ट्विटर एक ऐसी कंपनी है, जिसने हमारे ख़बरें पढ़ने, सुनने और देखने का, संस्थाओं और व्यक्तियों से संवाद करने का और ख़ुद को शब्दों, तस्वीरों और वीडियो के माध्यम से अभिव्यक्त करने का तरीक़ा बिल्कुल बदल डाला है. वही ट्विटर अब भारत को ऐसा अहंकार जता रहा है, जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश को सदाक़त का पाठ पढ़ाना ही कहा जाएगा. 27 मई 2021 को दोपहर 1.04 बजे को ट्विटर ने जो बयान जारी किया है, उससे ट्विटर की नीयत में तो कोई खोट नहीं दिखता, लेकिन जिसके शब्दों को क़ानून और नियमों के सांचे में ढालना बेहद चुनौतीभरा होगा.
ट्विटर ने भारत की वाजिब तरीक़े से चुनी हुई सरकार द्वारा बनाए गए नए नियमों का पालन करने के लिए तीन महीने का वक़्त और मांगा है. ट्विटर की ये मांग बिल्कुल जायज़ है; सरकार को ट्विटर की ये अपील स्वीकार कर लेनी चाहिए. लेकिन, इसके आगे अगर ट्विटर के भारत और सैन फ्रांसिस्को स्थित मुख्यालय में काम करने वाले और ख़ास वैचारिक झुकाव व अच्छा ख़ासा राजनीतिक प्रभाव रखने वाले अधिकारी अगर ये सोचते हैं कि वो ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के पीछे छुप सकते हैं. वो अगर ख़ुद को इतना ताक़तवर समझते हैं कि दुनिया के किसी भी देश और इस मामले में भारत के संप्रभु क़ानूनों का पालन नहीं करेंगे, तो वो सरासर ग़लत सोच रहे हैं.
ट्विटर ने भारत की वाजिब तरीक़े से चुनी हुई सरकार द्वारा बनाए गए नए नियमों का पालन करने के लिए तीन महीने का वक़्त और मांगा है. ट्विटर की ये मांग बिल्कुल जायज़ है; सरकार को ट्विटर की ये अपील स्वीकार कर लेनी चाहिए.
ट्विटर ने अपने बयान को जनहित के विचार के सांचे में ढालकर भारत सरकार और ग्राहकों दोनों के सामने परोसा है:
‘ट्विटर भारत के नागरिको को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध है. हमारी सेवाएं सार्वजनिक संवाद के लिए अहम साबित हुई हैं और महामारी के दौरान, ट्विटर लोगों के सहयोग का माध्यम बना है. अपनी सेवाओं को भारत में उपलब्ध कराए रखने के लिए हम भारत के सभी क़ानूनों का पालन करने की कोशिश करेंगे. लेकिन, जैसा हम दुनिया के तमाम हिस्सों में करते हैं, तो भारत में भी हम पारदर्शिता के सिद्धांतों वाले आदर्श पर चलते रहेंगे. अपनी सेवा के माध्यम से हर आवाज़ को सशक्त करने की हमारी प्रतिबद्धता बनी रहेगी और हम क़ानून के राज के अंतर्गत अभियव्यक्ति की आज़ादी और निजता के अधिकारों का संरक्षण करते रहेंगे.’
मैं आपको बताता हूं कि ट्विटर के इस बयान में क्या ग़लत है:
- पहला तो ये कि, भारत के नागरिकों के प्रति ट्विटर की चिंता और इसकी प्रतिबद्धता प्रशंसा के योग्य है. इसी तरह, महामारी के दौरान ट्विटर का सहायता पाने की सेवा उपलब्ध कराना भी तारीफ़ के क़ाबिल है. कोई भी इस बात से इनकार नहीं करता है. लेकिन, ये तर्क मूल मुद्दे से ध्यान भटकाने वाला है. ये तर्क मूल प्रश्न का जवाब देने के बजाय, वाद विवाद को दूसरी दिशा में ले जाना है. यहां पर मुद्दा ये है कि: क्या ट्विटर एक मंच है अथवा प्रकाशक? अगर ट्विटर एक मंच है, तो ये एक प्रकाशक जैसा व्यवहार क्यों कर रहा है- और ऐसे संरक्षण की मांग कर रहा है, जो एक मंच की ओर से आ रहे हैं?
- दूसरा ये कि ट्विटर ने कहा है कि वो, ‘लागू होने वाले क़ानूनों का पालन करने की कोशिश करेगा.’ ऐसा करके ट्विटर, भारत के ऊपर कोई एहसान नहीं कर रहा है. एक लोकतांत्रिक देश में ये एक न्यूनतम नियामक शर्त होती है: आप क़ानून तोड़ेंगे तो आपको क़ानून का सामना करना होगा. इसके अलावा, आप क़ानून का ‘पालन करने की कोशिश’ नहीं करते हैं. आप बस क़ानून का पालन करते हैं.
- तीसरी बात ये कि ट्विटर का कहना है कि भारत के क़ानूनों को लेकर उसका जो रुख़ है, सो तो है ही, वो भारत में भी वही क़दम उठाएगा, जैसा वो बाक़ी दुनिया में करता आ रहा है. किसी संप्रभु देश या विदेश मंत्री के हवाले से ऐसे बयान आना तो सामान्य बात है; लेकिन, एक निजी और सूचीबद्ध कंपनी जब ऐसा बयान देती है, तो ये बात परेशान करने वाली है. ये ट्विटर के अधिकारियों और उसके बोर्ड के उस अहंकार को उजागर करती है, जिसमें वो सोचते हैं कि वो ट्विटर नाम की कंपनी नहीं, बल्कि असल में ट्विटर गणराज्य हैं. शायद ट्विटर को ये गुमान है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी और निजता को लेकर उसकी जो सोच है, वो उन वैधानिक सरकारों और राष्ट्रों से भी ज़्यादा वज़नदार है, जिनकी ज़िम्मेदारी ही ये अधिकार सुनिश्चित करना है.
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ट्विटर को लगता है कि उसकी सेवाओं की वैश्विक शर्तें’ भारत सरकार द्वारा तैयार किए गए नियमों से ऊपर हैं. ट्विटर जैसी विशाल कंपनी, जिसके पास विचारों का अथाह सागर है, और जो दुनिया के बेहतरीन वकीलों व सलाहकारों की फ़ीस भरने की क्षमता रखती है, उसके लिहाज़ से ये बेवजह की बचकानी बातें और नियमों के प्रति तिरस्कार का भाव जताना है.
ट्विटर का बयान यहीं पर समाप्त नहीं होता है. इस बयान में ट्विटर ने आगे कहा है कि:
‘इस समय हम भारत में अपने कर्मचारियों से जुड़ी हालिया घटनाओं और उन लोगों की अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार को लेकर चिंतित हैं, जिनकी हम सेवा करते हैं. हम भारत और बाक़ी दुनिया में समाज के तमाम लोगों के साथ इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जब हमने अपनी सेवाओं की वैश्विक नीतियों और भारत के सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी नए नियमों को सख़्ती से लागू किया, तो पुलिस ने इसके जवाब में हमें डराने के तौर तरीक़े अख़्तियार किए. हमारी योजना है कि हम नए क़ानून के उन कुछ तत्वों में बदलाव की वकालत करेंगे, जो स्वतंत्र एवं मुक्त सार्वजनिक संवाद में बाधा बनते हैं. हम भारत सरकार के साथ अपना संरचनात्मक संवाद जारी रखेंगे और हमारा विश्वास है कि सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाना बेहद आवश्यक है. ये चुने हुए अधिकारियों, उद्योगों और समाज के सभी वर्गों की ज़िम्मेदारी है कि जनता के हितों की रक्षा सुनिश्चित करे.’
‘हम इस बात से विशेष रूप से चिंतित हैं कि हमारे मंच पर डाले गए किसी कंटेंट के लिए एक ख़ास व्यक्ति, (अनुपालन अधिकारी) को आपराधिक रूप से ज़िम्मेदार बनाने का प्रावधान है. हमारी चिंता अतिसक्रिय निगरानी की शर्तों और ग्राहकों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के सर्वाधिकार संबंधी सार्वभौम अधिकारों को लेकर भी है. ये नज़र रखने की एक ख़तरनाक कोशिश है, जो मुक्त और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है.’
ट्विटर की इन बातों में बहुत कुछ गड़बड़ है:
- पहला तो ये कि किसी सरकार द्वारा किसी कंपनी में भविष्य में किसी गड़बड़ी की आशंका के लिए किए जा रहे नियमन के प्रयासों को, अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार से जोड़ रही है. भारत में हर कोई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करता है. लेकिन, सरकार के नियमों और ट्विटर के बयान के बीच जो बात भुला दी गई वो है नियमों को तोड़ने की है. भले ही वो नियम किसी ने भी तोड़ा हो तो.
- दूसरी बात ये कि ट्विटर अपने निजी एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए समाज का इस्तेमाल करने की धमकी दे रहा है. ट्विटर को लगता है कि उसकी सेवाओं की वैश्विक शर्तें’ भारत सरकार द्वारा तैयार किए गए नियमों से ऊपर हैं. ट्विटर जैसी विशाल कंपनी, जिसके पास विचारों का अथाह सागर है, और जो दुनिया के बेहतरीन वकीलों व सलाहकारों की फ़ीस भरने की क्षमता रखती है, उसके लिहाज़ से ये बेवजह की बचकानी बातें और नियमों के प्रति तिरस्कार का भाव जताना है.
- तीसरी बात ये कि ट्विटर भारत सरकार द्वारा बनाए गए नियमों में बदलाव की वकालत करने की योजना बना रहा है, और इस बारे में वो सरकार के साथ संवाद और सहयोग की बात कर रहा है. ये बिल्कुल ठीक और पूरी तरह से वाजिब प्रतिक्रिया है. ये प्रतिक्रिया लोकतंत्र के सिद्धांतों के पूरी तरह अनुकूल है. सरकार को ट्विटर का पक्ष सुनना चाहिए. लेकिन, ये कहना कि ट्विटर सरकार से क़ानून बदलने के लिए संवाद करेगा और अभी वो इन क़ानूनों का पालन नहीं कर रहा है, ये कुछ ज़्यादा ही हो गया. ये बात सच्चाई तर्क और यथार्थ से परे है.
- चौथी बात ये कि ट्विटर इस बात से चिंतित है कि उसके अधिकारी को ट्विटर पर परोसी गई किसी भी सामग्री के लिए आपराधिक रूप से ज़िम्मेदार बनाया जा रहा है. ट्विटर की ये चिंता बिल्कुल उचित है. भारत में क़ानून बनाने की प्रक्रिया के साथ यही दिक़्क़त है. ये ख़त्म होना चाहिए. लेकिन-ये क़तई और मैं फिर से कहता हूं कि ये क़तई कुछ ज़्यादा ही नज़र रखने का मामला नहीं है और न ही ये बात ‘मुक्त और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रतिकूल’ है. ये नियम (क़ानन नहीं) एक क़ानून के दायरे में बनाए गए हैं. जैसा कि सभी लोकतांत्रिक देशों में होता है, इन्हें अदालतों में चुनौती दी जा सकती है, या नए क़ानून बनाकर ख़ारिज किया जा सकता है. तब तक इन नियमों का पालन करना होगा.
- ये नियम (क़ानन नहीं) एक क़ानून के दायरे में बनाए गए हैं. जैसा कि सभी लोकतांत्रिक देशों में होता है
ग्राहकों के तौर पर हमें ट्विटर बेहद पसंद है. ये असीमित संवाद और बहुत सी परिचर्चाओं को चलाने जैसी महत्वपूर्ण सेवाएं देता है. लेकिन, तमाम लोकतांत्रिक देशों में काम करने वाली अन्य कंपनियों और संस्थाओं की तरह, ट्विटर को भी सरकार का सम्मान करना होगा. जितनी जल्दी ट्विटर ये कर लेता है, हमारे लिए उतना ही अच्छा होगा. फिर चाहे वो कंपनी हो, सरकार हो या इसके उपभोक्ता. ट्विटर के गणराज्य को भारत सरकार के सामने झुकना होगा- न कि सरकार ट्विटर के आगे झुकेगी.
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