-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
ऐसे अभ्यासों का स्वरूप भले ही सैन्य हो लेकिन उनकी प्रकृति राजनीतिक भी होती है और यही इस बार भारत के लिए समस्या उत्पन्न करने वाली रही. इसी कारण भारत को वोस्तोक के सामुद्रिक अभ्यास से कदम पीछे खींचने पड़े क्योंकि उस पर जापान को आपत्ति थी.
रूस में सप्ताह भर चला वोस्तोक 2022 संयुक्त युद्ध अभ्यास संपन्न हो गया. एक से सात सितंबर तक चली यह सैन्य कवायद इस कारण चर्चित रही कि इसमें भारत और चीन जैसे ऐसे देश जुड़े, जिनके बीच सीमा पर लंबे समय से तनातनी कायम है. रूसी जमीन पर चीन जैसे देश के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास पर भारत के पारंपरिक साझेदार देशों का तुनकना स्वाभाविक था. अमेरिका और जापान के हावभाव से ऐसा प्रतीत भी हुआ. ऐसे में सामरिक हलकों में इस कवायद को लेकर प्रश्न उठ रहे हैं, तो कुछ इसकी उपयोगिता बताने में भी लगे हैं.
नि:संदेह आधुनिक दौर में देशों के बीच संबंधों-समीकरणों का संकेत देने में सैन्य अभ्यासों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है. वैश्विक आर्थिक एवं राजनीतिक हलचलों ने ऐसे अभ्यासों की महत्ता और बढ़ा दी है.
नि:संदेह आधुनिक दौर में देशों के बीच संबंधों-समीकरणों का संकेत देने में सैन्य अभ्यासों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है. वैश्विक आर्थिक एवं राजनीतिक हलचलों ने ऐसे अभ्यासों की महत्ता और बढ़ा दी है. कौन, किसके साथ, कहां सैन्य अभ्यास कर रहा है, यह रणनीतिक साझेदारी का महत्वपूर्ण सूचक बनता जा रहा है. इस मामले में भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान खासा सक्रिय है. उसका यह रुख न केवल अपनी विस्तारित क्षमताओं, बल्कि सार्वजनिक लाभ के लिए समान विचार वाले देशों के साथ काम करने की राजनीतिक दृढ़ता को भी दर्शाता है. सबसे सक्षम सैन्य बलों में से एक होने के नाते इसका दारोमदार नई दिल्ली पर ही है कि वह इनका उपयोग कूटनीतिक पहुंच के उपकरण के रूप में करे. यही कारण है कि सैन्य अभ्यास के जोर पकड़ते चलन में भारत की भागीदारी पर कोई हैरानी नहीं होती. अब यह सामान्य परिपाटी बन गई है.
वोस्तोक में भारत की भागीदारी पर दुनिया के कई कोनों में त्योरियां चढ़ीं. खासतौर से पश्चिमी देशों की नाराजगी दिखी, जो यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद मास्को को अलग-थलग करने के प्रयासों में जुटे हैं. यह वाशिंगटन के उस बयान से भी झलका, जिसमें उसने कहा, ‘रूस के साथ अभ्यास कर रहे किसी भी देश को लेकर अमेरिका के कड़े आग्रह हैं, क्योंकि रूस ने यूक्रेन पर अकारण क्रूर युद्ध थोपा है.’ हालांकि रूस के साथ यह भारत का पहला संयुक्त युद्धाभ्यास नहीं था. गत वर्ष सितंबर में भी वह रूस में ऐसा अभ्यास कर चुका है, जिसमें चीन और पाकिस्तान बतौर पर्यवेक्षक मौजूद रहे.
जहां तक वोस्तोक की बात है तो यह एक बड़ा युद्ध अभ्यास रहा. इसमें 50,000 से अधिक सैनिकों ने भाग लिया. करीब 5,000 हथियार प्रणालियां प्रयुक्त हुईं, जिनमें 140 विमान और 60 युद्धपोत थे. भारत के अलावा चीन, लाओस, मंगोलिया, निकारागुआ, सीरिया और कई पूर्व-सोवियत राष्ट्रों ने भी इसमें शिरकत की. भारत की ओर से इसमें 7/8 गोरखा राइफल्स के दस्ते ने भाग लिया. इस अभ्यास का उद्देश्य संयुक्त युद्ध कौशल हासिल करना था, जिनमें फील्ड ट्रेनिंग, रणनीतिक चर्चा और सैन्य क्षमताओं को परखने जैसे बिंदुओं का समावेश था.
ऐसे अभ्यासों का स्वरूप भले ही सैन्य हो, लेकिन उनकी प्रकृति राजनीतिक भी होती है और यही इस बार भारत के लिए समस्या उत्पन्न करने वाली रही. इसी कारण भारत को वोस्तोक के सामुद्रिक अभ्यास से कदम पीछे खींचने पड़े, क्योंकि उस पर जापान को आपत्ति थी.
ऐसे अभ्यासों का स्वरूप भले ही सैन्य हो, लेकिन उनकी प्रकृति राजनीतिक भी होती है और यही इस बार भारत के लिए समस्या उत्पन्न करने वाली रही. इसी कारण भारत को वोस्तोक के सामुद्रिक अभ्यास से कदम पीछे खींचने पड़े, क्योंकि उस पर जापान को आपत्ति थी. मास्को ने दक्षिण कुरील द्वीप के आसपास नौसैन्य अभ्यास का निर्णय किया था, जिस पर टोक्यो को कड़ा एतराज था. जापानी रक्षा मंत्री ने उसे अस्वीकार्य करार दिया था.
असल में रूसी नौसेना और चीनी नौसेना का इसके पीछे यही मकसद था कि अपनी निकट साझेदारी दिखाकर जापान पर दबाव बनाया जाए. इन दोनों देशों के बीच सैन्य अभ्यास अब बहुत आम हो गए हैं. पिछले साल ही दोनों देशों ने 10,000 से अधिक सैनिकों के साथ उत्तर-मध्य चीन में अभ्यास किया. वहीं इस साल मई में जब टोक्यो में क्वाड देशों के नेता वार्ता कर रहे थे तो उसी दौरान चीनी एच-6 बांबर्स और रूसी टीयू-95 बांबर्स जापान और दक्षिण कोरिया के इर्द-गिर्द दांव आजमा रहे थे.
रूस के लिए वोस्तोक कई मायनों में अहम रहा. इसके जरिये उसने संदेश दिया कि वह अलग-थलग नहीं पड़ा और बात जब सामरिक प्राथमिकताओं की आती है तो चीन एवं भारत जैसे खास देश उसके साथ खड़े हैं. चीन के लिए ये अभ्यास एक बड़ी सैन्य शक्ति के साथ संबंध मजबूत बनाने का माध्यम हैं और वह भी तब जब पश्चिम के साथ उसका शीत युद्ध परवान चढ़ रहा है. भारत के लिए यह कठिन पड़ाव है. चीन के साथ जटिल संबंधों को देखते हुए दोनों देशों के बीच संयुक्त अभ्यास का कोई तुक नहीं बनता. एकमात्र यही पहलू अंतर पैदा करता है कि यह अभ्यास रूस ने आयोजित किया. भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमले की न तो सार्वजनिक निंदा की है और न ही वह रूस पर लगाए पश्चिमी प्रतिबंधों का हिस्सा है. भारत तो इस स्थिति का खूब लाभ उठा रहा है. वह रूस से भारी मात्रा में सस्ता तेल खरीद रहा है.
यदि सैन्य अभ्यास किसी देश की रणनीतिक मंशा को स्पष्ट करते हैं तो नई दिल्ली को यह काम बेहतर ढंग से करना चाहिए. जब रूस और चीन भारत की भागीदारी को अपने हितों के अनुरूप रेखांकित कर रहे हैं, तब भारत को भी अपने पक्ष को मुखरता से रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने की दरकार है. वोस्तोक पर चाहे जितना हंगामा हो रहा हो, लेकिन किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत अमेरिका के साथ न केवल सबसे अधिक, बल्कि ऊंचे दर्जे के युद्ध अभ्यास करता है. पिछले महीने ही दोनों देशों के बीच ‘वज्र प्रहार’ अभ्यास का 13वां चरण संपन्न हुआ, तो अगले महीने उत्तराखंड में चीन सीमा के निकट भी नियमित संयुक्त युद्धाभ्यास होना है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे समान सोच वाले देशों के साथ भी भारत के सैन्य अभ्यास गति पकड़ रहे हैं.
जब रूस और चीन भारत की भागीदारी को अपने हितों के अनुरूप रेखांकित कर रहे हैं, तब भारत को भी अपने पक्ष को मुखरता से रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने की दरकार है.
एक ऐसे समय जब भारतीय सैनिकों को चीन सीमा पर कुछ मुश्किलें झेलनी पड़ रही हों तब इसे रूस के साथ संबंधों की धुरी के लिहाज से एक छोटी कीमत चुकाना कहा जा सकता है. नई दिल्ली को संदेश देने के स्तर पर बेहतर मंशा दिखाने की दरकार है. याद रहे कि रणनीतिक संवाद एक कला है और अब समय आ गया है कि उसमें महारत हासिल की जाए.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
Read More +