भारत के ट्रेड इकोसिस्टम में पर्याप्त संख्या में महिलाएं नहीं हैं. इंडो–पैसिफिक पर बढ़ते ध्यान के साथ भारत का कुल निर्यात (मर्चेंडाइज और सर्विसेज़) जून 2023 में 60.09 अरब अमेरिकी डॉलर पहुंचने का अनुमान है. लेकिन इसके बावजूद व्यापार और व्यापार से जुड़ी सेवाओं में काम–काजी महिलाओं की हिस्सेदारी काम–काजी पुरुषों के लगभग 15 प्रतिशत की तुलना में 5 प्रतिशत से भी कम है. इसके अलावा, भारत के सीमा पार व्यापार में महिलाओं की हिस्सेदारी उत्पादन और मैन्युफैक्चरिंग तक सीमित है और व्यापार वैल्यू चेन के उच्च स्तर जैसे कि रिसर्च एंड डेवलपमेंट, मार्केटिंग, डिस्ट्रीब्यूशन और नीतिगत निर्माण की स्थिति में महत्वपूर्ण रूप से कम है. मसालों और कृषि उत्पादों के लिए पूर्वोत्तर भारत में सीमा पार व्यापार के वैल्यू चेन पर विश्व बैंक समूह के द्वारा 2020 में कराए गए एक अध्ययन से पता चला कि महिलाएं अधिकतर खेती के कामों जैसे कि “खेती, फसल, अलग करने, ग्रेडिंग, पैकेजिंग और लेबलिंग” में शामिल हैं.
2023 की विदेश व्यापार नीति (FTP) के मुताबिक भारत का मक़सद पूरे क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करना है और 2030 तक वो 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के कुल निर्यात के लक्ष्य तक पहुंचना चाहता है.
2023 की विदेश व्यापार नीति (FTP) के मुताबिक भारत का मक़सद पूरे क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करना है और 2030 तक वो 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के कुल निर्यात के लक्ष्य तक पहुंचना चाहता है. इसके लिए देश के महिला श्रम बल (फीमेल लेबर फोर्स) की हिस्सेदारी बढ़ाने की ज़रूरत है जो वर्तमान में लगभग 20.3 प्रतिशत है. महिलाओं को रोज़गार का समान अवसर मुहैया कराके भारत 2025 तक अपनी GDP में 770 अरब अमेरिकी डॉलर जोड़ सकता है. इसके अलावा, समावेशी व्यापार लैंगिक (जेंडर) समानता और विकास को बढ़ाता है जिससे भारत को “महिला के नेतृत्व में विकास” की पहल को हासिल करने में भी मदद मिल सकती है. ऐसे में व्यापार उद्योग में महिलाओं की भागीदारी में क्या बाधाएं हैं और इसमें सुधार कैसे लाया जा सकता है?
हाई वैल्यू जॉब में महिलाओं की भागीदारी में रुकावटें
शिक्षा, हुनर और ट्रेनिंग में जेंडर असमानता के साथ व्यावसायिक तौर पर लिंग के हिसाब से अलग–थलग करने से व्यापार उद्योग के भीतर ज़्यादा वैल्यू के अवसरों की तरफ महिलाओं की हिस्सेदारी और प्रगति की क्षमता में रुकावट आती है. यूनेस्को के मुताबिक 2022 में भारत में साक्षरता दर 77.7 प्रतिशत थी लेकिन महिलाओं की साक्षरता दर केवल 70.3 प्रतिशत ही थी. वहीं वैश्विक स्तर पर महिलाओं की औसत साक्षरता दर 79 प्रतिशत है. इसके नतीजतन ज़्यादातर भारतीय महिलाएं उत्पादन, खेती और दूसरे कम वैल्यू वाले काम–काज में बनी रहती हैं और वैल्यू चेन के ज़्यादा आकर्षक एवं मैनेजेरियल हिस्सों से दूर रहती हैं. इसके अलावा, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में जेंडर के हिसाब से मज़दूरी में काफी ज़्यादा अंतर है. वैसे तो सर्विसेज़ सेक्टर में ये अंतर कम है जहां भारत अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है लेकिन ये फर्क लगभग पूरी तरह लैंगिक पक्षपात की वजह से है. वेतन में ये असमानता महिलाओं को उद्योग में शामिल होने से और ज़्यादा हतोत्साहित करती है.
ज़्यादातर भारतीय महिलाएं उत्पादन, खेती और दूसरे कम वैल्यू वाले काम–काज में बनी रहती हैं और वैल्यू चेन के ज़्यादा आकर्षक एवं मैनेजेरियल हिस्सों से दूर रहती हैं. इसके अलावा, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में जेंडर के हिसाब से मज़दूरी में काफी ज़्यादा अंतर है.
बंदरगाह के क्षेत्रों में काम करने वालों जैसे कि ट्रेडर, फ्रेट फॉरवॉर्डर्स, कस्टम हाउस एजेंट, ट्रांसपोर्टर और दूसरे सेवा देने वालों को आम तौर पर दूर–दराज और अलग–थलग जगहों पर काम करना पड़ता है. उन्हें नियमित तौर पर काम के सिलसिले में बाहर जाना पड़ता है और सामान्य काम–काज के घंटे से हटकर रात में देर तक काम करना पड़ता है. इस तरह, बंदरगाहों, गोदामों और दूसरे लॉजिस्टिकल इंफ्रास्ट्रक्चर तक कनेक्टिविटी और सुरक्षित पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी शारीरिक रूप से महिलाओं की भागीदारी में प्रमुख रुकावटें बन गई हैं. सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर और सेवाओं से जुड़े मुद्दों के साथ–साथ उत्पीड़न का ख़तरा और दूसरी सामाजिक–सांस्कृतिक समस्याओं जैसे कि घरेलू काम–काज का बहुत ज़्यादा बोझ और देखभाल की ज़िम्मेदारी के अलावा महिलाओं के आने–जाने पर सामाजिक पाबंदियां उनकी हिस्सेदारी को सीमित करने में अतिरिक्त कारण हैं.
महिलाओं के स्वामित्व वाले कारोबार के लिए बाधाएं
महिला कारोबारियों और उद्यमियों ने कहा है कि बहुत ज़्यादा वर्किंग कैपिटल की ज़रूरत उनकी हिस्सेदारी में बाधा है. महिलाओं के वर्चस्व वाले सेक्टर जैसे कि गारमेंट और फूड में इनपुट पर टैरिफ ज़्यादा है. इसे “पिंक टैक्स” के नाम से जाना जाता है जो भारत में 6 प्रतिशत प्वाइंट है. टैरिफ के अलावा दूसरे खर्च जैसे कि अनिवार्य कंप्लायंस (अनुपालन) पर ज़्यादा आवेदन शुल्क और ई–कॉमर्स निर्यात केंद्रों के द्वारा मुहैया कराई जाने वाली सुविधाओं के इस्तेमाल की ज़्यादा कीमत महिलाओं के स्वामित्व वाले MSME (माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज़), जिनमें से अधिकतर बहुत छोटी (माइक्रो) कंपनियां हैं, के लिए व्यापार की लागत बढ़ाती हैं.
इसके अलावा कंप्लायंस के लिए रेगुलेशन और प्रक्रिया की जानकारी हासिल करने, निर्यात क्वालिटी के लिए स्टैंडर्ड को पूरा करने और लॉजिस्टिक मुहैया कराने वालों एवं वित्तीय संस्थानों पर नज़र रखने के साथ–साथ कस्टम एवं क्लीयरेंस प्रक्रिया के समय का बोझ पुरुषों की तुलना में महिला व्यापारियों के लिए बहुत बड़ी चुनौती हैं. व्यापार को लेकर बातचीत और डॉक्यूमेंटेशन को व्यवस्थित और डिजिटाइज़ करने से महिलाओं को भी समान अवसर हासिल करने में मदद मिल सकती है. साथ ही वो रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के हालात को कम कर सकती हैं जो कि महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसाय पर ज़्यादा असर डालते हैं. वास्तव में तुरंत कस्टम प्रोग्राम ने कस्टम क्लीयरेंस प्रक्रिया को फेसलेस, पेपरलेस और कॉन्टैक्टलेस कर दिया है. हालांकि फिज़िकल इंफ्रास्ट्रक्चर से डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की तरफ बदलाव करने के साथ–साथ महिलाओं की डिजिटल साक्षरता को सुधारने और डिजिटल क्षेत्र में जेंडर बंटवारे को दूर करने के भी उपाय करने चाहिए.
संभावित समाधान
भारत की विदेश व्यापार नीति 2023– जो विदेश व्यापार महानिदेशक के द्वारा निर्धारित व्यापार निर्यात एवं आयात के लिए गाइडलाइन और प्रक्रियाएं मुहैया कराती है– लैंगिक अंतर का समाधान करने में नाकाम रही. लैंगिक समावेशी व्यापार को बढ़ावा 2020-23 में भारत के राष्ट्रीय व्यापार सरलीकरण कार्य योजना (नेशनल ट्रेड फेसिलिटेशन एक्शन प्लान) का एक महत्वपूर्ण एक्शन प्वाइंट था. इसे शामिल करने की वजह संयुक्त राष्ट्र के द्वारा 2021 में कराया गया ग्लोबल सर्वे ऑन डिजिटल एंड सस्टेनेबल ट्रेड फेसिटिलेशन था. इस सर्वे के एक हिस्से “व्यापार सरलीकरण में महिलाएं” में भारत का स्कोर सिर्फ 66.7 प्रतिशत था. इसके बाद ये उम्मीद लगाई जा रही थी कि भारत की विदेश व्यापार नीति में ‘जेंडर’ का ज़िक्र किया जाएगा. लेकिन जब विदेश व्यापार नीति को जारी किया गया तो इसमें कहीं भी ‘जेंडर’ या व्यापार में महिलाओं की भागीदारी को बेहतर करने के लिए किसी ख़ास कदम का ज़िक्र नहीं था. वैसे तो कई व्यापक उपाय स्वाभाविक तौर पर एक हद तक महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देंगे लेकिन विदेश व्यापार नीति में जेंडर का ज़िक्र नहीं करने का फैसला देश के 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात लक्ष्य में पूरी तरह और असरदार ढंग से महिलाओं के योगदान करने की क्षमता में रुकावट डालेगा.
भारत की आगामी विदेश नीति को हर हाल में व्यापार में महिलाओं की भूमिका को स्वीकार करना चाहिए और जेंडर पर अलग से विचार करना चाहिए. लैंगिक आधार पर डेटा को इकट्ठा करना चाहिए ताकि असरदार सरकारी पहल एवं नीतियां विकसित की जा सकें जो महिलाओं के लिए ज़्यादा मौके तैयार करेंगी. उदाहरण के लिए, अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर अनुसंधान के लिए भारतीय परिषद (इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस या ICRIER) ने बंदरगाहों को लैंगिक मामलों में अधिक समावेशी बनाने और बंदरगाह से जुड़ी व्यापार गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए “जेंडर मेनस्ट्रीमिंग एट इंडियाज़ लैंड पोर्ट्स” रिपोर्ट जारी की. इस स्टडी को पूरी तरह महिला रिसर्चर्स की टीम ने अंजाम दिया और ये नीतिगत फैसलों के बारे में जेंडर पर केंद्रित एक प्रमुख डेटा कलेक्शन है. जेंडर के हिसाब से बनाई जाने वाली व्यापार नीति ज्वैलरी, खाद्य प्रसंस्करण और टेक्सटाइल जैसे महिलाओं की ज़्यादा भागीदारी वाले उद्योगों में सही उपायों परविचार करेगी. ऐसी व्यापार नीति विशेष रूप से कामगारों के लिए उचित और गुज़ारे लायक वेतन को भी सुनिश्चित करेगी.
भारत की आगामी विदेश नीति को हर हाल में व्यापार में महिलाओं की भूमिका को स्वीकार करना चाहिए और जेंडर पर अलग से विचार करना चाहिए. लैंगिक आधार पर डेटा को इकट्ठा करना चाहिए ताकि असरदार सरकारी पहल एवं नीतियां विकसित की जा सकें जो महिलाओं के लिए ज़्यादा मौके तैयार करेंगी.
इसके अलावा, महिलाओं की नुमाइंदगी और व्यापार में जेंडर समानता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध भारतीय नीति निर्माताओं और बाहरी पक्षों, जिनमें प्राइवेट एंटरप्राइजेज़ और गैर–सरकारी संगठन (NGO) शामिल हैं, को बहुपक्षीय पहल जैसे कि इंडो–पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रोस्पेरिटी (IPEF), क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग (क्वॉड) और 2023 में भारत की G20 अध्यक्षता के इस्तेमाल का लक्ष्य रखना चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि महिला हिस्सेदारों की आवाज़ को व्यापार संघों और सरकारी सलाह–मशविरे में ज़रूर प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए जबकि घरेलू सुधारों और क्षमता निर्माण की परियोजनाओं को हर हाल में व्यापार नीति के मुताबिक काम करना चाहिए.
ये बिंदु ख़ास तौर पर उचित हैं जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि यूरोपियन यूनियन, इज़रायल और यूनाइटेड किंगडम (UK) के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को लेकर चल रही मौजूदा बातचीत में जेंडर समानता की उम्मीद की जाती है. UK-भारत FTA में एक “व्यापार और जेंडर समानता” अध्याय है जिससे महिलाओं के स्वामित्व और महिलाओं की अगुवाई वाले SME (स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज़) को फायदा होना तय है. जेंडर के प्रति जवाबदेह नीति द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार चर्चाओं में मुख्य भूमिका में आ रही है और इस तरह भारत को महिलाओं के सशक्तिकरण के प्रति अपने वादे को पूरा करना चाहिए और देश के व्यापार इकोसिस्टम में महिला–पुरुष असमानता को ठीक करना चाहिए.
रिया सामा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में इंटर्न हैं.
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