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चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के निवेश में वर्ष 2019 के बाद से पांच फीसद की गिरावट आई है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल में बांग्लादेश के वित्त मंत्री मुस्तफा कमाल ने बीआरआई पर चेतावनी दी थी.
चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के निवेश में वर्ष 2019 के बाद से पांच फीसद की गिरावट आई है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल में बांग्लादेश के वित्त मंत्री मुस्तफा कमाल ने बीआरआई पर चेतावनी दी थी. बांग्लादेश ने विकासशील देशों को चेतावनी देते हुए कहा था कि दुनिया में जो हालात चल रहे हैं, उसको देखकर लगता है कि हर कोई बीआरआई को स्वीकार करने से पहले दो बार सोचेगा. श्रीलंका और जिम्बाबे का हाल दुनिया ने देख ही लिया है. इसके बाद चीन के बीआरआई परियोजना पर सवाल उठ रहे हैं. उनके इस बयान के बाद चीन बचाव की मुद्रा में है. चीन ने कहा कि बीआरआई से फायदे हुए हैं. चीन का दावा है कि बीआरआई के तहत दिए जाने वाले लोन सस्ती दरों पर दिए गए हैं. इस कड़ी में जानेंगे कि खुद कैसे चीन इस परियाेजना से चिंतित है. क्या है उसकी कर्ज नीति. भारत का इस परियोजना से क्या लिंक है. अमेरिका कैसे इस परियोजना के लिए बड़ी चुनौती पेश कर रहा है.
इस कड़ी में जानेंगे कि खुद कैसे चीन इस परियाेजना से चिंतित है. क्या है उसकी कर्ज नीति. भारत का इस परियोजना से क्या लिंक है. अमेरिका कैसे इस परियोजना के लिए बड़ी चुनौती पेश कर रहा है.
1- अमेरिका के एक रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल चीन की बीआरआई परियोजना खतरे में दिखती है. उसे कई देशों में राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है. चीन का प्रभाव बढ़ने और अपने देश के कर्ज जाल में फंसने की आशंका ने वहां बीआरआई के खिलाफ जनमत बना दिया है. इस स्थिति को अमेरिका और उसके साथी देशों के लिए एक अवसर माना जा रहा है.
2- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि बीआरआई परियोजना का संकट बढ़ता जा रहा है. बीआरआई परियोजनाओं को छिपे कर्ज की समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है. इन परियोजनाओं के निर्माण के लिए सरकारों ने जो कर्ज लिया है, उसके आंकड़े मौजूद हैं. लेकिन इन कार्यों से जुड़ी निजी कंपनियों ने जो कर्ज लिए हैं, उनके आंकड़े अकसर सामने नहीं आते. एक अनुसंधान के दौरान पाया कि 35 फीसद बेल्ट एंड रोड परियोजनाएं किसी न किसी प्रकार की अमल संबंधी चुनौतियों का सामना कर रही हैं. पर्यावरण संबंधी हादसों, भ्रष्टाचार घोटालों और श्रम कानून के उल्लंघन जैसे मामले खड़े होने से इन परियोजनाओं के आगे मुश्किलें पेश आई हैं.
3- चीन की परियोजना वर्ष 2013 में शुरू की गई एक मल्टी-अरब डालर की योजना है. इसका मकसद दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को भूमि एवं समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है. इसका उद्देश्य विश्व में बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को शुरू करना है जो बदले में चीन के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाएगा. रेलवे, बंदरगाह, राजमार्ग और अन्य बुनियादी ढांचे जैसी बीआरआई परियोजनाओं में सहयोग करने के लिए सौ से अधिक देशों ने चीन के साथ एक करार पर हस्ताक्षर किए हैं.
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और बलूचिस्तान से होकर गुजरता है. दोनों ही क्षेत्र लंबे समय से विद्रोह के केंद्र हैं, जहां भारत को आतंकवाद एवं सुरक्षा जोखिमों का सामना करना पड़ता है.
4- बीआरआई के तहत प्रमुख मार्गों में न्यू सिल्क रोड इकोनामिक बेल्ट है. इसके जरिए चीन, म्यांमार एवं भारत के माध्यम से यूंरेशिया तक पहुंच बनाने का इच्छुक है. मैरीटाइम सिल्क रोड भी इस परियोजना का हिस्सा है. यह दक्षिण चीन सागर से शुरू होकर भारत-चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया की ओर जाती है और फिर हिंद महासागर के आसपास अफ्रीका एवं यूरोप तक पहुंचती है.
विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि यह परियोजना भारत के सामरिक हितों के विपरीत है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और बलूचिस्तान से होकर गुजरता है. दोनों ही क्षेत्र लंबे समय से विद्रोह के केंद्र हैं, जहां भारत को आतंकवाद एवं सुरक्षा जोखिमों का सामना करना पड़ता है. CPEC दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हितों को बाधित करेगा और कश्मीर विवाद मामले में पाकिस्तान को वैधता प्रदान करने में सहायक हो सकता है. CPEC को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने का प्रयास अफगानिस्तान के आर्थिक, सुरक्षा और रणनीतिक साझेदार के रूप में भारत की स्थिति को कमजोर कर सकता है.
चीन ने भारत के पड़ोसी मुल्क नेपाल में अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road initiative- BRI) बीआरआई प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाने के लिए एक नया समझौता कर लिया है. चीन और नेपाल की यह निकटता भारत को चिंता में डाल सकती है. दक्षिण एशिया के कई मुल्क इस परियोजना का हिस्सा बन चुके हैं. चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना में कई देश चीन के कर्ज में डूब चुके हैं. दुनिया ने चीन की खतरनाक लोन डिप्लोमेसी के परिणाम श्रीलंका और पाकिस्तान में देख लिया है.
चीन और नेपाल की यह निकटता भारत को चिंता में डाल सकती है. दक्षिण एशिया के कई मुल्क इस परियोजना का हिस्सा बन चुके हैं. चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना में कई देश चीन के कर्ज में डूब चुके हैं.
प्रो पंत का कहना है कि चीनी परियोजना को लेकर गहरा रहे सवाल अमेरिका के लिए एक मौका है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने गरीब देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण पर अरबों डालर खर्च करने का इरादा जताया है. इस वर्ष जून में उन्होंने जी-7 नेताओं के साथ अपनी शिखर बैठक के दौरान इस कार्य में 600 बिलियन डालर के निवेश का वादा किया. उसमें 200 बिलियन डालर का निवेश अकेले अमेरिका करेगा. प्रो पंत ने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने पद संभालने के तुरंत बाद चीनी परियोजना का जवाब देने की तैयारी शुरू कर दी थी. 2021 में जी-7 नेताओं के साथ मिल कर उन्होंने बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड नाम की परियोजना शुरू करने का ऐलान किया था.
यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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