Published on Nov 17, 2021 Updated 0 Hours ago

डब्ल्यूटीओ को एक पैमाना विकसित करने की ज़रूरत है ताकि ये पता लगाया जा सके कि कौन से देश विकासशील देशों की श्रेणी में आते हैं. इससे विशेष और अलग बर्ताव (एसएंडडीटी) से जुड़ी चुनौतियों को ख़त्म किया जा सकेगा.

विश्व व्यापार संगठन: विकासशील देश विशेष और अलग बर्ताव का लाभ उठा रहे

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को दुरुस्त करना और आसान बनाना है. कहने की ज़रूरत नहीं है कि आर्थिक समृद्धि या विकास के मामले में इसके सभी सदस्य देश एक समान नहीं हैं. इसकी वजह से कम विकसित देशों का हित विकसित देशों के हित से अलग हो गया है. इसके परिणामस्वरूप डब्ल्यूटीओ के भीतर एक गुट आगे बढ़ रह है जिसमें ज़्यादातर विकासशील देश हैं जिसे जी90 कहा जाता है. ऐसे गुट का उद्देश्य डब्ल्यूटीओ से विशेष और अलग बर्ताव (एसएंडडीटी) को सुरक्षित करना है ताकि इसके सदस्य देश अपने विकास के लक्ष्यों को हासिल कर सकें. जिन मुद्दों पर आम तौर पर ध्यान दिया जाता है वो व्यापार और कस्टम मूल्यांकन के लिए तकनीकी बाधाएं हैं. डब्ल्यूटीओ के अलग-अलग मंचों और मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों में एसएंडडीटी पर अनगिनत बार चर्चा हो चुकी है. हाल में 7-8 सितंबर 2021 को विकास के लिए निवेश की सहूलियत पर सुव्यवस्थित चर्चा के दौरान डब्ल्यूटीओ के सदस्यों ने विकासशील और कम विकसित सदस्य देशों के लिए एसएंडडीटी पर प्रस्ताव की चर्चा की. इसको लेकर कई विरोधाभासी रवैया रहे हैं और इसलिए एसएंडडीटी पर भारत की स्थिति और इस साल होने वाले अगले डब्ल्यूटीओ मंत्रीस्तरीय सम्मेलन (एमसी12) के दौरान उस स्थिति को बरकरार रखने के असर को समझना महत्वपूर्ण है.

जिन मुद्दों पर आम तौर पर ध्यान दिया जाता है वो व्यापार और कस्टम मूल्यांकन के लिए तकनीकी बाधाएं हैं. डब्ल्यूटीओ के अलग-अलग मंचों और मंत्रीस्तरीय सम्मेलनों में एसएंडडीटी पर अनगिनत बार चर्चा हो चुकी है.

विकासशील देशों को एसएंडडीटी प्रावधानों से बढ़ावा

विकासशील और कम विकसित देशों में एसएंडडीटी को लेकर प्रावधानों की संख्या 100 से भी ज़्यादा है और इनमें तकनीकी सहायता की गतिविधियां और समझौता लागू करने के लिए बदलाव की लंबी अवधि शामिल हैं. साथ ही व्यापार से जुड़े निवेश उपायों, टैरिफ और व्यापार, ग़ैर-टैरिफ बाधाएं, सब्सिडी, स्वच्छता के क़दम, बाज़ार तक पहुंच, इत्यादि से जुड़े समझौतों पर प्रस्ताव भी शामिल हैं. विकासशील देशों को इन एसएंडडीटी प्रावधानों से बड़ा बढ़ावा दिया जाता है और वो एक समान स्तर पर विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए ख़ुद को तैयार कर सकते हैं. विशेष बर्ताव के लिए क्षेत्रों की ऐसी व्यापक सूची को अलग-अलग देशों को उनके टिकाऊ विकास लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करने के लिए उपयोगी माना जाता है. यहां तक कि भारत जैसे देशों को भी विशाल इनपुट सब्सिडी और न्यूनतम मूल्य समर्थन को मंज़ूरी देने के लिए इस तरह के विशेष और अलग बर्ताव से फ़ायदा मिलता है.

हालांकि सभी तरह के विशेष बर्ताव के स्वरूप की तरह एसएंडडीटी भी आलोचनाओं और चिंताओं से सुरक्षित नहीं रहा है. वैसे कौन सा देश विकासशील है और ये तय करने के लिए किस पैमाने का इस्तेमाल किया गया है, इसको लेकर विशिष्ट तौर पर चिंता जताई गई है. वर्तमान में डब्ल्यूटीओ स्वयं निर्धारण की पद्धति का पालन करता है जहां कोई भी देश ख़ुद को विकासशील देश की श्रेणी में रख सकता है और इस मामले में उस देश की बात मानी जाएगी. लेकिन इस प्रक्रिया की वजह से विशेष और अलग बर्ताव हासिल करने की चाह रखने वाले कई देशों के मामले में ग़लत जानकारी देने के आरोप लगे हैं.

उदाहरण के लिए, सिंगापुर जैसे उच्च आमदनी वाले देश ने कई बार ख़ुद को विकासशील देशों की श्रेणी में घोषित किया है. सिंगापुर के व्यापार और उद्योग मंत्रालय का ये रवैया बना हुआ है कि सिंगापुर एक छोटी अर्थव्यवस्था है जो प्राकृतिक संसाधनों से वंचित है और ऐसे में वो वैश्विक व्यापार पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. एक और उदाहरण चीन है. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था या सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद क्रय शक्ति समानता के आधार पर विश्व बैंक के द्वारा चीन को “उच्च-मध्यम-आमदनी” वाले देश की श्रेणी में रखा गया है. ख़ुद को ‘सबसे बड़ा विकासशील देश’ घोषित करने वाला चीन इस तरह के दर्जे का स्वयं स्वागत करता है और उसे बढ़ावा देता है. इसी तरह से भारत ने भी ख़ुद को विकासशील देश का दर्जा दिया है और इसी के अनुसार विश्व बैंक ने भारत को निम्न-मध्यम-आमदनी वाली अर्थव्यवस्था की श्रेणी में रखा है.

अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के द्वारा विरोधी दृष्टिकोण अपनाने और उसके संभावित पालन को आगे बढ़ाते हुए संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) ने एक नोटिस का प्रकाशन किया है जो विकासशील और कम विकसित देशों की सूची में संशोधन करता है.

चूंकि इस तरह के दावे बनाये जाते हैं, इसलिए इसके ख़िलाफ़ भी दावा देकर इसे चुनौती दी जाती है. मिसाल के तौर पर अमेरिका ने कई देशों के द्वारा ख़ुद को ‘विकासशील’ देश बताने के दावे का ज़ोरदार विरोध किया है. अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के द्वारा विरोधी दृष्टिकोण अपनाने और उसके संभावित पालन को आगे बढ़ाते हुए संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) ने एक नोटिस का प्रकाशन किया है जो विकासशील और कम विकसित देशों की सूची में संशोधन करता है. इस सूची में शामिल देश संभावित तौर पर प्रतिकारी शुल्क (सीवीडी) छानबीन को लेकर अलग बर्ताव के योग्य हो सकते हैं.

इसका मतलब ये है कि भारत जैसे देशों के लिए शुल्क छानबीन की प्रक्रिया शुरू हो सकती है और अगर इस मामले में विरोधी दृष्टिकोण माना गया तो अमेरिका उस स्थिति में भारत पर आसानी से दंड लगा सकता है जब भारत की व्यापार पद्धति ‘अनुचित’ सब्सिडी वाले निर्यात से अमेरिकी उद्योग को नुक़सान पहुंचाती हुई मिलती है. इससे अमेरिका को भारतीय निर्यात की कमज़ोरी काफ़ी ज़्यादा बढ़ती है.

भारत और चीन अपने-अपने रुख़ पर अडिग

ध्यान देने की बात है कि सिंगापुर ने अमेरिका की बातों को माना है और फ़ैसला किया है कि वो एसएंडडीटी के प्रावधानों का फ़ायदा नहीं उठाएगा. इसी तरह का बर्ताव ब्राज़ील और दक्षिण कोरिया के मामले में भी पाया गया है. हालांकि भारत और चीन अपने रुख़ पर अडिग हैं. सिंगापुर, ब्राज़ील और दक्षिण कोरिया के बर्ताव के विपरीत भारत और चीन ने सभी विकासशील देशों को अपने रवैये पर मज़बूती से टिके रहने को कहा है और अमेरिकी रुख़ को पूरी तरह नकारते हुए पलटवार भी किया है. एसएंडडीटी समझौते को सुरक्षित रखना डब्ल्यूटीओ में भारत के प्रमुख उद्देश्यों में से एक बन गया है. इसलिए अमेरिका की तरफ़ से जो विरोधी दृष्टिकोण आगे बढ़़ाया गया है, उसको लेकर भी एक मिलीजुली प्रतिक्रिया सामने आई है.

उपयुक्त और उचित पैमानों के आधार पर एक निष्पक्ष मानक विकसित किया जाए जिसका इस्तेमाल संयुक्त राष्ट्र, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और कुछ हद तक विश्व बैंक द्वारा किया जाता है. 

एक चिंता एसएंडडीटी के प्रावधानों के क्रियान्वयन की निगरानी से भी जुड़ी है. 2013 के डब्ल्यूटीओ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भी चिंता जताई गई थी कि कैसे ये प्रावधान असरदायक हैं. इस तरह के मूल्यांकन के लिए मज़बूत निगरानी व्यवस्था स्थापित करने की ज़रूरत है.   

संभावित समाधान

व्यापार विवादों के अंत के लिए हमें एक ऐसा समाधान सोचने की ज़रूरत है जिस पर सभी पक्षों की सहमति बन सके और जिसे एक समान लागू किया जा सके. ऐसा करने का एक तरीक़ा ये हो सकता है कि उपयुक्त और उचित पैमानों के आधार पर एक निष्पक्ष मानक विकसित किया जाए जिसका इस्तेमाल संयुक्त राष्ट्र, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और कुछ हद तक विश्व बैंक द्वारा किया जाता है. डब्ल्यूटीओ के सदस्य कई मानकों जैसे अर्थव्यवस्था का आकार, प्रति व्यक्ति जीडीपी या व्यापार की मात्रा में से किसी को चुन सकते हैं और एक सीमा रेखा तय कर सकते हैं जिससे आगे होने पर कोई भी देश ख़ुद को विकासशील नहीं कह सकें.

डब्ल्यूटीओ को बनाए रखने और उसे मज़बूत करने में सभी सदस्य देशों का हित दांव पर है. सदस्य देशों को एकजुट होकर एसएंडडीटी के लिए विकास के दर्जे के वर्गीकरण का समाधान करना चाहिए और इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण लाना चाहिए. इन परिस्थितियों में ही हम समानता, निष्पक्षता और दूसरे देशों के द्वारा अन्य सदस्य देशों पर अपने मन के मुताबिक़ शर्तें लागू करके हस्तक्षेप से आज़ादी सुनिश्चित की जा सकती है.

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