भारत का G20 एजेंडा: ‘डिजिटल अर्थव्यवस्था और मूल्य श्रृंखलाओं का एकीकरण’
प्रस्तावना
वर्ष 2022 में इंडोनेशिया द्वारा ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट वर्किंग ग्रुप (TIWG) का नाम बदलकर ट्रेड, इन्वेस्टमेंट एंड इंडस्ट्री वर्किंग ग्रुप (TIIWG) किया गया था. इसका मकसद इंडोनेशिया की G20 अध्यक्षता के अंतर्गत निम्नलिखित छह मुद्दों पर चर्चा करना और उनका समाधान तलाशना था:
- WTO सुधार.
- एसडीजी की उपलब्धि को सदृढ़ करने के लिए बहुपक्षीय ट्रेड सिस्टम की भूमिका.
- महामारी और ग्लोबल हेल्थ आर्किटेक्चर को लेकर व्यापार, निवेश एवं उद्योग की प्रतिक्रिया.
- डिजिटल व्यापार और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाएं.
- वैश्विक स्तर पर आर्थिक रिकवरी के लिए स्थाई और समावेशी निवेश को मज़बूत करना.
- व्यापार, निवेश और उद्योग के बीच तालमेल स्थापित करना.
व्यापार, निवेश और उद्योग पर गठित वर्किंग ग्रुप द्वारा पिछली G20 अध्यक्षता के दौरान जिन प्रमुख मुद्दों का समाधान तलाशा गया, उनमें ग्लोबल वैल्यू चेन यानी वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (GVCs) का मुद्दा शामिल है. पिछले पांच वर्षों में वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के एकीकरण जैसे कुछ अहम मुद्दे G20 के लिए लगातार चिंता का कारण बने रहे हैं. जबकि, हाल-फिलहाल में डिजिटल व्यापार और अर्थव्यवस्था जैसे दूसरे मुद्दे इसकी मुख्यधारा में शामिल हुए हैं.
वर्ष 2016 में G20 व्यापार मंत्रियों के वक्तव्य में विश्व व्यापार को संचालित करने में GVCs और क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं (RVCs) के महत्त्व को रेखांकित किया गया था. व्यापार मंत्रियों के स्टेटमेंट ने G20 सदस्य देशों को इस प्रकार की पहलों को विकसित करने और उन्हें लागू करने के लिए प्रतिबद्ध किया, जो बुनियादी ढांचे में निवेश और ज़्यादा से ज़्यादा आपूर्ति श्रृंखला कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने वाली हों. इसके पीछे यह तर्क दिया गया था कि अधिक जीवीसी एकीकरण का अर्थ है SME के लिए बेहतर एकीकरण. इस सिफ़ारिश को वर्ष 2016 की लीडर्स विज्ञप्ति यानी आधिकारिक सूचना में भी शामिल किया गया, जिसने G20 स्ट्रैटजी फॉर ग्लोबल ट्रेड ग्रोथ (SGTG) का भी समर्थन किया था.
SGTG टिकाऊ और समावेशी वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के निर्माण के लिए व्यापार और निवेश नीति को ‘पारस्परिक तौर पर मज़बूत’ करने के लिए लक्ष्य निर्धारित करता है.हालांकि, पहली नज़र में यह लक्ष्य काबिले तारीफ़ है, लेकिन यह ‘कैसे’ हासिल होगा, इस सवाल का कहीं कोई जवाब नहीं मिलता है, न तो किसी रणनीति में और ना ही एक के बाद एक आने वाले मंत्रियों के वक्तव्यों में.
वर्ष 2020 में सऊदी अरब की अध्यक्षता कोदेखा जाए तो कोविड की वजह से पैदा हुई परेशानियों को कम करने और व्यापार के सुधार एवं रिकवरी पर केंद्रित थी. वर्ष 2021 में इटली की जी20 अध्यक्षता के दौरान यह सिलसिला आगे बढ़ा और स्वास्थ्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया, ताकि महामारी के प्रकोप को कम किया जा सके. इसके साथ ही ग्लोबल वैल्यू चेन में भागीदारी के लिए MSME को प्रौद्योगिकी के उपयोग को लेकर उन्नत करने में सक्षम बनाने की आवश्यकता को फिर से दोहराया गया.गैर-बाध्यकारीयानी कानूनी रूप से जिसका पालन करना अनिवार्य नहीं है, ऐसी एमएसएमई पॉलिसी टूलकिट, जिसे सऊदी अरब के व्यापार शासनादेश के साथ संलग्न किया गया था, इन नीतियों में से कुछ को बाध्यकारी कार्रवाई में अपग्रेड करने के लिए नए सिरे से विचार करने की ज़रूरत है, विशेष रूप से ऐसे में जब एमएसएमई के बीच सूचना और संचार नेटवर्क तक पहुंच की बात सामने हो.
डिजिटल इकोनॉमी वर्किंग ग्रुप बनाम डिजिटल सप्लाई चेन
डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल अर्थव्यवस्था का प्रश्न ट्रेड एंड इनवेस्टमेंट वर्किंग ग्रुप और डिजिटल इकोनॉमी वर्किंग ग्रुप दोनों में ही आता है. अर्थव्यवस्था के सभी सेक्टरों में डिजिटल घटकों की सार्वभौमिक प्रकृति को देखते हुए इन समूहों के बीच स्पष्ट तौर पर एक ओवरलैप या कहा जाए कि एक तरह का दोहराव भी दिखाई देता है.
डिजिटल इकोनॉमी वर्किंग ग्रुप, G20 डिजिटल इकोनॉमी टास्क फोर्स से निकला है, जिसे वर्ष 2017 में स्थापित किया गया था.उस टास्क फोर्स का सीमित अधिकार और आख़िरकार कार्य समूह एक समावेशी, लचीली और टिकाऊ डिजिटल अर्थव्यवस्था विकसित करने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर विचार कर रहा था.
देखा जाए तो TIIWG के अंदर विचार-विमर्श की अनिवार्यता पारंपरिक वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार के साथ डिजिटल इकोनॉमी पर चर्चा करना रहा है. हाल के दिनों में, नई औद्योगिक क्रांति (NIR) को सक्षम करने के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी को अपनाने को लेकर वर्ष 2018 में अर्जेंटीना के व्यापार और निवेश पर मंत्रिस्तरीय वक्तव्य में इसका उल्लेख किया गया था. वर्ष 2019 में जापान की अध्यक्षता के दौरान डिजिटल अर्थव्यवस्था को ट्रेड ट्रैक चर्चाओं की केंद्रीय धुरी बनाया गया. व्यापार और डिजिटल अर्थव्यवस्था पर G20 मंत्रिस्तरीय वक्तव्य में भविष्य की मानव-केंद्रित सोसाइटी या फिर सोसाइटी 5.0 के महत्त्व पर विचार किया गया.उन्होंने पहली बार ‘विश्वास के साथ डेटा मुक्त प्रवाह’ और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर के विचार को भी शामिल किया, जिसको लेकर भारत काफ़ी दिक्कत महसूस कर रहा था. रियाद में जारी किए गए आधिकारिक वक्तव्य में गुड्स एवंसेवाओं दोनों में व्यापार की बढ़ोतरी के लिए डिजिटल इकोनॉमी एवं डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने के महत्त्व के ज़्यादा परंपरागत तरीकों को अपनाने के साथ, यह सिलसिला जारी रहा. उसमें सेवाओं के व्यापार पर विशेष तौर सेध्यान दिया गया था. इटली की अध्यक्षता के दौरान इसके स्थान पर डिजिटल इकोनॉमी वर्किंग ग्रुप (DEWG) से एक मंत्रिस्तरीय घोषणा के साथ व्यापार के डिजिटल पहलुओं के संदर्भों को बेहद कम कर दिया गया था. इस डिक्लेरेशन ने ‘विश्वास के साथ डेटा मुक्त प्रवाह’ के विचार को फिर से पेश किया. इंडोनेशिया ने TIIWG के लिए G20 चेयर का सारांश जारी किया है, जो डिजिटल व्यापार और GVC के मूल मुद्दे पर वापस जाता है.
वर्ष 2023 में क्या होगा?
एक हिसाब से देखा जाए तो वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के मुद्दों पर भारत दूसरे जी20 देशों के साथ तालमेल स्थापित करने को कोशिश करता रहा है, लेकिन ‘विश्वास के साथ डेटा मुक्त प्रवाह’ के मुद्दे को लेकर भारत की कई प्रकार की आपत्तियां रही हैं. भारत ने इसके प्रमुख कारणों के रूप में पहले डिजिटल विभाजन और घरेलू क़ानूनों को डिजाइन करने की अनिवार्यता का हवाला दिया है. भारत को सर्विस सेक्टर के व्यापार से काफ़ी फायदा होता है, यह सेक्टर डिजिटल प्रवाह द्वाराही संचालित होता है.वर्ष 2017 तकभारत का 66 प्रतिशत सर्विस ट्रेड मोड 1 में था, जो डेटा प्रवाह द्वारा संचालित है. ज़ाहिर है कि इसमें कोई अचरज वाली बात नहीं है कि भारत किसी भी अंतर्राष्ट्रीय नियम-क़ानून को मानने से पहले अपने नियम बनाना चाहता है. इन सभी चर्चाओं में एक कॉमन प्वाइंट‘सर्वोत्तम प्रयास’ के विचार का उपयोग किया गया है.हो सकता है कि यह विचार अब तक उपयोगी रहा होगा, लेकिन भारत एक ऐसी स्थिति का निर्माण करने, जिसमें सभी के पास सफल होने का समान और उचित अवसर हो, के लिए पश्चिम से ग्लोबल साउथ तक डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश पर पूरी प्रतिबद्धता हासिल करने पर विचार कर सकता है.
विशेष रूप से, जहां तक वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं का सवाल है, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में मंदीके हालातों और कोविड की वजह से आपूर्ति के झटकों से बढ़ते दबाव को देखते हुए, आपूर्ति-श्रृंखला लचीलापन और भी ज़्यादा ज़रूरी हो गया है.ऐसे में जबकि जीवीसी और आपूर्ति श्रृंखलाएं एक दूसरे की पूरक हैं और उन्हें एक समान एवं व्यक्तिगत तौर पर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है.मैन्युफैक्चरिंग की क़ीमत पर असर की वजह से मंदी सीधे तौर पर आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित करती है. यह सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी है कि आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन पर आर्थिक मंदी के असर को कम से कम करने के लिए आपूर्ति श्रृंखलाएं व्यापक आर्थिक और राजकोषीय नीतियों में लगातार बदलाव से आंशिक रूप से स्वतंत्र रहें. उस स्थिति मेंभारत की अध्यक्षता मेंG20 को ग्लोबल वैल्यू चेन्स के इर्दगिर्द बातचीत को और ज़्यादा सारगर्भित बनाने एवं मूल्य श्रृंखला व आपूर्ति श्रृंखला चर्चा के बीचके अंतर को स्पष्ट करने की आवश्यकता होगी.
जहां तक डिजिटल फ्रंट की बात है, तो जो अतिआवश्यक सवाल है, वो डेटा प्रवाह के मुद्दे पर कुछ सामान्य आधार तलाशने से जुड़ा है.नीति आयोग का डिजिटल एमपावरमेंटएंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA) इस आम सहमति को तलाशने में एक अहम भूमिका निभा सकता है, क्योंकि यह एक संस्थागत ढांचे का निर्माण करता है, जो कि मापने योग्य है. एक प्रश्न जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है, वह है TIIWG और DEWG के बीच कामकाज के दोहराने की संभावना: यह सुनिश्चित करने के तरीक़े क्या हैं कि DEWG उन्हीं लक्ष्यों के बारे में चर्चा कर रहा है, जिनके बारे में TIIWG के माध्यम से परिणाम हासिल करने की बात की जा रही है? ऐसे में क्या दोनों कार्य समूहों को मिलाकर एक संयुक्त कार्य बल गठित करने पर विचार किया जाना चाहिए? इन परिस्थियों में यह बेहद अहम हो जाता है कि विचारों को लेकर खूब मंथन हो, विचारों का आदान-प्रदान किया जाए औरइसको लेकर चर्चा-परिचर्चाओं का आयोजन हो, ताकि ज़्यादा सटीक और प्रभावशाली निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके.
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