Author : B. Rahul Kamath

Published on Oct 07, 2021 Updated 0 Hours ago

अफ़ग़ानिस्तान संकट के चलते अमेरिका में जो बाइडेन के नए प्रशासन की उथल-पुथल भरी शुरुआत के बाद, ब्रिटेन और अमेरिका के रिश्ते फिर से बहाल हुए हैं और पटरी पर लौट आए हैं.

विश्व: ब्रिटेन और अमेरिका के बीच अटलांटिक गठबंधन की बहाली

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के संबंध ने, बाइडेन के उस बयान के बाद से लंबा सफ़र तय कर लिया है, जब 2019 में बाइडेन ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ‘शारीरिक और जज़्बाती क्लोन’ क़रार दिया था. जब बाइडेन प्रशासन के लोगों के बीच, बोरिस जॉनसन और डोनाल्ड ट्रंप के मज़बूत रिश्तों की यादें ताज़ा थीं, तो ज़ाहिर है जॉनसन के पास इस बात का पर्याप्त कारण था कि वो बाइडेन द्वारा अनदेखी किए जाने के डर से चिंतित रहे होंगे. फिर भी, अटलांटिक महासागर के आर-पार स्थित दो पुराने सहयोगियों के रिश्ते बिल्कुल अलग ही दिशा में चल पड़े हैं. अपने तीन दिनों के अमेरिका दौरे के दौरान, बोरिस जॉनसन ने पहले अमेरिका की उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस से मुलाक़ात की. इस मुलाक़ात में उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन के बीच बढ़ते सहयोग और आपसी जुड़ाव पर संतोष जताया. दोनों नेताओं ने महामारी से निपटने, जलवायु परिवर्तन का सामना करने और पूरी दुनिया में लोकतंत्र को मज़बूत करने जैसे अहम मसलों पर चर्चा की. हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान, इराक़ और लीबिया में पश्चिमी देश लोकतंत्र की रक्षा कर पाने में नाकाम ही रहे हैं.

जॉनसन इस उम्मीद में अमेरिका गए थे कि वो ग्लासगो में इसी महीने के आख़िर में पर्यावरण पर होने वाले शिखर सम्मेलन (COP26) को लेकर अपनी उम्मीदें अमेरिका से साझा कर सकें. 

ब्रिटेन की उम्मीदों को लगा पंख

ब्रिटेन में चुनाव के बाद से बोरिस जॉनसन का ये पहला विदेशी दौरा था. इसे ब्रिटेन की कूटनीतिक विजय के तौर पर देखा जा रहा है. वो इसलिए क्योंकि, जो बाइडेन संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान, न्यूयॉर्क में किसी भी विदेशी मेहमान से मिलने के लिए तैयार नहीं थे. जॉनसन इस उम्मीद में अमेरिका गए थे कि वो ग्लासगो में इसी महीने के आख़िर में पर्यावरण पर होने वाले शिखर सम्मेलन (COP26) को लेकर अपनी उम्मीदें अमेरिका से साझा कर सकें. ग्लासगो का ये सम्मेलन ब्रिटेन की अध्यक्षता में ही हो रहा है. अपने अमेरिका दौरे से पहले, बोरिस जॉनसन ने जलवायु परिवर्तन से निपटने में ग़रीब देशों की मदद के लिए अमीर देशों से 100 अरब डॉलर की मदद हासिल करने का लक्ष्य रखा था. डर इस बात का था कि COP26 से पहले ब्रिटेन अपना ये मक़सद हासिल करने में नाकाम भी हो सकता है. हालांकि, जो बाइडेन ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए ग़रीब देशों की मदद में अमेरिका का योगदान दोगुना करते हुए इसे 11.2 अरब डॉलर कर दिया. ब्रिटेन की उम्मीदों को तब और पंख लग गए, जब चीन ने दूसरे देशों में कोयले से चलने वाले नए बिजलीघर न बनाने का एलान कर दिया. बोरिस जॉनसन ने न्यूयॉर्क में दुनिया भर के नेताओं से अपील की कि वो संयुक्त राष्ट्र महासभा के सम्मेलन को मानवता के इतिहास का अहम मोड़ मानकर, ‘दुनिया भर में लगी आग बुझाने’ के लिए एकजुट हो जाएं. महासभा में बोरिस जॉनसन का भाषण कई मायनों में अजीब रहा. उन्होंने कार्टून किरदार, करमिट द फ्रॉग और उसके गीत, ‘इट्स नॉट इज़ी बीइंग ग्रीन’ का ज़िक्र किया और कहा कि करमिट का ये बयान ग़लत था. क्योंकि, वो ये उम्मीद लगा रहे हैं कि ग्लासगो के सम्मेलन में विश्व के बढ़ते तापमान पर क़ाबू पाने के लिए मज़बूत नीतिगत क़दम उठाए जाएंगे.

आशंका इस बात की भी है कि यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया के बीच व्यापार समझौते के लिए होने वाली वार्ताओं को भी फ्रांस टाल देगा. 

ब्रिटेन की सरकार, पिछले बीस वर्षों से पूरी वफ़ादारी से अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन का समर्थन करती रही है. जबकि, इस मामले में उसे यूरोपीय संघ के अन्य प्रमुख देशों के विरोध का भी सामना करना पड़ा है. लेकिन, अफ़ग़ानिस्तान से सेना वापस बुलाने के अमेरिका के इकतरफ़ा फ़ैसले ने ब्रिटेन को नाख़ुश कर दिया था. बोरिस जॉनसन ने अपनी नाराज़गी जताते हुए कहा था कि ये अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका की नाकामी का सबूत है. ब्रिटेन की संसद के निचले सदन, हाउस ऑफ़ कॉमन्स के सांसदों ने अफ़ग़ानिस्तान से सेना वापस बुलाने के अमेरिका के फ़ैसले पर अपने भयंकर ग़ुस्से और दुख का इज़हार किया. उन्होंने कहा कि बाइडेन प्रशासन का ये क़दम शर्मनाक और तबाही लाने वाला है. अमेरिका ने सेना वापस बुलाने की समय सीमा बढ़ाने की ब्रिटेन की तमाम अपीलों की अनदेखी कर दी थी. इससे ब्रिटेन को ये संकेत मिला था कि स्वायत्त मसलों पर भी वो अमेरिका पर निर्भर है. कई दशकों में ऐसा पहली बार हुआ था, जब दुनिया के एक बड़े जियोपॉलिटिकल और मानवीय संकट को लेकर अमेरिका और ब्रिटेन सार्वजनिक रूप से आमने- सामने खड़े थे. अफ़ग़ानिस्तान के संकट ने अमेरिका और ब्रिटेन के रिश्तों के इतिहास में गिरावट का सबसे बुरा दौर देखा था. दोनों देशों के बीच बहुत पुराना, ये वही रिश्ता था जिसे कभी विंस्टन चर्चिल ने ‘विशेष संबंध’ कहा था.

लेकिन, दोनों देशों के संबंध जल्द ही बुरे दौर से बाहर निकल आए, जब ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच AUKUS के सुरक्षा गठबंधन का एलान किया गया. ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पारंपरिक अंग्रेज़ी भाषी देशों के बीच इस गठबंधन के लिए फ्रांस के साथ अपने गठबंधन को तोड़ दिया था. ब्रिटेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्टीफेन लवग्रोव ने इस समझौते को दुनिया में शक्तियों के सबसे बड़े सहयोग कहा. क्योंकि, AUKUS ने हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के विस्तारवाद की रोकथाम के लिए सुरक्षा के समझौतों को नए सिरे से परिभाषित किया है. AUKUS से पारंपरिक सहयोगी देश और क़रीब आए हैं. लेकिन इससे फ्रांस और ब्रिटेन के बीच की पुरानी प्रतिद्वंदिता और भी बढ़ गई है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ख़ुद को अलग-थलग किए जाने पर फ्रांस ने तीन देशों के बीच इस गठबंधन को लेकर ज़बरदस्त नाराज़गी का इज़हार किया. फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां ईव ल द्रियां और सैन्य बलों की मंत्री फ्लोरेंस पार्ली ने ऑस्ट्रेलिया द्वारा AUKUS के लिए फ्रांस से किनारा करने पर खुलकर निराशा ज़ाहिर की. ये समझौता होने के बाद फ्रांस ने ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से अपने राजदूत वापस बुला लिए थे और फ्रांस व ब्रिटेन के रक्षा मंत्रियों के बीच सम्मेलन को भी स्थगित कर दिया था. आशंका इस बात की भी है कि यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया के बीच व्यापार समझौते के लिए होने वाली वार्ताओं को भी फ्रांस टाल देगा. फ्रांस, इस समझौते में ब्रिटेन को अमेरिका के एक जूनियर साझेदार के तौर पर देखता है. फ्रांस का मानना है कि जूनियर पार्टनर के तौर पर ही 2003 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने इराक़ पर अमेरिका के आक्रमण का समर्थन करने का फ़ैसला किया था. फ्रांस के ग़ुस्से पर प्रतिक्रिया देते हुए बोरिस जॉनसन ने कहा था कि, ‘मुझे लगता है कि हमारे कुछ क़रीबी दोस्त हक़ीक़त को स्वीकार कर लें और ये समझ लें कि उनकी नाराज़गी से हमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है.’ ब्रिटेन के बारे में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति चार्ल्स डे गॉल का 1944 का वो नज़रिया आज भी काफ़ी प्रासंगिक है, जिसके तहत उन्होंने ब्रिटेन को यूरोप पर अमेरिका के दबदबे को आगे बढ़ाने वाले नक़ाब के तौर पर बयां किया था; हालांकि, फ्रांस को हाशिए पर धकेलते हुए AUKUS समझौते पर दस्तख़त करके ब्रिटेन और अमेरिका ने अपने यूरोपीय सहयोगियों के साथ ऐतिहासिक दरार को और चौड़ा ही किया है.

अमेरिका पहुंचने से पहले बोरिस जॉनसन के दौरे का एक अन्य प्रमुख एजेंडा अमेरिका और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते (UKUSFTA) को रफ़्तार देने का भी था. ये समझौता, बोरिस जॉनसन के ग्लोबल ब्रिटेन रणनीति का अहम हिस्सा है.

कई समझौतों के ज़रिए संवाद

अमेरिका पहुंचने से पहले बोरिस जॉनसन के दौरे का एक अन्य प्रमुख एजेंडा अमेरिका और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते (UKUSFTA) को रफ़्तार देने का भी था. ये समझौता, बोरिस जॉनसन के ग्लोबल ब्रिटेन रणनीति का अहम हिस्सा है. ब्रेग्ज़िट के बाद से ही ब्रिटेन, अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के ज़रिए अपनी स्वतंत्रता को और मज़बूत बना रहा है. ब्रिटेन अब तक ऐसे 69 व्यापार समझौते कर चुका है. इसमें यूरोपीय संघ के साथ संधि भी शामिल है. ब्रेग्ज़िट के बाद से ब्रिटेन का ज़ोर यूरोप से अन्य स्थानों पर ध्यान केंद्रित करने पर है. बोरिस जॉनसन की कोशिश है कि वो यूरोप से दूरी बनाकर और अन्य देशों से समझौते करके मौजूदा विश्व व्यवस्था में ब्रिटेन का कद और भूमिका, दोनों ही बढ़ा सकते हैं. अमेरिका और ब्रिटेन के बीच व्यापार समझौते को सोने पर सुहागा के तौर पर पेश किया जा रहा है, क्योंकि अमेरिका, ब्रिटेन के निर्यात का सबसे बड़ा बाज़ार है. दोनों देशों के बीच क़रीब 57.72 अरब डॉलर का व्यापार होता है.

ब्रिटेन ने अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर बातचीत ट्रंप प्रशासन के दौर में शुरू की थी; हालांकि, जनवरी में जो बाइडेन के कमान संभालने के बाद से समझौता वार्ता ठप पड़ी है, क्योंकि इस वक़्त बाइडेन प्रशासन का ध्यान अमेरिका और ब्रिटेन के बीच व्यापार समझौते से ज़्यादा अहम अन्य वैश्विक और घरेलू मसलों पर है. व्यापार समझौते के ज़रिए ब्रिटेन का लक्ष्य है कि वो वित्तीय सेवाओं और स्कॉच व्हिस्की और कैश्मीर ऊन जैसे आला दर्ज़े के उत्पादों पर कम व्यापार कर के साथ बाज़ार में अच्छी पहुंच हासिल कर सके. वहीं, अमेरिका को ये उम्मीद है कि व्यापार समझौते से अमेरिकी कंपनियों को ब्रिटेन के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र और कृषि उत्पादों के बाज़ार तक पहुंच बढ़ाने का मौक़ा मिलेगा. क्योंकि ये दोनों ही क्षेत्र ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था का प्रमुख हिस्सा हैं. ब्रिटेन के कृषि क्षेत्र में देश की 69 प्रतिशत ज़मीन और क़रीब 1.5 प्रतिशत कामकाजी काम करते हैं. अमेरिका ने ब्रिटेन से लैंब और बीफ के आयात पर लगा क़रीब दो दशक पुराना प्रतिबंध भी हटा लिया है. ये ब्रिटेन के पोल्ट्री निर्यात उद्योग लिए बडी राहत है. क्योंकि, अगले पांच वर्षों में इस उद्योग में 6.6 करोड़ यूरो का इज़ाफ़ा होने का अनुमान है. अमेरिका ने ब्रिटेन से बीफ के आयात पर 1998 में तब प्रतिबंध लगा दिया था, जब ब्रिटेन में मैड काऊ बीमारी फैली हुई थी. ये बीमारी धीरे धीरे जानवरों के दिमाग़ और उनकी रीढ़ की हड्डी को तबाह कर देती है.

बोरिस जॉनसन की ये बात सही है कि जो ‘बाइडेन के पास करने के लिए बहुत सारा काम’ है. इसीलिए ब्रिटेन ने अमेरिका, मेक्सिको और कनाडा के बीच समझौते (USMCA) में शामिल होने जैसे अन्य विकल्पों पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया है. इस समझौते ने उत्तर अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते (NAFTA) की जगह ली है.

बोरिस जॉनसन की ये बात सही है कि जो ‘बाइडेन के पास करने के लिए बहुत सारा काम’ है. इसीलिए ब्रिटेन ने अमेरिका, मेक्सिको और कनाडा के बीच समझौते (USMCA) में शामिल होने जैसे अन्य विकल्पों पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया है. इस समझौते ने उत्तर अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते (NAFTA) की जगह ली है. USMCA पर 2019 में दस्तख़त हुए थे. इसके तहत पुराने समझौते में बौद्धिक संपदा के अधिकारों और डिजिटल व्यापार को शामिल करके उसे नया रूप दिया गया था. हालांकि, इस समझौते में किसी अन्य देश को शामिल किए जाने का प्रावधान नहीं है. ब्रिटेन, कॉम्प्रिहेंसिव ऐंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (CPTPP) में शामिल होने के लिए भी ज़ोर लगा रहा है. उसने 1 फरवरी 2021 को औपचारिक रूप से इस समझौते का हिस्सा बनने की अर्ज़ी दी थी. ब्रिटेन की कोशिश है कि वो बस एक समझौते के ज़रिए 11 व्यापारिक साझीदारों के साथ अपने रिश्ते को एक ही बार में नया कर सके. उम्मीद है कि ब्रिटेन, CPTPP द्वारा तय किए गए नियमों को मंज़ूर कर लेगा और इसके सदस्य देशों के बाज़ार तक पहुंच बनाने के लिए हर देश से अलग अलग बातचीत करेगा. CPTPP साझा आयोग के मौजूदा अध्यक्ष जापान ने सदस्य बनने की ब्रिटेन की अर्ज़ी का ये कहते हुए स्वागत किया है कि एशिया- प्रशांत क्षेत्र में वो एक अहम सामरिक साझीदार है. इन सभी बातों से इतर, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते की प्रमुख बाधा, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के बीच उत्तरी आयरलैंड की सीमा को लेकर चल रहा विवाद है. अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ने कहा कि अगर यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के बीच गुड फ्राइडे समझौते पर कोई विपरीत असर पड़ता है, तो अमेरिका और ब्रिटेन के बीच व्यापार समझौता हो पाना, ‘बहुत मुश्किल’ है. पेलोसी ने कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता तभी रफ़्तार पकड़ेगी, जब ब्रिटेन, यूरोपीय संघ के साथ उत्तरी आयरलैंड सीमा को लेकर मतभेदों को को दूर कर ले.

CPTPP साझा आयोग के मौजूदा अध्यक्ष जापान ने सदस्य बनने की ब्रिटेन की अर्ज़ी का ये कहते हुए स्वागत किया है कि एशिया- प्रशांत क्षेत्र में वो एक अहम सामरिक साझीदार है. 

ट्रंप और जॉनसन की दोस्ती के दौर के बाद, ब्रिटेन और अमेरिका के रिश्ते आश्चर्यजनक रूप से बहाली और नवीनीकरण के दौर से गुज़र रहे हैं. इसकी वजह ये है कि जो बाइडेन और बोरिस जॉनसन ने कुछ अहम मोर्चों पर साथ मिलकर काम करने का फ़ैसला किया है, ताकि वो अपनी मौजूदगी का एहसास करा सकें, और ख़ुद को आने वाले दौर की चुनौतियों के लिए भी तैयार कर सकें. अब ब्रिटेन का पूरा ध्यान ग्लासगो में होने वाले पर्यावरण सम्मेलन (COP26) पर होगा. बोरिस जॉनसन इसे अपने ‘ग्लोबल ब्रिटेन’ ब्रैंड का अटूट हिस्सा मानते हैं. उन्होंने कई बार ये बात दोहराई है कि COP26 को मानवता के इतिहास का अहम मोड़ बनाना ही होगा. इन सब बातों से अलग, पर्यावरण सम्मेलन से पहले ब्रिटेन में ईंधन का भयंकर संकट पैदा हो गया है. पूरे ब्रिटेन में ईंधन और ऊर्जा की क़िल्लत दूर करने के लिए सेना को तैयार रखा गया है.

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