढ़ेंगी तो वह नई पीढ़ी को सरकार के ख़िलाफ़ और अधिक विरोध करने पर मजबूर कर सकती है.

चीन की ओर से दिए जा रहे कर्ज़ को रोकने की दिशा में कदम उठाए जाने को लेकर जागरुकता देखी जा रही है. जाने-माने अर्थशास्त्री काओ युआनझेंग ने चीन के ऋण को लेकर चेता दिया है. उनका मानना है कि पाकिस्तान, नेपाल, तुर्की और कंबोडिया जैसे देश आर्थिक संकट का सामना कर रहे है.

यह एक ऐसा कारक है, जिसने निजी क्षेत्र को देखने के सीपीसी के नज़रिए को प्रभावित करते हुए उसमें बदलाव को प्रेरित किया था. इस वर्ष की शुरुआत में चीन की केंद्रीय बैठक के पार्टी सचिव गुओ शुकिंग ने कहा था कि चीन की बिग टेक कंपनियों के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे 'सुधार अभियान' ने इस क्षेत्र को नुक़सान पहुंचाया है. अत: इन कंपनियों को रोज़गार सृजन में बड़ी भूमिका निभाने में सहायता करने के लिए केंद्रीय बैठक की ओर से समर्थन देकर सहायता को बढ़ाया जाएगा. इसके बाद शी ने भी अपने दोनों अहम संबोधनों में इस क्षेत्र को लुभाने की कोशिश की है. इन संबोधनों में शी ने कहा कि वे उद्यमी समुदाय को परिवार के सदस्यों के रूप में देखते हैं. उनकी पार्टी शक्तिशाली चीन के लक्ष्य को साकार करने में निजी क्षेत्र के योगदान को एक महत्वपूर्ण ताक़त मानती है. ऐसे में यह माना जा रहा है कि सीपीसी के दृष्टिकोण में इन अहम बदलावों का असल कारण आर्थिक विकास में गिरावट और बेरोज़गारी को लेकर जुड़ी चिंताएं है. इसी वज़ह से शी ने अब अपनी नीति में बदलाव करते हुए निजी क्षेत्र की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया है.

निरंतरता और परिवर्तन

वर्तमान में, चीन के संभ्रांत वर्ग के बीच पार्टी और सरकारी संस्थानों के पुनर्गठन पर बहस चल रही है. यह बहस पार्टी और सरकारी संस्थाओं को नई स्थितियों की मांगों का जवाब देने के लिए तैयार करने को लेकर केंद्रित है. सबसे अहम चिंता ऋण के मुद्दे पर दिखाई दे रही है. इसी वज़ह से चीन की ओर से दिए जा रहे कर्ज़ को रोकने की दिशा में कदम उठाए जाने को लेकर जागरुकता देखी जा रही है. जाने-माने अर्थशास्त्री काओ युआनझेंग ने चीन के ऋण को लेकर चेता दिया है. उनका मानना है कि पाकिस्तान, नेपाल, तुर्की और कंबोडिया जैसे देश आर्थिक संकट का सामना कर रहे है. काओ का मानना है कि इनमें से कई अर्थव्यवस्थाओं का चीन सबसे बड़ा लेनदार होने के नाते चीन की अर्थव्यवस्था को सबसे बड़ी चुनौती अथवा ख़तरा यह बाहरी जोख़िम ही पेश कर रहा है. पिछले वर्ष चीन में जब कुछ ग्रामीण बैंकों ने अपने ग्राहकों को उनकी बचत का ही पैसा लौटाने से इंकार किया तो निवेशक सड़कों पर उतर आए थे. अक्टूबर 2022 में पार्टी कांग्रेस में अपने संबोधन में शी ने चेताया था कि इस तरह के ‘‘ग्रे राइनो इवेन्ट्स’’ अर्थात छोटी घटनाओं को नज़रअंदाज नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इनमें वित्तीय स्थिरता को कमज़ोर करने की क्षमता होती हैं. देश की बैंकिंग और बीमा संपत्तियों की देखरेख के लिए चीन एक सुपरा-रेगुलेटरी अथॉरिटी स्थापित करने की योजना बना रहा है. इसी प्रकार सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय (कानून-प्रवर्तन के प्रभारी) और राष्ट्रीय/देश सुरक्षा मंत्रालय (ख़ुफ़िया जानकारी एकत्र करने का कार्य) को राज्य परिषद से अलग करते हुए एक आंतरिक मामलों को लेकर एक समिति का गठन भी किया जा सकता है. यह समिति एक सुपर-निकाय होगी, जो पार्टी की केंद्रीय समिति के अधीन रहेगी.

चीन के विकास की दिशा पर दुनिया की निगाह जमी हुई रहेगी. अब तक की चीन की सफ़लता पॉलिसी प्रिडिक्टबिलिटी अर्थात नीतिगत  पूवार्नुमेयता का परिणाम रही है. लेकिन शी के शासनकाल में यह अस्थिर दिखाई दे रही है.

पार्टी और सरकारी संगठनों में हो रहे इन सुधारों का सबसे ज़्यादा असर पार्टी और सरकार के बीच संबंधों पर देखा जाएगा. 1980 के दशक में, चीन के सर्वोच्च नेता डेंग शियाओ पिंग ने ‘‘सरकार और पार्टी को अलग करने’’ का आह्वान किया था, लेकिन शी ने इसके विपरीत कदम उठाते हुए शासन के इन दो महत्वपूर्ण स्तंभों के बीच अधिक तालमेल स्थापित करना शुरू कर दिया है. चीन की राजनीतिक प्रणाली की अस्पष्टता के बावजूद, शी (पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले) और हाल ही में सेवानिवृत्त प्रीमियर अर्थात प्रधानमंत्री ली केचियांग (सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले) के बीच ख़ासकर कोविड-19 के दौर में नीति को लेकर मतभेद उजागर हो गए थे. 2020 में कोरोना महामारी के शुरूआती दिनों में लॉकडाउन लगाए जाने की वज़ह से चीन जूझ रहा था. ऐसे में ली केचियांग ने 'स्ट्रीट-स्टाल अर्थव्यवस्था' की अवधारणा को बढ़ावा देना शुरू किया था. इसके तहत विक्रेताओं ने सार्वजनिक स्थानों पर माल बेचने के लिए हाथगाड़ियों का इस्तेमाल किया था. केचियांग की इस नीति की चीनी सरकारी मीडिया में परोक्ष रूप से आलोचना भी की गई थी. यह मतभेद उस वक़्त भी स्पष्ट हो गए थे, जबकि शी ने एक ओर दावा किया था कि उन्होंने चीन में गरीबी को पूर्णत: हटा दिया है, तो दूसरी ओर ली केचियांग ने यह कहते हुए इस दावे की हवा निकाल दी थी कि प्रवासियों को शहरों में रहने की उच्च लागत को पूरा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. अब, वर्तमान प्रधान मंत्री ली चियांग ने एक संवाददाता सम्मेलन में यह साफ़ कर दिया है कि निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ पार्टी को ही होगा, जबकि कार्यान्वयन की ज़िम्मेदारी स्टेट काउन्सल अर्थात मंत्रिपरिषद/सरकार की होगी.

नवसंभ्रांत वर्ग

ली कियांग के प्रतिनिधि वाइस-प्रीमियर अर्थात उप प्रधानमंत्री हे लिफेंग, झांग गुओकिंग, लियू गुओझोंग और डिंग जुक्सियांग है, जो कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के जनरल ऑफिस के निदेशक और पोलित ब्यूरो स्थायी समिति के सदस्य के रूप में कार्य करते है. चीन का वित्तीय नेतृत्व अब भी लियू कुन के वित्त मंत्री और यी गैंग के केंद्रीय बैंकर के रूप में अपने पदों को बनाए रखने की वज़ह से जस का तस बना हुआ है. स्टेट काउंसिल अर्थात मंत्रिपरिषद के 26 मंत्रालयों और आयोगों में से केवल दो में बदलाव किया गया है. इसमें झेंग शांजी को राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग तथा ली शांगफू को रक्षा मंत्री की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है. उपरोक्त घटनाक्रम चीन में हो रहे अधिक केंद्रीकरण की प्रवृत्ति की ओर इशारा करते है. इस केंद्रीकरण के नीति निर्माण मूल में शी (अपने तीसरे कार्यकाल में) है, जबकि चुने हुए टेक्नोक्रेट विज्ञान विशेषज्ञ नीतियों की बारीकियों पर काम संभाल रहे है.

निष्कर्ष

सबसे पहले, चीन के शासन और राजनीति में सभी अधिकार सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों के हाथों में अर्थात टॉप-डाउन होने की वज़ह से शी के बाद के युग में चीन जैसे बड़े देश में उत्तराधिकार योजना की कमी राजनीतिक झगड़ों की गुंजाइश बढ़ाने वाली साबित होगी. इसके अलावा चीन के विकास की दिशा पर दुनिया की निगाह जमी हुई रहेगी. अब तक की चीन की सफ़लता पॉलिसी प्रिडिक्टबिलिटी अर्थात नीतिगत  पूवार्नुमेयता का परिणाम रही है. लेकिन शी के शासनकाल में यह अस्थिर दिखाई दे रही है. चीन में आयोजित होने वाले दो अहम सत्रों से कुछ दिन पहले, जांच में सहयोग करने वाले अरबपति टेक बैंकर बाओ फैन अचानक लापता हो गए. ऐसे में शी को उद्यमियों को लुभाने के लिए खोखले और आकर्षक दिखाई देने वाले वादे करने के साथ ही ज़मीनी स्तर पर भी ठोस कार्रवाई करके दिखानी होगी.

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Kalpit A Mankikar

Kalpit A Mankikar

Kalpit A Mankikar is a Fellow with Strategic Studies programme and is based out of ORFs Delhi centre. His research focusses on China specifically looking ...

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