Author : Samir Saran

Originally Published फॉरन पॉलिसी Published on Jun 19, 2023 Commentaries 0 Hours ago
भारत और अमेरिका के संयुक्त प्रयास से ‘तक़नीक’ को सभी के लिए आसानी से उपलब्ध कराया जा सकता है.

भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती साझेदारी में इस बात की काफ़ी संभावना है कि वो 21वीं सदी की भू-राजनीति और तक़नीक के वैश्विक परिदृश्य को बदल सकती है. दोनों लोकतंत्रों को ये सुनिश्चित करना ही होगा कि तक़नीकी तरक़्क़ी एक अधिक सुरक्षित और समृद्ध दुनिया बनाने की दिशा में काम करें. पिछले साल भारत और अमेरिका के इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल ऐंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज (iCET) की घोषणा की गई थी. इस पहल ने जनवरी में अमेरिका और भारत के इनोवेशन इकोसिस्टम के संबंध और मज़बूत बनाने में काफी सफलता हासिल की है. अब जबकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच इसी हफ़्ते मुलाक़ात होने वाली है, तो ये लम्हा और बड़े लक्ष्य तय करने का है.

मोदी और बाइडेन को चाहिए कि वो एक सामरिक तक़नीकी साझेदारी की शुरुआत करें, जो इनोवेशन के मामले में भारत और अमेरिका के बीच सार्वजनिक और निजी, दोनों स्तरों पर गहरे होते सहयोग को उच्च स्तर की मदद से मज़बूती दे. इसके लिए दोनों देशों के आम लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने, दुनिया भर में सुरक्षित तक़नीकी ढांचे के विस्तार में सहयोग करने, नई तकनीकों के प्रशासन के लिए मानक विकसित करने के साथ साथ, आपस में मिलकर विकासशील देशों (ग्लोबल साउथ) के साथ संवाद करके, भविष्य के एक लोकतांत्रिक दृष्टिकोण विकसित करने की ज़रूरत होगी.

अमेरिका, विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में पीएचडी करने वालों के मामले में सबसे आगे है. वहीं, भारत उन्हीं विषयों में बैचलर की डिग्री लेने वालों के मामले में अग्रणी है. भारत में उद्यमिता का माहौल भी ख़ूब फल-फूल रहा है.

भविष्य का स्वरूप आज अनिश्चित लग रहा है, और तक़नीकी तानाशाह बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं. एक अलग रास्ता अपनाने के लिए हिंद प्रशांत क्षेत्र में आबाद लोकतांत्रिक देशों की सामूहिक ताक़त की ज़रूरत होगी. ऐसा करने के लिए उन्हें बाज़ार की उन ताक़तों को खुला छोड़ना होगा, जो उनके सामरिक लक्ष्यों से मेल खाती हों. भारत और अमेरिका को निवेशकों को संवेदनशील बनाते हुए उपलब्ध पूंजी के विशाल कोष को लक्ष्य बनाना होगा और ये सुनिश्चित करना होगा कि उनकी महत्वाकांक्षाओं को कभी भी निवेश की कमी न हो. भारत और अमेरिका साथ मिलकर ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि तक़नीक के अवसर व्यापक रूप से सुलभ कराए जाएं.

बढ़ती तक़नीकी होड़ के बीच अमेरिका अभी भी दुनिया का सबसे अग्रणी देश है. वहीं भारत ने इनोवेशन के बड़े केंद्र के रूप में लंबी छलांग लगाई है. दोनों देशों के पास पढ़े लिखे कामगारों की एक ज़बर्दस्त फौज है. अमेरिका, विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में पीएचडी करने वालों के मामले में सबसे आगे है. वहीं, भारत उन्हीं विषयों में बैचलर की डिग्री लेने वालों के मामले में अग्रणी है. भारत में उद्यमिता का माहौल भी ख़ूब फल-फूल रहा है. 2021 में भारत में यूनिकॉर्न कंपनियों (एक अरब डॉलर मूल्य से ज़्यादा की स्टार्ट अप कंपनियां) की संख्या 40 से बढ़कर 108 हो गई. उसी साल भारत के डीप टेक (Deep Tech) उद्यमों- वो कंपनियां जिनसे व्यापक असर का संकेत मिलता है, मगर उन्हें बाज़ार तक पहुंच बनाने में अधिक समय और पूंजी की ज़रूरत होती है- ने 2.65 अरब डॉलर की पूंजी जुटाई थी. अंतरिक्ष के कारोबारी इस्तेमाल जैसे क्षेत्रों में भारत दुनिया का एक प्रमुख खिलाड़ी बनता जा रहा है. भारत, रिसर्च और विकास से लेकर उत्पादन तक, इनोवेशन की पूरी श्रृंखला (Innovation Chain) में अमेरिका का एक सक्षम साझीदार बन सकता है.

दोनों देश उभरती हुई तकनीकों से पैदा हुए अवसरों को बख़ूबी समझते हैं और ऐसा लगता है कि वो इन मौक़ों का फ़ायदा उठाने के लिए मिलकर काम करने को तैयार हैं. फरवरी महीने में मोदी सरकार ने एलान किया था कि नई तकनीकों, ख़ास तौर से डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश ही 2047 तक भारत के विकसित देश बनने का मार्ग प्रशस्त करेगा. और, अमेरिका में तक़नीक पर केंद्रित भविष्य के नज़रिए को लेकर निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के हितों में मेल नज़र आ रहा है, जिसकी शुरुआत चिप्स (CHIPS) ऐंड साइंस एक्ट से हो चुकी है. दोनों देश स्मार्ट सिटी की योजना बनाने और रक्षा तक़नीक के लेन-देन में सहयोग कर रहे हैं. इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि दोनों देश रक्षा तक़नीक के लेन-देन को एक नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए तैयार हैं. ख़बरों के मुताबिक़ अमेरिका, अपनी जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी को लड़ाकू विमानों का इंजन भारत में बनाने की इजाज़त दे सकता है. ये इंजन बनाने की तक़नीक का राज़ अमेरिका बहुत छुपाकर रखता है.

भारतीय मूल के अमेरिकी

भारत और अमेरिका के बीच तक़नीक पर केंद्रित एक सामरिक साझेदारी, दोनों देशों की मिली जुली प्रतिभा की बढ़त को और आगे ले जाएगी. दोनों देशों के कामकाजी वर्ग पहले ही एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, ख़ास तौर से तक़नीक के मामले में. 2021 में अमेरिका के कुल H1-B वीज़ा आवंटन का 74 प्रतिशत हिस्सा भारतीय नागरिकों को मिला था, और अमेरिका की बहुत सी तक़नीकी कंपनियों में भारतीय कर्मचारियों ने इनोवेशन को रफ़्तार दी है. ये सच दोहराने की ज़रूरत नहीं है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी तक़नीकी कंपनियों की कमान आज भारतीय मूल के अमेरीकियों के हाथ में है. भारत और अमेरिका के बीच सामरिक साझेदारी, नए अवसरों की पहचान करने और आम लोगों की एक दूसरे के यहां आवाजाही में आने वाली बाधाएं दूर करने पर ध्यान केंद्रित कर सकती है.

ऐसी साझेदारी का पहला काम ये हो सकता है कि अमेरिका जाने के इच्छुक भारतीय कामगारों और आम लोगों की वीज़ा की अर्ज़ियों का ढेर जल्दी से जल्दी निपटाया जाए. एक और प्राथमिकता, भारत और अमेरिका के निवेशकों और उद्यमियों के रिश्तों को मज़बूती देने के कार्यक्रमों का निर्माण होनी चाहिए; ऐसा करने से दोनों देशों के निजी उद्योगों के बीच संपर्क बढ़ेगा. इस मामले में शिक्षा तक़नीक का सेक्टर काफ़ी संभावनाओं वाला दिखता है. आज जब अमेरिका की एडटेक (Edtech) कंपनियां भारत के ऑनलाइन पढ़ाई के बाज़ार में बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने की कोशिश कर रही हैं, तो भारत की एडटेक कंपनियां दुनिया भर में कारोबार बढ़ा रही हैं, और वो अमेरिका ही नहीं दूसरे देशों के बाज़ारों में अपने पांव मज़बूती से जमा रही हैं. भारत और अमेरिका को चाहिए कि वो सकारात्मक प्रतिद्वंदिता और सहयोग के इस माहौल का लाभ इस्तेमाल करें.

ये सच दोहराने की ज़रूरत नहीं है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी तक़नीकी कंपनियों की कमान आज भारतीय मूल के अमेरीकियों के हाथ में है. भारत और अमेरिका के बीच सामरिक साझेदारी, नए अवसरों की पहचान करने और आम लोगों की एक दूसरे के यहां आवाजाही में आने वाली बाधाएं दूर करने पर ध्यान केंद्रित कर सकती है.

इस तक़नीकी सामरिक साझेदारी का अगला क़दम डिजिटल दुनिया की मदद के लिए दुनिया भर में और ख़ास तौर से विकासशील देशों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार में निवेश करने का हो सकता है. इस मामले में सहयोग के अच्छे नतीजे निकल सकते हैं: जैसे, नई और लाभदायक तकनीकों के लिए मिलकर रिसर्च करना और उनका परीक्षण करना, उनके हार्डवेयर का निर्माण करना और यहां तक कि बड़े पैमाने पर निवेश के लिए मिलकर संसाधन जुटाना. भारत और अमेरिका को अपने साझीदारों के साथ भी मिलकर काम करना चाहिए, ताकि वो इस बात को रेखांकित कर सकें कि बढ़ते भू-राजनीतिक, स्वास्थ्य और जलवायु संबंधी जोखिमों के बीच, आगे चलकर सहयोग का एक अहम तत्व, लचीली आपूर्ति श्रृंखलाएं ही होंगी. इस साल भारत की G20 अध्यक्षता से एक ऐसा मंच मिलता है, जहां पर इस परिचर्चा को आगे बढ़ाया जा सकता है; हरित विकास, समावेशी प्रगति और तक़नीकी परिवर्तन, भारत के G-20 एजेंडे के केंद्र में हैं.

भारत और अमेरिका दोनों के पास, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के ज़रूरी हिस्से हैं. भारत, 5G कवरेज बढ़ाने के काम आने वाले ओपेन- रेडियो एक्सेस नेटवर्क (O-RAN) के परीक्षण के मामले में अग्रणी है. अमेरिका के नीति निर्माता, नेटवर्क के पारंपरिक मॉडलों के विकल्प के तौर पर O-RAN को लेकर काफ़ी उत्साहित हैं. क्योंकि दूसरे मॉडलों के मामले में चीन की कंपनी हुआवेई दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बनकर उभरी है. और, जैसा कि निर्माण केंद्र के रूप में भारत को अपनाने के मामले में अमेरिका के निजी क्षेत्र की बढ़ी हुई दिलचस्पी से ज़ाहिर है कि भारत को केंद्र बनाकर सप्लाई चेन का एक इकोसिस्टम निर्मित करने की संभावना काफ़ी दमदार होती जा रही है. हाल ही में हुए अमेरिका और भारत के कॉमर्शियल डायलॉग के बाद, दोनों देशों ने सेमीकन्‍डक्टर सप्लाई चेन और इनोवेशन की साझेदारी स्थापित करने के सहमति पत्र पर दस्तख़त किए हैं. इसका मक़सद आपूर्ति श्रृंखलाओं को लचीला बनाना और उनमें विविधता लाना है.

साझेदारी के मानक

अमेरिका और भारत के बीच तक़नीकी साझेदारी को ऐसे मानक और सिद्धांत विकसित करने को भी प्राथमिकता देनी चाहिए, जो भविष्य की तकनीकों का संचालन कर सकें. ऐसे मानकों को परिभाषित करना बेहद ज़रूरी है. क्योंकि तभी भारतीय और अमेरिका की कंपनियां, ज़्यादा लागत और दूसरी मुश्किलों से पार पाकर, तानाशाही देशों की प्रतिद्वंदी कंपनियों से मुक़ाबला कर सकेंगी. भारत और अमेरिका को मानक तय करने वाली संस्थाओं के साथ मिलकर काम करना होगा. जिससे वो ये परिभाषित कर सकें कि वो उभरती हुई तकनीकों को किस तरह लोकतंत्र के हित में काम करते देखना चाहते हैं. इस मामले में iCET पहले अकादमिक और औद्योगिक सहयोग के लिए अहम क़दम उठा रहा है. दोनों देशों की सामरिक साझेदारी इन प्रयासों को आधार बनाकर, निजी क्षेत्र में नए सहयोग के लिए और अधिक संसाधन जुटाने के मामले में तालमेल कर सकती है.

भारत और अमेरिका को मानक तय करने वाली संस्थाओं के साथ मिलकर काम करना होगा. जिससे वो ये परिभाषित कर सकें कि वो उभरती हुई तकनीकों को किस तरह लोकतंत्र के हित में काम करते देखना चाहते हैं. इस मामले में iCET पहले अकादमिक और औद्योगिक सहयोग के लिए अहम क़दम उठा रहा है.

भारत और अमेरिका को उभरती हुई तकनीकों से पैदा हो रही चुनौतियों को कम करने के लिए भी मिलकर काम करना चाहिए. तकनीकों को मानव अधिकारों, राष्ट्रीय सुरक्षा और सूचना के तंत्र पर उनके प्रभाव से अलग करके नहीं देखा जा सकता. क्योंकि ये सब किसी लोकतंत्र की सेहत के लिए बेहद अहम हैं. ये बात 2024 में और महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि उस साल भारत और अमेरिका, दोनों ही देशों में आम चुनाव होंगे. मानक ऐसे हों जो तक़नीकी कंपनियों को लोकतांत्रिक नियमों (और संवैधानिक क़ानूनों) के प्रति उत्तरदायी बनाएं. आज जब डिजिटल तानाशाही की पहुंच बढ़ती जा रही है, तो ये बात बहुत महत्वपूर्ण हो गई है कि नेटवर्क की कमान, भरोसेमंद दूरसंचार कंपनियों के पास हो, जो सुरक्षित सेवाएं दे सकें, और उनके मुख्यालय उन देशों में स्थित हों, जहां क़ानून का राज हो. यानी जिन्हें भारत और अमेरिका की सरकारें प्राथमिकता देती हों.

अंत में दोनों देशों को ऐसी सामरिक साझेदारी बनानी चाहिए, जिसका लक्ष्य विकासशील देशों के साथ इस मुद्दे पर संवाद करना हो कि तक़नीक किस तरह साझा सुरक्षा, समृद्धि और लचीलेपन को बढ़ावा दे सकती है. भारत ने दूसरे विकासशील देशों (ग्लोबल साउथ) के बीच पुल का काम किया है. इसमें डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर भी शामिल है. एक ऐसा साझा दृष्टिकोण जो तकनीकों के मुक़ाबले लायक़ पैकेज को मुक्त समाजों के लिए भारत और अमेरिका के साझा विज़न से जोड़ता हो, वो एक अहम भू-राजनीतिक अवसर पर ग़ैर पारंपरिक साझीदारों की तरफ़ मदद का हाथ बढ़ा सकेगा.

तक़नीक से चलने वाली इस सदी में अमेरिका और भारत की सामरिक साझेदारी एक सकारात्मक राह तय कर सकती है. आज जब तक़नीकों के विकास से राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक समृद्धि और सामाजिक रिश्ते बदल रहे हैं, तो अमेरिका और भारत के बीच एक परिवर्तनकारी साझेदारी ये सुनिश्चि करेगी कि इन तक़नीकी तरक़्क़ियों का झुकाव लोकतांत्रिक समाजों के मूल्यों की तरफ़ हो.


(ये लेख पहले अंग्रेज़ी वेबसाइट फॉरन पॉलिसी डॉट कॉम पर छप चुका है)

(समीर सरन भारतीय थिंक टैंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं. उनका शोध वैश्विक शासन, जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा नीति, प्रौद्योगिकी और मीडिया और भारत की विदेश नीति के मुद्दों पर केंद्रित है)

(यल्ली बाजरकटरी विशेष प्रतिस्पर्धी अध्ययन परियोजना के अध्यक्ष और सीईओ हैं. 2019 से 2021 तक, उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग के कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्य किया है)

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Samir Saran

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Samir Saran is the President of the Observer Research Foundation (ORF), India’s premier think tank, headquartered in New Delhi with affiliates in North America and ...

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