टास्क फ़ोर्स 7: टूवर्ड्स रिफ़ॉर्म्ड मल्टीलैटरलिज़्म: ट्रांसफ़ॉर्मिंग ग्लोबल इंस्टीट्यूशंस एंड फ़्रेमवर्क्स
सारांश
अनेक संकटों वाले इस युग में बहुपक्षीय संस्थाओं की विश्वसनीयता कमज़ोर पड़ रही है. ऐसे में G20 को "पुनर्जीवित बहुपक्षीयवाद" के बजाए "संशोधित बहुपक्षीयवाद" का चुनाव करने की दरकार है. अगले क़दम के तौर पर इसे स्पष्ट रूप से एक विस्तारित, पहले से अधिक लोकतांत्रिक, ज़्यादा प्रतिनिधित्वकारी और पहले से अधिक जवाबदेह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के पक्ष में सामने आना चाहिए. पिछले तीन दशकों में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस दिशा में प्रगति हासिल करने के लिए किए गए प्रयासों से नतीजा मिलना अब भी बाक़ी है. लिहाज़ा बॉटम-अप (नीचे से ऊपर की ओर प्रवाह वाले) से टॉप-डाउन (ऊपर से नीचे की ओर) रुख़ की ओर आगे बढ़ते हुए G20 के नेताओं को दिल्ली घोषणापत्र में सुरक्षा परिषद में सुधार को लेकर भविष्य की ओर रुख़ करने वाला और बारीक़ी के साथ तैयार किया गया पैराग्राफ़ जोड़ने पर विचार करना चाहिए. साझा तौर पर स्वीकार्य मसौदे के निर्माण के लिए तत्काल एक विशेष तंत्र की आवश्यकता है.
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परिचय
21वीं सदी के तीसरे दशक में दुनिया अनेक प्रकार के संकटों का सामना कर रही है. स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, खाद्य, ईंधन और ऊर्वरक सुरक्षा से जुड़े तमाम संकट बहुपक्षीयवाद के प्रभाव को कम कर रहे हैं. भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक चुनौतियों की श्रृंखला समस्या को विकराल बना रही है. ऐसे में "संशोधित बहुपक्षीयवाद" की अनिवार्यता और तात्कालिक हो जाती है, और इसे व्यापक तौर पर स्वीकार्यता भी मिल रही है. इसके बावजूद G20, औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ अन्य बड़ी ताक़तों के दबाव का सामना कर रहा है. इस विडंबना के चलते इस समूह के नेता अब भी "पुनर्जीवित बहुपक्षीयवाद" से आगे नहीं सोच पा रहे हैं. इस शब्दावली का मार्च 2023 में G20 के विदेश मंत्रियों ने प्रयोग किया था.
अनेक विभिन्नताएं इन दो परिकल्पनाओं को अलग-अलग बांट देती हैं. "पुनर्जीवित बहुपक्षीयवाद" बहुपक्षीय संस्थानों के मौजूदा मकड़जाल में कुछ अतिरिक्त ऊर्जा भरकर ही संतुष्ट हो जाता है, और इनकी बुनियादी कमज़ोरियों की पहचान करने से इनकार करता है. उल्लेखनीय है कि ये तमाम संस्थान 1945 के बाद से वजूद में हैं. दूसरी ओर "संशोधित बहुपक्षीयवाद" के विचार के साथ प्रमुख संस्थानों में भारी-भरकम सुधार की मांग जुड़ी हुई है, ताकि वो ज़्यादा प्रतिनिधित्वकारी हों, अधिक लोकतांत्रिक हों और मौजूदा चुनौतियों से निपटने में मानव समाज की मदद करने को लेकर बेहतर तरीक़े से तैयार किए गए हों. भारत के विदेश मंत्रालय ने दिसंबर 2022 में इस शब्दावली का इस्तेमाल किया था. भारत ने दिसंबर 2022 में "बहुपक्षीय प्रणाली के लिए नए दिशानिर्देश" प्रस्तावित किए थे. वैश्विक व्यवस्था द्वारा "सम-सामयिक हक़ीक़तों" को प्रदर्शित किए जाने की बात को व्यापक तौर पर पहचाना गया है. इसी के मद्देनज़र ऐसी क़वायद की ज़रूरत सामने आती है.
इस संदर्भ में इस पॉलिसी ब्रीफ़ में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी UNSC के सुधार पर ध्यान देने की कोशिश की गई है. इस मसले की पृष्ठभूमि और वर्तमान अवस्था की पड़ताल की गई है. इसके साथ ही परिषद के विस्तार और उसके प्रतिनिधित्वकारी स्वरूप को बढ़ावा देने से जुड़े ख़ास मसले पर ठोस कार्रवाई के लिए तार्किक दलील भी पेश की गई है. इस ब्रीफ़ में G20 के नेताओं के लिए दो ख़ास सिफ़ारिशें की गई हैं.
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पृष्ठभूमि
1945 में जब संयुक्त राष्ट्र में 51 सदस्य थे, उस वक़्त चार्टर में बताया गया था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य (अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ़्रांस, सोवियत संघ और चीन) और छह निर्वाचित ग़ैर-स्थायी सदस्य होंगे. निर्वाचित सदस्यों का चयन कई संदर्भों में किया जाना तय किया गया था, जैसे अंतरराष्ट्रीय शांति बहाली में उनकी भूमिका और भौगोलिक तौर पर न्यायसंगत वितरण. इन पैमानों के आधार पर ग़ैर-स्थायी सदस्यों के निर्धारण का फ़ैसला हुआ था. छह अस्थायी सदस्यों का नियमित वितरण इस प्रकार था: लैटिन अमेरिका से दो, पूर्वी यूरोप से एक, पश्चिमी यूरोप से एक, मध्य पूर्व से एक और ब्रिटिश कॉमनवेल्थ (राष्ट्रमंडल) से एक.
इस कड़ी में अगला मील का पत्थऱ 1965 में आया जब संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता 117 देशों की हो गई. संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने संकल्प 1991 पारित कर चार्टर में सुधार करते हुए अस्थायी सदस्यों की संख्या को छह से बढ़ाकर 10 कर दिया. इतना ही नहीं, महासभा ने आधिकारिक रूप से सीटों को भौगोलिक इलाक़ों के हिसाब से बांट दिया. इनके ज़रिये दुनिया के देश चुनावों में प्रतिस्पर्धा कर सकते थे. ये बदलाव एक सीमा तक उपयोगी साबित हुए; इन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को थोड़ा और प्रतिनिधित्वकारी बनाने के साथ-साथ पहले से कहीं ज़्यादा प्रतिस्पर्धी भी बना दिया. इस प्रकार UNSC के कामकाज के तरीक़े में बदलाव आ गया. हालांकि, इस पूरी क़वायद में P-5 (5 परमानेंट या स्थायी सदस्य) के वीटो पावर को बरक़रार रखा गया और स्थायी और अस्थायी सदस्यों के बीच के फ़र्क़ को भी संजोकर रखा गया. इस प्रकार, ये बदलाव ग़ैर-बराबरी और असंतुलन के बुनियादी मसले का निपटारा करने में नाकाम रहे. सुरक्षा परिषद में ऐतिहासिक तौर पर ऐसे ही हालात नज़र आते रहे हैं. तब से लेकर अबतक चार्टर में और सुधारों की इजाज़त नहीं दी गई है.
'सुरक्षा परिषद में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व का सवाल और सदस्यता में बढ़ोतरी की बात' पिछले 30 सालों से संयुक्त राष्ट्र महासभा के एजेंडे में रही है. 1979 में इसे विचार के लिए महासभा के सामने रखा गया था, और तबसे इसपर अंतहीन बहसों का दौर जारी रहा, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका. बहरहाल, पिछले तीन दशकों में दुनिया बदल गई है. आज संयुक्त राष्ट्र में 193 सदस्य देश हैं, ऐसे में UNSC को और प्रतिनिधित्वकारी बनाना अहम हो गया है.
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सुरक्षा परिषद में लैटिन अमेरिका, अफ़्रीका, एशिया और छोटे विकासशील द्वीप देशों के सदस्य राष्ट्रों की पर्याप्त नुमाइंदगी होना निहायत ज़रूरी है. सुरक्षा परिषद के कामकाज के तरीक़ों और प्रक्रियाओं को भी बदलावों से गुज़रना पड़ेगा ताकि ये मंच ज़्यादा प्रभावी और परिणाम-आधारित हो सके.
2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने UNSC सुधार पर अंतर-सरकारी वार्ताओं (IGN) की सर्वसम्मति से शुरुआत की थी. 2008 में IGN के तहत ग़ौर किए जाने के लिए सबकी रज़ामंदी से पांच विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान की गई थी. ये मसले थे:
- सदस्यता की श्रेणी
- वीटो का सवाल
- क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व
- विस्तारित सुरक्षा परिषद का आकार और उसके कामकाज के तरीक़े
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा के बीच के रिश्ते.
सितंबर 2015 में UNGA ने महासभा के तत्कालीन अध्यक्ष के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया. इसके तहत वार्ताओं के औज़ार के ज़रिये सर्वसम्मति तैयार करने की क़वायद की शुरुआत में मदद करने के लिए 120 सदस्य राष्ट्रों द्वारा लिखित योगदानों के उपयोग की बात की गई थी. जैसा कि संयुक्त राष्ट्र में भारत के एक पूर्व स्थायी दूत ने कहा है, इस दिशा में प्रगति की रफ़्तार में "चीन की अगुवाई में P5 ने ज़ोरदार और प्रायोजित प्रतिरोध के ज़रिये अड़ंगा लगा दिया."
अब तक अंतर-सरकारी वार्ताओं यानी IGN प्रक्रिया के ज़रिये कुछ भी हासिल नहीं हो सका है- आम धारणा के विपरीत किसी तरह की कोई वार्ता नहीं होती और प्रतिनिधि सिर्फ़ भाषण देते हैं. IGN गंभीर ख़ामियों से जूझ रहा है. संयुक्त राष्ट्र महासभा के मौजूदा अध्यक्ष एंबेसेडर कसाबा कोरोसी (हंगरी के) ने 30 जनवरी 2023 को नई दिल्ली में इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफ़ेयर्स (ICWA) की मेज़बानी में आयोजित एक बैठक में यही बात कही. उन्होंने ख़ुलासा किया कि ये ना तो किसी लेखनी के ज़रिये काम करता है और ना ही किसी सर्वसम्मत प्रक्रिया और स्वीकृत समयसीमा के ज़रिये.
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि इस सिलसिले में "प्रगति की पहचान करने और उसे आगे बढ़ाने के लिए कोई दस्तावेज़ नहीं रखा जाता." वो आगे कहते हैं, "इतना ही नहीं, वास्तविक रूप से ऐसे सुझाव दिए गए हैं कि वार्ताएं तभी शुरू की जाएं जब सर्वसम्मति हासिल हो जाए! बेशक़ उल्टी गंगा बहाने की इससे ज़्यादा अतिवादी मिसाल नहीं हो सकती."
इस विश्लेषण से IGN में बदलाव किए जाने की ज़रूरत रेखांकित होती है और उसमें पर्याप्त वार्ता प्रक्रिया को शामिल करने की क़वायद शुरू किए जाने की बात उभरकर सामने आती है.
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प्रस्ताव
अब वक़्त आ गया है कि संयुक्त राष्ट्र अपनी राह बदले और असलियत में गंभीर, ईमानदार, पेशेवर और परिणाम-आधारित रुख़ अपनाए. चूंकि अब तक अपनाया गया बॉटम-अप (नीचे से ऊपर की ओर प्रवाह वाला) रुख़ नाकाम रहा है, ख़ासतौर से मौजूदा युग में जब दुनिया गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है. इसलिए अब बॉटम-अप रुख़ का पूरी तरह त्याग किए बिना टॉप-डाउन (ऊपर से नीचे की ओर) रणनीति अपनाने का वक़्त आ गया है. दोनों रणनीतियों का समझदारी भरा मिश्रण ज़्यादा संतोषजनक परिणाम सुनिश्चित कर सकता है.
इस प्रस्ताव में दो खंड जुड़े हुए हैं, जिनका ब्योरा आगे के पैराग्राफ़/अनुच्छेद में दिया गया है.
पहला खंड (और ये इस प्रस्ताव की आत्मा है) प्रस्ताव करता है कि G20 का सर्वोच्च सियासी नेतृत्व 'पुनर्जीवित बहुपक्षीयवाद' के तंग और सीमित विचार की जगह भविष्य की ओर रुख़ दिखाने वाले 'संशोधित बहुपक्षीयवाद' की परिकल्पना का चुनाव करे. लक्ष्य सरल है: मौजूदा बहुपक्षीय व्यवस्था को निश्चित रूप से अपने-आप में सुधार लाना चाहिए; इसमें महज़ नई जान डालने से बात नहीं बनेगी. भू-राजनीतिक मोर्चे पर मौजूदा दरार एक चुनौती है. हालांकि नीतिगत दूरदर्शिता और साहस की मांग है कि वांछित सुधार का समर्थन करने वाले खड़े हो जाएं और अपनी आवाज़ बुलंद करें. ज़ाहिर तौर पर इसमें प्रस्ताव के समर्थन की क़वायद जुड़ी होगी, जिसके साथ महासभा का बहुमत अपना सुर मिलाए. अनिवार्य रूप से इसमें महासभा की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा प्रस्ताव का समर्थन किए जाने की दरकार होगी. इसमें प्रस्ताव करना होगा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार (स्थायी और ग़ैर-स्थायी दोनों श्रेणियों में) किया जाए, उसे ज़्यादा प्रतिनिधित्वकारी और पहले से अधिक लोकतांत्रिक बनाया जाए.
दूसरे खंड में नीचे दिए गए दो प्रस्ताव शामिल हैं.
पहली सिफ़ारिश: भारत की G20 अध्यक्षता ने उम्मीदों का एक नया आसमान तैयार कर दिया है. ऐसे में माना जा रहा है कि समूह में मौजूदा ध्रुवीकरण के बावजूद बहुपक्षीय संस्थानों (ख़ासतौर से सुरक्षा परिषद) में सुधार के लिए कुछ प्रगति हासिल की जा सकती है. इसलिए G20 के पास विशेष ज़िम्मेदारी है. ऊपर ICWA की जिस बैठक की चर्चा की गई है, उसमें इस लेखक के सवाल का जवाब देते हुए UNGA के मौजूदा अध्यक्ष ने कहा कि दुनिया के सामने खड़ी चुनौतियों के समाधान तैयार करने में G20 सहायताकारी भूमिका निभाने की हैसियत में है:
“ये G20 के सदस्यों पर निर्भर करता है कि वो इस मंच को एक सलाहकारी मंच के रूप में चलाएं, या फिर दुनिया की अगुवाई करने वाले मंच के रूप में, वो अपनी करनी के ज़रिये उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं. मुझे उम्मीद है कि भारतीय नेतृत्व हमें किसी प्रकार के समाधान के क़रीब ले जाने में मदद करेगा. क्योंकि सिर्फ़ कार्रवाइयों, मात्र निवेशों और केवल आपसी सहयोग ही हमें तमाम मसलों में बदतरीन हालात में घिरने से बचा सकते हैं.”
आज तमाम बहुपक्षीय संस्थानों में गतिरोध का ख़ात्मा करने के लिए G20 द्वारा अपनी ज़िम्मेदारियों को नज़रअंदाज़ ना किए जाने को लेकर सर्वसम्मति है. हालांकि सुधार प्रक्रिया की वरीयताओं के सवाल पर G20 के नेताओं को चयनात्मक यानी सेलेक्टिव होने की दरकार है. 2023 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद पर प्राथमिकता के हिसाब से ध्यान दिया जाना चाहिए. दिल्ली घोषणापत्र में UNSC में सुधार को लेकर ठोस पैराग्राफ़ के समावेश पर रज़ामंद होने का लक्ष्य होना चाहिए. हाल ही में क्वॉड विदेश मंत्रियों की रज़ामंदी से तैयार संतुलित नियमन से मिलता-जुलता खंड आगे के लिए एक ठोस रास्ते की नुमाइंदगी कर सकता है. इसमें ये बात जोड़ी जा सकती है कि अन्य क्षेत्रीय संगठनों ने भी सुधार और सुरक्षा परिषद के विस्तार के पक्ष में समर्थन जताया है. इन संगठनों में CELAC, आसियान और अफ़्रीकी संघ शामिल हैं.
G20 के नेताओं के विचार के लिए प्रस्तावित पैराग्राफ़ में:
- “संशोधित बहुपक्षीयवाद” की परिकल्पना पर नेताओं की स्पष्ट प्रतिबद्धता का इज़हार होना चाहिए, प्राथमिकता के आधार पर सचमुच के प्रतिनिधित्वकारी, लोकतांत्रिक और विस्तारित UNSC (स्थायी और ग़ैर-स्थायी, दोनों श्रेणियों में) तैयार किए जाने के पक्ष में आवाज़ बुलंद की जानी चाहिए. लिखित पत्र के आधार पर अंतर-सरकारी वार्ता प्रक्रियाओं की गहनता का आह्वान किया जाना चाहिए, सर्वसम्मत प्रक्रियाओं की पालना होनी चाहिए और दिसंबर 2024 तक एक साल की समयसीमा की दिशा में काम किया जाना चाहिए;
- 2024 में G20 के शिखर सम्मेलन के दौरान इस सवाल पर हुई प्रगति की समीक्षा उपलब्ध कराई जानी चाहिए.
दूसरी सिफ़ारिश: अतीत के मद्देनज़र इस मसले पर गहरी पेचीदगियों और लगातार जारी विभिन्नताओं को देखते हुए प्रस्तावित पैराग्राफ़ पर वार्ता करने के लिए एक ख़ास तंत्र की दरकार होगी. सुधार के विरोधियों द्वारा तैयार किए गए गतिरोध को तोड़ने के लिए संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रिया अपने-आप में नाकाफ़ी है. इसलिए G20 की अध्यक्षता कर रहे देश के नाते भारत को जल्द से जल्द एक विशेष बैठक बुलानी चाहिए. इसमें सभी G20 देशों के शेरपा, विदेश सचिव और संयुक्त राष्ट्र में तैनात स्थायी दूतों को आमंत्रित किया जाना चाहिए. बेबाक, सकारात्मक और बंद-दरवाज़ों के भीतर होने वाली परिचर्चाओं के ज़रिये प्रतिभागियों को एक सार्थक सूत्र बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी जा सकती है. एक ऐसा सूत्र जो ज़्यादातर (भले ही सबको ना सही) प्रतिभागियों को स्वीकार्य हो. G20 के सदस्य राष्ट्रों में से बहुसंख्यक हिस्से द्वारा समर्थित पैराग्राफ़ सियासी रूप से वज़नदार होगा. इस दिशा में अगर किसी प्रकार के मतभेद होंगे तो उनका दिल्ली शिखर सम्मेलन में शीर्ष नेताओं के व्यक्तिगत संपर्क द्वारा समाधान किया जा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को ज़्यादा प्रतिनिधित्वकारी और आज की हक़ीक़तों का आईना दिखाने वाला होना चाहिए. इस क़वायद के लिए गंभीरतापूर्वक टेक्स्ट-आधारित और समय की पाबंदियों वाली वार्ताओं को आगे बढ़ाने का स्पष्ट आह्वान संयुक्त राष्ट्र के लिए बेहद लाभदायक होगा. इतना ही नहीं ये G20 के दिल्ली शिखर सम्मेलन के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी.
एट्रिब्यूशन: राजीव भाटिया, “ए प्रपोज़ल फ़ॉर यू.एन. सिक्योरिटी काउंसिल रिफ़ॉर्म,” T20 पॉलिसी ब्रीफ़, मई 2023.
ENDNOTES
[1]‘G20 Foreign Ministers’ Meeting: Chair’s Summary & Outcome’, Ministry of External Affairs, para 5, March 02, 2023.
[2] ‘Visit of External Affairs Minister to New York for Chairing Signature Events of India’s December Presidency of the UN Security Council (December 13-15, 2022)’ Press Release, Ministry of External Affairs, December 12, 2022.
Inter alia, it stated: “The primary focus of the Open Debate on Reformed Multilateralism is to encourage all Member States to seriously address the pressing need for reforms in the global governance multilateral architecture, including the long-standing reforms of the UN Security Council. The meeting will also witness briefings by Secretary General of the United Nations and the President of the 77th UN General Assembly.”
[3] Statement by External Affairs Minister at the UNSC Open Debate on ‘Maintenance of International Peace and Security: New Orientation for Reformed Multilateralism’, Permanent Mission of India to the UN, New York, December 14, 2022.
[4] Anjali Dayal and Caroline Dunton, ‘The U.N. Security Council Was Designed for Deadlock — Can it Change?’ United States Institute of Peace, March 1, 2023.
[5] For details, see a crisp summary of developments in the essay: Manjeev Singh Puri, ‘Advancing Reformed Multilateralism Needs a Reformed Security Council’, Advanced Reformed Multilateralism, ICWA.
[6] Asoke Kumar Mukerji, ‘Advancing Reformed Multilateralism in the Changing World’, ICWA.
[7] ‘40th Sapru House Lecture by H.E. Ambassador Csaba Kőrösi, 77th President of the UN General Assembly on Solutions through Solidarity Sustainability and Science at the UN’, Transcript of the Q&A session of the event, January 30, 2023. The following answer by the eminent speaker to a question revealed the brutal reality of the IGN process:
“Does it have a time frame? No, for the time being, it does not. Does it have a negotiated text? No, it does not. Does it have a reliable procedure for work? Not really. Why? Have you ever seen a negotiating process which has no text to negotiate? Have you ever seen a negotiating process which has no clear-cut time frame on when to deliver? Unfortunately, that is how member states decided when they created the idea of IGN. Let me be very provocative. Intellectually, it will not be difficult to draw the reform of the Council within half an hour. It’s not a big challenge. Why we cannot do it, why member states cannot do it is because the interests are very much divided. The member states are very much divided. For some, it is more preferable to see the current dysfunctional stage than to embark on reform that would change the whole story. I wish I could tell you that the President comes and tells what should be done and it be done by end of the year. No, it is not the case. It is a process.”
[8] Statement by External Affairs Minister at the UNSC Open Debate on ‘Maintenance of International Peace and Security: New Orientation for Reformed Multilateralism’, Permanent Mission of India to the UN, New York, December 14, 2022.
[9] ‘40th Sapru House Lecture by H.E. Ambassador Csaba Kőrösi, 77th President of the UN General Assembly on Solutions through Solidarity Sustainability and Science at the UN’, Transcript of the Q&A session of the event. January 30, 2023.
[10] ‘Joint Statement: Quad Foreign Ministers’ Meeting’, Ministry of External Affairs, March 3, 2023.
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