लॉकडाउन के दौरान एनालॉग से वर्चुअल व्यवस्था में अप्रत्याशित बदलाव ने समाज को रोज़मर्रा की हर गतिविधि के लिए टेक्नोलॉजी और डिजिटल संसाधनों को अपनाने पर मज़बूर कर दिया. हालांकि, सभी के लिए ऑनलाइन सार्थक अनुभव नहीं हैं: आईसीटी (इन्फॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी) तक पहुंच के अभाव ने समुदाय के सबसे कमज़ोर वर्गों को व्यापक लाभ से वंचित रखा है. जेंडर आधारित डिजिटल विभाजन से साबित होता है कि महिलाएं नियमित कार्यों और इससे जुड़े कामों को निपटाने के वर्चुअल तरीकों के लिए अलाभकारी स्थिति में हैं. ई-कॉमर्स के तौर-तरीक़ों से अपरिचित होने से लेकर वर्चुअल करेंसी, साइबर क्राइम का सामना करने से लेकर, हर क्षेत्र में ऑनलाइन सेल्फ-डेवलपमेंट की जानकारी का अभाव, दर्शाता है कि असमानताओं को संतुलित करने के लिए विशिष्ट डिजिटल साक्षरता नीतियों की ज़रूरत है.
आईसीटी में महिलाओं की भागीदारी का आकलन करने में लगातार एक गलती की जा रही है, विभिन्न टेक्नो-डिजिटल क्षेत्रों में सिर्फ़ महिलाओं की भागीदारी की गिनती करके — मुख्यतः परंपरागत रूप से यूज़र्स और कंज़्यूमर के प्रोफाइल में गिनती की जा रही है. हालांकि, एक सही जेंडर संवेदनशील दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण या प्रासंगिक आईसीटी गतिविधि को देखा जाना ज़रूरी है. यह साबित किया जा सकता है — उदाहरण के लिए महिलाएं ई-कॉमर्स की प्रमुख कंज़्यूमर हैं. इसी तरह, महिलाएं पुरुषों की तुलना में सोशल मीडिया पर अधिक व्यस्त हैं. ये गतिविधियां, यह धारणा देने के बावजूद कि हम डिजिटल संसाधनों का गहराई से लाभ उठा रहे हैं, व्यापक चर्चा के लिए इस मुद्दे को लिया जा सकता है: डिजिटल क्रांति व इसके फलितार्थों के साथ महिलाओं की रुचियां, सीमाएं और वास्तविक जुड़ाव क्या हैं? क्या सिर्फ यहां मौजूद होना या साधनों का इस्तेमाल करना पर्याप्त है?
जेंडर आधारित डिजिटल विभाजन से साबित होता है कि महिलाएं नियमित कार्यों और इससे जुड़े कामों को निपटाने के वर्चुअल तरीकों के लिए अलाभकारी स्थिति में हैं. ई-कॉमर्स के तौर-तरीक़ों से अपरिचित होने से लेकर वर्चुअल करेंसी, साइबर क्राइम का सामना करने से लेकर, हर क्षेत्र में ऑनलाइन सेल्फ-डेवलपमेंट की जानकारी का अभाव, दर्शाता है कि असमानताओं को संतुलित करने के लिए विशिष्ट डिजिटल साक्षरता नीतियों की ज़रूरत है.
कोविड-19 के कारण रोज़मर्रा की गतिविधियों — यहां तक कि उनका भी जो पहले फ़िजिकल-मोड में थीं, अनिवार्य वर्चुअलाइजेशन किए जाने ने समकालीन संस्कृति को नए आकार (एक बार फिर से) में ढाला है. फिर भी कुछ उजागर होना बाकी है: डिजिटल युग की शुरुआत से आईसीटी की पहुंच और फ़ायदे असमान रूप से बांटे गए हैं. उदाहरण के लिए, लैटिन अमेरिका के बुनियादी ढांचे के साथ-साथ सार्वजनिक नीतियां (जिसमें क़ानून भी शामिल हैं) दुनिया के अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत ख़राब स्तर की हैं. हर देश के ढांचे के भीतर स्थानीय विश्लेषण में, आबादी के भीतर उन्नति में बाधक — कल्याण और अवसरों के संदर्भ में — डिजिटल लाभ की प्रभावी पहुंच (उम्र, भौगोलिक स्थिति, शिक्षा स्तर, आदि के कारण) को भी प्रभावित करता है.
जो बात नज़रअंदाज नहीं की जा सकती, वह यह है कि सिर्फ महिला जेंडर में पैदा होने से, महिलाएं आईसीटी से अपने संबंधों की विकृति के अधीन होंगी. यह बात हर स्तर पर लागू होती है: टेक्नोलॉजी तक पहुंच/ कनेक्टिविटी तक पहुंच; आईसीटी का उपयोग और समायोजन; डिजिटल स्पेस में स्थायित्व. यहां वर्णित तीनों चरण, जेंडर-आधारित डिजिटल विभाजन का गठन करते हैं, जिसे हमें स्वीकार करने के लिए गहराई से मानना होगा कि महिलाएं 2020 में डिजिटल संसार से कैसे जी रही हैं.
दुनिया भर में परंपरागत रूप से डिजिटल विभाजन “कनेक्टेड- अनकनेक्टेड” दो शब्दों से तय होता है, जिसमें लोगों के पूरे टेक्नोलॉजी-डिजिटल अनुभव को सिर्फ़ एक पहलू से देखा जा रहा है: डिजिटल विभाजन (digital divide) का संबंध वास्तविक पहुंच (physical access) से भी है. हालांकि, कनेक्टिविटी की कमी के असर का अध्ययन करना प्रासंगिक है (जिसमें नियमित पहुंच, सटीक उपकरण, भरपूर डेटा और फ़ास्ट कनेक्शन, दूसरे शब्दों में “अर्थपूर्ण कनेक्टिविटी” शामिल है), लेकिन लगता है कि आईसीटी के इस्तेमाल और फ़ायदों के स्तर (दूसरा डिजिटल विभाजन) पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया है. हो सकता है, यह इस पर पर्याप्त समझ नहीं हो कि अगर लोग डिजिटल यूज़र्स हैं, तो उन्हें कम से कम आईसीटी के बुनियादी पहलुओं और इसके फ़ायदों को जानना चाहिए. यह सामान्य विचार निर्णयकर्ताओं द्वारा डिजिटल युग के वास्तविक सीमांकन में बाधा डालता है: यहां तक कि पहला अवरोध (इंटरनेट/आईसीटी इंफ़्रास्ट्रक्चर तक पहुंच) पार करने के दौरान, हो सकता है कि डिजिटल यूज़र्स को पता ही न हो पूरे टूलकिट का पूरा फ़ायदा कैसे उठाया जाए.
दूसरे डिजिटल विभाजन पर विचार करने के दौरान प्रमुख समस्या जेंडर के प्रति संवेदनशील नज़रिये को सक्रिय करते हुए इंटरनेट के महिलाओं के उपयोग की मॉनिटरिंग से होती है. यह इस लेख का केंद्रीय बिंदु है: दुनिया भर में अधिकांश महिला आबादी (भले ही हमारे पास नवीनतम स्मार्टफोन या 24/7 सोशल मीडिया क्षमता हो), वास्तविक आवश्यकताओं से पूरी तरह अनजान हैं. आसान शब्दों में कहें तो, इसका मतलब है कि पूरे लाभ वाले डिजिटल यूज़र्स होने के कारण, उपलब्ध तकनीकी-डिजिटल संसाधनों का पूरा नियंत्रण होना चाहिए. जो आलोचनात्मक दृष्टिकोण से परखें तो हम ऐसा होते हुए नहीं देख रहे हैं.
दूसरे डिजिटल विभाजन पर विचार करने के दौरान प्रमुख समस्या जेंडर के प्रति संवेदनशील नज़रिये को सक्रिय करते हुए इंटरनेट के महिलाओं के उपयोग की मॉनिटरिंग से होती है. यह इस लेख का केंद्रीय बिंदु है: दुनिया भर में अधिकांश महिला आबादी (भले ही हमारे पास नवीनतम स्मार्टफोन या 24/7 सोशल मीडिया क्षमता हो), वास्तविक आवश्यकताओं से पूरी तरह अनजान हैं.
उदाहरण के लिए सेलर/वेंडर और कंज़्यूमर दोनों रूपों में महिलाओं की ई-कॉमर्स गतिविधि का विश्लेषण करें. लॉकडाउन के उपायों ने ऑनलाइन बेचने और खरीदने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी की है, और कई महिलाओं के लिए यह एक आजीविका का एकमात्र साधन बन गया, क्योंकि अन्य जेंडर आधारित कारकों ने काम के अवसरों में रुकावट डाली है (उदाहरण के लिए, बच्चों का प्रभारी होने के नाते या बेरोज़गार/ अनौपचारिक रूप से काम करने वाले) . तथ्य यह है कि महिलाओं ने अपनी व्यापार गतिविधि को पिछले वर्षों की तुलना में बड़े पैमाने पर वर्चुअलाइज़ किया है- इसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने कौशल और ज्ञान के साथ ई-कॉमर्स को लागू किया; इसका अर्थ यह भी नहीं है कि यह वर्ष महिलाओं के लिए सुधार दर्शाता है. इस पहलू से ऑनलाइन अनुभवों में महत्वपूर्ण सुधार के निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए (ऐसे उपाय जो सच में जेंडर आधारित डिजिटल विभाजन को कम कर सकते हैं), जागरूक यूज़र या टेक्नोलॉजी ज्ञान जैसे तत्व (सिक्योरिटी उपाय करने सहित, एक सही वेबसाइट से संपर्क करना या किसी भी फ़िन-टेक प्रोग्राम या ऑनलाइन पेमेंट प्लेटफॉर्म को चलाना, ऐसे कुछ उदाहरण हैं) निर्णायक हो जाते हैं. और यही वजह है कि यह नहीं कहा जा सकता है कि आईसीटी का इस्तेमाल करने वाली ज़्यादा महिलाओं का मतलब यह नहीं है कि ज़्यादा महिलाएं इनका पूरा फ़ायदा उठा रही हैं: अधिकांश सेक्टर, इस बारे में सोचते तक नहीं हैं, और दूसरी तरफ़, कभी जान भी नहीं पाएंगे कि उन्हें क्यों सोचना चाहिए
यह नहीं कहा जा सकता है कि आईसीटी का इस्तेमाल करने वाली ज़्यादा महिलाओं का मतलब यह नहीं है कि ज़्यादा महिलाएं इनका पूरा फ़ायदा उठा रही हैं: अधिकांश सेक्टर, इस बारे में सोचते तक नहीं हैं, और दूसरी तरफ़, कभी जान भी नहीं पाएंगे कि उन्हें क्यों सोचना चाहिए .
डिजिटल युग में सांस्कृतिक रूप से अलाभकर स्थिति को कम करने के लिए, डिजिटल साक्षरता हमारे पास एकमात्र उपाय है. वास्तविकता पर आधारित डेटा महत्वपूर्ण शुरुआती बिंदु है. जेंडर-आधारित नज़रिये के साथ आंकड़ों का विश्लेषण करते समय, सामान्य रूप से अनदेखे तत्व दिखाई देते हैं. उदाहरण के लिए, इस बयान कि डिजिटल करेंसी का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की संख्या आसमान पर पहुंच गई है, को बारीकी से समझने की ज़रूरत हो सकती है. उदाहरण के लिए: क्या इस्तेमाल में पुरुष निवेशकों की मदद शामिल थी? वे किन देशों से संबंधित हैं? क्या वे नतीजों से पूरी तरह अवगत हैं? क्या वे डिजिटल सिक्योरिटी के बारे में कुछ जानती हैं? वे क्रिप्टोकरेंसी का कैसे इस्तेमाल करेंगी? ठीक वही लेख जो क्षेत्र में महिलाओं की मौजूदगी में बढ़ोत्तरी की घोषणा करता है, इसके ट्रायल स्टेज की बात करता है. हम शोधकर्ताओं को आईसीटी के सिलसिले में महिला प्रक्रियाओं के मूल में जाने के लिए जेंडर संवेदनशीलता परिप्रेक्ष्य को समझने में तेज़ होना चाहिए. यह इतना आसान नहीं हैं.
अंत में, एक प्रासंगिक बेंचमार्क जब दूसरे जेंडर आधारित डिजिटल विभाजन पर नज़र डालते हैं तो साइबर क्राइम की महिला पीड़ितों के मामलों की संख्या है. फिर से याद दिला दें कि, ऑनलाइन नुकसान को रोकने के लिए पर्याप्त ई-कौशल की कमी, सुरक्षा उपायों और उनके डिजिटल अधिकारों के बारे में जानकारी की कमी, महिलाओं को ख़ासतौर से खतरे में डालती है और अपराधियों के लिए एक आसान शिकार बनाती है. ख़ासकर स्कैमिंग और फिशिंग के मामले में. एक हद तक यही हो रहा है, 2020 में महिलाओं के प्रति साइबर क्राइम में बढ़ोत्तरी देखी गई है, चाहे हम किसी भी क्षेत्र या देश पर नजर डालें (यह भारत, अर्जेंटीना, यूरोप में हो रहा है). क्या दूसरे डिजिटल विभाजन का इन ख़तरनाक आंकड़ों से कुछ लेना-देना है? डिजिटल स्पेस में महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं, जबकि पुरुष स्वाभाविक आत्मीयता के साथ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं. यह महिलाओं के खिलाफ़ पुरुष हिंसा के लिए पुरज़ोर प्रोत्साहन देता है: अनजानेपन का अहसास और डर जो हम महिलाओं को ऊपर बताई सांस्कृतिक बाधाओं के कारण अनुभव होता है
ऑनलाइन नुकसान को रोकने के लिए पर्याप्त ई-कौशल की कमी, सुरक्षा उपायों और उनके डिजिटल अधिकारों के बारे में जानकारी की कमी, महिलाओं को ख़ासतौर से खतरे में डालती है और अपराधियों के लिए एक आसान शिकार बनाती है.
सारांश यह कि, 2020 में महिलाओं के लिए डिजिटल साक्षरता की फ़ौरन ज़रूरत है. इस बात को ध्यान में रखते हुए कि आईसीटी चौथी औद्योगिक क्रांति के दौरान उत्पादन, अर्थव्यवस्था और अवसरों का मुख्य साधन है, इसमें जेंडर्स के बीच ऐतिहासिक रूप से कायम अपरिहार्य असमानताओं को ख़त्म करने के लिए पर्याप्त स्वायत्तता और कौशल नहीं है: जेंडर आधारित डिजिटल विभाजन का बढ़ना महिलाओं को मानव अधिकारों का इस्तेमाल करने से रोकता रहेगा.
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