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भारत को आज़ादी मिलने के बाद से ही राजनीतिक हिंसा, सैन्यीकरण और नागरिक सरकार का सामान्य रूप से काम नहीं करना देखा जाए तो देश के पूर्वोत्तर रीजन की विशेषता रहे हैं. पूर्वोत्तर क्षेत्र में सामाजिक विज्ञान से जुड़े मुद्दों का अकादमिक फोकस भी मुख्य रूप से इसी तरह की थीम्स पर केंद्रित रहा है. हालांकि, हाल ही में शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं ने पूर्वोत्तर भारत में हो रहे स्थानिक परिवर्तन पर ध्यान देना शुरू किया है, जो शहरीकरण (नगर पालिका और विस्तार) और ग्रामीण इलाक़ों से शहरों की ओर विस्थापन का प्रतीक है.
भारत सरकार द्वारा की गईं विभिन्न नीतिगत पहलों, जैसे कि अटल मिशन फॉर रेजुवेनशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन और स्मार्ट सिटीज़ मिशन ने इस शहरी एकीकरण को सुविधाजनक बनाया है. भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी (पूर्व में लुक ईस्ट पॉलिसी) ने पड़ोसी देशों के साथ (मुख्य रूप से बांग्लादेश एवं म्यांमार के साथ) सीमा पार व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए सीमा पर स्थित शहरों को विकसित करने पर भी बल दिया है. इसी के चलते डॉकी (मेघालय), चम्फाई (मिज़ोरम), मोरेह (मणिपुर) और पंगसौ (अरुणाचल प्रदेश) जैसे सीमावर्ती शहरों का प्रसार और विस्तार हुआ है. जबकि इस पूरे रीजन में महत्वपूर्ण स्तर पर शहरी क्षेत्रों के विस्तार को लेकर निरंतर परिवर्तन देखा गया है और इसकी वजह से स्थानीय समुदायों के साथ होड़ एवं विरोध जैसी घटनाएं भी दिखाई देती रही हैं.
बंगाल के विभाजन और पूर्वी पाकिस्तान के निर्माण ने भारत और आज के पूर्वोत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों के बीच कई सड़क और जल परिवहन संपर्कों को समाप्त कर दिया था. ऐसे में एक शहरी केंद्र के रूप में गुवाहाटी का महत्व बढ़ गया, क्योंकि खोए हुए लॉजिस्टिक नेटवर्क को पूरा करने के लिए पूरे शहर में कई सड़क और रेलवे नेटवर्क विकसित किए गए. इन सभी कोशिशों ने गुवाहाटी को शिलॉन्ग (असम की तत्कालीन राजधानी) के साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र का एक अहम शहर बना दिया. वर्ष 1972 में पूर्वोत्तर भारत में राज्यों के पुनर्गठन के बाद गुवाहाटी की अहमियत कई गुना बढ़ गई, क्योंकि असम की नई राजधानी दिसपुर को गुवाहाटी से सटाकर विकसित किया गया था. तभी से, कई दशकों से गुवाहाटी ने हर लिहाज़ से क्षेत्र के अन्य कस्बों और शहरों को पीछे छोड़ दिया है और पूर्वोत्तर भारत के लिए एक प्रमुख शहर एवं गेटवे के रूप में उभरा है.
पूर्वोत्तर भारत में राज्यों के पुनर्गठन के बाद गुवाहाटी की अहमियत कई गुना बढ़ गई, क्योंकि असम की नई राजधानी दिसपुर को गुवाहाटी से सटाकर विकसित किया गया था. तभी से, कई दशकों से गुवाहाटी ने हर लिहाज़ से क्षेत्र के अन्य कस्बों और शहरों को पीछे छोड़ दिया है
इस सबसे परिणामस्वरूप गुवाहाटी ने असम के विभिन्न हिस्सों के साथ ही पूर्वोत्तर रीजन के अन्य राज्यों और पूरे भारत से लोगों को यहां बसने के लिए आकर्षित किया. देखा जाए तो पूर्वोत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों से गुवाहाटी आकर बसने वालों की संख्या ग्रामीण आजीविका, विवादपूर्ण परिस्थितियों और जलवायु-प्रेरित विस्थापन से इनकम में होने वाली कमी के कारण बढ़ रही है. दूसरी ओर, 1990 के दशक के आख़िरी से सरकारी विभागों और शहर की सीमाओं एवं बाहरी इलाक़ों (जैसे पहाड़ियों और दलदली ज़मीन) पर बसने वालों के बीच बेदखली से संबंधित झगड़े-फ़साद बढ़ गए हैं.
असम राज्य सरकार की गुवाहाटी और उसके आसपास के क्षेत्रों को शामिल करके एक स्टेट कैपिटल रीजन (SCR) विकसित करने की योजना ने शहर के विकास बनाम स्थिरता की चुनौती में एक नया अध्याय जोड़ने का काम किया है. वर्ष 2016 में स्थापित की गई असम स्टेट कैपिटल रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (ASCRDA) प्रस्तावित स्टेट कैपिटल रीजन, क्षेत्र के भीतर काम करने वाली विभिन्न सरकारी एजेंसियों का एक नोडल प्लेटफॉर्म है. इसमें गुवाहाटी डेवलपमेंट डिपार्टमेंट (GDD), गुवाहाटी महानगर विकास प्राधिकरण (GMDA), गुवाहाटी नगर निगम (GMC), अन्य शहरी विकास प्राधिकरण, अन्य शहरी स्थानीय निकाय एवं जिला परिषदें शामिल हैं. ASCRDA के उद्देश्य गुवाहाटी मास्टर प्लान 2025 के लक्ष्यों के साथ एकीकृत हैं, जो अन्य लक्ष्यों के अतिरिक्त, ‘एक एकीकृत अंतर-शहरी परिवहन प्रणाली विकसित करना’, ‘आर्थिक गतिविधि के लिए स्थान उपलब्ध कराना’ और ‘सभी के लिए किफ़ायती आवास बनाना’ और ‘बिना झुग्गियों वाला शहर’ बनाना चाहता है. असम के मुख्यमंत्री द्वारा तमाम अवसरों पर स्टेट कैपिटल रीजन की आवश्यकता और इसके उद्देश्यों का उल्लेख किया गया है. हालांकि, गुवाहाटी की शहरी विस्तार योजना को लेकर SCR में शामिल किए जाने के लिए प्रस्तावित कुछ इलाक़ों में रहने वाले आदिवासी समूहों की ओर से कड़ा विरोध जताया गया है.
प्रस्तावित स्टेट कैपिटल रीजन की पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं से लगे हुए, यानी कामरूप ज़िले में बोको-छायगांव और मोरीगांव ज़िले में जागी रोड, क्रमानुसार राभा हसोंग स्वायत्त परिषद एवं तिवा ऑटोनोमस काउंसिल के भाग हैं. राभा और तिवा असम के अनुसूचित जनजाति (ST) समूह हैं. इन समूहों ने स्वायत्त परिषद के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को ग्रेटर गुवाहाटी एरिया में शामिल करने के विरुद्ध लगातार अपनी असहमति को प्रकट किया है. ज़ाहिर है कि इस तरह के विलय से गैर-आदिवासी लोगों द्वारा भूमि की ख़रीद-फरोख़्त करने पर लगे प्रतिबंधों में ढील मिलेगी. बोको-छायगांव में ऑल राभा स्टूडेंट्स यूनियन, राभा नेशनल लिटरेचर कमेटी एवं राभा हसोंग छठी अनुसूची मांग समिति जैसे कई राभा संगठनों ने बाहरी लोगों के यहां आने, भूमि हस्तांतरण और राभा हसोंग स्वायत्त परिषद की स्वायत्तता के नुक़सान से पैदा होने वाले ख़तरों का हवाला देते हुए ASCRDA के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया है. इसी प्रकार से तिवा समुदाय के लोगों ने मोरीगांव ज़िले में राष्ट्रीय राजमार्ग 37 पर ज़ाम लगाकर और मुख्यमंत्री के पुतले जलाकर स्टेट कैपिटल रीजन का विरोध किया है. इतना ही नहीं क्षेत्र के कई सांस्कृतिक एवं राजनीतिक संगठनों ने भी ऑल तिवा स्टूडेंट्स यूनियन (ATSU) के नेतृत्व में होने वाले इन विरोध प्रदर्शनों का समर्थन किया है. तिवा समुदाय को भूमि हस्तांतरण के अलावा जागी रोड और गुवाहाटी को जोड़ने वाले 8-लेन हाईवे के निर्माण के लिए सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण किए जाने का भी डर सता रहा है. हालांकि, सरकार के मंत्रियों समेत तमाम सरकारी प्रतिनिधियों ने आश्वासन दिया है कि ASCRDA आदिवासी स्वायत्त परिषदों के अधिकार क्षेत्र में कोई दख़ल नहीं करेगा. लेकिन इस तरह के आश्वासन प्रदर्शनकारियों की आशंकाओं का समाधान करने में क़ामयाब नहीं हुए हैं. देखा जाए तो स्वतंत्रता के बाद गुवाहाटी का जिस प्रकार से शहरीकरण हुआ है, उसने SCR के रूप में गुवाहाटी के आगे के विस्तार के बारे में एक चेतावनी देने का काम किया है.
1950 के दशक के बाद से ही लगातार हो रहे गुवाहाटी के विस्तार में आदिवासी समुदाय के लोगों का उनके मूल निवास स्थान से विस्थापन और बेदख़ली शामिल रही है. शहर के चौतरफा विस्तार में दक्षिण कामरूप (गुवाहाटी) ट्राइबल बेल्ट (जिसमें आज दक्षिण गुवाहाटी का एक बड़ा हिस्सा शामिल है) को गैर-अधिसूचित किया जाना शामिल था. उल्लेखनीय है कि ऐसा गुवाहाटी के गैर-आदिवासी निवासियों की मांग की वजह से हुआ था, जिन्होंने तर्क दिया था कि भूमि के हस्तांतरण पर पाबंदी से गुवाहाटी के शहरी विकास और इसके लिए योजना बनाने में रुकावट आएंगी. उल्लेखनीय है कि वर्ष 1972 में दिसपुर कैपिटल कॉम्प्लेक्स की स्थापना की वजह से आदिवासी आबादी भी विस्थापित हो गई थी. स्टेट कैपिटल रीजन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन की अगुवाई करने वाले आदिवासी नेताओं द्वारा पूर्व में हो चुकी विस्थापन और बेदख़ली की इस ऐतिहासिक सच्चाई का भी हवाला दिया गया है.
सामाजिक रूप से क्षेत्र के ‘स्थानीय लोगों’ के तौर पर मान्यता प्राप्त आदिवासी लोगों का कल्याण असम के एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दे के रूप में उभरा है, यानी कहा जा सकता है कि ज़्यादातर राजनीतिक दलों के एजेंडे में यह मुद्दा प्रमुखता से शामिल है.
जहां तक असम सरकार के नज़रिए की बात है, तो उसे स्टेट कैपिटल रीजन से रोज़गार, कर राजस्व और ढांचागत विकास में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है. सबसे अहम बात यह है कि अगर इसे अच्छी तरह से कार्यान्वित किया गया तो यह गुवाहाटी में आवास की कमी और आवास एवं भूमि से संबंधित अधिकारों को लेकर तमाम विवादों को भी हल कर सकता है, ज़ाहिर है कि इन विवादों में से ज़्यादातर भूमि से बेदख़ली से जुड़े मुद्दे शामिल है. हालांकि, SCR की योजना में यह स्पष्ट नहीं है कि अपने प्रस्तावित भौगोलिक क्षेत्र के भीतर यह अमचांग वाइल्डलाइफ सेंचुरी और कई संरक्षित वनों के गवर्नेंस को किस प्रकार से समायोजित किया जाएगा, साथ ही राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर घोषित संरक्षण लक्ष्यों को कैसे हासिल किया जाएगा. गुवाहाटी में एक तरफ पर्यावरण समूहों एवं सरकारी विभागों द्वारा आयोजित पारिस्थितिक एजेंडा और दूसरी तरफ पहाड़ों में रहने वाले लोगों (बड़े पैमाने पर आदिवासियों) के बसने के अधिकारों के बीच पहले से ही विवाद बने हुए हैं. सामाजिक रूप से क्षेत्र के ‘स्थानीय लोगों’ के तौर पर मान्यता प्राप्त आदिवासी लोगों का कल्याण असम के एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दे के रूप में उभरा है, यानी कहा जा सकता है कि ज़्यादातर राजनीतिक दलों के एजेंडे में यह मुद्दा प्रमुखता से शामिल है. यही वजह है कि स्टेट कैपिटल रीजन को प्रस्तावित शहरी विस्तार के पर्यावरणीय पहलुओं को लेकर सतर्क एवं संवेदनशील रहते हुए गुवाहाटी के नज़दीकी क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी एवं अन्य समुदायों की स्थिति पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.
पिछले कुछ दशकों की बात करें, तो गुवाहाटी ने असम और पूर्वोत्तर भारत के दूसरे शहरों को सामाजिक और आर्थिक समेत हर मोर्चे पर पीछे छोड़ दिया है. इसलिए, गुवाहाटी की ओर नीतिगत ध्यान केंद्रित करने के बजाए, असम के अन्य शहरों जैसे कि डिब्रूगढ़, डिगबोई, तेज़पुर और बारपेटा को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना अधिक कारगर सिद्ध होगा. ज़ाहिर है कि गुवाहाटी का और अधिक विस्तार, सिर्फ़ असम के शहरीकरण में असंतुलन को ही बढ़ाने का काम करेगा.
स्टेट कैपिटल रीजन में मौज़ूदा वक़्त में व्यापक स्तर पर हितधारकों के जुड़ाव का नितांत अभाव है. देखा जाए तो सिर्फ़ कुछ शीर्ष अधिकारी और राज्य के मंत्री ही इससे जुड़े हुए हैं और इसके प्रावधानों को निर्धारित कर रहे हैं.
इसके अलावा, पूर्वोत्तर रीजन की भूकंप के प्रति संवेदनशीलता के मद्देनज़र, शहरी इन्फ्रास्ट्रक्चर को एक ही ज़ोन में केंद्रित करने के बजाए पूरे इलाक़े में विस्तारित करना अधिक उचित है. भूकंप के ज़ोख़िमों को लेकर विस्तृत आकलन करने के लिए और संबंधित आपदा प्रबंधन मास्टर प्लान तैयार करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी द्वारा एक स्वतंत्र अध्ययन बेहतर नीति बनाने के बारे में जानकारी उपलब्ध करा सकता है, जैसा कि मुंबई में हुआ है. इसी तरह से सरकार को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, गुवाहाटी द्वारा स्टेट कैपिटल रीजन के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों के अध्ययन को समझना और उन पर विचार करना चाहिए.
चरम मौसमी घटनाओं का सामना करने वाले शहरों और ऐसी घटनाओं की बढ़ती गंभीरता के मद्देनज़र असम स्टेट कैपिटल रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी एक्ट, 2017 में क्लाइमेट एक्शन प्लान के प्रावधानों को भी शामिल किया जाना चाहिए. इसके अलावा, क्षेत्र में कई वन्यजीव अभयारण्यों एवं संरक्षित वन क्षेत्रों को देखते हुए, इस अधिनियम में वन विभाग को भी एक ज़रूरी हितधारक के रूप में सम्मिलित किया जाना चाहिए.
स्टेट कैपिटल रीजन में मौज़ूदा वक़्त में व्यापक स्तर पर हितधारकों के जुड़ाव का नितांत अभाव है. देखा जाए तो सिर्फ़ कुछ शीर्ष अधिकारी और राज्य के मंत्री ही इससे जुड़े हुए हैं और इसके प्रावधानों को निर्धारित कर रहे हैं. ज़ाहिर है कि स्टेट कैपिटल रीजन की संभावनाओं और चुनौतियों का मूल्यांकन करने के लिए इसकी योजना निर्माण में स्थानीय हितधारकों को शामिल करना बेहद ज़रूरी है. सरकार को समानता और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सिविल सोसाइटी संगठनों, वक़ीलों, आवास अधिकार से जुड़े कार्यकर्ताओं, पर्यावरण समूहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से सलाह-मशविरा करना चाहिए. इतना ही नहीं इस परियोजना से प्रभावित होने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों को भी पूरी प्रक्रिया में शामिल करना बेहद महत्वपूर्ण है, ताकि आज़ादी के पश्चात गुवाहाटी के शहरीकरण के फलस्वरूप जिस प्रकार से आदिवासियों को विस्थापन और अपनी ज़मीन से बेदख़ल होने का दंश झेलना पड़ा था, उसे किसी भी परिस्थिति में फिर से दोहराया न जाए.
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स्नेहशीष मित्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के अर्बन स्टडीज़ में फेलो हैं.
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