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अफ्रीका में तैनात अमेरिकी नौसेना की टुकड़ी द्वारा बहुराष्ट्रीय समुद्री युद्धाभ्यास 26 जुलाई को जिबूती, केन्या, मैडागास्कर और सेशेल्स के आस-पास आयोजित किया गया
अमेरिकी सेना की अफ्रीका कमान (USAFRICOM) के निर्देशन में अफ्रीका में तैनात अमेरिकी नौसेना की टुकड़ी द्वारा पूर्वी अफ्रीका और पश्चिमी हिंद महासागर की राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए हर साल आयोजित किए जाने वाला बहुराष्ट्रीय समुद्री युद्धाभ्यास कटलैस एक्सप्रेस 2021 इस बार 26 जुलाई को जिबूती, केन्या, मैडागास्कर और सेशेल्स के आस-पास आयोजित शुरू हुआ. 6 अगस्त 2021 तक चले इस नौसैनिक अभ्यास का मक़सद जिबूती कोड ऑफ कंडक्ट (DCoC) के समर्थन में तहत क्षेत्रीय सहयोग का मूल्यांकन और उसमें सुधार करना था. इस अभ्यास की मदद से समुद्री क्षेत्र संबंधी जागरूकता (MDA) को बढ़ावा देने और समुद्री अभियान केंद्रों के बीच जानकारी साझा करने की व्यवस्था को और दुरुस्त करना था.
इस बार के कटलैस एक्सप्रेस अभ्यास में 12 पूर्वी अफ्रीकी देश, ब्रिटेन और भारत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय समुद्र संगठन (IMO), ड्रग्स और अपराधों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र के दफ़्तर (UNODC), सोमालिया से संबंधित यूरोपीय संघ के नौसैनिक बल (EUNAVFOR), हिंद महासागर के अहम समुद्री मार्ग (CRIMARIO), EUCAP सोमालिया और इंटरपोल जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भी हिस्सा लिया था. इस नौसैनिक अभ्यास में भारतीय नौसेना की फ्रिगेट INS तलवार शामिल हुई थी. इस दौरान भारतीय नौसैनिकों ने अन्य देशों के साथ समुद्री सुरक्षा के अभियानों से जुड़े तमाम क्षेत्रों में सहयोग का प्रशिक्षण लिया.
इस नौसैनिक अभ्यास में भारतीय नौसेना की फ्रिगेट INS तलवार शामिल हुई थी. इस दौरान भारतीय नौसैनिकों ने अन्य देशों के साथ समुद्री सुरक्षा के अभियानों से जुड़े तमाम क्षेत्रों में सहयोग का प्रशिक्षण लिया.
इस युद्धाभ्यास में शामिल ज़्यादातर अफ्रीकी देशों के पास इतनी ताक़तवर नौसेनाएं नहीं हैं कि वो अपने समुद्र तटों की निगरानी कर सकें, या फिर अपने समुद्री क्षेत्र में असरदार तरीक़े से गश्त लगाकर अवैध समुद्री गतिविधियों पर लगाम लगा सकें. इसलिए, कटलैस एक्सप्रेस जैसे बहुराष्ट्रीय युद्धाभ्यासों से इन देशों के नौसैनिक कर्मचारियों को प्रशिक्षण हासिल होता है. उन्हें अभियान चलाने का तजुर्बा भी होता है. तमाम देशों के बीच आपसी तालमेल से अभियान चलाने और किसी अभियान के लिए साझा प्रक्रिया तय करने से उनकी नौसेनाओं को काफ़ी फ़ायदा होता है. इस नौसैनिक अभ्यास का सबसे बड़ा मक़सद तो अफ्रीकी देशों की समुद्री क्षेत्र में अवैध गतिविधियां रोकने की क्षमताओं को बढ़ाना है. इन अवैध गतिविधियों में समुद्री डकैती, हथियारों और ड्रग्स की तस्करी, मानव तस्करी और जंगली जीवों का अवैध व्यापार शामिल है.
कटलैस एक्सप्रेस अभ्यास में भारत की भागीदारी ठीक उस वक़्त हुई, जब विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर केन्या के दौरे पर गए और अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन भारत के दौरे पर आए थे. एंटनी ब्लिंकेन के भारत दौरे से अमेरिका और भारत के रिश्तों में एक जैसी बातें और मतभेद भी सामने आए. हाल के वर्षों में अमेरिका और भारत के रिश्ते काफ़ी बेहतर हुए हैं. इसकी बड़ी वजह दोनों देशों के बीच हिंद प्रशांत क्षेत्र में बहुपक्षीय सहयोग और क्वॉड का गठन है. मगर, इस दौरान दोनों देशों के रिश्तों की राह में कई चुनौतियां भी सामने आई हैं. भारत की सबसे बड़ी चिंता ये है कि अमेरिकी सेना की वापसी के बाद, अफ़ग़ानिस्तान कहीं आतंकवादियों का सुरक्षित अड्डा न बन जाए. कोविड-19 के टीके बनाने के लिए कच्चा माल हासिल करने से जुड़ी चिंताएं, लोकतंत्र और मानव अधिकार जैसे आपसी मतभेद के कई अन्य मसले भी हैं. इन चुनौतियों के बावजूद भारत और अमेरिका इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास, जलवायु परिवर्तन और समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में अपने सहयोग को बढ़ाने को उत्सुक हैं.
वैसे तो हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में एक ‘साझीदार के तौर पर भारतीय नौसेना को काफ़ी तरज़ीह’ दी जा रही है. लेकिन ये समझना भी ज़रूरी है कि भारत समेत कोई भी देश चीन की सैन्य क्षमताओं और आर्थिक ताक़त से अकेले नहीं निपट सकता है. इस बात से तर्क ये बनता है कि ‘एक जैसी सोच रखने वाले’ देश जैसे कि भारत और अमेरिका जो साझा मूल्य, आदर्श और लोकतांत्रिक परंपराएं रखते हैं, वो साथ मिलकर काम करें, जिससे हिंद प्रशांत क्षेत्र में एक पारदर्शी और नियमों पर चलने वाली समुद्री व्यवस्था क़ायम की जा सके. चीन के उभार और हिंद प्रशांत क्षेत्र में उसके बढ़ते आक्रामक रवैए के चलते बढ़ती चिंताएं ही वो कारण हैं जिसके कारण अमेरिका और भारत के बीच रक्षा और सुरक्षा संबंधी रिश्ते हाल के वर्षों में और मज़बूत हुए हैं.
अपनी तरफ़ से जो बाइडेन प्रशासन, चीन के साथ संतुलन बनाने के लिए हिंद प्रशांत क्षेत्र को औपचारिक जामा पहनाने और क्वॉड को मज़बूत बनाने में दिलचस्पी ले रहा है. हालांकि, जैसा कि 2018 के शांग्रीला डायलॉग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ज़ोर देकर कहा था कि भारत, हिंद प्रशांत क्षेत्र को केवल उन सदस्यों का क्लब या समूह नहीं मानता, जो इस पर दादागीरी जमाना चाहते हैं और इसके लिए किसी एक देश के ख़िलाफ़ मोर्चेबंदी कर रहे हैं. जैसा कि कुछ पर्यवेक्षक तर्क देते रहे हैं कि भारत अब तक हिंद प्रशांत क्षेत्र से जुड़ी अपनी रणनीति में आक्रामकता दिखाने के बजाय नरम रवैया अपनाता आया है.
कटलैस एक्सप्रेस अभ्यास में भारत की भागीदारी ठीक उस वक़्त हुई, जब विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर केन्या के दौरे पर गए और अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन भारत के दौरे पर आए थे. एंटनी ब्लिंकेन के भारत दौरे से अमेरिका और भारत के रिश्तों में एक जैसी बातें और मतभेद भी सामने आए.
भारत का ज़ोर ज़्यादातर आपसी सहयोग के मौक़े तलाशने पर रहा है. इसके अलावा वो नियमों पर आधारित एक ढांचा विकसित करने पर ज़ोर देता रहा है जो आक्रामक देशों को भयभीत करने या सुरक्षा से संबंधित कड़े उपायों पर ज़ोर दे. इसके अलावा भारत, सुरक्षा संबंधी ग़ैर पारंपरिक चुनौतियों जैसे कि पर्यावरण से जुड़ी चुनौती, अवैध मछली मारने, HADR, हथियारों, ड्रग्स और मानव तस्करी, ब्लू इकॉनमी और पर्यावरण जैसे मसलों पर भी ज़ोर देता रहा है. इन मुद्दों का पूर्वी अफ्रीकी और हिंद महासागर में स्थित द्वीरों की आर्थिक भलाई और टिकाऊ विकास से सीधा ताल्लुक़ रहा है. इसीलिए ये भारत, अमेरिका या बाहर की अन्य ताक़तों की ज़िम्मेदारी है कि वो अफ्रीकी देशों के साथ समुद्री सुरक्षा संबंधी सहयोग की रणनीति बनाते हुए, इन बातों का भी ख़याल रखें.
पिछले कुछ समय से बाहर की बड़ी ताक़तों के बीच अफ्रिका में नौसैनिक और सैन्य अड्डे बनाने की होड़ सी लगी हुई है. इस चक्कर में ये देश दोस्ताना ताल्लुक़ वाले देशों के साथ तालमेल बढ़ा रहे हैं, जिससे कि वो अपने हितों की हिफ़ाज़त कर सकें और समुद्री कारोबार के रास्तों को समुद्री डकैतों से महफ़ूज़ रख सकें. इसका नतीजा ये हुआ है कि अफ्रीकी देश लगातार, बड़ी ताक़तों के आपसी मुक़ाबले में फंस जाने की आशंका जता रहे हैं. इन देशों के राष्ट्रीय हितों, ताक़त संबंधी क्षमताओँ को स्पष्ट रूप से परिभाषित किए बिना, हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर सीधे नीतिगत फ़ैसले लेने से अफ्रीकी देशों को इस बात का डर है कि वो उन प्रक्रियाओँ और गतिविधियों से अलग थलग हो जाएंगे, जो उनके महाद्वीप की दूरगामी समृद्धि और उसके हितों पर असर डालेगा. इसीलिए, अफ्रीकी देशों के लिए इन मसलों पर उदासीन रहना और बस तमाशबीन बनकर देखते रहना मुश्किल होता जा रहा है.
हो सकता है कि कुछ देशों के नज़रियों में अंतर हो. लेकिन, अफ्रीका महाद्वीप के ज़्यादातर देश अपने यहां चीन की बढ़ती कारोबारी दिलचस्पी का स्वागत करते हैं. भू-आर्थिक क्षेत्र में चीन की एक बड़ी भूमिका बनी हुई है और बहुत से देश उसे अपना साझीदार बनाने को तरज़ीह देते हैं, जिससे उनके अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़े. चीन की कंपनियों ने अफ्रीका में मूलभूत ढांचे के विकास की परियोजनाओं में अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है. ये सिलसिला चीन की बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की शुरुआत के साथ और तेज़ होता जा रहा है. इसकी एक मिसाल हाल ही में उत्तरी केन्या में लामू बंदरगाह का निर्माण करना है. चीन ने हाल ही में तंज़ानिया के नए राष्ट्रपति सामिया सुलुहू हसन की सरकार के साथ दोबारा बातचीत शुरू की है, जिससे कि 10 अरब अमेरिकी डॉलर की बगामोयो बंदरगाह परियोजना दोबारा शुरू की जा सके. हालांकि चीन के ऐसे प्रोजेक्ट भारत और अमेरिका के हितों के लिए ख़तरे के तौर पर देखे जाते हैं. लेकिन, सच ये है कि अफ्रीका के क्षेत्रीय विकास और तरक़्क़ी के लिए ऐसी परियोजनाएं ज़रूरी हैं.
भारत का ज़ोर ज़्यादातर आपसी सहयोग के मौक़े तलाशने पर रहा है. इसके अलावा वो नियमों पर आधारित एक ढांचा विकसित करने पर ज़ोर देता रहा है जो आक्रामक देशों को भयभीत करने या सुरक्षा से संबंधित कड़े उपायों पर ज़ोर दे.
ये कोई छुपी हुई बात नहीं है कि अमेरिका काफ़ी समय से अफ्रीका के समुद्री क्षेत्र में सक्रिय रहा है. जब भारत की नौसेना पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति नियमित और टिकाऊ रूप से बढ़ा रही है, तो भारत और अमेरिका के पास समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग के पर्याप्त अवसर मौजूद हैं. अमेरिका के साथ भारत द्वारा अगस्त 2016 में लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ़ एग्रीमेंट (LEMOA) पर दस्तख़त करने से हिंद महासागर और अदन की खाड़ी में सक्रिय भारतीय युद्धपोतों को बहुत फ़ायदा हुआ है. इस समझौते के चलते आज भारतीय नौसेना के जंगी जहाज़ों को, उस क्षेत्र में तैनात अमेरिकी नौसेना के तेल टैंकरों से ईंधन लेने में मदद मिली है. अमेरिका को हिंद महासागर तटीय संघ (IORA) से उभरती प्राथमिकताओं पर भी ध्यान देना चाहिए. अमेरिका 2012 से ही IORA का सक्रिय संवाद साझीदार रहा है. वो हिंद प्रशांत के अपने साझीदारों के साथ नई पहल के लिए इस मंच का इस्तेमाल बेहतर ढंग से कर सकता है.
आगे चलकर ये अमेरिका के ही हित में होगा अगर वो हिंद प्रशांत क्षेत्र की सीमित परिभाषा को लेकर अपने पूर्वाग्रह से छुटकारा पा ले और इसके बजाय एक समावेशी और संपूर्ण आधिकारिक नज़रिया अपनाए, जो उसकी हिंद प्रशांत की रणनीति में पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र की अनदेखी न करे. पश्चिमी हिंद महासागार, सामरिक रूप से ऐसा उप क्षेत्र है, जिसे भारत हिंद प्रशांत क्षेत्र के हिस्से के तौर पर देखता है. लेकिन, अमेरिका की परिकल्पना में पश्चिमी हिंद महासागर की वो अहमियत नहीं है. दोनों देशों के नज़रियों में इस अंतर को पाटने से दोनों ही देशों के सहयोगियों के बीच अच्छा संदेश जाएगा. वहीं इससे अमेरिका और हिंद महासागर क्षेत्र में सक्रिय अन्य बड़ी ताक़तों जैसे कि भारत, फ्रांस और जापान के बीच सहयोग भी बढ़ सकेगा.
अमेरिका काफ़ी समय से अफ्रीका के समुद्री क्षेत्र में सक्रिय रहा है. जब भारत की नौसेना पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति नियमित और टिकाऊ रूप से बढ़ा रही है, तो भारत और अमेरिका के पास समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग के पर्याप्त अवसर मौजूद हैं.
असली चुनौती तो ये होगी कि भारत और अमेरिका किस तरह अफ्रीका समुद्री प्राथमिकताओं को अपनी अपनी हिंद प्रशांत नीतियों में शामिल कर सकें. जलवायु परिवर्तन, संप्रभुता, समुद्री सीमाओं का विभाजन, SLOCs का संरक्षण, अवैध मछली मारना रोकने और व्यापर व मूलभूत ढांचे के विकास, समुद्री प्रशासन और बंदरगाहों के साइबर इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा जैसे कई मसले हैं, जो अफ्रीकी तटीय देशों की प्राथमिकता सूची में आते हैं. भारत और अमेरिका जैसे अहम भागीदारों को इन मसलों पर गंभीरता से ध्यान देने की ज़रूरत होगी.
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Abhishek Mishra is an Associate Fellow with the Manohar Parrikar Institute for Defence Studies and Analysis (MP-IDSA). His research focuses on India and China’s engagement ...
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