Author : Harsh V. Pant

Published on Jul 13, 2022 Commentaries 0 Hours ago

इस क्राइसिस से जो संदेश मिला, वो यह कि जब एक अच्छी अर्थव्यवस्था का कुप्रबंधन किया जाता है, जब राजनेता सिर्फ अपनी जेब भरते हैं और लोगों की परेशानिया हल नहीं कर पाते तो उसका नतीजा क्या होता है.

#IMF: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मदद से संकटग्रस्त श्रीलंका का कितना भला हो पाता?

जनता के विरोध के आगे झुकते हुए श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया ने इस्तीफ़ा देना मंज़ूर कर लिया है. हालांकि अभी तक उन्होंने पद छोड़ा नहीं है और जनता अड़ी हुई है कि जब तक गोटबाया हटते नहींवह भी नहीं हटेगी. अब बड़ा सवाल है कि क्या गोटबाया के इस्तीफ़े से श्रीलंका के हालात सुधर जाएंगे?

श्रीलंका के सामने आर्थिक समस्या तो है हीपर राजनीतिक समस्या भी बनी हुई है. वहां की सियासत में जो खालीपन आया हैउसे भरा कैसे जाएगासर्वदलीय बैठक और सरकार बनाने की बात हो रही है. राष्ट्रपति जब रिजाइन करेंगेतो एक हफ्ते के अंदर सर्वदलीय सरकार का गठन ज़रूरी है. माना जा रहा है कि सरकार बनेगी भी. लेकिनअभी देश में जिस तरह के हालात हैं और जिस हद तक नाराज़गी है लोगों मेंउसे सर्वदलीय सरकार कैसे संभालेगीराजनीतिक दलों में शायद बातचीत चल रही है कि किस तरह से पॉवर ट्रांसफर हो. लेकिनश्रीलंका की समस्या के कई कारण हैं और वो सारे कारण राजपक्षे के जाने से ख़त्म नहीं होते. इनका समाधान खोजने के बाद ही श्रीलंका आगे बढ़ सकता है.

राजनीतिक दलों में शायद बातचीत चल रही है कि किस तरह से पॉवर ट्रांसफर हो. लेकिन, श्रीलंका की समस्या के कई कारण हैं और वो सारे कारण राजपक्षे के जाने से ख़त्म नहीं होते. इनका समाधान खोजने के बाद ही श्रीलंका आगे बढ़ सकता है.

बर्बादी के हैं कई पहलू

श्रीलंका क्राइसिस दिखाती है कि कभी विकासशील देशों के लिए रोल मॉडल रहने वाली अर्थव्यवस्था कैसे तबाह होती है. श्रीलंका पर 51 बिलियन डॉलर का कर्ज़ है और वह उसका ब्याज़ तक नहीं दे पा रहा. उसका विदेशी मुद्रा भंडार दिनोंदिन घटता जा रहा है. मुद्रास्फीति सिर चढ़कर बोल रही है. इसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ रहा है. इसमें दो-तीन बातें हैं. एक तो यह कि पिछले कई बरसों से श्रीलंका में जो भी सरकारें रहींउन्होंने अर्थव्यवस्था का इतना कुप्रबंधन कियाजिसकी वजह से एक मध्यम आय वाला देश आज इस कगार पर खड़ा है. उनका खर्चा बहुत ज़्यादा रहाआय बहुत कम.

जब राजपक्षे सरकार बनी तो उसने टैक्स कम करने का वादा किया और कम कर भी दिए. इसका रेवेन्यू पर बहुत असर पड़ा. फिर जब कोविड आयाउसने श्रीलंका की आय के प्रमुख साधन पर्यटन की पूरी इंडस्ट्री ही ख़त्म कर दी. राजकोषीय घाटा और बढ़ाभुगतान में मुसीबत होने लगी. राजपक्षे सरकार ने ऐसे राजनीतिक फैसले भी नहीं लिएजिनका कुछ प्रभाव हो. उसके बाद आईएमएफ के पास जाने में भी काफी देर लगाई.

जब राजपक्षे सरकार बनी तो उसने टैक्स कम करने का वादा किया और कम कर भी दिए. इसका रेवेन्यू पर बहुत असर पड़ा. फिर जब कोविड आया, उसने श्रीलंका की आय के प्रमुख साधन पर्यटन की पूरी इंडस्ट्री ही ख़त्म कर दी. राजकोषीय घाटा और बढ़ा, भुगतान में मुसीबत होने लगी.

पिछले छह महीने से बिलकुल साफ़ था कि मुसीबत आ रही है. शुरू में राजपक्षे कैंप को लगा कि वो सिर्फ अपने भाइयों और रिश्तेदारों के ज़रिए सरकार चला लेंगे. फिर वह एक नए पीएम विक्रमसिंघे को ले आएंगेतो हो सकता है कि लोगों का गुस्सा कम हो जाए. लेकिन जैसे-जैसे यह संकट बढ़ता गयासरकार इसे ठीक से संभाल नहीं पाई. लोगों का गुस्सा गोटबाया और राजपक्षे पर निकला और इन दोनों को भागना पड़ा. तो इस क्राइसिस से जो संदेश मिलावो यह कि जब एक अच्छी अर्थव्यवस्था का कुप्रबंधन किया जाता हैजब राजनेता सिर्फ अपनी जेब भरते हैं और लोगों की परेशानिया हल नहीं कर पाते तो उसका नतीजा क्या होता है. मध्यम आय वाला एक देश कैसे डूब जाता हैश्रीलंका उसका उदाहरण है.

श्रीलंका ने शुरू में जब चीन से बात की, तो उसने साफ़ मना कर दिया. बाद में जब भारत ने श्रीलंका की मदद करने की कोशिश की, तब चीन को लगा कि उसका प्रभाव कम हो सकता है. तब कहीं चीन ने री-स्ट्रक्चरिंग की बात करने की शुरुआत की. फिर भी ज़मीनी तौर पर कुछ ख़ास नहीं किया. चीन तो इस मुसीबत में बस दर्शक बना रहा.

चीन की कर्ज़ कूटनीति

दूसरी चीज़ जो इस घटना में सामने आ रही है और जो दक्षिण एशिया के बाकी देशों पर भी लागू होती हैवो है चीन की भूमिका. चीन ने जिस तरह से श्रीलंका को कर्ज़ दियाराजपक्षे कैंप को अपने कंट्रोल में करके वहां इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट बनवाएनाकाबिल चीज़ों में पैसा डालाउसके सामने ऐसी शर्तें रखीं कि देश पैसा नहीं दे पा रहायह अपने आपमें एक सीख है. इस समय दक्षिण एशिया में ऐसे काफी देश हैं. नेपाल और पाकिस्तान में भी इसी तरह के हालात बनने की आशंका हैक्योंकि इन दोनों देशों ने भी चीन से बहुत कर्ज़ ले रखा है. दोनों जगह श्रीलंका जैसे प्रोजेक्ट चल रहे हैं और दोनों को चीन ने जिन शर्तों पर कर्ज़ दिया हैउसके चलते आने वाले वक़्त में तबाही आ सकती है. काफी समय से लोग कह रहे थे कि चीन की कर्ज़ कूटनीति में फंसता जा रहा है श्रीलंका. वहां के नेताओं ने तब इस बात को नज़रअंदाज़ किया. उन्होंने समस्या का इलाज ठीक से नहीं किया. नतीजतनश्रीलंका की अर्थव्यवस्था आज पूरी तरह से डूब चुकी है. इसमें चीन ने पहले ज़्यादा पैसा दिया और ऐसी शर्तों पर दिया श्रीलंका जिन्हें लागू ही नहीं कर सकता था. फिर जब मुसीबत आईतो चीन बिलकुल गायब हो गया. श्रीलंका ने शुरू में जब चीन से बात कीतो उसने साफ़ मना कर दिया. बाद में जब भारत ने श्रीलंका की मदद करने की कोशिश कीतब चीन को लगा कि उसका प्रभाव कम हो सकता है. तब कहीं चीन ने री-स्ट्रक्चरिंग की बात करने की शुरुआत की. फिर भी ज़मीनी तौर पर कुछ ख़ास नहीं किया. चीन तो इस मुसीबत में बस दर्शक बना रहा.

चीन बनाम भारतीय मॉडल 

वहींभारत ने एक जिम्मेदार सहयोगी की भूमिका निभाई. पिछले छह-सात महीनों में श्रीलंका को भारत डेढ़ बिलियन डॉलर से भी ज़्यादा का सपोर्ट दे चुका है. दवाएंईंधन और भोजन सहित हर किस्म की मदद मुहैया कराने के लिए भारत खड़ा रहा है. ऐसा इसलिएक्योंकि भारत का श्रीलंका को लेकर जो अप्रोच रही हैउसके केंद्र में श्रीलंका की जनता ही है. वहींचीनी मॉडल के केंद्र में श्रीलंका के टॉप के नेता रहे हैंख़ासकर राजपक्षे कैंप. अब जो क्राइसिस श्रीलंका में हैइसका खामियाज़ा उसे बहुत लंबे समय तक भुगतना पड़ेगा. आईएमएफ का भी सपोर्ट उसे तब तक नहीं मिल पाएगाजब तक श्रीलंका में एक ऐसी मिलीजुली सरकार नहीं बनतीजो कि एक साझा प्रोग्राम लेकर सामने आए. अगर श्रीलंका में राजनीतिक मतभेद बने रहेंगे और सर्वदलीय सरकार प्रभावी योजना लेकर नहीं आ पाती हैतब तक आईएमएफ भी कोई बहुत मदद नहीं कर पाएगा. तो श्रीलंका की एक दूरगामी समस्या है. यहां आईएमएफ का रोल छोटी अवधि में बड़ी मदद के रूप में ज़रूर आ सकता हैलेकिन अगर श्रीलंका को अपनी अर्थव्यवस्था को वापस ढर्रे पर लाना हैतो उसके लिए वहां के राजनीतिक वर्ग को राजनीतिक लीडरशिप देनी पड़ेगीजो अभी तक तो नाकाम ही रही है.

श्रीलंका ने शुरू में जब चीन से बात की, तो उसने साफ़ मना कर दिया. बाद में जब भारत ने श्रीलंका की मदद करने की कोशिश की, तब चीन को लगा कि उसका प्रभाव कम हो सकता है. तब कहीं चीन ने री-स्ट्रक्चरिंग की बात करने की शुरुआत की

श्रीलंका की समस्या बाकी देशों के लिए अलार्म भी . फिर भी ज़मीनी तौर पर कुछ ख़ास नहीं किया. चीन तो इस मुसीबत में बस दर्शक बना रहा.है कि किस तरह से आर्थिक कुप्रबंधन इस तरह की मुसीबत लाता है. साथ हीअगर आप आंख बंद करके चीन जैसे देश के साथ हाथ मिलाते हैंतो उसके क्या परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. श्रीलंका के इस हाल से अगर और देशचाहे वे नेपाल या पाकिस्तान होंसमझते हैं तो यह उनके ही नहीं बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए भी अच्छा होगा. फिर भारत भी यह नहीं चाहेगा कि उसके पड़ोसी देश किसी बड़ी आर्थिक मुसीबत की ओर बढ़ें. 

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यह लेख नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.

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