कोविड-19 महामारी ने तमाम संगठनों और कारोबारों को संचार से जुड़ी अपनी क़वायदों को ऑनलाइन स्वरूप देने पर मजबूर कर दिया. इसके लिए ज़ूम, वेबेक्स और टीम्स जैसे वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सॉफ़्टवेयर उपयोग किए जाने लगे. महामारी के चलते सरहदों पर लगी बंदिशों ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र पर विशेष रूप से गहरा असर डाला. कई राजनयिक सम्मेलनों को या तो रद्द कर दिया गया या टाल दिया गया. लिहाज़ा प्रतिनिधि अपने विदेशी समकक्षों से नहीं मिल सके. महामारी का प्रकोप दूर होने के बावजूद कई नौकरियां अब भी पूरी तरह से या आंशिक रूप से दूर से संचालित हो रही हैं. राजनयिक समुदाय भी आंशिक रूप से अपने कामकाज को ऑनलाइन रखने के फ़ायदों पर ग़ौर कर रहा है. जैसे-जैसे दुनिया न्यू नॉर्मल की ओर बढ़ रही है, विश्व के नेताओं को वर्चुअल कूटनीति से जुड़े जोख़िमों और फ़ायदों को पूरी तरह से समझ लेना चाहिए. इस तरह अनुकूलित रूप से हाइब्रिड भविष्य तैयार किया जा सकेगा.
वर्चुअल माध्यमों से होने वाली बैठकों का एक अहम लाभ है- यात्राओं से जुड़े ख़र्चों में कटौती. व्यक्तिगत मौजूदगी वाली बैठक में हिस्सा लेने के लिए भारी मात्रा में समय, धन और ऊर्जा की दरकार होती है.
तत्काल जुड़ाव
वर्चुअल माध्यमों से होने वाली बैठकों का एक अहम लाभ है- यात्राओं से जुड़े ख़र्चों में कटौती. व्यक्तिगत मौजूदगी वाली बैठक में हिस्सा लेने के लिए भारी मात्रा में समय, धन और ऊर्जा की दरकार होती है. अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में (जहां वार्ता में शामिल पक्ष अक्सर हज़ारों मील दूर होते हैं) इसकी ख़ासतौर से ज़रूरत पड़ती है. उधर, वर्चुअल कूटनीति के संदर्भ में देखें तो प्रतिभागियों के अलग-अलग टाइम ज़ोन में फैले होने की सूरत में भी राजनयिकों को (अंतरराष्ट्रीय यात्रा की तुलना में) समय के ऐसे अंतर के साथ समन्वय बिठाना आसान लगा. तत्काल जुड़ावों ने शेड्यूलिंग यानी कार्यक्रम तय करने की प्रक्रिया को भी आसान बना दिया. वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सॉफ्टवेयर का उपयोग करके कोई राजनयिक एक ही दिन में मैक्सिको और जापान में बैठकें कर सकता है. इस तरह यात्रा करने की आवश्यकता ख़त्म हो जाती है.
परंपरागत विकल्पों की तुलना में टेलीवर्क प्लेटफॉर्म अक्सर ज़्यादा हरित भी होते हैं. मिसाल के तौर पर एक लाख टन से ज़्यादा कार्बन डाइऑक्साइड पैदा करने के चलते 26वें यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP26) को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. अंतरराष्ट्रीय उड़ानों और सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधियों और उनके कर्मचारियों की रिहाइश से जुड़ी ज़रूरतों के चलते इतनी भारी मात्रा में CO2 का निर्माण हुआ. इसकी तुलना में, वर्चुअल बैठकों में केवल उतना ही कार्बन पैदा होता है जितना एक कंप्यूटर चलाने में. वैसे, बड़े शिखर सम्मेलनों के साथ अक्सर एक प्रतीकात्मक घटक जुड़ा होता है जिसे ऑनलाइन माध्यमों से होने वाले जमावड़े में दोहराया नहीं जा सकता. बहरहाल, स्टॉकहोम पर्यावरण संस्थान ने राजनयिक जगत से ताल्लुक़ रखने वाले किरदारों का इंटरव्यू किया, जिसमें तमाम लोगों में इस बात पर सहमति थी कि वर्चुअल बैठकें, छोटे आयोजनों (जैसे कार्यशालाओं और तकनीकी समीक्षाओं) का स्थान ले सकती हैं. जलवायु संकट दिनोंदिन गहरा होता जा रहा है, ऐसे में हरित भविष्य के लिए समाधान तैयार कर रहे राजनयिकों को अपने ख़ुद के कार्बन फुटप्रिंट पर भी विचार करना चाहिए.
सुलभ और सुगम
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को हाइब्रिड (आमने सामने और वर्चुअल दोनों तरीक़ों से) बनाने की क़वायद कुछ मायनों में इसे सुलभ बनाती है, लेकिन कुछ अन्य मायनों में इसकी सुगमता में कटौती भी करती है. वर्चुअल कूटनीति में प्रवेश के रास्ते में रुकावटें काफ़ी कम हैं. इस तरीक़े से अपेक्षाकृत कम प्रतिनिधित्व वाले पक्षों के लिए भी राजनयिक प्रक्रिया में हिस्सा लेना आसान हो जाता है. मिसाल के तौर पर किसी बैठक के लिए 50 समूहों को ज़ूम लिंक उपलब्ध कराना उन सभी को व्यक्तिगत (यानी शारीरिक) रूप से समायोजित करने की तुलना में बहुत आसान होता है. प्रतिनिधियों ने यह भी नोट किया है कि वर्चुअल माध्यमों से शीर्ष-स्तरीय अधिकारियों के साथ मिलना आसान हो जाता है क्योंकि इसमें आमने-सामने होने वाली बैठकों के लिए ज़रूरी सुरक्षा प्रोटोकॉल की बंदिशें नहीं होतीं. वर्चुअल बैठकों के ज़रिए तमाम राजनयिक संवाद प्रक्रिया में और स्वर जोड़ सकते हैं.
विकासशील देशों में राजनयिकों के लिए, वर्चुअल बैठकों की ओर बदलाव महत्वपूर्ण बैठकों में हिस्सा लेने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है.
हालांकि, ये फ़ायदे सिर्फ़ तकनीकी बुनियादी ढांचे और विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्शनों वाले पक्षों के लिए ही उपलब्ध हैं. विकासशील देशों में राजनयिकों के लिए, वर्चुअल बैठकों की ओर बदलाव महत्वपूर्ण बैठकों में हिस्सा लेने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है. ख़तरनाक कचरे और उनके निपटान की सीमा पार आवाजाही के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन के कार्य समूह की 2020 में वर्चुअल रूप से बैठक हुई थी. तब ग्लोबल साउथ (अल्प-विकसित और विकासशील दुनिया) के कई देशों ने इस पर एतराज़ जताया था. दरअसल, उनका मानना था कि घरेलू बुनियादी ढांचे के अभाव और वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सॉफ्टवेयर को लेकर अनुभव की कमी से उनके वार्ताकारों को नुक़सान हो सकता है. महत्वपूर्ण बैठकों को ऑनलाइन माध्यमों पर लाने से ग़ैर-सरकारी समूहों (NGOs) पर सरकारी दख़लंदाज़ियों की आशंकाएं भी बढ़ जाती हैं. युगांडा, तंज़ानिया और ज़िम्बाब्वे जैसे देश अक्सर सियासी मक़सदों से इंटरनेट तक पहुंच पर पाबंदियां लगाते रहते हैं. ज़ाहिर है कि वर्चुअल कूटनीति, वैश्विक राजनीति के लिए तभी एक न्यायसंगत विकल्प बन सकती है जब इंटरनेट तक पहुंच और उनके शासन-प्रशासन से जुड़े प्रश्नों का पर्याप्त रूप से निपटारा हो जाए!
पारस्परिक संबंधों पर प्रभाव
कई राजनयिकों का सवाल है कि क्या वे स्क्रीन के माध्यम से यानी वर्चुअल कूटनीति के ज़रिए पारस्परिक संबंध विकसित कर सकते हैं! जब पक्षों के बीच पहले से रिश्ते मौजूद हों, तब विश्वास बनाना आसान होता है, लेकिन वर्चुअल माध्यमों से जुड़ी बाधाएं नए रिश्ते बनाने की क़वायदों को बेहद मुश्किल बना देती हैं. इस संदर्भ में हम कोविड-19 महामारी की शुरुआत से चंद अर्सा पहले कूटनीतिक दुनिया में कामकाज शुरू करने वाले एक राजनयिक के अनुभव की मिसाल ले सकते हैं. वॉशिंगटन-स्थित इस राजनयिक ने महसूस किया कि उनका काम कम प्रभावी हो गया है क्योंकि वो आमने-सामने संपर्क के बिना एक पेशेवर नेटवर्क तैयार करने में ख़ुद को असमर्थ पा रहे थे. उनके मुताबिक, “मेरे कुछ संपर्क हो सकते हैं, लेकिन वास्तविक रूप से मेरे कोई रिश्ते नहीं हैं और नई दोस्ती तो निश्चित रूप से नदारद हैं.” इसी तरह महामारी के युग की कूटनीतिक क़वायदों पर विचार करते हुए कई राजनयिकों ने “गलियारे में होने वाले संवादों,” समारोह कक्ष के बाहर या लिफ्ट में, या बैठकों के बीच के अंतरालों में होने वाली छोटी-छोटी बातचीत के अभाव पर निराशा जताई है.
इसी प्रकार, आपसी विश्वास पैदा करने वाले अन्य आयोजनों (जैसे एक साथ खाना-पीना या धूम्रपान करना) को भी ऑनलाइन नहीं दोहराया जा सकता. ऐसे अनौपचारिक संवाद क़रीबी और दोस्ताना निजी संबंध बनाने के लिए अहम हैं, चाहे बैठक की विषय-वस्तु बेहद विवादास्पद ही क्यों ना हो! वर्चुअल तरीक़े से कामकाज जारी रखने वाले ग़ैर-सरकारी समूहों के मध्यस्थताकारों ने आपसी विश्वास पैदा करने वाले आयोजनों (जैसे एक साथ चाय पीना) के अभाव को वर्चुअल कूटनीति की प्रमुख कमज़ोरी क़रार दिया है. मेहमाननवाज़ी (hospitality), अरब दुनिया में शांति प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है, अतिथि सत्कार के ऐसे ही तौर-तरीक़े लगभग हर संस्कृति में मौजूद हैं, लेकिन आमने-सामने संपर्क के बिना इसे अंजाम देना असंभव है.
महामारी के युग की कूटनीतिक क़वायदों पर विचार करते हुए कई राजनयिकों ने “गलियारे में होने वाले संवादों,” समारोह कक्ष के बाहर या लिफ्ट में, या बैठकों के बीच के अंतरालों में होने वाली छोटी-छोटी बातचीत के अभाव पर निराशा जताई है.
पारस्परिक संबंधों में आया तनाव भारी जोख़िम वाले संदर्भों (जैसे शांति स्थापना से जुड़ी कूटनीतिक क़वायदों) में और ज़्यादा असर डालता है. एक कमरे में शारीरिक रूप से आमने-सामने हो जाने भर से विश्वास प्रदर्शित करने की दिशा में पहला अहम क़दम बढ़ जाता है. वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग अक्सर ऐसी बैठक के उद्देश्य को कमज़ोर कर देती है. सीरिया में सरकारी पक्ष के प्रतिनिधियों ने विपक्ष और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों से वर्चुअली मिलने से इनकार कर दिया था. उनका मानना था कि ऐसी संवेदनशील वार्ताएं वर्चुअल तरीक़े से आयोजित नहीं की जा सकतीं.
यहां तक कि अपने तात्कालिक उद्देश्यों को पूरा करने वाली वर्चुअल बैठकों में भी राजनयिकों को दीर्घकालिक सद्भावना तैयार करने के उपायों पर भरपूर ध्यान देना चाहिए. कूटनीतिक संवाद उन जटिल साझेदारियों के लिए अहम हैं, जो दशकों तक चलती हैं और जिनके साथ तमाम तरह के मसले जुड़े होते हैं. व्यक्तिगत समझ को बढ़ावा देने के लिए पूरक क़वायदों के रूप में व्यक्तिगत जुड़ावों को आगे बढ़ाना निहायत ज़रूरी होता है. इन उपायों के बिना सिर्फ़ वर्चुअल बैठकों का सहारा लेने से इन रिश्तों में कमज़ोरी आ सकती है. इससे भावी राजनयिक सहयोग में बाधाएं खड़ी हो सकती हैं.
सुरक्षा चिंताएं
वर्चुअल बैठकों के साथ कई तरह के सुरक्षा जोख़िम जुड़े होते हैं. ये कूटनीतिक किरदारों (विशेष रूप से सरकारों) को अपने कामकाज को हाइब्रिड रूप देने से रोकती हैं. अनाधिकृत लोग गोपनीय बैठकों तक पहुंच बनाने और गोपनीय सामग्रियों का प्रचार-प्रसार करने के लिए “ज़ूम बॉम्बिंग” का उपयोग करते हैं. ये सुरक्षा के मोर्चे पर एक जाना-पहचाना ख़तरा है. अक्सर इंटरनेट ट्रोल्स ही ज़ूम बॉम्बर्स होते हैं. अफ़रातफ़री या खलबली मचाने के सिवा इनका शायद ही कोई और मक़सद होता है. बहरहाल, होलोकॉस्ट की याद में होने वाले समारोहों और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस जैसे उत्सवों के खिलाफ राजनीतिक रूप से प्रेरित हमले दर्ज किए गए हैं.
हालांकि, पासवर्ड और वेटिंग रूम जैसे विकल्प, ऐसे ख़तरों की रोकथाम कर सकते हैं, लेकिन कूटनीति का गोपनीय स्वभाव साइबर सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को और बढ़ा देता है. मिसाल के तौर पर यमन में कुछ हूती नेताओं ने वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सॉफ्टवेयर का उपयोग करने से मना कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि ये सॉफ्टवेयर उनके भौतिक ठिकानों के राज़ बेपर्दा कर सकता है. गुपचुप तरीक़े से रिकॉर्ड किए जाने की चिंताओं ने भी वर्चुअल मीटिंग में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों को असहज कर दिया है. बैठक में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों के मन में ऐसे सवाल उठते हैं कि सामने वाला रिकॉर्डिंग तो नहीं कर रहा, वो कहां खड़ा है, उसके साथ और कौन हमारी बातें सुन रहा है, क्या आपको ये सब पता है? भले ही वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के ज़्यादातर प्लेटफ़ॉर्म, बिल्ट-इन रिकॉर्डिंग सुविधा का उपयोग किए जाने पर प्रतिभागियों को सूचित (notify) करते हैं, लेकिन इसको छकाने के कारगर जुगाड़ (जैसे थर्ड-पार्टी स्क्रीन रिकॉर्डर्स) आसानी से मिल जाते हैं. ऐसी अनसुलझी सुरक्षा चिंताएं वर्चुअल बैठकों पर भरोसे में कमी लाती हैं. जिससे नेक इरादों वाले कूटनीतिक प्रयासों पर चोट पड़ती है.
निश्चित रूप से सरकारें काफ़ी मज़बूत साइबर सुरक्षा प्रोटोकॉल तैयार करती हैं लेकिन थर्ड-पार्टी समूह इन क़वायदों में पिछड़ जाते हैं.
सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं पर दिया जाने वाला ध्यान अक्सर उपलब्ध संसाधनों का समानुपाती (proportional) होता है. निश्चित रूप से सरकारें काफ़ी मज़बूत साइबर सुरक्षा प्रोटोकॉल तैयार करती हैं लेकिन थर्ड-पार्टी समूह इन क़वायदों में पिछड़ जाते हैं. अमेरिका ने तो 2011 में ही फेडरल यानी संघीय उपयोग के लिए क्लाउड सेवाओं की समीक्षा करने को लेकर फेडरल रिस्क एंड ऑथोराइज़ेशन मैनेजमेंट प्रोग्राम (FedRAMP) की स्थापना कर ली थी. दूसरी ओर, अधिकांश अन्य सरकारों ने कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र साइबर सुरक्षा से जुड़े चंद दिशानिर्देश तैयार किए हैं. हालांकि ग़ैर-सरकारी संगठन अक्सर व्यावसायिक रूप से उपलब्ध सेवाओं पर निर्भर रहते हैं. वर्चुअल कूटनीति की सुरक्षा में विश्वास को बढ़ावा देने के लिए ऐसी बैठकों पर संदेह करने वाले पक्षों का भरोसा हासिल करना ज़रूरी है. लिहाज़ा खुफ़िया जानकारियों से लैस संगठनों को वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग से जुड़े सुरक्षित सॉफ़्टवेयरों में निवेश करना चाहिए.
पर्याप्त सावधानी के साथ वैचारिक एकीकरण
कूटनीतिक लक्ष्यों को चोट पहुंचाए बिना टेलीकॉन्फ्रेंसिंग का लाभ उठाए जाने की दरकार है. ऐसे में वर्चुअल बैठकों का कब और कैसे संचालन करना है, इसका निर्णय करने में विवेक (discretion) का सहारा लेना ज़रूरी है. सभी बैठकें, वर्चुअल वातावरण के लिए उपयुक्त नहीं होतीं. बड़ी तादाद में लोगों के जमावड़े वाली, प्रतीकात्मक घटक वाली या पहली बार परिचय क़ायम कराने वाली बैठकों को, जब भी संभव हो साक्षात तरीक़े से आयोजित किया जाना चाहिए. आयोजकों को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि हरेक प्रतिभागी के पास आवश्यक बुनियादी ढांचा और उपकरण हैं या नहीं. इस प्रकार वर्चुअल मीटिंग की क़वायद में डिजिटल भेदभाव को रोका जा सकेगा. साथ ही वर्चुअल बैठकों के दौरान संतुलन बेहद ज़रूरी है. इससे वर्चुअल मीटिंग की कामयाबी और प्रभावशीलता सुनिश्चित की जा सकेगी.
वर्चुअल कूटनीति के अनगिनत फ़ायदे हैं, लेकिन ये सीधे तौर पर परंपरागत व्यक्तिगत बैठकों की जगह नहीं ले सकती. दरअसल, वर्चुअल वातावरण, कई तरह के विचार और चुनौतियां साथ लेकर आता है. अपने मौजूदा ढांचे में वर्चुअल बैठकों को एकीकृत करने के बारे में राजनयिक बिरादरी को गंभीरता से सोच-विचार करना चाहिए. इससे परंपरागत और वर्चुअल, दोनों का मिश्रण यानी हाइब्रिड तैयार करने से जुड़ी क़वायदों का भविष्य न्यायसंगत, मेहमाननवाज़ी भरा (hospitable) और सुरक्षित बनाया जा सकेगा.
जेना स्टीफेंसन ओआरएफ़ मुंबई में इंटर्न हैं.
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