दुनिया में जीवाश्म ईधन के स्रोत तेज़ी से कम होते जा रहे हैं. इस ईधन से पर्यावरण को भी काफी नुकसान होता है. यही वजह है कि भविष्य में ऊर्जा की मांग में जिस तरह बढ़ोत्तरी होने वाली है, उसे देखते हुए वैकल्पिक ऊर्जा के नए स्रोत खोजे जा रहे हैं. फिलहाल हमारे पास सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भूतापीय (जियोथर्मल), पनबिजली, परमाणु ऊर्जा, हाइड्रोडन ऊर्जा और सोडियम बैटरीज़ जैसे विकल्प हैं. हालांकि इस क्षेत्र में जो काम हुआ है, वो सराहनीय है लेकिन इसमें हमें अपेक्षित सफलता नहीं मिली है. ऊर्जा की मांग पूरी नहीं हो पा रही है. जीवाश्म ईधन के व्यवहारिक विकल्पों की तलाश अब भी बड़ा सवाल बनी हुई है. अब ये उम्मीद की जा रही है कि क्वॉन्टम तकनीक़ी इसका जवाब हो सकती है
क्वॉन्टम थ्योरी की खोज और इसे मान्यता मिले तो 100 साल से ज़्यादा हो चुके हैं लेकिन अब भी भौतिक वैज्ञानिकों के बीच इस पर चर्चा जारी है. इसकी एक वजह इस थ्योरी को लेकर हमारी समझ भी है. हमारे लिए ये कल्पना करना भी मुश्किल है कि इतने सूक्ष्म स्तर पर काम कैसे हो सकता है. ऐसा लगता है कि क्वॉन्टम स्तर पर ब्रह्मांड की रचना काफी असाधारण है. ये हमारी पारम्परिक ज्ञान की क्षमता को चुनौती देता है. क्वॉन्टम थ्योरी भी अनूठी है. आज तक की सबसे सटीक और सफल थ्योरी होने के बाद भी इसे पूरी तरह समझा नहीं जा सका है. इससे जुड़े कई सवालों के जवाब मिलने अभी बाकी हैं.
ऐसा लगता है कि क्वॉन्टम स्तर पर ब्रह्मांड की रचना काफी असाधारण है. ये हमारी पारम्परिक ज्ञान की क्षमता को चुनौती देता है. क्वॉन्टम थ्योरी भी अनूठी है. आज तक की सबसे सटीक और सफल थ्योरी होने के बाद भी इसे पूरी तरह समझा नहीं जा सका है. इससे जुड़े कई सवालों के जवाब मिलने अभी बाकी हैं.
प्रकृति कैसे काम करती है. इसे समझने की हमारी कोशिश हमें ऐसे अनपेक्षित रास्ते में लेकर आई है, जहां अब ये सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या किसी पदार्थ के क्वॉन्टम स्वरूप का इस्तेमाल हम वैकल्पिक ऊर्जा पैदा करने में कर सकते हैं. इसका जवाब हां है. क्वॉन्टम बैटरीज़ और क्वॉन्टम इंजन पर पिछले कुछ समय में जो काम हुआ है, उससे ये संकेत मिल रहे हैं कि क्वॉन्टम तकनीक़ी ही भविष्य की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभा सकती है. खास बात ये है कि अभी इसकी क्षमता का पूरा उपयोग भी नहीं हुआ है.
ये सब बातें अभी भले ही दूर की कौड़ी लगे लेकिन टोक्यो यूनिवर्सिटी और बीजिंग कम्पयुटेशनल रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं को हाल ही में इस क्षेत्र में अहम कामयाबी मिली है. इसके बाद माना जा रहा है कि क्वॉन्टम बैटरीज़ हमारी उम्मीद से पहले ही बाज़ार में आ सकती हैं. पारम्परिक केमिकल बैटरीज़ ऊर्जा के भंडारण के लिए लिथियम पर निर्भर होती हैं जबकि क्वॉन्टम बैटरीज़ में फोटोन जैसे कण में ऊर्जा का भंडारण किया जा सकता है.
अपने रिसर्च के लिए इन्होंने जिस मौलिक विचार पर काम किया उसे क्वॉन्टम थ्योरी में इन्डेफिनेट कैजुअल ऑर्डर (ICO) परिघटना के रूप में जानते हैं. ये समय के प्रवाह को लेकर हमारी धारणा को सुधारती है. आम तौर पर दुनिया में "रूल ऑफ कैजुएल्टी" चलता है. अगर एक घटना से पहले दूसरी घटना हो गई तो फिर इसे उल्टा (रिवर्स) नहीं किया जा सकता. यानी इनका क्रम नहीं बदला जा सकता लेकिन क्वॉन्टम की दुनिया में ये क्रम बदल सकता है. इन्डेफिनेट कैजुअल ऑर्डर में ये माना जाता है कि पहली घटना हमें दूसरी घटना की ओर ले जाती है और दूसरी घटना से हम पहली घटना की तरफ आ सकते हैं. ये सब एक साथ होता है और इसे "सुपरपोजीशन का सिद्धांत" कहा जाता है. इस प्रयोग का ये नतीजा सामने आया कि अधिक क्षमता के चार्जर की तुलना में कम क्षमता का चार्जर बेहतर कुशलता के साथ ज़्यादा ऊर्जा दे सकता है.
जहां तक क्वॉन्टम इंजन की बात है तो ये क्वॉन्टम बैटरीज़ की तुलना में ज़्यादा महत्वाकांक्षी योजना है. जर्मनी की कैसर्सलौटर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक इस क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएं हैं. पारम्परिक इंजन में ऊष्मा को थर्मल एनर्जी में बदलने के लिए 'कार्नोट साइकल' (Carnot cycle)का इस्तेमाल होता है. जबकि क्वॉन्टम इंजन में क्वॉन्टम कणों की प्रकृति और उनकी ऊर्जा में अंतर से पैदा होने वाली एनर्जी से काम होता है.
इस प्रयोग में मिली सफलता का मतलब ये हुआ कि इसका इस्तेमाल सिर्फ हल्के उपकरणों पर ही नहीं बल्कि दूसरी चीजों में भी किया जा सकता है. ऊष्मा को क्वॉन्टम सिस्टम में हस्तांतरित करने की ICO की क्षमता सौर ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है. तापीय नुकसान (थर्मल लॉस)की वजह से सोलर पैनल की ऊर्जा उत्पादन क्षमता में कमी आ जाती है लेकिन ICO की वजह से ये नुकसान कम हो सकता है और इसकी उत्पादन क्षमता बढ़ सकती है.
चित्र 1- क्वॉन्टम बैटरीज़ इन्डेफिनेट कैजुअल ऑर्डर में चार्ज होते हुए. आम तौर पर आप जब किसी बैटरी को चार्ज करने के लिए दो चार्जर का इस्तेमाल करते हैं तो आपको ऐसा एक निश्चित क्रम में करेंगे. इससे आपके संसाधन सीमित हो जाते हैं लेकिन इन्डेफिनेट कैजुअल ऑर्डर में बहुत सारे चार्जर अलग-अलग ऑर्डर में एक साथ काम कर सकते है. जिसे क्वॉन्टम सुपरपोजीशन कहा जाता है. स्रोत : Chen et al (2023)
जहां तक क्वॉन्टम इंजन की बात है तो ये क्वॉन्टम बैटरीज़ की तुलना में ज़्यादा महत्वाकांक्षी योजना है. जर्मनी की कैसर्सलौटर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक इस क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएं हैं. पारम्परिक इंजन में ऊष्मा को थर्मल एनर्जी में बदलने के लिए 'कार्नोट साइकल' (Carnot cycle)का इस्तेमाल होता है. जबकि क्वॉन्टम इंजन में क्वॉन्टम कणों की प्रकृति और उनकी ऊर्जा में अंतर से पैदा होने वाली एनर्जी से काम होता है.
क्वॉन्टम मैकेनिक्स के मुताबिक प्रकृति में दो तरह के कण होते हैं. बोसोन्स और फर्मिऑन्स. ऊर्जा की कोई भी स्थिति बोसॉनस को अनंत संख्या में खुद में समायोजित कर सकती है लेकिन जहां तक फर्मिऑन्स की बात है, एक बार में एक ही फर्मिऑन्स वहां हो सकते हैं. कोई भी दो समान फर्मिऑन्स एक ही समय में साथ नहीं रह सकते. यही “पॉली एक्सक्लूसन सिद्धांत” का आधार भी है.
हालांकि, सामान्य तापमान में ये प्रभाव भले ही महत्वपूर्ण ना हो, लेकिन जब हम कणों को बहुत ठंडा करते हैं. उन्हें सम्पूर्ण शून्य तापमान (-273 डिग्री सेल्सियस या 0 केल्विन) में लेकर जाते हैं तो ये प्रभावी होने लगता है. बोसॉन कण निम्नतम ऊर्जा की स्थिति में संचयित होने लगते हैं. फर्मिऑन्स भी एक-दूसरे के ऊपर इकट्ठे होने लगते हैं. इससे इस पूरे सिस्टम की ऊर्जा बढ़ जाती है. यानी बहुत कम तापमान में बोसॉन्स की तुलना में फर्मिऑन्स में ज़्यादा ऊर्जा होती है.
चित्र 2- नीली गेंद बोसॉन्स को और लाल गेंद फर्मिऑन्स को दिखा रही हैं. बोसॉन्स और फर्मिऑन्स दो स्थितियों (स्पिन अप और स्पिन डाउन) में एक-दूसरे से मिलते हैं. बोसॉन्स एक-दूसरे के ऊपर संचित होते हैं जबकि फर्मिऑन्स ऊपर की तरफ बढ़कर ऊर्जा का उत्पादन करते हैं. स्रोत : एस विल (2011)
भारत ने साल 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य तक लाने का जो लक्ष्य रखा है, उसे हासिल करने के लिए भारत भी अब वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में निवेश कर रहा है. राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन इसका एक उदाहरण है लेकिन भारत में अभी तक क्वॉन्टम एनर्जी उत्पादन के क्षेत्र में खास शोध नहीं हुआ है.
साल 2000 की शुरूआत में इस बात की खोज की गई कि चुंबकीय क्षेत्र की मदद से फर्मिऑन्स को बोसॉन्स में और बोसॉन्स को फर्मिऑन्स में परिवर्तित किया जा सकता है. अगर इस प्रक्रिया को आवर्ती तरीके से दोहराया जाए तो बोसॉन्स और फर्मिऑन्स के बीच की ऊर्जा के अंतर को मैकेनिकल एनर्जी में तब्दील किया जा सकता है. ये बिल्कुल वैसा है जैसा पारम्परिक इंजन में होता है. ऊर्जा पैदा करने के दोनों तरीकों में मुख्य अंतर ये है कि पारम्परिक इंजन में ऊष्मा का इस्तेमाल होता है जबकि क्वॉन्टम इंजन में ऊर्जा क्वॉन्टम कणों की बुनियादी गुण से पैदा होती है.
हालांकि, ये सब अभी अवधारणा के स्तर पर ही है लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है इसमें संभावनाएं बहुत हैं. क्वॉन्टम इंजन ऊर्जा का ऐसा वैकल्पिक स्रोत हो सकता है जिसके आधार पर क्वॉन्टम कम्प्यूटर और क्वॉन्टम सेंसर चलाए सकते हैं लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि भविष्य में बड़ी चीजों को चलाने वाले क्वॉन्टम इंजन बन सकते हैं.
वैकल्पिक और रिन्युएबल एनर्जी के क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में काफी तकनीक़ी विकास हुआ है. लेकिन इनमें से ज़्यादातर चीजें उन संसाधनों पर निर्भर हैं जो कभी ना कभी खत्म हो सकते हैं. वैकल्पिक ऊर्जा का सबसे स्वच्छ स्रोत परमाणु ऊर्जा है लेकिन ये भी पूरी तरह से ट्राइटियम पर निर्भर है, जो काफी दुर्लभ पदार्थ है. हाल ही में हमने देखा था कि सेमीकंडक्टर की आपूर्ति में बहुत कमी आ गई थी. इसकी वजह से साल 2023 में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ. इलेक्ट्रिक गाड़ियों में लिथियम बैटरी का इस्तेमाल होता है. लिथियम के उत्पादन में भी भविष्य में संकट पैदा हो सकता है. ग्रीन हाइड्रोजन सुनने में भले ही अच्छा लगे लेकिन इसके ज़रिए ऊर्जा के उत्पादन की लागत बहुत ज़्यादा होने की वजह से ये अभी व्यवहारिक नहीं लग रहा. ये देखना बाकी है कि भविष्य में इसमें कुछ बदलाव आता है या नहीं.
अगर इस संदर्भ में देखें तो क्वॉन्टम तकनीक़ी एक बेहतर विकल्प हो सकती है क्योंकि ये किसी बाहरी संसाधन पर निर्भर नहीं है. इस तकनीक में ऊर्जा का उत्पादन वस्तु में मौजूद गुण पर निर्भर है. हालांकि, इस क्षेत्र में अभी बहुत कम काम हुआ है. ऊर्जा उत्पादन का व्यवहारिक विकल्प बनने में क्वॉन्टम तकनीक़ी को कई साल लग सकते हैं लेकिन इस क्षेत्र में संभावनाएं बहुत ज़्यादा हैं. क्वॉन्टम बैटरी भविष्य में लिथियम बैटरी का विकल्प हो सकती है. लिथियम के खनन से पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है. इसका उत्पादन भी कम होता जा रहा है. ऐसे में दुनिया को इसका विकल्प चाहिए और क्वॉन्टम तकनीक़ी ये काम कर सकती है.
भारत ने साल 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य तक लाने का जो लक्ष्य रखा है, उसे हासिल करने के लिए भारत भी अब वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में निवेश कर रहा है. राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन इसका एक उदाहरण है लेकिन भारत में अभी तक क्वॉन्टम एनर्जी उत्पादन के क्षेत्र में खास शोध नहीं हुआ है. 2023 के बजट में राष्ट्रीय क्वॉन्टम मिशन का एलान करके अब इसका आधार रख दिया गया है. इसी मिशन में क्वॉन्टम ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में होने वाले काम को भी शामिल किया गया है. अगर भारत को इसमें कामयाबी मिलती है तो वैकल्पिक ऊर्जा की तलाश का पूरा परिदृश्य बदल सकता है.
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