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तकनीकी क्षेत्र में तानाशाही हुकूमतों की तेज़ प्रगति के मद्देनज़र लोकतांत्रिक देशों को प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में साझा नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर काम करना होगा.
लोकतांत्रिक राज्यसत्ताओं के बीच प्रौद्योगिकी सहयोग, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नए रुझान के तौर पर उभरकर सामने आया है. इन दायरों में नए समूहों के ज़रिए ऐसे परिवर्तन दिखाई देने लगे हैं. इनमें ‘T-12’ (उन्नत प्रौद्योगिकी और विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले टेक-लोकतंत्रों का समूह) और ‘D-10’ (5G की वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला और दूसरी उभरती प्रौद्योगिकियां तैयार करने के मक़सद से 10 लोकतांत्रिक देशों का गठजोड़) शामिल हैं. इन क़वायदों से इस उभरते रुझान की अहमियत ज़ाहिर होती है. कोविड-19 महामारी के प्रकोप से पैदा हुए अनिश्चित वैश्विक हालात और चीन से परे आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने की ज़रूरत ने इन घटनाक्रमों को हवा दी है.
तानाशाही हुकूमतों के बीच बढ़ता सहयोग इसके ठीक उलट तस्वीर पेश कर रहा है. प्रौद्योगिकी को लेकर उनकी जद्दोजहद संगठित है और उसमें दीर्घकालिक सामरिक सोच दिखाई देती है. मिसाल के तौर पर हाल के वर्षों में चीन और रूस उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में आपसी गठजोड़ को मज़बूत कर चुके हैं. इस सिलसिले में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI), जैव-प्रौद्योगिकी और न्यूरोसाइंस पर ख़ास ज़ोर दिया जा रहा है. बढ़ते द्विपक्षीय सहयोग के प्रतीक के तौर पर दोनों पक्षों ने 2021 को ‘वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकीय और नवाचार सहयोग वर्ष’ के रूप में मनाया. ज़ाहिर तौर पर निरंकुश राज्यसत्ताओं की एकजुटता के मद्देनज़र लोकतांत्रिक देशों के बीच सहयोग क़ायम करना और ज़रूरी हो गया है.
बढ़ते द्विपक्षीय सहयोग के प्रतीक के तौर पर दोनों पक्षों ने 2021 को ‘वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकीय और नवाचार सहयोग वर्ष’ के रूप में मनाया. ज़ाहिर तौर पर निरंकुश राज्यसत्ताओं की एकजुटता के मद्देनज़र लोकतांत्रिक देशों के बीच सहयोग क़ायम करना और ज़रूरी हो गया है.
टेक्नोलॉजी के मोर्चे पर अपनी बढ़त के बूते चीन वैश्विक स्तर पर अपनी पहुंच बढ़ा रहा है. वो अपने घरेलू प्रौद्योगिकी क्षेत्र के अनुकूल मानक तय करने के लिए बहुपक्षीय संस्थानों पर प्रभाव भी जमा रहा है. मिसाल के तौर पर 2019 में चीन की टेलीकॉम कंपनियों हुआवै और चाइना मोबाइल ने एक नए इंटरनेट प्रोटोकॉल का प्रस्ताव सामने रखा. इसके तहत मौजूदा ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल और इंटरनेट प्रोटोकॉल (जो TCP/IP के नाम से मशहूर है) को बदलने की क़वायद सामने रखी गई. हालांकि कई टेक विश्लेषकों ने निजता और मुक्त अभिव्यक्ति से जुड़ी चिंताओं के चलते इस नए प्रोटोकॉल की आलोचना की है. इसके अलावा चीन और अन्य तानाशाही हुकूमतें, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञताओं का ‘डिजिटल एकाधिकारवाद’ फैलाने में इस्तेमाल कर रही हैं. वो अपने नागरिकों के दमन के साथ-साथ विदेशियों की भी टोह ले रहे हैं.
इन तमाम घटनाक्रमों के बावजूद दुनिया भर की लोकतांत्रिक राज्यसत्ताएं अपनी प्रतिक्रियाएं जताने में घबरा रही हैं. आपसी गठजोड़ की ज़रूरत समझने के बावजूद वो हर क़दम फूंक-फूंक कर बढ़ा रहे हैं. आपसी सहयोग के असर को लेकर उनमें संशय क़ायम है. साथ ही अपने कुनबे के भीतर अलग रुख़ अख़्तियार करने वालों को वो भला-बुरा भी कह रहे हैं. दरअसल जर्मनी जैसी कुछ लोकतांत्रिक राज्यसत्ताओं एक लंबे अर्से तक ये मानती रहीं कि ‘व्यापार के ज़रिए बदलाव’ लाना मुमकिन है. उनकी राय थी कि तानाशाही हुकूमतों के साथ आर्थिक जुड़ाव की नीति अपनाने से उनके बर्ताव में बदलाव आ जाएगा और लोकतांत्रिक मूल्यों की ओर उनका झुकाव होने लगेगा. बहरहाल, पिछले दशक के घटनाक्रम इस सोच को झुठला चुके हैं. तानाशाही हुकूमतें आगे निकल चुकी हैं. टेक्नोलॉजी के दायरे में उन्होंने अपनी मज़बूत पैठ बना ली है और लगातार टकराव भरे बर्तावों का इज़हार कर रही हैं. भूक्षेत्रीय विवादों पर अपने पड़ोसियों के साथ चीन के बार-बार हो रहे संघर्षों से ये बात प्रमाणित होती है.
लोकतांत्रिक देशों के बीच सहयोग को लेकर असमंजस भरा रुख़ एक ऐसे समय में दिख रहा है जब प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर बेहद रफ़्तार से बदलाव हो रहे हैं. दुनिया का कोई भी लोकतंत्र इनसे अपने बूते नहीं निपट सकता. उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में शोध और विकास को लेकर किसी देश के एकाकी प्रयासों के मुनासिब नतीजे नहीं मिलेंगे.
इन समीकरणों से ज़ाहिर है कि प्रद्योगिकी के क्षेत्र में अगुवा बनने के लिए लोकतांत्रिक देशों को आपसी गठजोड़ बनाकर ही आगे बढ़ना होगा और मामूली मतभेदों पर उलझना बंद करना होगा.
कोविड-19 महामारी के चलते कई देशों पर आए आर्थिक दबाव ने ऐसी क़वायद को ज़रूरी संदर्भ और तात्कालिकता दे दी है. अब दुनिया के लोकतांत्रिक देश महामारी के साए से उबरने लगे हैं. उनमें से कई मुल्क प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर सामरिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए संसाधन जुटाने में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. आपस में हाथ मिलाकर वो नवाचार की लागत साझा कर सकते हैं. साथ ही अपने सीमित वित्तीय संसाधनों का बेहतरीन इस्तेमाल भी सुनिश्चित कर सकते हैं.
लोकतांत्रिक देशों के बीच टेक्नोलॉजी नीतियों पर गठजोड़ की बुनियाद के तौर पर ‘टेक्नो-डेमोक्रेसीज़’ का विचार उभरकर सामने आया है. इसके ज़रिए वो प्रोद्योगिकी के मोर्चे पर अपने साझा लक्ष्यों को हासिल करने की क़वायद को ज़रूरी रफ़्तार दे सकते हैं.
इसी पृष्ठभूमि में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तालमेल की क़वायद को आगे बढ़ाने के लिए कई लोकतांत्रिक देशों ने छोटे-छोटे समूह बनाने की जुगत भिड़ाई है. क्वॉड्रिलैट्रल सिक्योरिटी इनिशिएटिव और ऑकस (ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका) दो ऐसे ही समूह हैं. ये दोनों ही गुट अहम और उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में गठजोड़ क़ायम करने की दिशा में क़दम बढ़ा रहे हैं. इस संदर्भ में लोकतांत्रिक देशों के बीच टेक्नोलॉजी नीतियों पर गठजोड़ की बुनियाद के तौर पर ‘टेक्नो-डेमोक्रेसीज़’ का विचार उभरकर सामने आया है. इसके ज़रिए वो प्रोद्योगिकी के मोर्चे पर अपने साझा लक्ष्यों को हासिल करने की क़वायद को ज़रूरी रफ़्तार दे सकते हैं. इन देशों में मौजूद नवाचार प्रणालियों की ठोस व्यवस्थाएं (रहन-सहन के लोकतांत्रिक तौर-तरीक़ों के चलते) उन्हें बेमिसाल बढ़त मुहैया कराती हैं.
15 सितंबर को दुनिया भर में ‘अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस’ का जश्न मनाया गया. लाज़िमी तौर पर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सामूहिक नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए दुनिया के लोकतांत्रिक देशों को आपसी जुड़ावों के और अधिक साधन तलाशने चाहिए.
15 सितंबर को दुनिया भर में ‘अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस’ का जश्न मनाया गया. लाज़िमी तौर पर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सामूहिक नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए दुनिया के लोकतांत्रिक देशों को आपसी जुड़ावों के और अधिक साधन तलाशने चाहिए. निश्चित रूप से ऐसे सहयोग के रास्ते में चुनौतियां भी होंगी, इनमें चीन और रूस से ख़तरे को लेकर अलग-अलग विचार, घरेलू वैधानिक और नियामक ढांचे में अंतर और प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर प्राथमिकताओं में फ़र्क़, जैसे मसले शामिल हैं. बहरहाल तालमेल क़ायम करने की इस पूरी क़वायद की कामयाबी के लिए आपसी मतभेद की तलाश करना और उनके हिसाब से क़दम बढ़ाना ज़रूरी है. सौ बात की एक बात ये है कि प्रौद्योगिकी, आज राष्ट्रीय सत्ता का अहम आयाम बन गई है और वैश्विक प्रशासन की अगुवाई के लिए इस क्षेत्र में आगे बढ़ना निहायत ज़रूरी हो गया है.
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Dr Sameer Patil is Director, Centre for Security, Strategy and Technology at the Observer Research Foundation. His work focuses on the intersection of technology and national ...
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