Author : Manoj Joshi

Published on Aug 09, 2023 Commentaries 0 Hours ago
मणिपुर: म्यांमार से जुड़ी घटनाओं का राज़दार

मणिपुर की घटनाओं के चलते म्यांमार से हमारे रिश्तों पर भी ध्यान गया है. संघर्ष भले ही बहुसंख्यक मैतेई हिंदुओं और ईसाई-बहुल कुकी जनजातियों के बीच हो, मणिपुर की सरकार ने दावा किया है कि इस विवाद की जड़ में है म्यांमार में नशीले पदार्थों की खेती और वहां से मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में अवैध प्रवासियों का आगमन.

मणिपुर में वर्तमान में जो हालात हैं, उससे कहीं पहले से वहां नशीले पदार्थों की सप्लाई की जा रही है और अलगाववादी-उग्रवादी घटनाएं भी वहां नई नहीं हैं. लेकिन यह पृष्ठभूमि मणिपुर के मौजूदा हालात के लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार जरूर हो, वह उनकी जड़ में नहीं है.

समस्या यह है कि मणिपुर ‘स्वर्णिम-त्रिभुज’ (भारत-म्यांमार-चीन) कहलाने वाले एक ऐसे बदनाम इलाके के समीप बसा है, जहां बड़े पैमाने पर अफीम की खेती की जाती है. और जहां तक सशस्त्र उग्रवाद का सम्बंध है तो यह भारत और म्यांमार दोनों को ही 1950 के दशक से ही ग्रसित किए हुए है. लेकिन मणिपुर के हालात तब बिगड़े थे, जब अनुसूचित जनजातियों को दिए जाने वाले अधिकारों से मैतेइयों को भी लाभान्वित किए जाने का निर्णय लिया गया.

मणिपुर के हालात तब बिगड़े थे, जब अनुसूचित जनजातियों को दिए जाने वाले अधिकारों से मैतेइयों को भी लाभान्वित किए जाने का निर्णय लिया गया.

इम्फाल घाटी में रहने वाले मैतेई पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से अमूमन अधिक समृद्ध होते हैं. मणिपुर का 90 प्रतिशत इलाका पहाड़ी है. मैतेइयों को अजजा के अधिकार देने का मतलब होता नगाओं और कुकियों को मिलने वाले आरक्षण में कटौती.

म्यांमार से कितने गहरे संबंध?

भारत म्यांमार से 1643 किलोमीटर लम्बी सीमारेखा साझा करता है. इसमें से 398 किलोमीटर लम्बी सीमारेखा मणिपुर से लगी है. सीमा के दोनों तरफ रहने वाले लोगों के परस्पर नस्ली और सांस्कृतिक सम्बंध हैं. 2018 में स्थापित फ्री मूवमेंट रिजीम (एफएमआर) के चलते वे बिना किसी लाइसेंस या पासपोर्ट के सीमारेखा के इस पार या उस पार 16 किलोमीटर तक आ-जा सकते थे.

इस व्यवस्था के चलते दोनों देशों के लोग साझा त्योहार मना पाते थे, वैवाहिक व पारिवारिक सम्बंध स्थापित कर पाते थे और सीमापार से व्यापार कर सकते थे. यह विशेषकर कुकी और नगा लोगों के बीच मौजूद मैत्रीपूर्ण सम्बंधों की बानगी थी.

कई लोगों का मानना है कि एफएमआर का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया गया और इसने उग्रवाद और मादक-पदार्थों की तस्करी को बढ़ावा दिया. लेकिन इसका मुख्य कारण इस क्षेत्र में पुलिस-व्यवस्था की बदहाली थी. यह ऐसा क्षेत्र है, जहां सीमा के दोनों ही ओर समय-समय पर उग्रवादी विद्रोह सिर उठाता रहा है. इनमें से अनेक विद्रोहों के मूल में नस्ली-गुट हैं, जैसे कि मणिपुर में मैतेई-बहुल यूएनएलएफ, असम में यूएलएफए, नगालैंड में एनएससीएन सहित कुकी और जोमी उग्रवादियों के अन्य छोटे समूह.

भारत म्यांमार से 1643 किलोमीटर लम्बी सीमारेखा साझा करता है. इसमें से 398 किलोमीटर लम्बी सीमारेखा मणिपुर से लगी है. सीमा के दोनों तरफ रहने वाले लोगों के परस्पर नस्ली और सांस्कृतिक सम्बंध बहुत समय से हैं.

मणिपुर में हाल में निर्मित हालात से एफएमआर की ओर सबका ध्यान गया है और आरोप लगाए गए हैं कि वह नार्को-टेररिज्म को बढ़ावा देता है. म्यांमार में उथल-पुथल के चलते कुछ लोगों के भारत में निर्वासन को भी मैतेइयों की हिंसा के लिए जवाबदेह ठहराया जा रहा है. 2021 में म्यांमार में सैन्य विद्रोह हुआ था, जिसमें कुकी, जोमी-चिन नस्ली समूहों को निशाना बनाया गया.

इसके बाद इन लोगों के जत्थे मिजोरम और मणिपुर की ओर कूच कर गए. केंद्र सरकार ने इस पर आपत्ति जताई थी, लेकिन राज्य सरकार ने उसे अनसुना कर दिया. पिछले साल राज्य सरकार द्वारा कराए एक सर्वेक्षण से पता चला था कि मणिपुर के तीन जिलों में 2000 अवैध प्रवासी हैं. पिछले महीने ही 718 और प्रवासी म्यांमार के हिंसाग्रस्त चिन और सागांग इलाकों से सीमा पार करके आए हैं.

तात्कालिक क़दम

गत सितम्बर में रिफ्यूजियों की बढ़ती संख्या के चलते सरकार ने एफएमआर को निरस्त कर दिया था. लेकिन इसके बजाय सीमारेखा पर लोगों की आवाजाही पर बेहतर निगरानी रखना एक अच्छा उपाय होगा. बेहतर होगा कि असम राइफल्स को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी जाए. दूसरे, यह सुनिश्चित कराया जाए कि लोगों की आवाजाही पहले से निर्धारित बॉर्डर-पॉइंट्स से ही हो.

भारत म्यांमार से 1643 किलोमीटर लम्बी सीमारेखा साझा करता है. इसमें से 398 किलोमीटर लम्बी सीमारेखा मणिपुर से लगी है. सीमा के दोनों तरफ रहने वाले लोगों के परस्पर नस्ली और सांस्कृतिक सम्बंध बहुत समय से हैं.


यह लेख दैनिक भास्कर में प्रकाशित हो चुका है.

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