Author : Shita Lakshmi

Published on Mar 09, 2021 Updated 0 Hours ago

जिस सवाल का समाधान वैश्विक स्तर पर होना चाहिए वो ये है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सबसे अच्छे इस्तेमाल पर मौजूदा प्रतिस्पर्धी संवाद कैसे आगे बढ़ सकता है.

“कुछ बुरा होने वाला है,”और कोविड-19 की महामारी ने उस कष्टपूर्ण समय को हम-तक थोड़ी जल्दी पहुंचा दिया!

बाली के नुसा दुआ में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष-विश्व बैंक की सालाना बैठक के दौरान 2018 में अपने उद्घाटन भाषण में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने कहा था, “कुछ बुरा होने जा रहा है.” जोको विडोडो ये कहकर एचबीओ टीवी की सीरीज़ गेम्स ऑफ थ्रोन्स का संदर्भ देकर अलग-अलग देशों के बीच व्यापार युद्ध के बारे में बता रहे थे. अपने भाषण में जोको विडोडो बता रहे थे कि कुछ देश जैसे कि अमेरिका ने तेज़ विकास का आनंद उठाया जबकि कई देश अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर संघर्ष कर रहे थे.

जोको का बयान प्रासंगिक बना हुआ है और महामारी की मौजूदगी ने हालात को और भी ख़राब बना दिया है. कुछ देशों ने तुरंत ख़ुद को महामारी के मुताबिक़ बदल लिया लेकिन बाक़ी देश ऐसा नहीं कर सके. अच्छी शासन व्यवस्था के साथ तकनीकी विकास संकट से छुटकारा पाने के लिए महत्वपूर्ण बन गया है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के साथ हालत और भी जटिल हो जाती है. कई देशों ने दुनिया में अग्रणी बनने के तौर-तरीक़े के रूप में एआई को विकसित करने में महत्वपूर्ण निवेश किया है. जैसा कि कई रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग-अलग देशों की रणनीति में एआई का विचार किसी मुक़ाबले की दौड़ की तरह है. एआई इस विश्वास के साथ शताब्दी की दौड़ है कि “जिनके पास एआई की आधुनिक क्षमता है वो ऐसे देश हैं जिनका दुनिया में दबदबा है.”

एआई चर्चा का स्तर भी अलग-अलग है. कुछ देशों ने जहां नैतिकता की चर्चा की है वहीं दूसरे देश अभी भी सार्थक इंटरनेट पहुंच विकसित करने के स्तर पर हैं. एआई को सही तरीक़े से लागू करने के लिए बड़ा और व्यवस्थित डाटा महत्वपूर्ण है. इसलिए डाटा की उपलब्धता अहम है. लेकिन समस्या ये है कि ज़्यादातर देश फ्रांस की तरह डाटा साझा नहीं करना चाहते हैं. इससे ये दौड़ और ज़्यादा शक्तिशाली बन गई है और अलग-अलग देशों के बीच व्यापक अंतर बन गया है.

कुछ देशों ने तुरंत ख़ुद को महामारी के मुताबिक़ बदल लिया लेकिन बाक़ी देश ऐसा नहीं कर सके. अच्छी शासन व्यवस्था के साथ तकनीकी विकास संकट से छुटकारा पाने के लिए महत्वपूर्ण बन गया है. 

इसके परिणामस्वरूप जब एक पारदर्शी और नैतिक एआई क्षमता विकसित करने के लिए एक समावेशी वैश्विक बातचीत आयोजित करने का ज़िक्र होता है तो ये एक घिसी-पिटी चीज़ बन चुकी है जहां कहना तो आसान है, लेकिन करना मुश्किल. मिसाल के तौर पर सबसे ज़्यादा विकसित और सबसे कम विकसित देशों के बीच मौजूद विकासशील देशों को अक्सर एआई के इर्द-गिर्द बातचीत में नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, क्योंकि अमेरिका, चीन, पूर्वी एशियाई और यूरोप के देश डिजिटल शासन व्यवस्था के संवाद में नेतृत्व करने वाले देश बने हुए हैं. ओईसीडी के विज्ञान, तकनीक, सूचना और नीति के सर्वे में पता लगा कि कोविड-19 को जवाब देने के लिए 38 देश एआई के बारे में क्या महसूस करते हैं. इन 38 देशों में से अमेरिका, चीन, भारत और इंडोनेशिया ने सर्वे का जवाब नहीं दिया. अमेरिका और चीन के बारे में ये सोचा जा सकता है कि उन्होंने जवाब इसलिए नहीं दिया क्योंकि ये दोनों देश मानते हैं कि उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रतिस्पर्धी संपत्ति के तौर पर एआई को गुप्त बने रहना चाहिए लेकिन भारत और इंडोनेशिया की दलील अलग हो सकती है क्योंकि ये दोनों देश एआई की संभावना का अधिकतम लाभ नहीं उठा सकते हैं.

इंडोनेशिया में एआई टूल की कमी

जी20 के वर्तमान सदस्य इंडोनेशिया के 2050 तक पांचवीं सबसे बड़ी आर्थिक ताक़त होने की भविष्यवाणी की गई है लेकिन इसके बावजूद ये एआई के मामले में दुनिया के कम विकसित देशों में से एक है. एआई को नियमित करने और उसके इस्तेमाल को बेहतर करने के मामले में इंडोनेशिया पीछे है. वैसे तो इंडोनेशिया अगस्त 2020 में राष्ट्रीय एआई रणनीति जारी कर चुका है जिसमें स्वास्थ्य सेक्टर में इस तकनीक को शामिल करने की बात है. रणनीति में कहा गया है कि: “तकनीकी इनोवेशन के ज़रिए स्वास्थ्य सेवा को बेहतर करके इंडोनेशिया के लोगों के लिए समय को कम, सेवाओं को व्यापक और स्वास्थ्य सेवा की लागत को घटाया जा सकता है.” लेकिन इसके बावजूद कोविड-19 के जवाब में एआई के इस्तेमाल को सामान्य तौर पर समर्थन देने वाले रियल टाइम डाटा को लेकर बहस बरकरार है.

इंडोनेशिया में अभी भी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग एप्लीकेशन पेडुली लिनडुंगी का इस्तेमाल करके कोविड-19 के संदिग्ध मरीज़ों की पहचान और उन्हें अलग करने की क्षमता में कमी है. इससे भी बढ़कर, एप्लीकेशन के साथ जुड़ी नागरिकों की डाटा प्रोसेसिंग पर भी सवाल हैं. इसके परिणामस्वरूप अभी तक इंडोनेशिया महामारी की पहली लहर से भी नहीं बच पाया है या इंडोनेशिया महामारी की किस लहर का सामना कर रहा है, ये बताने में भी सक्षम नहीं है. जब दूसरे देशों में महामारी के साथ इंडोनेशिया की तुलना होती है तो मार्च 2020 में पहले मामले की पहचान के बाद से इंडोनेशिया में कोविड-19 के मामलों में काफ़ी ज़्यादा कमी नहीं आई है. लेकिन अच्छी बात ये है कि इसकी वजह से समुदायों की तरफ़ से पहल का रास्ता साफ़ हुआ जैसे लेपर कोविड-19 और कावल कोविड-19.

इनके ज़रिए सरकारी संस्थानों की तरफ़ से मुहैया कराए गए कोविड-19 के मामलों के डाटा का विश्लेषण किया गया और इससे ये ख़ुलासा हुआ कि नगरपालिका स्तर पर इकट्ठा किए गए डाटा राष्ट्रीय स्तर पर बताए जा रहे कोविड-19 के मामलों से मेल नहीं खाते.

इंडोनेशिया में अभी भी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग एप्लीकेशन पेडुली लिनडुंगी का इस्तेमाल करके कोविड-19 के संदिग्ध मरीज़ों की पहचान और उन्हें अलग करने की क्षमता में कमी है

इस रुझान की तुलना दक्षिण कोरिया की एआई रणनीति, जिसका इस्तेमाल सफलतापूर्वक कोविड-19 के मरीज़ों के इलाज और कोविड-19 के संदिग्ध मामलों की निगरानी में किया गया, से करने पर एआई गवर्नेंस में अग्रणी देशों (जैसे दक्षिण कोरिया) और इसमें पीछे रहने वाले देशों (जैसे इंडोनेशिया) के बीच अंतर के बारे में पता लगेगा. इस तरह, जिस सवाल का समाधान वैश्विक स्तर पर होना चाहिए वो ये है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सबसे अच्छे इस्तेमाल पर मौजूदा प्रतिस्पर्धी संवाद एक ऐसे प्लेटफॉर्म की तरफ़ कैसे आगे बढ़ सकता है जहां कम विकसित और विकासशील देश डाटा को शेयर करने और उसका इस्तेमाल असरदार एआई के लिए कर सकते हैं.

डिजिटल पर केंद्रित भविष्य

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी थी कि “अतीत के मुक़ाबले भविष्य काफ़ी ज़्यादा डिजिटल होगा.” ऐसे में एआई गवर्नेंस में अग्रणी देश ऐसा कर सकते हैं कि पिछले साल मई में डिटिजल सहयोग पर रोडमैप को शुरुआती बिंदु की तरह इस्तेमाल करके मौजूदा कार्यकारी समूह के बाहर स्थित देशों के साथ जुड़ा जाए और उनके साथ सहयोग किया जाए. एआई गवर्नेंस के मामले में जितना बड़ा अंतर इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया के बीच है, उसको कम करने के लिए डाटा को नैतिक और पारदर्शी तौर पर इकट्ठा करने, डाटा तक पहुंच और उसे प्रोसेस करने की उपलब्धता होनी चाहिए. इसमें एआई सिस्टम के भीतर क्षमता और इंफ्रास्ट्रक्चर का समर्थन होना चाहिए. इसके लिए खुली बातचीत और सहयोग की ज़रूरत होगी जो सामान्य दृष्टिकोण की नक़ल नहीं करे जैसे कि एआई गवर्नेंस में विदेशी भाषा के इस्तेमाल को नियमित करना या विकासशील देशों में एआई के कार्यकारी समूहों की मेज़बानी करना.

एआई गवर्नेंस के मामले में जितना बड़ा अंतर इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया के बीच है, उसको कम करने के लिए डाटा को नैतिक और पारदर्शी तौर पर इकट्ठा करने, डाटा तक पहुंच और उसे प्रोसेस करने की उपलब्धता होनी चाहिए.

न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डन का पिछले दिनों पैसिफिक देशों को वैक्सीन मुहैया कराने का लिया गया फ़ैसला एआई गवर्नेंस पर सहयोग की जगह स्वास्थ्य सहयोग का उदाहरण हो सकता है. लेकिन अभी भी इस मामले में देरी नहीं हुई है कि इस तरह के सहयोग के मॉडल को अपनाकर कम विकसित और विकासशील देशों को एआई रणनीति की शासन व्यवस्था की प्रक्रिया तक पहुंचने का न्योता दिया जा सकता है. ये तैयार उत्पाद को देने से बेहतर है क्योंकि अगर हम दौड़ को बिना किसी सहयोग के रखेंगे तो इसका ये मतलब होगा कि कुछ बुरा होने वाला है. और ये महामारी जिस तरह फैल रही है, उसको देखते हुए सभी देशों- विकसित, कम विकसित और विकासशील- में कुछ बुरा होगा.

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