Author : Ankita Dutta

Issue BriefsPublished on May 06, 2023
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Eu After The Ukraine Crisis121535

यूक्रेन संकट के बाद यूरोपीय संघ: आपसी सहमति और मतभेद के मुद्दे

  • Ankita Dutta

    नाटो के नेता रूस की चिंताओं पर बातचीत के प्रति इच्छुक थे लेकिन वे नाटो के विस्तार को प्रतिबंधित करने सहित मास्को की प्रमुख मांगों पर रियायतें देने के लिए तैयार नहीं थे. संघर्ष की शुरुआत के बाद से, अमेरिका और यूरोपीय संघ और नाटो देशों ने आर्थिक, मानवीय और सैन्य सहायता के माध्यम से यूक्रेन का समर्थन किया है

यूक्रेन संकट के परिणामस्वरूप अक्सर बंटे रहने वाले यूरोपीय संघ में एक अभूतपूर्व क़िस्म की एकता दिखाई दे रही है. सदस्य देशों ने यूक्रेन को आर्थिक और सैन्य सहायता मुहैया कराई है, रूस पर दीर्घकालिक प्रतिबंध लगाए हैं, अपने रक्षा तंत्र को मज़बूत किया है और लाखों यूक्रेनी शरणार्थियों को स्वीकार किया है. ठीक उसी दौरान, कई गहरे महभेद भी उभर कर सामने आए हैं, ख़ासकर इस बिंदु पर कि वे रूस के साथ अपने संबंधों को कैसे देखते हैं और उससे ख़तरों के प्रति उनकी धारणाएं कैसी हैं. यह लेख उन सभी मुद्दों की पड़ताल करता है जिन्हें लेकर यूरोपीय संघ के देशों के बीच एकता या मतभेद की स्थिति है और साथ ही समूह के लिए ज़रूरी सबकों पर भी विचार पेश करता है, जिसका लक्ष्य भविष्य के लिए सुसंगत विदेश एवं रक्षा नीति तैयार करना है.


एट्रीब्यूशन: अंकिता दत्ता, "यूक्रेन संकट के बाद यूरोपीय संघ: आपसी सहमति और मतभेद के मुद्दे," ओआरएफ इश्यू ब्रीफ सं. 635, अप्रैल 2023, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन.


भूमिका 

फ़रवरी 2022 में शुरू हुआ यूक्रेन संकट वर्तमान में भी जारी है, जिसके थमने के कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे. यह संकट यूरोपीय संघ के लिए एक ऐतिहासिक मौके के रूप में उभरा है. यूरोपीय संघ के भीतर रूस के प्रति असहयोग के दृष्टिकोण की प्रारंभिक धारणाओं के विपरीत, समूह ने रूस पर तुरंत सख़्त प्रतिबंध लगाकर यूक्रेन को आर्थिक और सैन्य मोर्चे पर त्वरित सहायता प्रदान करने में अभूतपूर्व एकता का प्रदर्शन किया है.

यह लेख यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच आपसी सहमति और मतभेदों से जुड़े मुद्दों की पड़ताल करते हुए यूक्रेन संकट के प्रति उसकी प्रतिक्रियाओं का आकलन करता है. यह सुसंगत विदेश एवं रक्षा नीति तैयार करने के प्रयासों के मद्देनजर यूरोपीय संघ के लिए इन हितों से जुड़े परिणामों को रेखांकित करता है.

जबकि संघर्ष के बीच यूरोप ने खुद को रणनीतिक रूप से पुनर्गठित किया है, लेकिन सुरक्षा के लिए अमेरिका और ऊर्जा संसाधनों के लिए रूस पर उसकी लगातार लगातार निर्भरता और ज्यादा बढ़ गई है. आंतरिक स्तर पर, इस संघर्ष के कारण रूस के साथ संबंधों और उससे ख़तरों के प्रति धारणाओं को लेकर पश्चिमी और पूर्वी यूरोपीय देशों के बीच फिर से तनाव की स्थितियां पैदा हुई हैं. बढ़ती खाद्य और ऊर्जा क़ीमतों के मद्देनजर सदस्य देशों के बीच इस बात को लेकर तनातनी बढ़ती जा रही है कि इस संकट के आर्थिक प्रभावों से कैसे निपटा जाए. यह लेख यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच आपसी सहमति और मतभेदों से जुड़े मुद्दों की पड़ताल करते हुए यूक्रेन संकट के प्रति उसकी प्रतिक्रियाओं का आकलन करता है. यह सुसंगत विदेश एवं रक्षा नीति तैयार करने के प्रयासों के मद्देनजर यूरोपीय संघ के लिए इन हितों से जुड़े परिणामों को रेखांकित करता है.

संघर्ष का रास्ता

यूरोप में नए सिरे से शुरू हुई महाशक्ति प्रतियोगिता के सबसे पहली कतार में यूक्रेन खड़ा है, जिसने एक नए शीत युद्ध की आशंका को बढ़ा दिया है जिसमें "परमाणु हमले की धमकियां, रूस का उभार, यूरोप में एक नकली युद्ध का मैदान खड़ा होना और अमेरिकी नेतृत्व में नाटो" जैसी चीज़ें शामिल हैं.[1] रूस का पक्ष राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा लिखे गए लेख "ऑन द हिस्टोरिकल यूनिटी ऑफ रशियंस एंड यूक्रेनियंस" पर आधारित है, जिसमें "रूसी और यूक्रेनी लोग साझे सांस्कृतिक, भाषाई और धार्मिक इतिहास के कारण एक ही लोग हैं" पर ज़ोर दिया गया है.[2] पुतिन के अनुसार, "आधुनिक यूक्रेन पूरी तरह से सोवियत काल की देन है," और उन्होंने तर्क दिया कि पश्चिम यूक्रेन को "मास्को विरोधी रूस" में बदलने के तरीके ढूंढ़ रहा था और "यूक्रेन केवल रूस के साथ साझेदारी के जरिए ही सही मायनों में संप्रभु बन पाएगा." इसलिए यूक्रेन पर की गई 'विशेष सैन्य कार्रवाई' दरअसल रूस के पड़ोस में नाटो के विस्तार और उसके प्रभाव के प्रति जवाबी कार्रवाई थी और पश्चिमी भू-राजनीतिक संरचना में यूक्रेन को शामिल होने से रोकने के लिए की गई थी.

संघर्ष शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले, मास्को ने "रूसी संघ और नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) के सदस्य देशों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपायों पर समझौता" का प्रकाशन किया था.[3] मसौदे में कई तरह के सुरक्षा उपायों पर बात की गई थी, जिसमें यूरोप से अमेरिकी परमाणु हथियारों को हटाने, नाटो के और ज्यादा विस्तार को रोकने, नाटो की सेना की तैनाती से पहले रूस से सहमति लेने और पूर्वी यूरोप से नाटो की सेनाओं को वापिस बुलाने जैसी सुरक्षा शर्तों को शामिल किया गया था. संक्षेप में, मास्को ने द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद स्थापित और शीत युद्ध के दौरान विकसित हुए यूरोपीय सुरक्षा ढांचे के आधार को बदलने की मांग की थी.

इन सुरक्षा आधारों की जड़ें रूस की उन चिंताओं से भी जुड़ी थीं, जहां उसे डर था कि कहीं वारसा संधि के देश[4] नाटो के सदस्य न बन जाए. राष्ट्रपति पुतिन ने 2007 के म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में अपने संबोधन में रूस के इस डर को उजागर किया था, जहां उन्होंने कहा था: "नाटो ने अपने प्रमुख सैन्य बलों को हमारी सीमाओं पर तैनात किया है...यह स्पष्ट है कि नाटो के विस्तार का समूह के आधुनिकीकरण या यूरोप में सुरक्षा सुनिश्चित करने से कोई संबंध नहीं है. इसके विपरीत, यह कुछ और नहीं बल्कि उकसावे भरी कार्रवाई है, जिससे एक-दूसरे के प्रति भरोसा कम होता है. और हमें यह पूछने का अधिकार है कि आखिर किसके खिलाफ़ यह विस्तार किया जा रहा है? और वारसा संधि के विघटन के बाद हमारे पश्चिमी सहयोगियों ने हमें जो आश्वासन दिए थे, उनका क्या है? वर्तमान में उन घोषणाओं का क्या हुआ?”[5]

इसके बाद, रूस ने कई कदम उठाए थे: जैसे कि 2008 में जॉर्जिया पर किया गया सैन्य हमला और 2014 में क्रीमिया पर कब्ज़े की कार्रवाई. इससे यह संदेश दिया गया कि अगर उसकी सुरक्षा चिंताओं से समझौता किया गया तो वह बदले की कार्रवाई ज़रूर करेगा. इस प्रकार उसने अमेरिका और नाटो से जिन सुरक्षा गारंटियों की मांग की थी, उसकी नज़र में वह ऐसी लक्ष्मण रेखाएं थी जिन्हें वह क्षेत्र में अपने हितों पर अतिक्रमण के रूप में देख रहा था और इसलिए वह अपनी सीमाओं की ओर नाटो के विस्तार और क्षेत्र में पश्चिमी प्रभाव पर रोक लगाना चाहता था.

नाटो के नेता रूस की चिंताओं पर बातचीत के प्रति इच्छुक थे लेकिन वे नाटो के विस्तार को प्रतिबंधित करने सहित मास्को की प्रमुख मांगों पर रियायतें देने के लिए तैयार नहीं थे. संघर्ष की शुरुआत के बाद से, अमेरिका और यूरोपीय संघ और नाटो देशों ने आर्थिक, मानवीय और सैन्य सहायता के माध्यम से यूक्रेन का समर्थन किया है.

जबकि नाटो के नेता रूस की चिंताओं पर बातचीत के प्रति इच्छुक थे लेकिन वे नाटो के विस्तार को प्रतिबंधित करने सहित मास्को की प्रमुख मांगों पर रियायतें देने के लिए तैयार नहीं थे.[6] संघर्ष की शुरुआत के बाद से, अमेरिका और यूरोपीय संघ और नाटो देशों ने आर्थिक, मानवीय और सैन्य सहायता के माध्यम से यूक्रेन का समर्थन किया है, जबकि रूस पर प्रतिबंधों की दस श्रृंखला आरोपित की गई है. ठीक उसी दौरान, वे ऐसी कार्रवाई से बच रहे हैं जो उनके देशों को सीधे संघर्ष में खींच सकती है या किसी रणनीतिक भूल के चलते इसे बढ़ावा दे सकती है.

संकट के विरुद्ध यूरोपीय संघ की प्रतिक्रिया

जैसे ही संघर्ष की शुरुआत हुई, यूरोपीय संघ के नेताओं ने "अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन और यूरोप और शेष विश्व की सुरक्षा एवं स्थिरता को कमज़ोर करने.. [के लिए] यूक्रेन के खिलाफ़ रूस की अभूतपूर्व सैन्य कार्रवाई की कठोर शब्दों में निंदा की."[7] उन्होंने रूस से "शत्रुता को तुरंत समाप्त करने और यूक्रेन से अपनी सेना को हटाने एवं यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता और स्वतंत्रता का पूरा सम्मान करने" का आह्वान किया और इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि "21वीं सदी में इस तरह के बल प्रयोग और ज़बरदस्ती का कोई स्थान नहीं है."

जैसे-जैसे संकट बढ़ता गया, यूरोपीय संघ ने अभूतपूर्व एकता का प्रदर्शन करते हुए प्रतिबंधों, मानवीय सहायता एवं सैन्य समर्थन से संबंधित कई त्वरित निर्णय लिए. संघर्ष की शुरुआत से, संगठन ने 67 अरब यूरो (73.5 अरब अमेरिकी डॉलर) से ज्यादा की सहायता राशि जुटाई है. इसमें आर्थिक सहायता के लिए 37.8 अरब यूरो (41.5 अमेरिकी डॉलर), शरणार्थियों के लिए 17 अरब यूरो (18.6 अरब अमेरिकी डॉलर) और सैन्य सहायता के मद में 12 अरब यूरो (13.1 अरब अमेरिकी डॉलर) शामिल है.[8] मार्च 2022 में, यूरोपीय संघ ने संघर्ष के कारण विस्थापित हुए यूक्रेनी नागरिकों के लिए अस्थायी सुरक्षा निर्देश[9] जारी किए. इन उपायों से यूक्रेनी शरणार्थियों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया गया, जिसमें निवास का अधिकार, श्रम बाजार तक पहुंच, चिकित्सा सहायता और शिक्षा का अधिकार शामिल हैं.

संगठन ने यूक्रेनी सेना की मदद के लिए यूरोपीयन पीस फैसिलिटी (EPF)[10] को भी लागू किया. मार्च 2023 तक, EPF के माध्यम से, संगठन ने यूक्रेन के सशस्त्र बलों को 3.6 अरब यूरो (3.9 अरब अमेरिकी डॉलर) से अधिक की वित्तीय सहायता प्रदान की है, साथ ही यूरोपीय यूनियन मिलिट्री एसिस्टेंस मिशन (EUMAM Ukrain) के तहत यूक्रेन को 4.5 करोड़ यूरो (4.9 करोड़ अमेरिकी डॉलर) की मदद दी गई है.[11] इसके अलावा, सदस्य देशों के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ाने, सुरक्षा और बचाव के लिए संगठन ने स्ट्रेटेजिक कंपास[12] यानी रणनीतिक माहौल और खतरों और चुनौतियों का आकलन पेश किया. और साथ ही उसने एक रैपिड रिएक्शन फोर्स के गठन की घोषणा की. सदस्य देशों ने अपनी सुरक्षा और बचाव नीतियों में बदलाव करते हुए अपने रक्षा बजट का विस्तार किया, यूक्रेन को हथियार एवं गोला-बारूद की आपूर्ति की और साथ ही और अधिक समन्वित ढंग से सहायता प्रदान करने के लिए नाटो के साथ मिलकर काम किया. रूसी गतिविधियों ने भी देशों को अपनी सुरक्षा रणनीतियों और रक्षा तंत्र पर पुनर्विचार करने को बाध्य किया है, जहां फिनलैंड और स्वीडन ने अपनी तटस्थ स्थिति को छोड़ते हुए नाटो की सदस्यता के लिए आवेदन किया, और डेनमार्क ने यूरोपीय संघ की सुरक्षा नीति में भागीदारी के लिए मतदान किया.[13]

संघ और उसके सहयोगियों (संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, नॉर्वे, दक्षिण कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया, G-7, और NATO) ने भी समन्वित प्रतिबंध लागू किए हैं. मार्च 2023 तक, दसवें दौर के प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं,[14] जिसमें रूसी ऊर्जा संसाधनों पर प्रतिबंध, SWIFT फाइनेंशियल सिस्टम से रूसी बैंकों को बाहर का रास्ता दिखाना और सेंट्रल बैंक ऑफ़ रूस की लेनदेन क्षमता को अवरुद्ध करना शामिल है.

रूसी गतिविधियों ने भी देशों को अपनी सुरक्षा रणनीतियों और रक्षा तंत्र पर पुनर्विचार करने को बाध्य किया है, जहां फिनलैंड और स्वीडन ने अपनी तटस्थ स्थिति को छोड़ते हुए नाटो की सदस्यता के लिए आवेदन किया, और डेनमार्क ने यूरोपीय संघ की सुरक्षा नीति में भागीदारी के लिए मतदान किया.

इन उपायों का उद्देश्य वैश्विक वित्तीय संस्थानों तक रूस की पहुंच को सीमित करना, इसके व्यापार को अवरुद्ध करना और ऊर्जा, परिवहन और बुनियादी ढांचे जैसे प्रमुख क्षेत्रों में रूसी निवेश को रोकना है ताकि वित्त और व्यापार बाज़ारों का हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सके. भले ही, यूरोपीय संघ के देश तीन प्रमुख क्षेत्रों को लेकर समान अवस्थिति रखते हैं, लेकिन इसके बावजूद असहमतियों से जुड़े मुद्दे भी उभरे हैं.

सहमति के क्षेत्र

समन्वित ढंग से प्रतिबंधों को लागू करना

रूस के खिलाफ़ मौजूदा प्रतिबंध यूरोपीय संघ के इतिहास में किसी भी देश पर लगाए गए सबसे बड़े प्रतिबंध हैं और ये "रूस को अपनी कार्रवाई के गंभीर परिणाम भुगतने के लिए विवश करने और हमले को जारी रखने की रूसी क्षमता को प्रभावी ढंग से विफल करने के उद्देश्य से" लागू किए गए थे.[15] फ़रवरी 2022 के बाद से लेकर अब तक यूरोपीय संघ ने अपनी सहयोगियों के साथ मिलकर प्रतिबंधों की दस श्रृंखला लागू की हैं, जिनका प्रसार कई क्षेत्रों में है. ऊर्जा, व्यापार और निवेश क्षेत्रों में संघ की रूस पर निर्भरता के बावजूद इन प्रतिबंधों पर तेज़ी से आम सहमति जुटा ली गई. हालांकि, इसके कारण संघ के सामने कई चुनौतियां पैदा हो गई है, जिसमें ऊर्जा असुरक्षा, महंगाई, और निम्न विकास दर शामिल हैं. फिर भी, प्रतिबंधों के पक्ष में मज़बूत समर्थन की स्थिति बनी हुई है, एक यूरो बैरोमीटर[16] सर्वेक्षण के अनुसार, सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 80 प्रतिशत लोग रूसी सरकार, फर्मों और नागरिकों पर प्रतिबंध लगाने के फ़ैसलों से सहमत थे.[17]

वित्तीय प्रतिबंधों की बात करें तो, संघ ने स्विफ्ट प्रणाली से कई प्रमुख रूसी बैंकों को बाहर कर दिया है, जिससे वैश्विक वित्तीय बाजारों तक देश की पहुंच सीमित हो गई है और रूसी व्यापार को भुगतान माध्यमों के अवरुद्ध हो जाने का सामना करना पड़ रहा है.

इसके अतिरिक्त, संघ ने अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में रूस की प्रभावशीलता को सीमित करने के लिए कुछ प्रमुख रूसी बैंकों की परिसंपत्तियों के इस्तेमाल और भुगतान पर भी प्रतिबंध लगा दिया है.[18]

प्रतिबंधों के तहत आने वाला एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र रूस का ऊर्जा क्षेत्र है. मई 2022 में, संघ ने रूसी तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी, जिससे क्षेत्र में रूस का 75 प्रतिशत तेल व्यापार प्रभावित हुआ है. हंगरी, स्लोवाकिया और चेक गणराज्य को पाइपलाइनों के ज़रिए रूस से कच्चे तेल के आयात की अनुमति दी गई.[19] उसी दौरान, संघ ने रूस को तेल शोधन क्षेत्र में आवश्यक माल और प्रौद्योगिकी की बिक्री और आपूर्ति पर रोक लगा दी, जिससे मास्को के लिए अपनी तेल शोधन संयंत्रों को अपग्रेड करना मुश्किल हो गया है. रूस से हर तरह के कोयला आयात पर प्रतिबंध लगाने के दौरान ही इन उपायों को भी लागू किया गया. इसके अलावा, अक्टूबर में, तीसरे देशों द्वारा समुद्री मार्गों के ज़रिए रूस से तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर संघ ने एक मूल्य सीमा आरोपित करने की घोषणा की.[20]

प्रौद्योगिकी, विमान और मीडिया उद्योगों पर भी प्रतिबंध लगाए गए. इन प्रतिबंधात्मक उपायों के दायरे में 1,386 व्यक्तियों और 171 संस्थाओं[21] को भी शामिल किया गया है, जिसमें परिसंपत्तियों के इस्तेमाल, संघ के ज़रिए प्रवेश या पारगमन और सूची में शामिल व्यक्तियों एवं संस्थाओं को धन उपलब्ध कराने पर प्रतिबंध शामिल हैं. ये समन्वित उपाय सबसे व्यापक प्रतिबंधात्मक उपाय हैं जो संघ ने रूस के विरुद्ध अपनाए हैं. इनके माध्यम से संघ ने किसी ज़वाबी कार्रवाई के प्रति अपनी इच्छा शक्ति दिखाई है और साथ ही अपने वित्तीय तंत्र की ताकत का भी प्रदर्शन किया है.

सुरक्षा तंत्र में सुधार

यूक्रेन संकट के कारण फिर से ऐसी बहस शुरू हो गई है कि यूरोपीय सुरक्षा ढांचे को पुनर्गठित करने और यूरोपीय नेतृत्व द्वारा स्वतंत्र निर्णय लेने की आवश्यकता है. मार्च 2022 में, वर्साय सम्मेलन में

यूरोपीय संघ के नेताओं की बैठक में फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की टिप्पणी में यह बात खुलकर सामने आई, जहां उन्होंने कहा "यूरोप को हर तरह की परिस्थितियों के लिए खुद को तैयार करना होगा.. यूरोप रूसी गैस पर अपनी निर्भरता को दूर करने के लिए प्रयास करना चाहिए, अपनी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए".[22]

2022 में, संघ ने अपनी सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय किए. सबसे पहले, क्षेत्र की सुरक्षा और बचाव के लिए एक रणनीतिक कम्पास जारी किया,[23] जिसकी लंबे समय से मांग की जा रही थी. इसमें 5,000 सैनिक क्षमता वाले रैपिड रिस्पांस फोर्स का गठन भी शामिल है. दूसरा, संघ ने रक्षा निवेश अंतराल को लेकर संयुक्त संचार व्यवस्था को अपनाया है, जो "यूरोप की रक्षा तकनीकी और उद्योग आधार को मज़बूत करने और महत्वपूर्ण सैन्य व असैन्य क्षमता अंतराल को कम करने के लिए सामूहिक महत्वाकांक्षा के अनुसार चलते हुए रक्षा व्यय को बढ़ाने" की मांग करता है[24]. इसके तहत एक डिफेंस ज्वाइंट प्रोक्योरमेंट टास्क फोर्स का गठन किया गया है ताकि "छोटी अवधि के लिए सदस्य देशों की ख़रीद ज़रूरतों का समर्थन किया सके एवं इस  दिशा में आपसी सहयोग को बढ़ावा देने के अलावा उससे जुड़े विवादों की संभावनाओं को कम किया जा सके".[25] तीसरा, संघ दो साल के लिए EUMAM यूक्रेन की स्थापना के लिए सहमति प्रदान की है, जिसका उद्देश्य यूक्रेनी सैन्य बल को प्रशिक्षण देना और ऐसे प्रयासों को समन्वित और प्रबंधित करना है.

राष्ट्रीय स्तर पर, कई सदस्य देश अपने रक्षा बजट को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. पोलैंड, रोमानिया और लातविया जैसे पूर्वी यूरोपीय देशों ने अपने रक्षा बजट को 3 प्रतिशत बढ़ा दिया है,[26] जबकि आयरलैंड जैसे तटस्थ देशों ने भी अपने रक्षा व्यय को बढ़ाने की मंशा को व्यक्त किया है.[27] इसके अतिरिक्त, जर्मनी ने अपनी कई महत्त्वपूर्ण नीतियों को पलट दिया है[28], जिसमें युद्ध क्षेत्र में मारक हथियारों के स्थानांतरण की मनाही से जुड़ी नीति भी शामिल है.

ट्रांस-अटलांटिक स्तर पर, नाटो ने हंगरी, बुल्गारिया, स्लोवाकिया और रोमानिया में चार नए संवर्धित उपस्थिति अभियानों की शुरुआत की है, जिससे ऐसे अभियानों की कुल संख्या आठ हो गई है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में "संगठन के डिटरेंस और सुरक्षा को मज़बूत" बनाना है.[29] इसके अतिरिक्त, उसने सहयोगी देशों की मदद के लिए रैपिड रिएक्शन फोर्स के रूप में बहुराष्ट्रीय सेना का गठन किया है. अपनी स्थिति को और मज़बूत बनाने के लिए, रिस्पॉन्स फोर्स की क्षमता को 40,000 से बढ़ाकर 300,000 कर दिया गया है.[30] जून 2022 में उसने एक नई रणनीतिक अवधारणा को भी अपनाया,[31] जो अगले दशक के लिए संगठन की प्राथमिकताएं निर्धारित करता है. दस्तावेज़ में भविष्य में संगठन के विस्तार को लेकर एक ज़रूरी और महत्वपूर्ण बात जोड़ी गई, जिसके तहत 2008 के बुखारेस्ट सम्मेलन में यूक्रेन और जॉर्जिया की सदस्यता के संबंध में लिए गए फ़ैसले पर मुहर लगा दिया दिया.

रूस से हर तरह के कोयला आयात पर प्रतिबंध लगाने के दौरान ही इन उपायों को भी लागू किया गया. इसके अलावा, अक्टूबर में, तीसरे देशों द्वारा समुद्री मार्गों के ज़रिए रूस से तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर संघ ने एक मूल्य सीमा आरोपित करने की घोषणा की. 

यूक्रेन संकट के कारण कई तटस्थ यूरोपीय देश भी अपने रक्षा तंत्र के पुनर्मूल्यांकन के लिए बाध्य हुए हैं. यह उत्तरी यूरोप की ओर नाटो के विस्तार को संभावनाओं में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था. डेनमार्क, आइसलैंड और नॉर्वे नाटो के मूल हस्ताक्षरकर्ता देश हैं, फिनलैंड 4 अप्रैल 2023 को संगठन में शामिल हुआ और स्वीडन के आवेदन को तुर्की और हंगरी की सहमति मिलना बाकी है. फिनलैंड और स्वीडन (जब वह शामिल हो जाएगा) की आधुनिक सैन्य व असैन्य सुरक्षा क्षमताएं संगठन की ताक़त में और इज़ाफ़ा करेंगी.

नाटो का संभावित विस्तार महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका मतलब होगा कि स्वीडन और फिनलैंड तटस्थता की अपनी रणनीति छोड़ देंगे, जो शुरू से उनकी प्रमुख रक्षा रणनीति रही है. दोनों देशों ने युद्ध क्षेत्रों में हथियारों की आपूर्ति न करने की अपनी नीति को भी पलट दिया है; वे हथियारों के हस्तांतरण के माध्यम से यूक्रेन का समर्थन करने की घोषणा करने वाले पहले देश थे. स्वीडन ने 57.2 करोड़ यूरो (67.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर) की सैन्य सहायता[32]के साथ ही साथ 10,000 एंटी टैंक हथियारों एवं अन्य सैन्य उपकरणों की आपूर्ति की है, जबकि फिनलैंड ने यूक्रेन को सैन्य सहायता की 11 खेपें भिजवाई हैं यानी कुल 18.92 करोड़ यूरो (20.7 करोड़ अमेरिकी डॉलर) की सहायता प्रदान की है.[33]

ऊर्जा के विविधीकरण का मुद्दा

2021 से यूरोपीय संघ के लिए ऊर्जा संबंधित मुद्दे सबसे ज़रूरी मुद्दे रहे हैं. यूक्रेन संकट ने सदस्य देशों की रूसी संसाधनों पर अतिशय निर्भरता को कम करने की आवश्यकता को उजागर किया है. युद्ध की शुरुआत से पहले, 2020-2021 में, संघ अपनी अधिकांश ऊर्जा ज़रूरतों (गैस, कच्चा तेल और कोयला) के लिए रूस से आयात पर निर्भर था.[34]

यूक्रेन संकट ने संघ को अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए रूस से आगे बढ़ने यानी अपने ऊर्जा संसाधनों की विविध बनाने के लिए बाध्य किया है. उसने मास्को के ऊर्जा संसाधनों पर व्यापक प्रतिबंध लगाए हैं, जिसमें हर तरह के कोयले के आयात समेत समुद्री मार्गों के ज़रिए कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति पर प्रतिबंध शामिल हैं. ठीक उसी दौरान, वह संसाधनों के नए आपूर्तिकर्ताओं की भी तलाश कर रहा है, और इस क्रम में उसने अमेरिका, नॉर्वे, कतर, अज़रबैजान और मिस्र जैसे संसाधन संपन्न देशों की ओर कदम बढ़ाए हैं.[35]

अक्षय ऊर्जा की तरफ़ संक्रमण पर फिर से ज़ोर देकर यूरोपीय संघ ने एक महत्वाकांक्षी योजना को भी सामने रखा है ताकि सदस्य देशों पर इस संकट के कारण पड़ने वाले प्रभावों को कम किया जा सके. मार्च 2022 में, RePowerEU योजना का शुभारंभ किया गया, जिसका उद्देश्य 2022 के अंत तक रूस से ऊर्जा आयात में दो तिहाई कटौती करना है. मई 2022 में, एक योजना की घोषणा की गई, जिसके तहत समूह को स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में विस्तार एवं तेजी के माध्यम से अपने ऊर्जा तंत्र में नवीकरणीय ऊर्जा की मात्रा को बढ़ाने की दिशा में काम करने की बात की गई और इस संबंध में एक विस्तृत ख़ाका भी पेश किया गया. 2021 के यूरोपीय संघ ग्रीन डील से आगे बढ़ते हुए RePowerEU की शुरुआत एक महत्वपूर्ण क़दम है, और इसके दायरे में तीन प्रमुख क्षेत्र आते हैं: ऊर्जा बचत, आपूर्ति स्रोतों का विविधीकरण और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर तेज़ गति से संक्रमण.[36] इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए संघ को 2027 तक 210 अरब यूरो (220 अरब अमेरिकी डॉलर) के अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता होगी.[37] इसके अलावा, उसने 2030 तक अपनी नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 1236 गीगावाट करने के अपने लक्ष्य में भी संशोधन किया है.[38]

यूक्रेन संकट के कारण कई तटस्थ यूरोपीय देश भी अपने रक्षा तंत्र के पुनर्मूल्यांकन के लिए बाध्य हुए हैं. यह उत्तरी यूरोप की ओर नाटो के विस्तार को संभावनाओं में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था.

अलग-अलग EU देशों ने भी विविधीकरण के अपने प्रयासों पर ज़ोर दिया है, जहां अफ्रीका जैसे संसाधन संपन्न क्षेत्र को एक प्रमुख विकल्प के रूप में स्वीकार किया गया है; जर्मनी, इटली और पोलैंड ने इस क्षेत्र में कई ऊर्जा परियोजनाओं की घोषणा की है.[39] जर्मनी ने कतर के साथ एक 15 वर्षीय LNG समझौता किया है, और नए LNG टर्मिनलों के निर्माण पर काम शुरू कर दिया है, और सरकार ने इस प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिए लाइसेंसिंग और प्रक्रिया से संबंधित आवश्यकताओं में सुधार लाने के लिए 'LNG एक्सीलरेशन एक्ट' को लागू किया है.[40] इसके अतिरिक्त, दिसंबर में, G7 देशों ने रूसी कच्चे तेल की क़ीमत को एक तय सीमा (60 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल)[41] के भीतर रखने के प्रस्ताव पर सहमति प्रदान की, जहां उनका मकसद बाज़ारों में तेल प्रवाह को बनाए रखते हुए मास्को के राजस्व को सीमित करना है. इसके अतिरिक्त, रूस के ऊर्जा क्षेत्र पर दूरगामी प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिसमें कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों से जुड़े निर्यात शामिल हैं.

मतभेद से जुड़े मुद्दे

जबकि यूरोपीय संघ ने कई क्षेत्रों में एकता का प्रदर्शन किया है, लेकिन सदस्य देशों के बीच आपसी मतभेद बने हुए हैं. हालांकि इन असहमतियों ने समूह के भीतर निर्णय प्रक्रिया को बाधित नहीं किया है लेकिन इनके परिणाम यूरोप को दूरस्थ भविष्य में दिखाई देंगे क्योंकि यह मतभेद रूस के प्रति व्यापक और सुसंगत रणनीति तैयार करने के क्रम में उभरे हैं. वे तीन प्रमुख क्षेत्र, जहां मतभेद की स्थिति बनी हुई है, वे हैं: धारणाओं की लड़ाई, ऊर्जा समस्या, और सुरक्षा नीतियां.

धारणाओं की लड़ाई: पूर्व बनाम पश्चिम का भेद

यूक्रेन युद्ध ने रूस और उससे ख़तरों को लेकर पश्चिमी और पूर्वी यूरोप की धारणाओं में जो मूलभूत अंतर है, उन्हें उजागर किया है. संघर्ष की शुरुआत से, यूरोपीय संघ के देशों में पोलैंड, चेक रिपब्लिक और बाल्टिक देश यूक्रेन के समर्थन में सबसे ज्यादा सक्रिय रहे हैं (उदाहरण के लिए, सैन्य सहायता प्रदान करने और शरणार्थियों के पुनर्वास में). यूक्रेन के हालातों और उसके द्वारा की जा रही कोशिशों को वे कब्ज़े की अपनी विरासत की नज़र से देख और समझ रहे हैं. इसके अलावा, ये देश पश्चिमी यूरोप, विशेष रूप से फ्रांस और जर्मनी को रूसी ऊर्जा संसाधनों पर अत्यधिक निर्भर रहने और रूसी नज़रिए से क्षेत्र को देखने के परिणामों को लेकर लंबे समय से चेतावनी दे रहे थे. ये देश पश्चिमी यूरोपीय देशों के आलोचक रहे हैं, जो मास्को को लेकर व्यापारिक और राजनीतिक तुष्टिकरण के रास्ते पर चलते रहे हैं.[42] विशेष रूप से, फ़रवरी 2020 में संघर्ष की शुरुआत में, जर्मन राष्ट्रपति फ्रैंक-वाल्टर स्टेन्मीयर ने कहा कि उनके देश को "रूसी आक्रामकता को लेकर पूर्वी देशों द्वारा पहले से दी जा रही चेतावनियों को सुनना चाहिए था."[43] यूक्रेन को समर्थन देने के बावजूद, फ्रांस और जर्मनी रूस को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया दी है.[44] जो जाहिराना तौर पर मास्को के साथ संबंधों को बनाए रखने और EU देशों के बीच एकता को बनाए रखने से जुड़ी उनकी उलझनों को दर्शाता है.

भौगोलिक अवस्थिति और ऐतिहासिक अनुभवों से जुड़ी भिन्नताओं के कारण ख़तरे की धारणाएं भी भिन्न-भिन्न हैं और इसलिए भी मतभेद की स्थिति है. पश्चिमी यूरोप के लिए, सुरक्षा संरचना पर किसी भी तरह के विचार का मतलब है कि रूस को किसी न किसी रूप में उसमें शामिल करना, वहीं पूर्वी यूरोप के लिए सुरक्षा का अर्थ संभावित रूसी हमले के विरुद्ध स्वयं का बचाव करना है. पूर्वी यूरोपीय देश, पूर्व में सोवियत संघ से जुड़े अपने अनुभवों के आधार पर ही वर्तमान संघर्ष को देख रहे हैं और अपनी प्रतिक्रिया तय कर रहे हैं. यह इस बात की भी व्याख्या करता है कि क्यों वे चाहते हैं कि इस संघर्ष में नाटो और अमेरिका एक बड़ी भूमिका निभाएं.

संघर्ष की समाप्ति के बाद, यह मतभेद संघ के लिए एक मज़बूत विदेश, सुरक्षा और रक्षा नीति नीति तैयार करने में बाधा खड़ी करेंगे. जर्मनी और फ्रांस के विपरीत, पूर्वी यूरोप रूस को यूरोपीय स्थिरता के लिए ज़रूरी नहीं समझता बल्कि उसे एक ख़तरे के रूप में देखता है. पूर्वी यूरोप के लिए, यह संघर्ष शीत युद्ध की समाप्ति के बाद यूरोप के मानचित्र को फिर से तैयार करने से जुड़ा है.[45]

यूक्रेन युद्ध ने रूस और उससे ख़तरों को लेकर पश्चिमी और पूर्वी यूरोप की धारणाओं में जो मूलभूत अंतर है, उन्हें उजागर किया है. संघर्ष की शुरुआत से, यूरोपीय संघ के देशों में पोलैंड, चेक रिपब्लिक और बाल्टिक देश यूक्रेन के समर्थन में सबसे ज्यादा सक्रिय रहे हैं.

यह रूस को लेकर यूरोपीय संघ के अल्पकालिक और दीर्घकालिक नीतिगत लक्ष्यों को काफ़ी जटिल बना देता है? पूर्वी यूरोपीय देशों ने संघ की अल्पकालिक नीतियों जैसे प्रतिबंधों की घोषणा करने और यूक्रेन का समर्थन करने पर ज़ोर दिया है, वहीं दूरस्थ भविष्य को देखते हुए कई मूलभूत सवालों पर विचार करने की ज़रूरत है, जिसमें- संघर्ष की समाप्ति के बाद यूरोप में रूस के साथ संबंधों का भविष्य; यूरोपीय सुरक्षा तंत्र कैसा होगा और क्या उसमें रूस की जगह होगी और अगर ऐसा होता है तो उसमें रूस की क्या भूमिका होगी; यूक्रेन में पुनर्निर्माण और पुनर्वास के मसले पर हर एक सदस्य की ज़िम्मेदारी का स्तर क्या होगा- जैसे सवाल शामिल हैं.

ऊर्जा का सवाल

हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि यूरोप ने 'ऊर्जा युद्ध' जीत लिया है,[46] जिसके लिए मुख्य रूप से हल्की सर्दियों का मौसम ज़िम्मेदार हैं. इससे पहले के महीने ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दे को लेकर सदस्य देशों के बीच मतभेदों में गुजर गए, ख़ासकर रूसी ऊर्जा पर प्रतिबंधों को लागू करने के सवाल पर. उदाहरण के लिए, रूस से गैस के आयात को कम करना कई यूरोपीय देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है क्योंकि प्राकृतिक गैस पर प्रतिबंध लगाने से ऊर्जा खर्च में और ज्यादा बढ़ जाएगा और इससे उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव पड़ेगा.

मार्च 2022 में, संघ ने यह घोषणा की कि वह एक साल के भीतर रूस से गैस आयात में दो-तिहाई की कटौती करेगा. नवंबर तक, सदस्य देश रूसी गैस पर अपनी निर्भरता को 20 प्रतिशत (2021 में 83 प्रतिशत से) से नीचे लाने में सक्षम थे.[47] इस क्षेत्र में निर्भरता कम करना कठिन प्रतीत होता है, भले ही यूरोपीय संघ के देश बढ़-चढ़कर अमेरिका और कतर जैसे उत्पादकों से समुद्री रास्तों के ज़रिए LNG टैंकरों के आयात में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. लेकिन सस्ते रूसी प्राकृतिक गैस की बजाय LNG के आयात का अर्थव्यवस्था पर अनिवार्य रूप से प्रभाव पड़ेगा क्योंकि ऊर्जा संसाधनों की लागत को वसूल करने के लिए ऊर्जा की क़ीमतों में बढ़ोतरी करनी होगी, जिससे सार्वजनिक ऊर्जा शुल्क पर दबाव बढ़ेगा. इसके अतिरिक्त, LNG प्रवाह में वृद्धि के लिए ऐसे कई विशिष्ट टर्मिनलों की आवश्यकता होगी, जिन्हें चालू होने में दो से पांच साल लग सकते हैं.

रूस से कच्चे तेल के आयात पर प्रतिबंध के सवाल पर भी मतभेद सामने आए. बुल्गारिया, हंगरी, चेक गणराज्य और स्लोवाकिया जैसे सदस्य देशों का अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को देखते हुए यह कहना था कि 2022 के अंत तक रूसी संसाधनों पर निर्भरता समाप्त करने की यूरोपीय आयोग द्वारा प्रस्तावित समयसीमा उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर बेहद बुरा प्रभाव डालेगी. उदाहरण के लिए, हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बन का कहना था कि इन प्रतिबंधों का हंगरी की अर्थव्यवस्था पर "एक परमाणु बम जैसा प्रभाव"[48] होगा और साथ ही उन्होंने तर्क दिया कि ऐसी कार्रवाई "रूस से ज्यादा यूरोप को नुकसान पहुंचाएंगी." इन आपत्तियों के कारण पाइपलाइनों द्वारा आपूर्ति पर रोक न लगाते हुए केवल समुद्री आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया.

प्रतिबंध से जुड़ी इस पूरी प्रक्रिया में, हंगरी एक अपवाद साबित हुआ है: 2021 में एक 15 वर्षीय समझौते पर हस्ताक्षर करने के अलावा, उसने रूस के गाजप्रोम के साथ एक नया समझौता किया है, जिसके तहत उसे प्रतिदिन 58 लाख क्यूबिक मीटर गैस की आपूर्ति की जाएगी.[49] इसके अलावा, हंगरी में अपर्याप्त सुधारों को देखते हुए यूरोपीय संघ आयोग ने उसे दी जाने वाली वित्तीय सहायता को रोकने की अनुशंसा की थी, जिस पर रियायत हासिल करने के लिए बुडापेस्ट ने दिसंबर 2022 में संघ द्वारा यूक्रेन को 18 अरब यूरो (19.7 अरब अमेरिकी डॉलर) के वित्तीय सहायता पैकेज दिए जाने के प्रस्ताव को अवरुद्ध कर दिया.[50] हंगरी द्वारा अपने वीटो को हटाने लेने के बदले, संघ ने उसे कोरोना महामारी से उबरने के लिए 5.8 अरब यूरो (6.3 अरब अमेरिकी डॉलर) के वित्तीय सहायता पैकेज को मंजूरी दी. जनवरी 2023 में, हंगरी ने संघ के प्रतिबंधात्मक उपायों की सूची से 9 लोगों को हटाने की मांग की, जिसने प्रतिबंधों को काफ़ी हल्का कर दिया.[51] इसके अतिरिक्त, जहां हालिया महीनों में ऊर्जा क़ीमतों में तेज़ उछाल के कारण महंगाई काफ़ी ज्यादा बढ़ गई है, जिसके लिए आंशिक रूप से रूस द्वारा यूरोप में गैस आपूर्ति में कटौती का फ़ैसला ज़िम्मेदार है जो उसकी ओर से स्वयं पर लगाए गए प्रतिबंधों के बदले दिया गया ज़वाब है, वहीं ऑर्बन ने संघ के नेताओं को संबोधित करते हुए कहा कि वे इन प्रतिबंधों के कारण प्रत्येक सदस्य देश पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन करें.[52]

हंगरी सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि भले ही नवंबर में आपसी सहयोग के मसले पर नेताओं की बैठक हुई हो, लेकिन वीसैग्रेड समूह (हंगरी, पोलैंड, स्लोवाकिया और चेक रिपब्लिक) के भीतर दरार उभर कर सामने आई हैं.[53] उदाहरण के लिए, पोलैंड और हंगरी कभी क़रीबी सहयोगी थे, लेकिन अब उन्होंने अलग-अलग रास्ते चुने हैं. वारसा अब कीव के सबसे मज़बूत सहयोगियों में से एक है, और रणनीतिकार रूस से अच्छे संबंध बनाए रखने के हंगरी के उद्देश्यों और यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए कुछ प्रतिबंधों का उसके द्वारा विरोध किए जाने की अक्सर आलोचना करते हैं.[54]

सुरक्षा नीति: बयानबाजी बनाम वास्तविक परिस्थिति

संघर्ष के परिणामस्वरूप एकीकृत यूरोपीय रक्षा तंत्र को मज़बूत बनाने को लेकर और ज्यादा बहस हो रही हैं. सदस्य देशों में सुरक्षा मुद्दों की बहुआयामी प्रकृति को लेकर समझ का विस्तार हुआ है, जिससे वे अपनी रक्षा क्षमताओं का आकलन कर सकते हैं. हालांकि, यह देखा जाना बाकी है कि क्या इस स्थिति को बनाए रखा जा सकता है या नहीं. इस संबंध में प्रमुख रूप से दो सवाल सामने आते है:

सबसे पहला सवाल यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति का है. संकट के दौरान, संघ के देशों की सुरक्षा नीतियों में बहुत बड़ा बदलाव देखा गया, जिसका एक प्रमुख परिणाम यूक्रेन को हथियारों की घोषणा के रूप में सामने आया. हालांकि, बयानबाजियों और वास्तविक परिस्थितियों में बड़ा फ़र्क है. यूक्रेन को अधिकांश हथियारों की आपूर्ति यूनाइटेड किंगडम, पोलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा की गई है, जबकि शेष रूप अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में असमर्थ रहे हैं(चित्र 1 और 2 देखें). हथियारों की आपूर्ति की घोषणाओं और वास्तविक आपूर्ति के बीच का अंतराल सबसे ज्यादा पश्चिमी यूरोपीय देशों के मामले में देखने को मिलता है, जिसमें जर्मनी शामिल है. फ़रवरी 2022 में, जर्मन चांसलर ओलाफ स्कूल्ज़ ने यूक्रेन के समर्थन की घोषणा की, जिसके लिए उन्होंने युद्ध क्षेत्रों में मारक हथियारों की आपूर्ति नहीं करने की नीति को उलट दिया. लेकिन उसके बाद से, यूक्रेन को भारी हथियार प्रदान मुहैया कराने के मुद्दे पर जर्मनी की रवैया अस्थिर रहा है, जहां उसने ज़ोर देते हुए कहा है कि "जर्मनी अकेले नहीं चलेगा".[55] जर्मनी को धीमी आपूर्ति के लिए भारी आलोचना का सामना करना पड़ा है, जहां उसने 62 करोड़ यूरो मूल्य के उपकरणों की आपूर्ति का वादा करने के बदले महज़ 29 करोड़ यूरो मूल्य के उपकरण वितरित किए है.

 

चित्र 1: यूक्रेन को की गई हथियार आपूर्ति: घोषित मात्रा बनाम वास्तविक मात्रा (24 जनवरी 2022 से 15 जनवरी 2023 तक)

Eu After The Ukraine Crisis121535

 

स्रोत: कील इंस्टीट्यूट फॉर द वर्ल्ड इकोनॉमी[56]

चित्र 2: यूक्रेन को दी गई सरकारी सहायता: घोषित राशि बनाम वास्तविक राशि (अरब यूरो में)

Eu After The Ukraine Crisis121535

स्रोत: कील इंस्टीट्यूट फॉर द वर्ल्ड इकोनॉमी[57]

पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा यूक्रेन को हथियार आपूर्ति किए जाने का फ़ैसला एक प्रतिक्रियावादी नीति जैसा प्रतीत होता है, जहां हाल ही में यूक्रेन के वायु रक्षा बेड़े को मज़बूत बनाने की घोषणा की गई थी. फिर भी, पिछले 30 सालों से पश्चिम में रक्षा क्षेत्र में मितव्ययिता भरे उपाय लागू किए जा रहे हैं, इसके अलावा, गोला-बारूद के घटते भंडार के चलते यूक्रेन को हथियार आपूर्ति करने की मौजूदा क्षमता में गिरावट आई है.

दूसरा एक बड़ा मुद्दा नाटो देशों द्वारा किया जाने वाला रक्षा व्यय है. 2024 तक अपने GDP (सकल घरेलू उत्पाद) के 2 प्रतिशत हिस्से को रक्षा व्यय के लिए संरक्षित करने का मुद्दा संगठन के लिए सालाना चिंता का विषय रहा है. क्रीमिया संकट के बाद 2014 के वारसा शिखर सम्मेलन में यह फ़ैसला लिया गया था, लेकिन हालिया आंकड़ों से ये पता चलता है कि 30 नाटो देशों में से सिर्फ़ 9 देश ही इस लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम रहे हैं (चित्र 3 देखें).

चित्र 3: NATO देशों द्वारा किया जाने वाला रक्षा व्यय (2014 और 2022)

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स्रोत: NATO[58]

पूर्वी और पश्चिमी यूरोपीय देशों के बीच रक्षा खर्च को लेकर स्पष्ट विभाजन है. जबकि पूर्वी यूरोपीय देशों ने रूस से ख़तरे की आशंका को देखते हुए लगातार अपनी रक्षा क्षमता को बढ़ाने की दिशा में काम किया है, वहीं पश्चिमी यूरोपीय देश वर्षों से रक्षा में विनिवेश को बढ़ावा देते आ रहे हैं. वर्तमान संकट के दौरान, उनकी महत्वपूर्ण रक्षा क्षमताओं में कमी, सीमित आयुध भंडार और सैन्य बलों की सीमित तैयारी को देखते हुए यह बात अपने आप उजागर होती है.[59] जबकि यूरोपीय संघ और उसके सदस्य देशों ने अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कई उपाय किए हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें अधिग्रहण, खरीद, योग्यता और क्षमता निर्माण की दिशा में निरंतर और दीर्घकालिक प्रयास करने होंगे.

संघर्ष के एक साल: यूरोपीय संघ पर पड़ने वाले प्रभाव

यूक्रेन संघर्ष के मसले पर सदस्यों के बीच आपसी सहमति बनाने में भले ही कठिनाइयां आई हों लेकिन यूरोपीय संघ ने अपनी एकता दिखाई है.[60] इस संकट के कारण राजनीतिक रूप से तटस्थ यूरोपीय देश भी अपने रुख पर दोबारा विचार करने, नाटो की सुरक्षा और डिटेरेंस को मज़बूत करने को बाध्य हुए हैं. यूरोपीय संघ के सदस्य देश भी अपनी आंतरिक रक्षा प्रणाली के साथ-साथ समूह के संरचनागत ढांचे को सुदृढ़ करने पर ध्यान दे रहे हैं. ऐसा लगता है कि यूरोपीय संघ के भीतर एक नए रणनीतिक दृष्टिकोण ने जन्म लिया है, जहां नए रणनीतिकार संघ की नीतियों और उसके पक्ष को प्रभावित कर रहे हैं. हालांकि, संकट के दौरान दिखाई गई एकता के बावजूद, आर्थिक मोर्चे पर सुधार, सुरक्षा संरचना या यूक्रेन के पुनर्निर्माण के संदर्भ में व्यापक नीतिगत दृष्टिकोणों पर अभी तक अमल नहीं किया गया है. ठीक उसी समय, जबकि परमाणु हमले संबंधी बयानबाजी लगातार बढ़ती जा रही है, ऐसे में ज़रा सी चूक से स्थिति के काफ़ी ज्यादा बिगड़ जाने की पूरी संभावना है. फिर भी, यूरोपीय संघ पर पड़ने वाले कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव ये हैं:

सबसे पहला सवाल यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति का है. संकट के दौरान, संघ के देशों की सुरक्षा नीतियों में बहुत बड़ा बदलाव देखा गया, जिसका एक प्रमुख परिणाम यूक्रेन को हथियारों की घोषणा के रूप में सामने आया.

  • यूक्रेन नीति के केंद्र में ब्रसेल्स से लेकर वारसा तक रहा है, जो इस संबंध में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन है. यूक्रेन संघर्ष ने इस बदलाव को और ज्यादा हवा दी है, जहां मध्य एवं पूर्वी यूरोप के सदस्य देश महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. संघर्ष के शुरुआती दौर में, जहां एक ओर पश्चिमी देशों की ओर से नीतिगत शून्यता की स्थिति थी, वहीं दूसरी ओर पोलैंड और बाल्टिक देशों के नेतृत्व में यूक्रेन के पक्ष में नीतियां तैयार की गयी. उन्होंने कीव को सैन्य सहायता प्रदान की, शरणार्थियों का स्वागत किया, सहायता के प्रति समर्थन जुटाने की कोशिश की और वृहद यूरोप की तरफ़ से विमर्श को पेश किया. इस संघर्ष ने रूस से ख़तरे से संबंधित कई चिंताओं को सही साबित किया है, लेकिन फिलहाल कुछ समय तक के लिए यूक्रेन के मामले में यूरोपीय संघ की नीतियों पर इन्हीं देशों का नियंत्रण बना रहेगा. हालांकि, दूरस्थ भविष्य में, क्या वे अर्थव्यवस्था में सुधार, यूक्रेन के पुनर्निर्माण और रूस के साथ शांति से संबंधित मामलों पर नीति निर्माण में सक्षम होंगे, यह देखना अभी बाकी है. संक्षेप में कहें, तो भले ही संघ के भीतर शक्ति परिवर्तन को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है लेकिन जैसे ही संघर्ष संबंधी चिंता ख़त्म होगी, इस स्थिति के हमेशा बने रहने के आसार नहीं हैं.
  • जबकि, यूक्रेन के प्रति समर्थन जारी है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि युद्ध और संघर्ष की बजाय अब इस बात पर बहस की जा रही है कि यह युद्ध अभी और कितने लंबे समय तक खींचने वाला है और इसके स्थाई प्रभाव क्या होंगे? जिस तरह से नागरिक आसमान छूती महंगाई, ऊर्जा की बढ़ी हुई क़ीमतों और खाद्य असुरक्षा से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उसके परिणामस्वरूप यूरोपीय संघ के देशों में विरोध प्रदर्शन और हड़ताल किए जा रहे हैं,[61] जहां राष्ट्रीय सरकारों और संघ से त्वरित आर्थिक कार्रवाई की मांग की जा रही है.
  • यूरोपीय लोकतंत्र कितना मज़बूत है इसका परीक्षण इस बात से किया जाएगा कि आखिर उसमें संघर्ष के प्रति जनता का समर्थन जुटाने की कितनी क्षमता है. इसका प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन, आर्थिक स्थिरता, महंगाई और ऊर्जा संकट जैसी विविध नीतिगत प्राथमिकताएं हैं. इतनी विविध प्राथमिकताओं के चलते बड़ी संभावना है कि राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा मिले, जिससे अर्थव्यवस्थाएं और ज्यादा प्रभावित होंगी, जो पहले से ही बढ़ती ऊर्जा क़ीमतों, प्रवासन और युद्ध के कारण सुस्त पड़ चुकी हैं. चूंकि यूरोपीय संघ और सदस्य देशों के बीच मतभेद की स्थिति है, इसलिए संघ के लिए रूस पर एक आम राय जुटाना काफ़ी मुश्किल होगा.
  • संघर्ष की शुरुआत के बाद से, यूरोप में क्षेत्रीय, आर्थिक और राजनीतिक मोर्चों पर सुरक्षा के मामले में काफ़ी व्यापक परिवर्तन देखने को मिले हैं. संघ के ज्यादातर सदस्य देश अपनी रक्षा क्षमताओं का आकलन कर रहे हैं और साथ ही उन्होंने घोषणा की है कि वे अपने एवं संघ के राष्ट्रीय रक्षा बजट और रक्षा उद्योग को नए सिरे से मज़बूत बनाना चाहते हैं. इसके अलावा, उन्होंने यूक्रेन की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए पर्याप्त सैन्य सहायता देने का भी वादा किया है. हालांकि, ऐसी स्थिति में कई ज़रूरी सवाल खड़े होते हैं: कीव को क्या वादे किए गए हैं और अभी तक उसके लिए क्या किया गया है? सदस्य देशों की रक्षा स्थिति और आयुध भंडार को देखते हुए क्या उनमें इतनी क्षमता है कि वे आगे भी यूक्रेन का समर्थन जारी रख पाएंगे? यूक्रेन संकट के परिणामस्वरूप कई सदस्य देशों ने अपनी मौजूदा रक्षा क्षमताओं और उसकी सीमाओं का आकलन किया है, और संघ के भीतर सुधार को लेकर बातचीत की है. हालांकि यह देखना अभी बाकी है कि यह प्रयास लंबी अवधि तक जारी रहते हैं या फिर थोड़े समय तक के लिए ही हैं.
  • इस बात को लेकर भी सवाल बढ़ते जा रहे है कि प्रतिबंध वाकई में कारगर साबित हो रहे हैं या नहीं. उदाहरण के लिए, जबकि यूरोपीय संघ ने रूसी ऊर्जा स्रोतों पर प्रतिबंध लगा दिया है और मास्को की बजाय दूसरे देशों के साथ व्यापार को प्रश्रय दिया है, वहीं रूस द्वारा रियायती दरों पर तेल की बिक्री किए जाने से वह उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक हॉटस्पॉट बन गया है. चीन, भारत और तुर्की जैसे देशों में इसका निर्यात कई गुना बढ़ गया है, जिससे प्रतिबंधों से पड़ने वाले प्रभावों को लेकर सवाल खड़े होते हैं. ख़ासकर यह ध्यान देने योग्य बात है कि 2022 में रूसी अर्थव्यवस्था में 1 प्रतिशत का संकुचन आया है, जो अनुमान से काफ़ी कम है.[62] इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि वस्तुओं के निर्यात से 2023 में रूसी अर्थव्यवस्था में 0.3 प्रतिशत का उछाल आएगा. उन देशों के साथ रूस के ऊर्जा व्यापार को नियंत्रित करने की पश्चिम की क्षमता को लेकर भी सवाल खड़े होते हैं, जो प्रतिबंधों के दायरों से बाहर हैं.

निष्कर्ष

यूक्रेन में रूसी गतिविधियों ने यूरोपीय संघ के देशों द्वारा दी गई प्रतिक्रियाओं की तुलना में कहीं अधिक सवाल उठाए हैं. ऐसा लगता है कि यूरोपीय संघ की नीति निर्माण प्रक्रिया में संघर्ष के खिलाफ़ किसी दीर्घकालिक प्रभावी रणनीति को शामिल नहीं किया   है. हालांकि, जैसे जैसे यह संकट तेज हमलों और एक-दूसरे को घुटने के बल झुकाने के युद्ध प्रयासों में तब्दील होता जा है, यह देखना बाकी है कि यूरोपीय संघ के देश आखिर किस प्रकार रूस के साथ संबंधों के भविष्य, यूक्रेन के पुनर्निर्माण और और यूरोपीय संघ के आर्थिक आर्थिक पुनर्गठन से जुड़े जटिल सवालों के विश्वसनीय समाधान ढूंढ़ते हैं.

संघर्ष की शुरुआत के बाद से, यूरोप में क्षेत्रीय, आर्थिक और राजनीतिक मोर्चों पर सुरक्षा के मामले में काफ़ी व्यापक परिवर्तन देखने को मिले हैं. संघ के ज्यादातर सदस्य देश अपनी रक्षा क्षमताओं का आकलन कर रहे हैं. 

इस संकट ने ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा व्यय, यूक्रेन को सैन्य एवं वित्तीय सहायता और प्रतिबंधों से संबंधित मुद्दों पर आम सहमति बनाने की यूरोपीय संघ के देशों की क्षमता को उजागर किया है. ठीक उसी समय, अलग-अलग राष्ट्रीय हितों और रणनीतिक दृष्टिकोणों के चलते सदस्य देशों के बीच मतभेद की कुछ स्थितियां उभरी हैं. हालांकि इसके कारण यूरोपीय संघ के टूटने की संभावना नहीं है, लेकिन इससे पूर्वी और पश्चिम यूरोप के बीच असंतोष को बढ़ावा मिल सकता है. रूस नीति और यूक्रेन नीति के बीच संतुलन को बनाए रखना दीर्घकालिक रूप से चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन यूरोपीय सुरक्षा के भविष्य के लिए दोनों प्रयास आवश्यक होंगे.


Endnotes

[a] The Warsaw Treaty Organization (also known as the Warsaw Pact) was a political and military alliance established in May 1955 between the Soviet Union and several Eastern European countries. The original signatories to the Warsaw Pact were the Soviet Union, Albania, Poland, Czechoslovakia, Hungary, Bulgaria, Romania, and the German Democratic Republic.

[b] The European Peace Facility (EPF) is an off-budget funding mechanism for EU actions, with military and defence implications under the Common Foreign and Security Policy. The EPF consists of two pillars, one for military operations and one for assistance measures. For more details, see

[c] The Strategic Compass outlines the EU’s plan of action to strengthen its security and defence policy by 2030.The Strategic Compass provides a shared assessment of the strategic environment in which the EU is operating, and of the threats and challenges it faces. The document makes proposals, with a timetable for implementation, to improve the EU's ability to act decisively in crises and to defend its security and its citizens. For more details, see

[d] Eurobarometer surveys measure public opinion in the EU member states.

[1] Ajay Bisaria and Ankita Dutta, “Where is the clamour for getting Russia and Ukraine off the ramp?”, Expert Speak, November 5, 2022, ORF.

[2] Valdimir Putin, “On the Historical Unity of Russians and Ukrainians”, Kremlin, July 12, 2021.

[3]Agreement on measures to ensure the security of The Russian Federation and member States of the North Atlantic Treaty Organization”, The Ministry of Foreign Affairs, Russia, December 17, 2021.

[4]Speech and the Following Discussion at the Munich Conference on Security Policy”, Kremlin, February 10, 2007.

[5]US, NATO deliver written replies to Russia on security demands”, Politico, January 26, 2022.

[6] Press statement, “President Charles Michel of the European Council and President Ursula von der Leyen of the European Commission on Russia's unprecedented and unprovoked military aggression of Ukraine”, European Council, February 24, 2022.

[7]EU solidarity with Ukraine”, Council of Europe, 2022.

[8] Press release, “Ukraine: Commission proposes temporary protection for people fleeing war in Ukraine and guidelines for border checks”, European Commission, March 2, 2022.

[9] Press release, “Ukraine: Council agrees on further military support under the European Peace Facility”, Council of Europe, February 2, 2023.

[10]Denmark votes to drop EU defence opt-out in 'historic' referendum”, BBC, June 1, 2022.

[11]Timeline of Restrictive Measures Against Russia over Ukraine”, European Council, March 3, 2014-Present.

[12]EU sanctions against Russia explained”, European Council, 2022.

[13]Key challenges of our times - the EU in 2022”, Eurobarometer Survey, June 2022.

[14] Press Release, “Ukraine: EU agrees fifth package of restrictive measures against Russia”, European Commission, April 8, 2022.

[15]  Kate AbnettJan Strupczewski and Ingrid Melander, “EU agrees Russia oil embargo, gives Hungary exemptions; Zelenskiy vows more sanctions”, Reuters, June 1, 2022.

[16] Press Release, “EU adopts its latest package of sanctions against Russia over the illegal annexation of Ukraine's Donetsk, Luhansk, Zaporizhzhia and Kherson regions”, European Council, October 6, 2022.

[17] Press Release, “Russia’s war of aggression against Ukraine: the EU blacklists additional 141 individuals and 49 entities”, European Council, December 16, 2022.

[18]EU leaders meet in Versailles to discuss the Ukraine war and energy independence”, Euronews, March 10, 2022.

[19]A Strategic Compass for Defence and Security”, Europe External Action Service, March 2022.

[20] Press Release, “EU steps up action to strengthen EU defence capabilities, industrial and technological base: towards an EU framework for Joint defence procurement”, European Commission, May 18, 2022.

[21]Joint procurement: EU Task Force presents conclusions of first phase”, European Defence Agency, October 14, 2022.

[22] David Hutt, “Central and Eastern Europe want more security clout. Will increased spending be enough?”, Euronews, February 14, 2023.

[23]Ireland defence spending to grow to €1.5bn by 2028”, BBC, July 12, 2022.

[24]Policy statement by Olaf Scholz, Chancellor of the Federal Republic of Germany and Member of the German Bundestag”, The Federal Government, Berlin, February 27, 2022.

[25]Press conference by NATO Secretary General Jens Stoltenberg”, Extraordinary Summit of NATO Heads of State and Government, NATO, March 24, 2022.

[26]NATO 2022 Strategic Concept - Madrid Summit”, NATO, June 2022.

[27]Sweden will allocate an additional €17.9 million to support Ukraine”, December 27, 2022.

[28]Finland sends 11th military aid package to Ukraine”, Euractiv, December 22, 2022.

[29]In focus: Reducing the EU’s dependence on imported fossil fuels”, European Commission, Brussels, April 20, 2022.

[30]What are Europe's energy alternatives now that Russian gas is off the cards?”, Euronews, April 27, 2022.

[31] Press Release, “REPowerEU: A plan to rapidly reduce dependence on Russian fossil fuels and fast forward the green transition”, European Commission, May 18, 2022, Brussels.

[32] Stuart Lau, “‘We told you so!’ How the West didn’t listen to the countries that know Russia best”, Politico, March 9, 2022.

[33]German President Steinmeier admits mistakes over Russia”, DW, May 4, 2022.

[34] Judy Dempsey, “Are France and Germany Wavering on Russia?”, Carnegie Europe, December 8, 2022.

[35] Judy Dempsey, ‘The High Price of German Hesitancy’, Carnegie Europe, April 12, 2022.

[36] Dr Fatih Birol, “Where things stand in the global energy crisis one year on”, Commentary International Energy Agency, February 23, 2023.

[37]Where does the EU’s gas come from?”, European Council, 2022.

[38] Zoltan Simon, “Orban Says Russian Oil Ban Would be ‘Nuclear Bomb’ For Economy”, Bloomberg, May 6, 2022.

[39]Ukraine war: Hungary blocks €18 billion in aid for Kyiv and deepens rift with EU”, Euronews, December 7, 2022.

[40]Hungary Looks To Remove Nine People From EU Sanctions List Imposed In Wake Or Russia Invasion Of Ukraine”, Radio Free Europe, January 17, 2023.

[41]  Alexandra Brzozowski, “Hungary to call for discussion on Russia sanctions impact”, Euractiv, December 20, 2022.

[42]Shaky V-4 seeks common ground on Ukraine migration”, Euractiv, November 25, 2022.

[43] Paola Tamma, “Poland and Hungary: How a love affair turned toxic”, Politico, November 29, 2022.

[44]Scholz says Berlin will not go it alone as pressure mounts to supply Kyiv tanks”, Reuters, January 10, 2023.

[45] Christoph Trebesch, Arianna Antezza, Katelyn Bushnell, André Frank, Pascal Frank, Lukas Franz, Ivan Kharitonov, Bharath Kumar, Ekaterina Rebinskaya and Stefan Schramm, “The Ukraine Support Tracker: Which Countries Help Ukraine and How?”, Working Paper No. 2218, Kiel Institute for the World Economy, Kiel, February 2023, Pg. 40

[46] Christoph Trebesch, Arianna Antezza, Katelyn Bushnell, André Frank, Pascal Frank, Lukas Franz, Ivan Kharitonov, Bharath Kumar, Ekaterina Rebinskaya and Stefan Schramm, “The Ukraine Support Tracker: Which Countries Help Ukraine and How?”, pg. 33

[47]Defence Expenditure of NATO Countries (2014-2022)”, NATO, 27 June 2022.

[48] William Runkel and Tony Lawrence, “Defence Spending: Who Is Doing What?”, Commentary, International Centre for Defence and Security, February 9, 2023.

[49] Efi Koutsokosta and Jorge Liboreiro, “Keeping EU unity over the Ukraine war 'has not always been easy,' Josep Borrell admits”, Euronews, February 16, 2023.

[50]Factbox: Strikes, protests in Europe over cost of living and pay”, Reuters, November 7, 2022.

[51] Beth Timmins and Ben King, “Russia's economy shrinks by less than expected”, BBC, February 20, 2023.

[52] Pierre Briancon, “The IMF’s outlook on Russia is too rosy to be true”, Reuters, February 10, 2023.

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