Issue BriefsPublished on Jun 15, 2023
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सर्विस-सोसाइटी फिट: सार्वजनिक हित की टेक्नोलॉजी तैयार करने के लिए एक सरकारी ढांचे का स्वरूप

दुनिया के तमाम देशों की सरकारें सेवाओं के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ा रही है. इस प्रक्रिया में कई स्थानों पर सरकारें इंटरनेट पर केंद्रित समाधान ढूंढे जाने की क़वायद के नुक़सानों से बचाव कर पाने में नाकाम साबित हो रही हैं. इससे सार्वजनिक व्यय पर बोझ बढ़ जाता है. इस मसले से बचने के लिए G20 ने 2018 में सरकारी डिजिटल सिद्धांतों को लागू किया था. इसमें बाज़ार की अगुवाई वाले मानकों के इस्तेमाल के ज़रिए डिजिटल प्रशासकीय ढांचा मुहैया कराए जाने की अहमियत को स्वीकार किया गया था. ऐसा करते हुए सरकार को ‘सर्विस-सोसाइटी फ़िट’ ढांचे को अपनाना चाहिए, जो ‘उत्पाद-बाज़ार फ़िट’ की धारणा पर एक सुधार है. इसे स्टार्ट-अप दायरे में नवाचार की योजना बनाने की प्रक्रिया के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता रहा है. यही वजह है कि अफ़सरशाही द्वारा तैयार की गई डिजिटल टेक्नोलॉजी, सार्वजनिक ज़रूरतों की मज़बूती से पुष्टि किए जाने की प्रक्रिया के ज़रिए गुज़रेगी. इस रूपरेखा को ठोस नीति या सरकारी अभ्यास में बदलने के लिए G20 को अपने डिजिटल अर्थव्यवस्था कार्य समूह (DEWG) के ज़रिए इसे पूरी सक्रियता के साथ बढ़ावा देना चाहिए.

Attribution:

एट्रीब्यूशन: अरसी प्रदान, “सर्विस-सोसाइटी फ़िट: ए गवर्नमेंटल फ़्रेमवर्क फ़ॉर डिज़ाइनिंग पब्लिक-इंट्रेस्ट टेक्नोलॉजी,” T20 पॉलिसी ब्रीफ़, मई 2023.

चुनौती

स्टार्ट-अप डोमेन में वृद्धि ने डिजिटलीकरण में योगदान दिया है. आज दुनिया के 154 देशों ने डिजिटलीकरण से जुड़े अपने प्रयासों के प्रबंधन के लिए एक समर्पित सरकारी निकाय की स्थापना कर ली है.[i] ज़्यादातर उपयोगकर्ता रोज़ाना छह घंटे और 43 मिनट ऑनलाइन ख़र्च कर रहे हैं[ii], ऐसे में डिजिटल सेवाओं का आग़ाज़ नागरिकों तक निरंतर पहुंच बनाने के लिहाज़ से समझदारी भरा दृष्टिकोण बन गया है. 2006 से 2016 के बीच 138 विकसित और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के अध्ययन में ये पाया गया कि डिजिटल दृष्टिकोण से सरकारी सेवाओं की प्रभावशीलता में वृद्धि हुई है. ख़ासतौर से विकसित दुनिया में ये परिणाम देखने को मिले हैं.[iii]

बहरहाल, दुनिया की अनेक सरकारें (जिनमें G20 के देश भी शामिल हैं) अब भी ‘नेट-केंद्रित समाधानवाद’ से जुड़े नुक़सानों के जाल में फंसी हैं. तकनीक से जुड़ी नीतियों पर लिखने वाले लेखक एवगेनी मोरोज़ोव ने 2013 में इस शब्दावली को गढ़ा था. नवाचारकर्ताओं यानी इनोवेटर्स द्वारा हर समस्या के समाधान के लिए इंटरनेट-आधारित टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से जुड़े रुझान के संदर्भ में ये बात कही गई थी.[iv] सरकारें तकनीकी समाधान पेश करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं. इसके लिए ज़्यादातर डिजिटल ऐप्लिकेशंस (ऐप्स) का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस सिलसिले में हम इंडोनेशिया की मिसाल ले सकते हैं. इंडोनेशियाई वित्त मंत्रालय के मुताबिक वहां विभिन्न कार्यालयों द्वारा कम से कम 24,000 ऐप्स विकसित किए गए हैं.[v] हालांकि इनमें से कई ऐप्स ख़राब तरीक़े से बनाए गए हैं और उनका रखरखाव सही ढंग से नहीं हो रहा. उनके विकास को अक्सर तीसरे पक्ष के साथ सहभागिता के ज़रिए समयबद्ध रूप से चलाई जाने वाली परियोजना के तौर पर देखा जाता है. इनके रख-रखाव के लिए किसी समर्पित संगठन की स्थापना से जुड़ी क़वायद नहीं की जाती. इनमें से कई ऐप्स के उपयोगकर्ताओं की संख्या भी ज़्यादा नहीं है, लिहाज़ा वो अपने शुरुआती मक़सद को पूरा कर पाने में ही नाकाम रहते हैं. ये रुझान दुनिया भर (ख़ासतौर से विकासशील देशों) में दिखाई दे रहे हैं.[vi] चूंकि ऐसे ऐप्स के विकास का ख़र्च सार्वजनिक व्यय से जुटाया जाता है, लिहाज़ा इन्हें जनता द्वारा चुकाए गए टैक्स की बर्बादी के तौर पर देखा जा सकता है.

इन विफलताओं की संभावनाओं को कम करने के लिए G20 को सरकारी नवाचार के लिए बुनियादी नियमों को रफ़्तार देनी चाहिए. ख़ासतौर से सरकारी सेवा और सार्वजनिक हित के लिए तकनीकी समाधान तैयार करने को लेकर ऐसी क़वायद की जानी चाहिए. डिजिटलीकरण पर होने वाले निवेश से मिलने वाले फ़ायदों को नीतिगत सुधारों के ज़रिए अधिकतम स्तर पर पहुंचाया जा सकता है.[vii] ये बुनियादी नियम डिजिटल समाधानों के विकास में होने वाले ग़ैर-ज़रूरी सरकारी ख़र्चों को घटाने का मक़सद पूरा करेंगे. साथ ही अंतिम उत्पाद द्वारा सार्वजनिक ज़रूरतों की पूर्ति किए जाने का लक्ष्य भी सुनिश्चित हो सकेगा.

G20 की भूमिका

G20 के कई सदस्यों ने ऐसे नवाचारों की शुरुआत की, जिन्हें आगे चलकर दूसरे राष्ट्रों ने भी अपना लिया. सरकारी अफ़सरशाही में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल शुरू करने की क़वायद से भी ये बात प्रमाणित हुई है. मिसाल के तौर पर 2011 में यूनाइटेड किंगडम की सरकार सरकारी तंत्र में डिजिटल कायाकल्प का संचालन करने के लिए एक समर्पित संस्था गठित करने वाली पहली सरकार बन गई. इस संस्था को गवर्नमेंट डिजिटल सर्विस (GDS) का नाम दिया गया. अमेरिका ने भी ऐसी ही भूमिका के लिए एक निकाय तैयार किया, जिसे 18F का नाम दिया गया. इस बीच भारत ने बायोमेट्रिक पहचान की सबसे बड़ी प्रणाली का बीड़ा उठाया. ये व्यवस्था देश के सुदूर इलाक़ों में रहने वाले नागरिकों तक पहुंचने में कामयाब रही है.

G20 के लगभग सभी सदस्यों ने अब GovTech परिपक्वता सूचकांक की श्रेणी A में अपना दर्जा मज़बूती से क़ायम कर लिया है.[viii] इससे केंद्रीय सरकारी प्रणालियों को सहारा देने की उनकी क़ाबिलियत के संकेत मिलते हैं. नतीजतन सेवा वितरण को बढ़ावा मिला, नागरिकों के जुड़ाव की क़वायद मुख्यधारा में शामिल हुई और सरकारी तकनीक को समर्थ बनाने वालों को सहारा दिया जा सका है.[ix] सरकारी निकायों में नेट-केंद्रित समाधानवाद के बरक़रार रहने के बावजूद ऐसा लगता है कि ज़्यादातर सदस्य डिजिटल कायाकल्प से जुड़ी प्रक्रिया में विशेषज्ञता हासिल करते जा रहे हैं.

नेट-केंद्रित समाधानवाद से बचने के लिए G20 ने साल 2018 में डिजिटल सरकार के सिद्धांतों की शुरुआत की. इसके तहत खुलेपन, पारदर्शिता और सर्वसम्मति के सिद्धांतों पर सरकारी डिजिटल मानकों के क्रियान्वयन को प्रोत्साहित किया जाता है. इन सिद्धांतों को समूह के तमाम सदस्यों के अनुभवों और वहां अमल में लाए गए बेहतरीन अभ्यासों के साथ मिलाकर G20 आगे का रास्ता बना सकता है. इस तरह सरकारी सेवा के डिजिटलीकरण की दिशा में पहले से ज़्यादा व्यावहारिक रूपरेखा मुहैया कराई जा सकेगी. ये ढांचा G20 के सदस्यों और ग़ैर-सदस्यों को समझदारी के साथ डिजिटलीकरण को स्वीकार करने और जनता के हित वाली तकनीक का विकास करने में मदद करेगी. साथ ही इससे सार्वजनिक व्यय को प्रभावी रूप से आवंटित करने और उसके ज़रिए वास्तविक प्रभाव उपलब्ध कराने की प्रक्रिया भी सुनिश्चित हो सकेगी.

G20 डिजिटल सरकार का सिद्धांत नए अवसरों का भरपूर लाभ उठाने को लेकर डिजिटल सरकार के लिए समर्थकारी ढांचा मुहैया कराने की अहमियत को स्वीकार करता है. उद्योग और बाज़ार आधारित मानकों के इस्तेमाल के ज़रिए इस काम को अंजाम दिया जा सकता है. निजी क्षेत्र ज़्यादा जोख़िम भरा और लागत को लेकर अधिक संवेदनशील होता है. लिहाज़ा वो नवाचार को जीवंत बनाए रखने के लिए जानकारियां मुहैया करा सकता है और ज़रूरी मापदंडों की भी स्थापना कर सकता है. इस तरह बजट से जुड़ी सीमाओं के बावजूद कार्यकुशलता सुनिश्चित की जा सकती है.

स्टार्ट-अप अर्थव्यवस्था में ‘उत्पाद-बाज़ार फ़िट’ को नए उत्पाद की योजना बनाने के लिए मोटे तौर पर स्वीकार किया जाता है. यहां लक्ष्य ये रखा जाता है कि इसके विकास की लागत कम से कम रहे और वो बजट की सीमाओं से परे ना जाए. इस सिलसिले में उपयोगकर्ताओं के लिए पहचान और सत्यापन की एक मज़बूत प्रक्रिया की दरकार होती है. साथ ही समाधान के दायरे में समय से पहले छलांग लगाने की क़वायद से बचने के लिए उपयोगकर्ताओं की अनसुलझी ज़रूरतों या समस्याओं का निपटारा किया जाना भी बेहद ज़रूरी होता है. इस तरीक़े से एक स्टार्ट-अप अपने उत्पाद के लिए नए मूल्यों का निर्माण कर सकता है.

ये पॉलिसी ब्रीफ़ उत्पाद-बाज़ार फ़िट रूपरेखा में और ज़्यादा संशोधन पर ध्यान केंद्रित करता है ताकि G20 डिजिटल सरकार के सिद्धांतों को व्यवहार में तब्दील किया जा सके. सरकार ज़्यादातर अपने अंतिम उत्पाद के तौर पर सेवाओं का संचालन करती है, और इस सिलसिले में शायद ही कभी मुनाफ़े की ताक में रहती है. सरकारों का ध्यान समाज के हितों पर केंद्रित रहता है. ऐसे में उत्पाद-बाज़ार फ़िट की परिकल्पना को संशोधित किया जा सकता है. संशोधन से जुड़ी इस प्रक्रिया को इस ब्रीफ़ में “सेवा-समाज फ़िट” रूपरेखा का नाम दिया गया है.

सिफ़ारिशसर्विस-सोसाइटी फ़िट फ़्रेमवर्क

सेवा-समाज फ़िट फ़्रेमवर्क एक मॉडल के ज़रिए क्रियान्वयन के चरण में दाख़िल होता है. इस मॉडल को ‘सर्विस-सोसाइटी फ़िट पिरामिड’ कहा जाता है- जो डेन ओल्सेन के ‘प्रोडक्ट-मार्केट फ़िट पिरामिड’ से संशोधित प्रक्रिया है.[x] सरकारी और सार्वजनिक हित में तकनीक के विकास की क़वायद में ‘उत्पाद’ और ‘बाज़ार’ की परिकल्पना को ‘सेवा’ और ‘समाज’ के रूप में पेचीदा कर दिया गया. इसका मक़सद सरकार के स्वभाव को सार्वजनिक वस्तुओं के सेवा प्रदाता के तौर पर ज़ोर देकर जताना और उसके केंद्रीय उद्देश्य को समाज की सेवा करना बताया जाना था.

चित्र 1: ‘सेवा-समाज फ़िट पिरामिड

स्रोत: ओल्सेन[xi], संशोधित.

जैसा कि चित्र 1 में दर्शाया गया है, सेवा विकास प्रक्रिया को दो दायरों में बांटा गया है- ‘समस्या’ का दायरा और ‘समाधान’ का दायरा. समस्या के दायरे में यूज़र्स की ज़रूरतों की मज़बूत पहचान और पुष्टि की क़वायद जुड़ी होती है. इसका मक़सद सरकारी सेवाओं के साथ उपयोगकर्ताओं के संवादों के पीछे की प्रभावहीनता का निपटारा करना है. इससे सुधार के लिए गुंजाइश भी पैदा होती है.

  1. डिजिटल संस्कृति को संस्थागत रूप देकर सर्विस-सोसाइटी फ़िट की पूर्वशर्त पूरी करना. सरकारी सेवाओं के डिजिटलीकरण की क़वायद में नीतिगत ढांचे के तौर पर सर्विस-सोसाइटी फ़िट को अंजाम देने से पहले एक सरकारी संगठन के भीतर डिजिटल संस्कृति की स्थापना की जानी चाहिए. किसी संगठन द्वारा डिजिटलीकरण को स्वीकार करने या डिजिटल कायाकल्प की दिशा में की जाने वाली कोशिशों के नाकाम होने के पीछे तीन कारण ज़िम्मेदार होते हैं- बाहरी परिदृश्य, घरेलू परिदृश्य और सीमित कार्यकुशलता.[xii] अक्सर एक संगठन डिजिटल कायाकल्प के जटिल स्वभाव को समझ पाने में नाकाम रहता है. इस कड़ी में संगठन की संस्कृति में बुनियादी बदलावों की ज़रूरत भी शामिल है. इसके अलावा वो उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं में तेज़ी से होने वाले बदलावों के हिसाब से ढल पाने की क़ाबिलियत के अभाव से भी जूझते रह सकते हैं. डिजिटलीकरण के लिए विभिन्न कार्यकुशलताओं से लैस समर्पित टीम की भी दरकार होती है, एक ऐसा दल जो बदलावों के साथ तेज़ी से तालमेल बिठा सके. ये परिवर्तन कामकाज के पारंपरिक दायरों से जुदा होते हैं. लिहाज़ा प्रणालीबद्ध किए जाने की प्रक्रिया को अमल में लाने के लिए भी अनेक ज़रूरतें पेश आती हैं. इनमें सियासी समर्थन, नेतृत्व, संगठन, एक हुनरमंद टीम और उद्देश्यों की स्पष्टता शामिल हैं.[xiii]

सरकारी व्यवस्था में आवश्यकताओं और उनके क्रियान्वयन के संदर्भ में हालात और पेचीदा बन सकते हैं. सरकारें सख़्त और स्थापित संस्कृति से बंधी होती हैं, जो डिजिटलीकरण को स्वीकारे जाने के रास्ते में अक्सर बाधाएं पेश करती हैं.[xiv] ये निजी क्षेत्र में डिजिटलीकरण और डिजिटल कायापलट के कई दिशानिर्देशों से उलट हैं. निजी क्षेत्र समाधान, उत्पाद या सेवा के विकास की प्रक्रिया में ‘लीन फ़्रेमवर्क’ यानी हल्के-फुल्के ढांचे को बढ़ावा देता है. लीन फ़्रेमवर्क पर तैयार संगठन किसी उत्पाद के विकास के फ़ीडबैक-लूप पर आधारित होते हैं. इस सिलसिले में अहम कारकों की माप की जाती है और आंतरिक दृष्टिकोणों से सबक़ हासिल किए जाते हैं. उत्तम विशेषताओं के साथ पूरी तरह से कामकाजी समाधान भेजने की बजाए, दुबला ढांचा सबसे व्यावहारिक उत्पाद (MVP) के आग़ाज़ को प्रोत्साहित करता है. किसी उत्पाद को तैयार करते वक़्त शुरुआती परिकल्पना की जांच के लिए MVP को सामने रखा जाता है. प्रयोगकर्ताओं की ओर से जैसे-जैसे फ़ीडबैक मिलता जाता है इस MVP में सुधार आ जाता है. ये लूप अपेक्षाकृत कम समय में घटित होता है, और दो सप्ताह की विकास प्रक्रिया में सुधारों को अंजाम दिया जाता है, जिसे अक्सर ‘बहुत तेज़ दौड़ या स्प्रिंट’ कहकर पुकारा जाता है.[xv]

एक परंपरागत सरकारी निकाय काम के ऐसे रफ़्तार से क़दम मिलाने में जद्दोजहद कर सकता है. यही वजह है कि कई देश पूरी तरह से अलग निकाय तैयार करने का फ़ैसला करते हैं, जो समूची सरकार या किसी ख़ास विभाग के लिए डिजिटलीकरण की प्रक्रिया के प्रबंधन के लिए ज़िम्मेदार होते हैं. इस सिलसिले में कारोबारी प्रक्रिया और मानकीकृत डिजिटलीकरण प्रक्रियाओं की अनुपालना में पहले से ज़्यादा लचीलापन दिखाया जाता है. इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि ऐसे संगठन लीन फ़्रेमवर्क को स्वीकार कर लेते हैं.[xvi] इनमें G20 के भी कुछ सदस्य शामिल हैं.

ऐसे संगठनों का पहला बेंचमार्क GDS के स्वरूप में यूनाइटेड किंगडम से आता है. 2011 में स्थापित इस संस्था को छोटे दल के रूप में शुरू किया गया था. उस वक़्त तकनीकी समाधान की संरचना बनाते हुए यूके की सरकार को 2,000 अलग-अलग वेबसाइटों और अपने सिद्धांतों में से एक से जूझना पड़ा था. इस क़वायद में उसे छोटे समाधान के साथ शुरुआत करना या असलियत में असर दिखाने वाली पायलट परियोजना के साथ काम करना पड़ा था.[xvii] ये लीन फ़्रेमवर्क में MVP की परिकल्पना से मिलता-जुलता है. इस कड़ी में एक और उदाहरण 18F है, जो अमेरिकी सरकार के भीतर सामान्य सेवा प्रशासन डिजिटल सेवा एजेंसी के तौर पर काम करती है. ये एजेंसी सरकार के लिए डिजिटल सेवाओं और प्रौद्योगिकीय समाधान का वितरण करते वक़्त लीन फ़्रेमवर्क को अपनाती है.

अगर किसी सरकार के पास डिजिटलीकरण के लचीले स्वभाव के हिसाब से तेज़ी से ढल पाने की सीमित क़ाबिलियत हो तो वो निजी क्षेत्रों के साथ सहभागिता कर सकती है. ग़ौरतलब है कि ऐसी हिस्सेदारी आमतौर पर सरकारों द्वारा ऐप तैयार करने के लिए सीमित अवधि तक थर्ड-पार्टी विक्रेताओं के साथ किए जाने वाले जुड़ावों से अलग होती है. तीसरे पक्ष के साथ ऐसी हिस्सेदारी को हल्के फुल्के फ़ीडबैक-लूप को पूरी तरह से संचालित करने और उसे पूरा करने के हिसाब से डिज़ाइन किया जाना चाहिए. इस सिलसिले में वो प्रासंगिक मेट्रिक्स की माप करने, दोहराने और उनके द्वारा तैयार किए जाने वाले समाधान में सुधार लाने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं. इंडोनेशिया के शिक्षा और संस्कृति मंत्रालय ने इस रुख़ को क्रियान्वित किया है. मंत्रालय इस सिलसिले में इंडोनेशिया के सबसे बड़े दूरसंचार सेवा प्रदाता टेलकॉम इंडोनेशिया (सरकारी स्वामित्व वाला संगठन) के साथ साझेदारी कर रहा है. इस क़वायद का मक़सद GovTech Edu तैयार करना और अनेक डिजिटल समाधानों को आगे बढ़ाना है. इंडोनेशिया की शिक्षा प्रणाली की समस्याओं के निपटारे के लिए इस गतिविधि को अंजाम दिया जा रहा है.

टेबल 1: नियमित थर्ड-पार्टी ऐप विक्रेता बनाम इंडोनेशिया का GovTech Edu मॉडल

थर्ड-पार्टी विक्रेता इंडोनेशिया का GovTech Edu Model
संगठन का मॉडल ज़्यादातर एक निजी इकाई या एक व्यक्तिगत सलाहकार, जिसे सरकार की संग्रहण प्रक्रिया के ज़रिए बहाल किया जाता है सरकारी स्वामित्व वाले उद्यम में कारोबारी विभाग, जो शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करता है
परियोजना का जीवनकाल मियाद से बंधा और परियोजना आधारित निरंतर
उत्पाद या परिणाम केवल ऐप्स ऐप्स और इसके दोहराव चक्र. इसके मायने ये हैं कि संगठन ना सिर्फ़ ऐप्स तैयार करने के लिए ज़िम्मेदार है बल्कि उसपर उन ऐप्स को प्रयोगकर्ताओं तक वितरित करने की भी ज़िम्मेदारी होती है. साथ ही आगे विकास के लिए आंकड़े और दृष्टिकोण जुटाने की भी आवश्यकता होती है.

अफ़सरशाही की सीमा के भीतर डिजिटल संस्कृति की स्थापना का ऐसा अनोखा रुख़ डिजिटलीकरण के कामयाब अमल और डिजिटल कायाकल्प प्रक्रिया की पहली ज़रूरत है. ये क़वायद टेक्नोलॉजी में सार्वजनिक हित तैयार करने की प्रक्रिया से पहले आती है.

सार्वजनिक-हित वाली प्रौद्योगिकी के विकास में सर्विस-सोसाइटी फ़िट को मुख्य ढांचे के तौर पर अपनाना.
  1. सार्वजनिक-हित वाली प्रौद्योगिकी के विकास में सर्विस-सोसाइटी फ़िट को मुख्य ढांचे के तौर पर अपनाना. सार्वजनिक-हित वाली तकनीक के विकास के कई मामलों में अफ़सरशाही अक्सर एक समाधान के लिए कूद पड़ती है और अपनी सेवाओं के पीछे के मूल कारणों को अच्छी तरह समझे बिना ही इसके लिए ऐप तैयार कर देती है. ये समाधान अक्सर सरकारी अधिकारियों द्वारा लगाए जाने वाले अनुमान होते हैं और इनको अमल में लाने की ज़िम्मेदारी उन लोगों पर होती है जिनमें डिजिटल कौशल का अभाव होता है. वो ऐसे संगठनों के भीतर काम करते हैं जहां डिजिटल संस्कृति में अंतर होता है. ऐसे में अगर ये समाधान नाकामयाब हो जाएं तो कोई हैरानी की बात नहीं होती. चूंकि ये उपयोगकर्ताओं की ज़रूरतों का प्रदर्शन नहीं करते और ना ही इनका ठीक ढंग से रखरखाव किया जाता है.

लिहाज़ा, सेवा-समाज ढांचे में डिजिटल समाधान की संरचना बनाने वाली प्रक्रिया की शुरुआत हमेशा समस्या के ख़ुलासे से की जानी चाहिए. ये डिजिटल परिवर्तनकारी क़वायदों की अगुवाई करने वाली टीम को साथ मिलकर काम करने की सुविधा दे सकते हैं ताकि भावी उपयोगकर्ताओं की पहचान के साथ-साथ समस्या से जुड़ी परिकल्पना पर भी चर्चा की जा सके. मुमकिन है कि एक अच्छा समाधान हर समस्या का सार्वभौम जवाब न हो. इसकी बजाए ऐसे समाधान की शुरुआत इनसे सबसे ज़्यादा फ़ायदा हासिल करने वाले प्रयोगकर्ताओं की पहचान और उन्हें समूह में रखे जाने की क़वायद से होती है. ये टीम को अहम मसलों पर ध्यान केंद्रित करने और उनकी वरीयता तय करने में मदद करते हैं. उपयोगकर्ता का व्यक्तित्व तैयार कर देने के बाद ये प्रक्रिया प्रयोगकर्ताओं की अनसुलझी ज़रूरतों की पहचान करने की दिशा में आगे बढ़ती है. ख़ासतौर से तैयार की गई परिकल्पना पर आधारित प्रक्रियाओं में इस क़वायद को अंजाम दिया जाता है.[xviii] पहचान से जुड़ी इस प्रक्रिया को मात्रात्मक और गुणवत्तात्मक शोध उपायों के ज़रिए पूरा किया जा सकता है. इनमें सर्वेक्षण, सघन साक्षात्कार, केंद्रित सामूहिक परिचर्चाएं और मानव-जाति विज्ञान (ethnography) शामिल हैं. 18F में इस प्रक्रिया को ‘पाथ एनालिसिस’ कहा जाता है, जो समाधान की संरचना से जुड़ी क़वायद का आधार तय करने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ता है.[xix]

संगठन जैसे-जैसे इस प्रक्रिया से आंतरिक दृष्टिकोण हासिल करते जाते हैं, उनके पास समाधान के दायरे में प्रवेश करने को लेकर दलीलें जुटने लगती हैं. इस क्षेत्र में संगठन एक मूल्य प्रस्ताव तैयार कर सकता है जो यूज़र्स की अनसुलझी ज़रूरतों के निपटारे की कोशिश कर सकता है. उपयोगकर्ताओं की समस्याओं और ज़रूरतों की पहचान करने के बाद संगठन को निश्चित रूप से ये फ़ैसला कर लेना चाहिए कि वो किसका निपटारा करेगा. इस सिलसिले में उनके संगठन की क़ाबिलियत के साथ-साथ यूज़र्स की सबसे अहम ज़रूरतों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. आगे दोहराव प्रक्रिया के लिए प्रयोगकर्ताओं तक पहुंचाए जाने से पहले इसे उत्पाद की संरचना में भी जोड़ दिया जाता है. आदर्श रूप से ये प्रक्रिया सार्वजनिक हिस्सेदारी (ख़ासतौर से प्रभावित होने वाले स्टेकहोल्डर्स के संदर्भ में) के लिए स्थान तैयार करती है.

व्यवहार में इस समूचे ढांचे को अक्सर समर्पित प्रोडक्ट मैनेजर द्वारा संचालित किया जाता है. ऐसी भूमिका अक्सर मौजूदा सरकारी ढांचों में नदारद रहती है. सार्वजनिक हित में तकनीक खड़ी करने के इरादों के बिना डिजिटलीकरण की प्रक्रिया में प्रवेश करने वाले संगठन को पर्याप्त कौशल क्षमताओं से लैस व्यक्ति को प्रोडक्ट मैनेजर के रूप में अपने साथ जोड़ना चाहिए.

  • सर्विस-सोसाइटी फ़िट के इंटरफ़ेस के तौर पर नागरिक-केंद्रित संरचना को अमल में लाना. सरकारी पक्ष में सटीक सर्विस-सोसाइटी फ़िट भारी मात्रा में रकम बचाने में मदद कर सकती है, जैसा कि यूके की GDS में दिखाया गया है.GDS द्वारा सेवा डिज़ाइनों को सामने रखकर यूके सरकार ने दावा किया है कि वो ख़र्चों में तक़रीबन 4 अरब ब्रिटिश पाउंड की बचत करने में कामयाब रही है. 2011 में GDS की स्थापना के चार साल बाद ये कामयाबी नज़र आई.[xx] ये डिज़ाइन वास्तविक उपयोगकर्ताओं की समस्याओं का निपटारा करते हैं. बहरहाल, लागत के मोर्चे पर प्रभावशीलता अच्छी सेवा डिज़ाइन की इकलौती प्रमुखता नहीं है; ये सरकारों को वास्तविक समाधान मुहैया कराने में भी मदद करती है. इससे जनता की ज़रूरतें पूरी की जा सकती हैं. अगर क्रियान्वित करने वाली सरकार सर्विस-सोसाइटी फ़िट के रास्ते का पालन करती है तो उन्हें लगभग हर चरण में सार्वजनिक हिस्सेदारी को स्वीकार करना चाहिए. दूसरे शब्दों में नागरिक-केंद्रित संरचना के ज़रिए सर्विस-सोसाइटी फ़िट फ़्रेमवर्क का इज़हार होता है.

नागरिकों की ज़रूरतों को पूरा करने वाली संरचनाओं के अनेक संकेतक मौजूद हैं. साफ़ तौर पर उपयोगकर्ता की ज़रूरत को समझने, सरल बनाने और पूरा करने की क़वायद आसान होनी चाहिए.[xxi] जन-हित से संबंधित तकनीक में ऐसी नागरिक-केंद्रित संरचनाओं से जुड़ी नीतियों को क्रियान्वित करने के प्रयासों के लिए G20 के कई देशों ने तारीफ़ें बटोरी हैं. इस सिलसिले में अर्जेंटीना ने कंसल्टा पब्लिका नाम से एक प्लेटफ़ॉर्म का निर्माण किया है, जो नीति-निर्माण की प्रक्रिया में सार्वजनिक हिस्सेदारी को बढ़ावा देता है. इसके ज़रिए आम जनता, सरकारी स्टेकहोल्डर्स के साथ परिचर्चा की शुरुआत कर नागरिक जुड़ावों के स्तर को आगे बढ़ा सकती है.[xxii]

यूनिफ़ाइड मोबाइल ऐप्लिकेशन फ़ॉर न्यू-एज गवर्नेंस यानी उमंग (UMANG) आसान और प्रभावी समाधान वितरित करने वाला एक और मानक है. ये ऐप भारत की केंद्रीय सरकार की 2,000 डिजिटल सेवाओं के प्रवेश-बिंदु के तौर पर हमारे सामने है. ये ऐप्स की भरमार होने से जुड़ी समस्या का निपटारा करता है, जैसा अक्सर कई सरकारों में दिखाई देता है. सभी डिजिटल सेवाओं का एक सुपर-ऐप में एकीकरण, नागरिकों को बिना किसी बाधा के डिजिटल सेवाओं का अनुभव मुहैया करा सकता है. साथ ही सरकारी सेवाओं तक पहुंच बनाने में आगे भ्रम से बचने में मददगार भी साबित हो सकता है.

नागरिक-केंद्रित संरचना को बढ़ावा देने की क़वायद का एक और मतलब है. दरअसल, जन-हित से जुड़ी तकनीक में ‘तकनीक’ शब्द सरकारी सेवाओं में सुधार के औज़ार के तौर पर काम करेगा, जिसकी हमेशा ‘डिजिटल’ के रूप में व्याख्या नहीं की जा सकती. यूनाइटेड स्टेट्स सिटिज़नशिप एंड इमिग्रेशन सर्विस (USCIS) द्वारा 2005 से 2016 के बीच अपनी आप्रवासन प्रणाली के डिजिटलीकरण की कोशिश ऐसा ही एक उदाहरण है. 11 साल से भी ज़्यादा का वक़्त बिताने और 1 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा रकम ख़र्च करने के बाद इस परियोजना को दोबारा शुरू किए जाने की ज़रूरत पड़ गई.[xxiii] इतना ही नहीं, इसका अंतिम-उत्पाद ऑपरेशन यूनिट का काम आसान करने की बजाए उसपर नई ज़िम्मेदारियों का बोझ डाल देता है.[xxiv] यही वजह है कि किसी सेवा का कायाकल्प करने की कोशिश करने से पहले उस सेवा के पीछे की कारोबारी प्रक्रिया को समझना बेहद अहम है; कुछ मौक़ों पर समाधान मौजूदा प्रक्रियाओं में सुधार की क़वायद हो सकती है या ग़ैर-ज़रूरी काग़ज़ी कार्यवाहियों में कटौती को भी इसमें शामिल किया जा सकता है.

G20 के लिए सिफ़ारिशें

अपने सरकारी डिजिटल सिद्धांतों के ज़रिए G20 ने निजी क्षेत्र से सबक़ सीखा है. इस कड़ी में सरकारी सेवाओं में ज़िम्मेदार नवाचार तैयार करने की अहमियत को स्वीकार करते हुए उसपर लगातार ज़ोर दिया गया है. हालांकि इस पूरी क़वायद को और ज़्यादा व्यावहारिक तरीक़े से क्रियान्वित करने की ज़रूरत बरक़रार है. सेवा-समाज फ़िट इसी चुनौती के निपटारे का लक्ष्य रखता है. अफ़सरशाही द्वारा विकसित डिजिटल टेक्नोलॉजी को जनता की ज़रूरतों के मुताबिक पुष्टि की मज़बूत प्रक्रिया से गुज़रना सुनिश्चित करना होगा. इसका नागरिक-केंद्रित स्वभाव अफ़सरशाही के विभिन्न चरणों में स्थिति संबंधी प्रासंगिकता के लिए गुंजाइश भी पैदा करता है.

अगला क़दम है इस रूपरेखा को ठोस नीति या सरकारी व्यवहार के तौर पर विकसित करना. लिहाज़ा, G20 को अपने सदस्यों और ग़ैर-सदस्यों के बीच सर्विस-सोसाइटी फ़िट ढांचे को सक्रियता के साथ प्रचारित और प्रसारित करना चाहिए. इस प्रयास और प्रतिबद्धता को डिजिटल अर्थव्यवस्था कार्य समूह (DEWG) के एजेंडे में भी शामिल किया जा सकता है. सर्विस-सोसाइटी फ़िट हासिल करने के लिए सामान्य मार्गदर्शन उपलब्ध कराने के मक़सद से इस क़वायद को आगे बढ़ाया जा सकता है.


ENDNOTES

[i] The World Bank, “GovTech Maturity Index 2022 Update: Trends in Public Sector Digital Transformation,”
2022, https://openknowledge.worldbank.org/entities/publication/10b535a7-e9d4-51bd-96ed-
6b917d5eb09e.

[ii] GWI, “The Global Media Landscape,” 2023, https://www.gwi.com/reports/global-media-landscape.

[iii] Abdoul-Akim Wandaogo, “Does Digitalization Improve Government Effectiveness? Evidence from
Developing and Developed Countries,” Applied Economics 54, no. 33 (2022).

[iv] Evgeny Morozov, To Save Everything, Click Here: The Folly of Technological Solutionism (New York:
Public Affairs, 2013).

[v] Coconuts Jakarta, “App-solete: Indonesia to Downsize Gov’t Apps from 24,000 to 8”, Coconuts Jakarta,
2022, https://coconuts.co/jakarta/news/app-solete-indonesia-to-downsize-govt-apps-from-24000-to-8/.

[vi]  Emma Woollacott, “Seven Successful Government Apps from Around the World,” The Guardian, 2017,
https://www.theguardian.com/public-leaders-network/2017/jan/23/seven-successful-government-digital-
service-apps-technology; Ariful Islam Mithu, “The Government Has So Far Made More Than 600 Apps.

How Many Actually Work?,” TBS News, 2022, https://www.tbsnews.net/features/panorama/government-
has-so-far-made-more-600-apps-how-many-actually-work-493898; Luke Cavanaugh, “Government’s
Overabundant App Development is a Reminder of Digital Government’s Longevity Challenge,”
GovInsider, 2022, https://govinsider.asia/intl-en/article/opinion-the-malaysia-governments-overabundant-
app-development-is-a-reminder-of-digital-governments-longevity-problem/.

[vii] Wandaogo, “Does Digitalization Improve Government Effectiveness?”.

[viii] The World Bank, “GovTech Maturity Index 2022 Update”.

[ix] The World Bank, “GovTech Maturity Index 2022 Update”.

[x] Dan Olsen, The Lean Product Playbook: How to Innovate with Minimum Viable Products and Rapid
Customer Feedback (Hoboken: Wiley, 2015).

[xi] Olsen, The Lean Product Playbook.

[xii] Daniel Rowles and Thomas Brown, Building Digital Culture: A Practical Guide to Successful Digital
Transformation (London: KoganPage, 2017).

[xiii] Hana Schank and Tara Dawson McGuinness, Power to the Public: The Promise of Public Interest
Technology (Princeton: Princeton University Press, 2021); Rowles and Brown, Building Digital Culture;
Andrew Greenway et al., Digital Transformation at Scale: Why the Strategy is Delivery (London: London
Publishing Partnership, 2018).

[xiv] Zakareya Ebrahim and Zahir Irani, “E-Government Adoption: Architecture and Barriers,” Business
Process Management Journal 11, no. 5 (2005).

[xv] Eric Ries, The Lean Startup: How Today’s Entrepreneurs Use Continuous Innovation to Create
Radically Successful Businesses (New York: Crown Business, 2011); Brian Werham, Agile Project
Management for Government (London: Maitland & Strong, 2012).

[xvi] Ines Mergel, “Digital Service Teams in Government”, Government Information Quarterly 36, no. 4
(2019).

[xvii] Greenway et al., Digital Transformation at Scale.

[xviii] Olsen, The Lean Product Playbook.

[xix] 18F, “How We Work”, 18F Official Website, n.d., https://18f.gsa.gov/how-we-work/.

[xx] Greenway et al., Digital Transformation at Scale; Schank and McGuinness, Power to the Public.

[xxi]  Greenway et al., Digital Transformation at Scale.

[xxii] Dirección Nacional de Gobierno Abierto de la Secretaría de Innovación Pública, “Consultatia Publica:
Acerca de Este Sitio”, n.d., https://consultapublica.argentina.gob.ar/ayuda/acerca.

[xxiii] Schank and McGuinness, Power to the Public.

[xxiv] Schank and McGuinness, Power to the Public.

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