Author : Aarshi Tirkey

Published on Feb 19, 2021 Updated 0 Hours ago

विश्व व्यापार संगठन के 27 प्रतिशत सदस्य अफ्रीका से आते हैं और इसके कुल सदस्यों में से 35 प्रतिशत की भागीदारी विकासशील देशों की है. फिर भी, अब से पहले WTO का नेतृत्व किसी अफ्रीकी ने नहीं किया था.

डब्लूटीओ को पहली बार मिली महिला और ‘अफ्रीकी मूल’ की महानिदेशक

6 फ़रवरी को जब दक्षिण कोरिया की प्रत्याशी यू म्युंग-ही ने विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक की रेस से ख़ुद को अलग कर लिया, तो नाइजीरिया की एनगोज़ी ओकोंजो-इवियाला के डब्लूटीओ की अगली महानिदेशक बनने का रास्ता साफ़ हो गया. विश्व व्यापार संगठन के 25 साल के इतिहास में पहली बार है, जब इसकी बागडोर एक अफ्रीकी और पहली महिला महानिदेशक एनगोज़ी ओकोंजो-इवियाला के हाथ में होगी. सच तो ये है कि ख़ुद संयुक्त राष्ट्र की 1945 में स्थापना के बाद से अब तक इसका नेतृत्व किसी महिला के हाथ में नहीं रहा है.

डॉक्टर ओकोंजो-इवियाला अपने देश नाइजीरिया में पहले ही इतिहास रच चुकी हैं, जब वो देश की पहली महिला वित्त मंत्री (2003 से 2006 के बीच और फिर 2011-2015 के दौरान) बनी थीं. वर्ष 2006 में वो कुछ दिनों के लिए नाइजीरिया की विदेश मंत्री भी रही थीं. डॉक्टर ओकोंजो एक अनुभवी अर्थशास्त्री और अंतरराष्ट्रीय विकास से जुड़े मामलों की विशेषज्ञ हैं; उनके पास हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र की डिग्री है और उन्होंने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से क्षेत्रीय अर्थशास्त्र एवं विकास में पीएचडी की है. डॉक्टर ओकोंजो के पास 25 साल तक विश्व बैंक में काम करने का अनुभव भी है. विश्व बैंक में तरक़्क़ी करते हुए वो वर्ष 2007 में वो नंबर दो की हैसियत रखने वाले प्रबंध निदेशक पद तक पहुंची थीं. इस पद पर रहने के दौरान डॉक्टर ओकोंजे ने अफ्रीका, दक्षिणी एशिया, यूरोप और मध्य एशिया के 81 अरब डॉलर के कार्यकारी पोर्टफोलियो की ज़िम्मेदारी संभाली थी. विश्व बैंक में काम करने के दौरान, डॉक्टर ओकोंजो-इवियाला ने दुनिया के ग़रीब देशों की मदद के लिए कई नए क़दम उठाए थे. वर्ष 2010 में उन्होंने इंटरनेशनल डेवेलपमेंट एसोसिएशन (IDA) के लिए दानदाताओं से 50 अरब डॉलर जुटाए थे. IDA, विश्व बैंक का वो फंड है, जिसके माध्यम से सबसे कम आमदनी वाले देशों की मदद की जाती है. अगस्त 2020 में साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट को दिए एक इंटरव्यू में डॉक्टर ओकोंजो ने कहा था कि, ‘अगर आप मेरे लंबे करियर पर नज़र डालें तो आपको पता चलेगा कि मैंने सुधार किए हैं…और वो सुधार बेहद क्रांतिकारी थे…अगर आप मुझे इजाज़त दें, तो मैं कहना चाहूंगी कि वो बड़े साहसिक क़दम थे.’

अगस्त 2020 में साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट को दिए एक इंटरव्यू में डॉक्टर ओकोंजो ने कहा था कि, ‘अगर आप मेरे लंबे करियर पर नज़र डालें तो आपको पता चलेगा कि मैंने सुधार किए हैं…और वो सुधार बेहद क्रांतिकारी थे…अगर आप मुझे इजाज़त दें, तो मैं कहना चाहूंगी कि वो बड़े साहसिक क़दम थे.’

विश्व व्यापार संगठन को नए महानिदेशक का चुनाव करने की ज़रूरत तब पड़ी, जब इसके पूर्व प्रमुख रॉबर्टो एज़ेवेडो ने अपना कार्यकाल ख़त्म होने से एक साल पहले ही अचानक इस्तीफ़ा दे दिया. रॉबर्टो एज़ेवेडो ने आधिकारिक रूप से 31 अगस्त 2020 को WTO महानिदेशक का पद छोड़ दिया था. उन्होंने कहा कि वो विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों को नया महानिदेशक चुनने के लिए पर्याप्त समय देना चाहते थे. हालांकि, रॉबर्टो एज़ेवेडो के पद छोड़ने के कारण WTO उस वक़्त नेतृत्व विहीन हो गया, जब दुनिया बड़ी उथल-पुथल से गुज़र रही थी. एक तरफ़ तो उदारवादी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था चौतरफ़ा हमले झेल रही थी-जो अब भी झेल रही है. वहीं दूसरी ओर, दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों, अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी और व्यापार युद्ध छिड़ा हुआ है. विश्व व्यापार पर इसका बेहद नकारात्मक असर पड़ा है. विश्व व्यापार संगठन की अपीलीय संस्थाओं में नियुक्ति करने में अमेरिका की आनाकानी ने भी WTO के मुश्किल व्यापारिक विवादों का समाधान करने की क्षमता को प्रभावित किया है. दोहा विकास एजेंडा को लेकर वार्ताएं भी अटकी हुई हैं- कई महत्वपूर्ण विषयों, जैसे कि खाद्य सुरक्षा के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के शेयर धारकों पर कोई समेकित फ़ैसला नहीं लिया जा सका है. इसके अलावा, विकासशील देशों द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद, विकसित देश ‘सिंगापुर मुद्दों’ पर वार्ताओं को आगे बढ़ाने के उत्सुक हैं. इसके दायरे में निवेश, प्रतिद्वंदिता की नीति सरकारी ख़रीद और व्यापार संवर्धन जैसे विषय आते हैं. विकासशील और विकसित देशों के बीच दरार और भी चौड़ी हो गई है. 2019 में ट्रंप प्रशासन ने एक प्रस्ताव रखा कि विश्व व्यापार संगठन में किसी देश को जो ख़ुद से विकासशील देश घोषित करने की व्यवस्था हासिल है, उसे ख़त्म कर दिया जाए. इसका असर निश्चित रूप से भारत पर भी पड़ता.

दक्षिण अफ्रीका और भारत ने WTO के सामने रखा एक प्रस्ताव

हालांकि, विश्व व्यापार संगठन की बहुपक्षीय व्यापारिक व्यवस्था के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती इस वक़्त खड़ी है, वो है कोविड-19 की महामारी. इसके चलते दूसरे विश्व युद्ध के बाद से आज दुनिया सबसे गंभीर आर्थिक सुस्ती के दौर से गुज़र रही है. महामारी के कारण, तमाम देशों में लगाए गए लॉकडाउन, निर्यात पर प्रतिबंध और व्यापारिक पाबंदियों ने मेडिकल के सामान, उपकरणों और टीकों के लिए वैश्विक व्यापार के रास्तों को खुला रखने की अहमियत को ही उजागर किया है. अब जबकि दुनिया को कोविड-19 के टीके मिल रहे हैं, तो एक और फौरी चुनौती इस बात की खड़ी हो गई है कि अग्रिम ख़रीद समझौतों (APAs) के तहत बहुत से विकसित देशों ने पहले वैक्सीन हासिल करने के क़रार कर लिए हैं. इससे विकासशील देशों को कोविड-19 के टीके हासिल करने के लिए और भी इंतज़ार करना होगा. टीकों के वितरण और ख़रीद में इस असमानता को देखते हुए दक्षिण अफ्रीका और भारत ने विश्व व्यापार संगठन के सामने एक प्रस्ताव रखा है कि वो कोविड-19 के टीकों से जुड़े बौद्धिक संपदा के अधिकारों को अभी स्थगित कर दे, जिससे कि सभी देश समय से सस्ती दरों पर इसके टीकों का निर्माण कर सकें.

टीकों के वितरण और ख़रीद में इस असमानता को देखते हुए दक्षिण अफ्रीका और भारत ने विश्व व्यापार संगठन के सामने एक प्रस्ताव रखा है कि वो कोविड-19 के टीकों से जुड़े बौद्धिक संपदा के अधिकारों को अभी स्थगित कर दे, जिससे कि सभी देश समय से सस्ती दरों पर इसके टीकों का निर्माण कर सकें.

WTO का सबसे प्रमुख एजेंडा

रॉबर्टो एज़ेवेडो के इस्तीफ़े के बाद, अब बिल्कुल सही समय आया है जब विश्व व्यापार संगठन के शीर्ष पर एक अफ्रीकी और एक महिला विराजमान हो. यूरोप, ओशानिया, एशिया और दक्षिणी अमेरिका से विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक बन चुके हैं. हालांकि, अब तक किसी अफ्रीकी ने WTO का नेतृत्व नहीं किया था. जबकि, WTO के 27 प्रतिशत सदस्य अफ्रीका से आते हैं और इसके 35 फ़ीसद सदस्य विकासशील देश हैं. ऐसे में डॉक्टर ओकोंजो-इवियाला का WTO महानिदेशक बनना बहुत बड़ी उपलब्धि है. ये उपलब्धि ऐसे वक़्त में हासिल हुई है, जब दुनिया रंग, नस्ल और जातीयता के आधार पर बुरी तरह बंटी हुई है. सोमालिया में राष्ट्रपति पद की पहली महिला प्रत्याशी फड्यूमो डेइब का कहना है कि डॉक्टर ओकोंजो का WTO महानिदेशक बनना, ‘अफ्रीका की महिलाओं की क़ाबिलियत और उनकी नेतृत्व क्षमता पर मुहर लगने सरीखा है, जबकि वो समाज में लगातार संस्थागत मुश्किलें और बाधाओं का सामना करती हैं.’ महानिदेशक पद पर नियुक्ति के साथ डॉक्टर ओकोंजो-इवियाला, विश्व व्यापार संगठन में अपने साथ एक नज़रिया लेकर आएंगी, क्योंकि उन्होंने अब तक इस संगठन के साथ काम नहीं किया है. चूंकि वो ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन ऐंड इम्युनाइज़ेशन (GAVI) के बोर्ड की भी अध्यक्ष हैं, और विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोविड-19 पर विशेष दूत भी हैं- तो ऐसे में WTO के सदस्य देश और ख़ास तौर से कम आमदनी वाले व विकासशील देश ये उम्मीद कर सकते हैं कि वैक्सीन का निर्माण और उसका समान वितरण अब WTO का सबसे प्रमुख एजेंडा होगा.

हालांकि, डॉक्टर ओकोंजो ने अपनी पढ़ाई और कामकाजी ज़िंदगी का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका में बिताया है और उनके पास अमेरिका की दोहरी नागरिकता भी है. इसके बावजूद, डॉक्टर ओकोजों-इवियाला की उम्मीदवारी का अफ्रीका, यूरोपीय संघ और कैरेबियाई देशों ने तो समर्थन किया था. लेकिन, ट्रंप प्रशासन से उन्हें वैसा समर्थन नहीं मिल सका था. अक्टूबर 2020 में विश्व व्यापार संगठन की एक बैठक में WTO के प्रवक्ता कीथ रॉकवेल ने कहा था कि, ‘एक प्रतिनिधिमंडल डॉक्टर ओकोंजी का समर्थन नहीं कर पाया और कहा कि वो दक्षिण कोरिया की मंत्री (यू म्युंग-ही) के पक्ष में हैं- वो प्रतिनिधिमंडल अमेरिका का था.’ मैदान से हटने को लेकर कई महीनों के कूटनीतिक दबाव के बाद आख़िरकार, फ़रवरी 2021 के पहले हफ़्ते में यू म्युंग-ही ने ख़ुद को महानिदेशक पद की दौड़ से अलग कर लिया था.

WTO के सदस्य देश और ख़ास तौर से कम आमदनी वाले व विकासशील देश ये उम्मीद कर सकते हैं कि वैक्सीन का निर्माण और उसका समान वितरण अब WTO का सबसे प्रमुख एजेंडा होगा.

डॉक्टर ओकोंजो-इवियाला एक विकसित देश नाइजीरिया से आती हैं, इस तथ्य का एक मतलब ये भी है कि उन्हें कम और मध्यम आमदनी वाले देशों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दों की बेहतर समझ है. IDA में कम आमदनी वाले देशों (LDC) की बेहतरी के लिए काम करने और विकासशील देशों के सामने खड़ी चुनौतियों से भली-भांति परिचित होने के चलते, डॉक्टर ओकोंजो के महानिदेशक बनने से WTO को विकसित और विकासशील देशों के दृष्टिकोण के बीच वो संतुलन बनाने में मदद मिलेगी, जिसकी आज सख़्त आवश्यकता है. ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि विश्व व्यापार संगठन पर कई बार निष्पक्ष न रहने और विकासशील देशों के प्रति पक्षपात भरा रवैया अपनाने के आरोप लगते रहे हैं. अब विकासशील देशों की निगाह इस बात पर होगी कि WTO की नई महानिदेशक डॉक्टर ओकोंजो स्पेशल ऐंड डिफरेंशियल (S&D) व्यवहार के उन प्रावधानों जैसे मुद्दों से कैसे निपटती हैं, जिन्हें विकसित देश चुनौती दे रहे हैं. बहुत से लोग ये तर्क दे सकते हैं कि विश्व व्यापार संगठन की महानिदेशक का पद विशुद्ध रूप से प्रशासनिक है. लेकिन, महानिदेशक के पास निश्चित रूप से काफ़ी सॉफ्ट पावर भी होती है. पहले भी हम ऐसी कई मिसालें देख चुके हैं जब WTO महानिदेशकों ने अपनी सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल किया है. इसका एक उदाहरण हमने पूर्व महानिदेशक रॉबर्टो एज़ेवेडो के कार्यकाल में देखा था, जब उन्होंने 2013 में WTO के सदस्य देशों के बीच बाली पैकेज को लेकर आम सहमति बनाने में अहम भूमिका निभाई थी.

कम आमदनी वाले देशों (LDC) की बेहतरी के लिए काम करने और विकासशील देशों के सामने खड़ी चुनौतियों से भली-भांति परिचित होने के चलते, डॉक्टर ओकोंजो के महानिदेशक बनने से WTO को विकसित और विकासशील देशों के दृष्टिकोण के बीच वो संतुलन बनाने में मदद मिलेगी, जिसकी आज सख़्त आवश्यकता है. 

डॉक्टर ओकोंजो-इवियाला एक ऐसे संगठन की कमान अपने हाथ में लेने जा रही हैं, जो पिछले साल अगस्त से ही नेतृत्व विहीन है और शायद अब तक के अपने सबसे बड़े संकट का सामना कर रहा है. पिछले कई वर्षों से WTO सदस्य देशों के बीच एक बहुपक्षीय व्यापार समझौता करा पाने में असफल रहा है और वो अधिक मछली मारने को मिलने वाली सब्सिडी ख़त्म करने की वर्ष 2020 की डेडलाइन के लक्ष्य को भी नहीं हासिल कर सका है. सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये है कि 1995 से अब तक विश्व व्यापार संगठन वैश्विक व्यापार वार्ताओं से जुड़ी किसी भी व्यापार वार्ता के दौर को अंतिम रूप नहीं दे सका है और इस तरह वो अपने सदस्य देशों को कोई लाभ पहुंचा पाने में भी असफल रहा है. दोहा दौर की वार्ताएं जो वर्ष 2001 में शुरू हुई थीं, वो ग़रीब देशों को कोई भी लाभ पहुंचा पाने में नाकाम रही हैं; इनमे से बहुत से देश अफ्रीका के हैं. 2017 के व्यापार संवर्धन समझौते को छोड़ दें, तो 1995 के बाद से विश्व व्यापार संगठन कोई बड़ा समझौता करा पाने में भी असफल रहा है. और हां, इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय व्यापार, कोरोना वायरस की महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ है. इससे आर्थिक सुस्ती के ऐसे दौर की शुरुआत हुई है, जो शायद अगले कई सालों तक हमें प्रभावित करती रहे. हार्वर्ड के अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर केनेथ रोगॉफ ने अपने एक लेख में कहते हैं कि, ‘वैश्विक उत्पादन में थोड़े वक़्त के लिए जो गिरावट अभी देखी जा रही है, ऐसा लगता है कि वो पिछले 150 वर्षों की किसी भी आर्थिक सुस्ती से ज़्यादा भयंकर है.’

WTO के पुनर्गठन की ज़रूरत है 

विश्व व्यापार संगठन को इस महामारी के चलते अंतरराष्ट्रीय व्यापार में आई भयंकर उथलपुथल की चुनौती का सामना करना पड़ेगा. अब WTO के पुनर्गठन की ज़रूरत है और डॉक्टर ओकोंजो-इवियाला को व्यापार के अपने जज़्बे और सक्रिय नेतृत्व के अपने वादे को निभाते हुए, विश्व व्यापार संगठन की ऐसी अगुवाई करनी होगी, जिसकी आज संगठन को सख़्त ज़रूरत है. दुनिया अभी भयंकर उठा-पटक के दौर से गुज़ रही है. इसमें कोरोना वायरस की महामारी की भूमिका सबसे अधिक है. जुलाई 2020 में द अफ्रीका रिपोर्ट को दिए गए एक इंटरव्यू में ओकोंजो-इवियाला ने कहा था कि, ‘दुनिया को बहुपक्षीयवाद की आज जितनी सख़्त आवश्यकता है, वैसी पहले कभी नहीं थी…एक बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था वो होती है, जो सबको अच्छे नतीजे दे सके. जिसमें सबकी जीत हो. ऐसी किसी भी बहुपक्षीय व्यवस्था के केंद्र में विश्व व्यापार संगठन ही आता है.’ सही नेतृत्व की मदद से विश्व व्यापार संगठन आज की दुनिया में अपनी प्रासंगिकता को साबित कर सकता है. इसके लिए वो पारदर्शिता और उम्मीद के मुताबिक़ नतीजे देने, व्यापारिक तनाव कम करने और सबके लिए प्रगति और विकास को बढ़ावा देने का काम कर सकता है.


आर्शी तिर्की ओआरएफ में जूनियर फेलो हैं और कृपा आनंद रिसर्च इंटर्न हैं.

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