रूसी मिसाइल S-400 और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत और अमेरिका के संबंधो में काफी तल्खी आई है. खासकर रूस यूक्रेन युद्ध के बाद तो दोनों देशों के संबंधो में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया है. ऐसे में अमेरिका का यह बयान भारत और अमेरिका के संबंधो के लिए काफी अहम है. पहली बार अमेरिका ने भारत और रूस के रिश्तों को स्वीकार किया है. आइए जानते हैं कि बाइडेन प्रशासन के इस दृष्टिकोण के क्या मायने हैं. इसके क्या बड़े कूटनीतिक निहितार्थ है. अमेरिका के इस बयान से चीन और पाकिस्तान की चिंता क्यों बढ़ गई है.
पहली बार अमेरिका ने भारत और रूस के रिश्तों को स्वीकार किया है. आइए जानते हैं कि बाइडेन प्रशासन के इस दृष्टिकोण के क्या मायने हैं. इसके क्या बड़े कूटनीतिक निहितार्थ है.
- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत ने कहा कि अमेरिका का यह बयान काफी खास है. खासकर अमेरिका और भारत के संबंधो के लिहाज से यह काफी महत्वपूर्ण है. अमेरिका के इस बयान को इस नजरिए से देखा जाना चाहिए कि उसने भारत और रूस की निकटता को स्वीकार किया है. यह बयान इसलिए भी अहम है क्यों कि सार्वजनिक तौर पर पहली बार अमेरिका ने भारत-रूस संबंधो को लेकर अपना व्यवहारिक दृष्टिकोण पेश किया है. कूटनीतिक दृष्टि से यह भारत के पक्ष में है. उन्होनें कहा कि अगर देखा जाए तो पहली बार अमेरिका ने भारत रूस संबंधो को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार किया है.
- अमेरिका के इस बयान के बड़े कूटनीतिक मायने हैं. हालांकि, अमेरिका के इस बयान से चीन और पाकिस्तान की चिंता बढ़ा दी है. भारत शायद अकेला मुल्क है, जो रूस और अमेरिका के साथ बराबर संपर्क में हैं. दोनों देशों के साथ भारत के मजबूत कूटनीतिक रिश्ते हैं. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रूसी एस-400 डिफेंस मिसाइल सिस्टम को लेकर तुर्की को अमेरिका के कोप भाजन का शिकार होना पड़ा है, लेकिन भारत के प्रति अमेरिका ने उदार दृष्टिकोण अपनाया है. बाइडेन प्रशासन के बयान से चीन और पाकिस्तान की चिंता बढ़ी होगी, क्योंकि भारत और रूस की निकटता चीन और पाकिस्तान को भी नहीं भाती है.
- बाइडेन प्रशासन का यह बयान ऐसे समय आया है, जब यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत पर रूस के खिलाफ होने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव है. इसको लेकर अमेरिका और पश्चिमी देशों को लेकर भारत पर काफी दबाव है. ऐसे में बाइडेन प्रशासन का यह बयान भारत को दुविधा से मुक्त करने वाला है. बाइडेन प्रशासन ने भारत को यह राहत ऐसे समय दी है, जब भारत ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल का अपग्रेड वर्जन करने के लिए रूसी जिरकान हाइपरसोनिक मिसाइल की तकनीक का इस्तेमाल करने की तैयारी में है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने भारत की ओर से रूसी तेल, फर्टिलाइजर और रूसी डिफेन्स सिस्टम खरीदे जाने के बारे में कहा कि किसी अन्य देश की विदेश नीति के बारे में बात नहीं करनी चाहिए.
आखिर अमेरिका ने ऐसा क्या कहा
- अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने भारत की ओर से रूसी तेल, फर्टिलाइजर और रूसी डिफेन्स सिस्टम खरीदे जाने के बारे में कहा कि किसी अन्य देश की विदेश नीति के बारे में बात नहीं करनी चाहिए. नेड प्राइस ने कहा, ‘लेकिन भारत से हमने जो सुना है, मैं उस बारे में बात कर सकता हूं. हमने दुनियाभर में देशों को यूक्रेन पर रूस के हमले के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने वोट समेत कई बातों पर साफ रूप से बात करते देखा है. हम यह बात भी समझते हैं और जैसा कि मैंने कुछ ही देर पहले कहा था कि यह बिजली का स्विच ऑफ़ करने की तरह नहीं है
- उन्होंनें कहा कि यह समस्या खास तौर पर उन देशों के साथ है, जिनके रूस के साथ ऐतिहासिक संबंध हैं. जैसा कि भारत के मामले में है, उसके संबंध दशकों पुराने हैं. भारत को अपनी विदेश नीति में रूस की तरफ झुकाव हटाने में लंबा वक्त लगेगा. यूक्रेन पर रूस ने 24 फरवरी को हमला कर दिया था, जिसके बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने उस पर कड़े प्रतिबंध लगाए है. भारत ने पश्चिमी देशों की आलोचना के बावजूद रूस से यूक्रेन युद्ध के बाद तेल आयात बढ़ाया है और उसके साथ व्यापार जारी रखा है. रूस मई में सऊदी अरब को पीछे छोड़कर भारत का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल सप्लायर बन गया है.
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यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है.
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