Published on Apr 06, 2023 Updated 0 Hours ago

पूर्वी यूरोप में नेटो अपनी मौजूदगी का विस्तार करने की जुगत लगा रहा है, ऐसे में बेलारूस अपनी धरती पर रूसी सामरिक परमाणु हथियारों की तैनाती चाह रहा है.

रूस के सामरिक परमाणु हथियारों की मेज़बानी के लिए बेलारूस बेक़रार क्यों?

25 मार्च 2023 को टेलीविज़न पर प्रसारित साक्षात्कार में राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने कहा कि रूस अपने पड़ोसी मित्र देश बेलारूस में सामरिक परमाणु हथियारों की तैनाती की तैयारी कर रहा है. यूक्रेन संकट की दशादिशा के साथ-साथ परमाणु अप्रसार और सामरिक स्थिरता पर इस एलान का वैश्विक प्रभाव पड़ने के आसार हैं. व्यापक रूप से रूस और पश्चिमी जगत की तनातनी पर इसका असर होने की आशंका है. यही वजह है कि पुतिन की ये घोषणा तत्काल दुनिया भर में सुर्ख़ियों में छा गई. तमाम सरकारों (प्रमुख रूप से पश्चिम की) और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने बिना देर लगाए आधिकारिक बयान जारी कर इन घोषित योजनाओं की कड़ी आलोचना की. 

परिचर्चा के केंद्र में यही बात है कि रूस अपने सामरिक परमाणु हथियारों को आख़िर बेलारूस में तैनात करने में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रहा है.

पुतिन के बयान पर सियासी और मीडिया जगत में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया. परिचर्चा के केंद्र में यही बात है कि रूस अपने सामरिक परमाणु हथियारों को आख़िर बेलारूस में तैनात करने में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रहा है. इस घोषणा से रूस असलियत में क्या हासिल करने का मक़सद रखता है. परमाणु शक्ति संपन्न महाशक्ति के रूप में रूस के दर्जे को देखते हुए इस संदर्भ में उसकी सोच और इरादे निश्चित रूप से अहमियत रखते हैं. हालांकि इस घटनाक्रम को लेकर विश्लेषकों में व्याप्त असमंजस को सुलझाने के लिए ख़ुद बेलारूस और उसकी सरकार के रुख़ को समझना ज़रूरी है. हक़ीक़त ये है कि नवंबर 2021 (यूक्रेन युद्ध छिड़ने से कुछ ही महीनों पहले) में बेलारूस के राष्ट्रपति एलेक्ज़ेंडर लुकाशेंको ने चेतावनी भरे लहज़े में कहा था कि अगर अमेरिका ने अपने परमाणु बमों को पूर्वी यूरोप में तैनात करने पर विचार किया तो वो रूस को अपने नाभिकीय हथियारों को बेलारूस में तैनात करने की सलाह देंगे. आगे चलकर जून 2022 में उन्होंने राष्ट्रपति पुतिन से बेलारूस के विमानों को उन्नत करने में मदद करने को कहा ताकि वो परमाणु हथियारों को लेकर उड़ने में सक्षम हो सकें. लुकाशेंको का ये बयान नेटो की ओर से तेज़ की गई सैन्य कार्रवाइयों (परमाणु शक्ति संपन्न बमवर्षकों के प्रशिक्षण उड़ानों समेत) के जवाब में आया था.  

फ़ैसला पत्थर की लकीर?

भले ही 25 मार्च को ब्लादिमीर पुतिन की ओर से की गई घोषणा को अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह प्रसारित किया हो, लेकिन इस ख़बर से किसी को कोई हैरानी नहीं हुई. बेलारूसी राष्ट्रपति के बयानों का ऊपर ज़िक्र किया जा चुका है, इसके अलावा रूस और बेलारूस अतीत में अनेक मौकों पर सार्वजनिक रूप से इस मसले को उठाते रहे हैं. मिसाल के तौर पर 19 दिसंबर 2022 को आयोजित साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस में लुकाशेंको और पुतिन ने इस बात की तस्दीक़ की थी कि दोनों देश बेलारूस के लड़ाकू विमानों और पायलटों को संभावित परमाणु अभियानों के लिए तैयार करने पर मिलकर काम कर रहे हैं. एक दिन बाद रूसी विदेश मंत्रालय ने साफ़ किया कि दोनों देशों का गठजोड़ यूरोप में अमेरिकी परमाणु क्षमताओं के आधुनिकीकरण की क़वायद के जवाब में ये क़दम उठा रहा है.

इसके बावजूद राष्ट्रपति पुतिन की ताज़ा टिप्पणियों से कुछ नए ब्योरों पर रोशनी डली है. इस वक़्त मौजूद जानकारियां ये हैं:

  • इस समझौते के दायरे में सिर्फ़ सामरिक परमाणु हथियार ही आते हैं, रणनीतिक हथियार नहीं (जिन्हें शीत युद्ध के ज़माने में बेलारूस की सरज़मीं पर तैनात किया गया था);
  • बेलारूस के पास परमाणु बमों के संचालन में सक्षम दो प्रकार के डिलिवरी प्लेटफ़ॉर्म होंगे- इस्कंदर मिसाइल प्रणालियां और हाल ही में उन्नत किए गए 10 विमान.
  • बेलारूस के पायलट अप्रैल में ही प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा कर लेंगे और उसके बाद वो दोहरी क्षमता वाले विमान उड़ाने के क़ाबिल हो जाएंगे;
  • बेलारूस में परमाणु हथियारों के भंडारण की सुविधाएं जुलाई तक तैयार हो जाएंगी;
  • रूस परमाणु हथियारों को बेलारूस के सीधे नियंत्रण में हस्तांतरित नहीं करेगा.

बहरहाल, बेलारूस की धरती पर हथियारों की तैनाती से जुड़ी असल योजनाओं के बारे में कोई विशिष्ट जानकारी मुहैया नहीं कराई गई है. कई टीकाकारों का अब भी यही विचार है कि रूस असलियत में परमाणु हथियारों के हस्तांतरण का इरादा ही नहीं रखता और वो महज़ टकराव के स्तर को ऊंचा उठाने में दिलचस्पी रखता है ताकि अमेरिका/नेटो को वार्ताओं के लिए मजबूर किया जा सके. हक़ीक़त ये है कि बेलारूस-रूस परमाणु सहयोग पर टिप्पणी करते हुए दिसंबर 2022 में रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ज़ोर देकर कहा था कि रूस के भंडारों से हथियारों को दूर ले जाने की कोई योजना वजूद में नहीं है. इसके बावजूद ये बात ज़ेहन में रखना ज़रूरी है कि हम अपने सामने एक बड़ा सैन्य-सियासी टकराव भरा घटनाक्रम देख रहे हैं. इस कड़ी में जैसे-जैसे तनाव बढ़ता है, प्रतिद्वंदियों के दांव-पेच भी बदलते रहते हैं. लिहाज़ा एक बार बेलारूस में समूचा बुनियादी ढांचा तैयार होने की सूरत में अगर तनावों में कमी नहीं आती है तो रूसी हथियारों की तैनाती संभावित रूप से अगला क़दम हो सकती है.

नेटो की साझा परमाणु व्यवस्था की छाया  

रूस और बेलारूस दोनों ज़ोर देकर कह रहे हैं कि उनकी ताज़ा क़वायद कोई अनोखी पहल नहीं है और वो तो वही करने जा रहे हैं जिसपर अमेरिका और उसके तमाम यूरोपीय मित्र देश, शीत युद्ध के शुरुआती वर्षों से ही अमल करते आ रहे हैं. दरअसल ये दोनों देश नेटो की तथाकथित साझा परमाणु व्यवस्थाओं की मिसाल दे रहे हैं, जो “ये सुनिश्चित करता है कि परमाणु मोर्चे पर बचावकारी उपायों के फ़ायदे, ज़िम्मेदारियां और जोख़िम को समूचा गठजोड़ साझा करे”. फ़िलहाल इस व्यवस्था में यूरोप के पांच ग़ैर-परमाणु शक्ति संपन्न देश हिस्सा ले रहे हैं. ये देश हैं- बेल्जियम, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड्स और तुर्किए.

यहां तक कि जब मिंस्क ने 2014-2020 के बीच यूक्रेन और रूस के बीच शांति वार्ताओं के मुख्य अड्डे की भूमिका निभाई, तब भी बेलारूस ने ज़ाहिर तौर पर इस ख़ास संघर्ष में “परिस्थितिजन्य तटस्थता” की नीति का ही पालन किया.

क्या दोनों देशों के इरादे परमाणु हथियारों के अप्रसार से जुड़ी संधि (NPT) का उल्लंघन करते हैं, इस सवाल के जवाब में बेलारूस और रूस सबसे ज़्यादा ज़ोर इस बात पर दे रहे हैं कि वो सिर्फ़ नेटो के स्थापित तौर-तरीक़ों की नक़ल कर रहे हैं. परमाणु हथियारों के प्रत्यक्ष या परोक्ष हस्तांतरण को NPT बिना किसी लाग-लपेट के प्रतिबंधित करता है, चाहे “प्राप्तकर्ता देश कोई भी क्यों ना हो”. रूस लंबे अर्से से नेटो की व्यवस्थाओं की आलोचना करता आ रहा है, लेकिन अब वो ख़ुद यही दलील दोहरा रहा है कि शांतिकाल में जब तक वो बेलारूस को परमाणु हथियारों पर नियंत्रण की शक्ति हस्तांतरित नहीं करता तब तक NPT का किसी तरह का कोई उल्लंघन नहीं होता. 

यहां एक बात ग़ौर करने लायक़ है. परमाणु हथियारों को साझा करने की प्रवृति को लेकर रूस के इस ताज़ा यू-टर्न से विदेश नीति के मोर्चे पर रूस के बदलते तेवरों के संकेत मिलते हैं. अमेरिका के कथित नामुनासिब बर्ताव की आलोचना जारी रखने की बजाए रूस अब ये दलील दे रहा है कि अगर अमेरिका को कुछ करने की छूट है तो रूस और दूसरी महाशक्तियों को भी ऐसे ही अधिकार मिलने चाहिए.   

बेलारूस: परमाणु-मुक्त हालात और तटस्थता...

वैसे तो अब भी ये तय नहीं है कि क्या रूसी परमाणु हथियार स्थायी रूप से बेलारूस में तैनात रहेंगे, और अगर रहेंगे तो इसकी शुरुआत ठीक-ठीक कब से होगी. इस पहेली को सुलझाने के लिए बेलारूस की सोच को समझने की दरकार है. ख़ासतौर से इसलिए क्योंकि कुछ ही वर्षों के भीतर बेलारूस ने अपने परमाणु-मुक्त अतीत से एक लंबा रास्ता तय कर लिया है. अब वो अपनी सरज़मीं पर रूसी परमाणु हथियारों की तैनाती की बात कर रहा है.

बेलारूस 1990 के दशक के मध्य से रूस के साथ नज़दीकी से जुड़ा रहा है. दोनों देशों के बीच दो-स्तरों वाली पारस्परिक रक्षा प्रतिबद्धताएं हैं- पहला बेलारूस संघ राज्य और रूस के बीच और दूसरा सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (CSTO) के रूप में बहुपक्षीय स्वरूप वाला. इस जमावड़े में आर्मीनिया, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान भी सदस्य के रूप में शामिल हैं. हालांकि इन क़वायदों के बावजूद 2022 की शुरुआत तक बेलारूस के संविधान में एक प्रावधान था जिसमें कहा गया था कि बेलारूस “अपनी सरज़मीं को परमाणु-मुक्त क्षेत्र और राष्ट्र को तटस्थ बनाने का लक्ष्य रखता है”.

वैसे तो सोवियत संघ से विरासत के तौर पर मिले सभी परमाणु हथियारों को नवंबर 1996 तक वापस ले लिया गया था लेकिन बेलारूस ने असलियत में कभी भी रूस के साथ पारस्परिक रक्षा व्यवस्थाओं से बाहर निकलकर पूर्ण रूप से तटस्थ राज्यसत्ता बनने की कोशिश नहीं की. यहां तक कि जब मिंस्क ने 2014-2020 के बीच यूक्रेन और रूस के बीच शांति वार्ताओं के मुख्य अड्डे की भूमिका निभाई, तब भी बेलारूस ने ज़ाहिर तौर पर इस ख़ास संघर्ष में “परिस्थितिजन्य तटस्थता” की नीति का ही पालन किया. इतना ही नहीं उसने “पूर्वी यूरोप का स्विट्ज़रलैंड” बनकर उभरने के विचार पर भी गंभीरतापूर्वक ध्यान देना शुरू कर दिया था. 

…रूसी परमाणु हथियारों की मेज़बानी की तैयारियां

2020 का अंत होते-होते सब कुछ बदलना शुरू हो गया. दरअसल यही वो वक़्त था जब यूरोपीय संघ और अमेरिका ने बेलारूस में राष्ट्रपति पद के चुनावों के आधिकारिक नतीजों पर प्रतिक्रिया जताते हुए कई प्रतिबंध आयद कर दिए. उन्होंने मिंस्क के साथ संचार व्यवस्था को निलंबित कर दिया. आगे चलकर राएनएयर विमान प्रकरण, बेलारूस-यूरोपीय संघ सीमा पर प्रवासी संकट और आख़िरकार यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत के बाद बेलारूस पर प्रतिबंधों के बोझ को और बढ़ा दिया गया. वर्तमान में इन पाबंदियों के चलते बेलारूस के सामने आंशिक नाकेबंदी का संकट खड़ा हो गया है. उधर, नेटो ने अपने मेड्रिड शिखर सम्मेलन में पूर्वी यूरोप में गठजोड़ की मौजूदगी बढ़ाने का फ़ैसला ले लिया. इसके साथ-साथ प्रतिबंधों से जुड़े घटनाक्रमों, पड़ोस में भौगोलिक विस्तार की ज़बरदस्त संभावनाएं समेटे सैन्य संघर्ष और पूर्वी यूरोप को हथियारों से लैस करने की भारी-भरकम मौजूदा क़वायदों ने बेलारूस के लिए सुरक्षा के मोर्चे पर अलग प्रकार का माहौल पैदा कर दिया.

यही वो संदर्भ है जो परमाणु हथियारों के प्रति बेलारूस के रुख़ में नाटकीय बदलाव की व्याख्या करता है. इस लेखक का विचार है कि बेलारूस की सरकार में बैठा कोई भी व्यक्ति इलाक़े में तेज़ी से बिगड़ते हालातों और परमाणु हथियारों से जुड़े घटनाक्रमों को लेकर ख़ास ख़ुश नज़र नहीं आ रहा. ऐसा इसलिए क्योंकि इन क़वायदों के चलते नेटो के परमाणु हथियार भंडारों का निशाना बनने के ख़तरे साफ़ तौर से जुड़ जाते हैं. बहरहाल, मौजूदा भूराजनीतिक टकराव काफ़ी आगे निकल चुका है. लिहाज़ा ऐसा लगता है कि रूसी परमाणु हथियारों की मेज़बानी करने से हासिल होने वाले बचावकारी फ़ायदों ने बेलारूस के नीति-निर्माताओं के विचार को बदलने में निर्णायक भूमिका अदा की है. 

इस संदर्भ में ख़ासतौर से एक घटना का ज़िक्र ज़रूरी है. दरअसल 2020 में बेलारूस को अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद द्वारा संचालित बेहद गोपनीय जंगी खेल के बारे में पता चला था. ओबामा प्रशासन के आख़िरी दौर में ये चाल चली गई थी. उस खेल के तहत अमेरिकी सैन्य प्रमुखों के एक समूह ने बेलारूस पर परमाणु हथियारों से हमला करने का फ़ैसला किया था, ताकि रूस को काल्पनिक परमाणु संकट को टालने के लिए मजबूर किया जा सके. हालांकि उस वक़्त इस पूरे खेल में बेलारूस की कोई भूमिका नहीं थी. वैसे तो ये महज़ एक खेल था, लेकिन ऐसा लगता है कि अन्य नकारात्मक घटनाक्रमों के बीच इस वाक़ये से जुड़ी ख़बरों से बेलारूस के कान खड़े हो गए. फ़रवरी 2022 में बेलारूस ने एक नया संविधान स्वीकार किया जिसमें परमाणु-मुक्त दर्जे का कोई ज़िक्र नहीं था. 

बेलारूस ने पूर्व सक्रियता के साथ रूस के सामरिक परमाणु हथियारों की गुहार लगाई. इससे ऐसा लगता है कि वो नेटो के भीतर प्रदर्शित साझा परमाणु व्यवस्था से जुड़ी दलील का ही अनुसरण कर रहा है. नेटो की योजना में हिस्सा ले रहे यूरोपीय देश इसे अपनी सुरक्षा की अतिरिक्त गारंटी समझते हैं. ये क़वायद उत्तरी अटलांटिक संधि की धारा 5 में दी गई सामूहिक प्रतिरक्षा प्रतिबद्धताओं के अलावा है. इसमें प्रतिभागी देशों को भरोसा होता है कि हमले की सूरत में अमेरिका की पूरी सैन्य ताक़त (उसकी परमाणु क्षमताओं समेत) उनके बचाव में आ खड़ी होगी. इन्हीं वजहों से शीत युद्ध के शिखर काल में यूरोप की कई सरकारें अपनी धरती पर अमेरिकी सैनिकों की मेज़बानी करना चाहती थीं. इसी प्रकार बेलारूस के अधिकारियों को डर है कि बेलारूस पर हमले की सूरत में अपने मित्र के बचाव के लिए आख़िरकार रूस अपनी “परमाणु छतरी” का प्रयोग करने से इनकार कर सकता है. रूस अपनी ख़ुद की सरज़मीं पर परमाणु हमले का जोख़िम उठाने की बजाए टकराव के तेज़ी से कम होने की उम्मीद में ऐसा रुख़ दिखा सकता है. ऐसे में बेलारूस में रूसी परमाणु हथियारों की मेज़बानी करने का मतलब है इस अनिश्चितता को कम से कमतर कर देना, जिससे बचावकारी उपायों की विश्वसनीयता बढ़ जाएगी.

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