Author : Saaransh Mishra

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

हाल ही में भारत का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से अनुपस्थित रहना इस बात का संकेत है कि वो अपने हितों को तरज़ीह देते हुए, रूस और अमेरिका, दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखेगा.

यूक्रेन संकट: बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में जुटा भारत!
यूक्रेन संकट: बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में जुटा भारत!

यूक्रेन की सीमा पर रूस द्वारा भारी तादाद में सैनिक जमा करने से पैदा हुए तनाव पर चर्चा के लिए बैठक से पहले, भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एक प्रक्रिया संबंधी मतदान से ख़ुद को अलग कर लिया. रूस और चीन ने ये बैठक बुलाने के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट दिया. जबकि भारत, गैबोन, कीनिया ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. इसके लिए रूस ने इन देशों की ये कहकर तारीफ़ की कि वो मतदान से पहले ‘अमेरिका द्वारा डाले जा रहे दबाव’ के आगे झुके नहीं.

सुरक्षा परिषद में हुई इस वोटिंग ने भारत के रूस और अमेरिका के साथ अपने रिश्तों में संतुलन बनाए रखने की क्षमता की अटकलों को सही साबित किया. एक तरफ़ तो रूस के साथ भारत की ऐतिहासिक रूप से भरोसेमंद और सामरिक साझेदारी है. वहीं दूसरी ओर, अमेरिका के साथ उसके रिश्ते भी बढ़ रहे हैं. हाल ही में रूस और भारत के रिश्तों में तनाव की चर्चा के बीच, भारत ने मतदान को लेकर जो रुख़ अपनाया है, उसे मोटे तौर पर रूस समर्थक क़दम ही माना जा रहा है. हालांकि, भारत ने सुरक्षा परिषद में मतदान से ख़ुद को अलग करने के साथ साथ संतुलन बनाने के लिए यूरोप में तनाव के बारे में अपनी चुप्पी तोड़ते हुए, विवाद के शांतिपूर्ण समाधान का असामान्य बयान दिया. इस बयान को भारत द्वारा सभी पक्षों को ख़ुश करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. भारत के सुरक्षा परिषद के मतदान से ग़ैरहाज़िर रहने के बाद, अमेरिका की आधिकारिक प्रतिक्रिया ये रही थी कि रूस के साथ मौजूदा तनाव के बीच भारत के इस क़दम से अमेरिका के साथ उसके रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ा है. अमेरिका के इस बयान से ऐसा लगता है कि कम से कम अब तक तो भारत बड़ी ताक़तों के बीच तनाव में अपने रिश्तों का संतुलन बनाए रखने में कामयाब रहा है.

सुरक्षा परिषद में हुई इस वोटिंग ने भारत के रूस और अमेरिका के साथ अपने रिश्तों में संतुलन बनाए रखने की क्षमता की अटकलों को सही साबित किया. एक तरफ़ तो रूस के साथ भारत की ऐतिहासिक रूप से भरोसेमंद और सामरिक साझेदारी है. वहीं दूसरी ओर, अमेरिका के साथ उसके रिश्ते भी बढ़ रहे हैं.

इस बीच, यूक्रेन के संकट को लेकर अमेरिका और रूस के बीच पिछले कुछ हफ़्तों के दौरान हुए कई कूटनीतिक संवाद बेनतीजा रहे हैं. अमेरिका ने रूस की सुरक्षा संबंधी मांगों को सिरे से ख़ारिज कर दिया है. अमेरिका इस अटकल को भी ख़ूब हवा दे रहा है कि सुरक्षा का बहाना करके रूस दरअसल, यूक्रेन पर हमले की फ़िराक़ में है. अमेरिका ने मिसाल के तौर पर उस वीडियो गेम का हवाला दिया है, जिसमें रूस को यूक्रेन पर हमला करते हुए दिखाया गया है. अमेरिका ने धमकी दी है कि अगर रूस, यूक्रेन पर हमला करता है, तो उसे बेहद सख़्त प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा. ये पाबंदियां, पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर पहले से लगाई गई सैकड़ों पाबंदियों के अलावा होंगी.

रूस-अमेरिका के बीच तालमेल बनाने की कोशिश

रूस ने यूक्रेन पर हमले की तमाम आशंकाओं को सिरे से ख़ारिज किया है. हालांकि इसके साथ ही साथ रूस ने ज़ोर देकर ये भी कहा है, अगर पश्चिमी देश जल्द से जल्द उसकी चिंताओं को दूर नहीं करते हैं, तो उसके सब्र का बांध टूट जाएगा. फिर इस संकट के ‘सैन्य और तकनीकी’ नतीजी निकल सकते हैं. हालांकि, रूस ने ये साफ़ नहीं किया है कि ‘सैन्य तकनीकी’ नतीजों से उसका क्या मतलब है. यूक्रेन की सीमा पर रूस की फ़ौज का भारी जमावड़ा, और उस पर रूस के आक्रमण की लटकती तलवार से दोनों ही पक्षों को भारी नुक़सान होने के ख़तरे के बीच बातचीत से मसले का हल निकालने की कोशिशें बार-बार नाकाम होने का नतीजा ये हुआ है कि हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं. आज की तारीख़ में तजुर्बेकार से तजुर्बेकार विशेषज्ञ भी इस बात की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं कि आगे चलकर क्या होने वाला है.

भारत के रूस और अमेरिका, दोनों ही के साथ अच्छे रिश्ते हैं. ऐसे में किसी एक पक्ष का पूरी तरह समर्थन करने का असर दूसरे देश के साथ उसके संबंध पर पड़ सकता है. हालांकि, कम से कम अब तक तो भारत के मामले में ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है. भारत ने इस विवाद में ख़ुद को निरपेक्ष भूमिका मे ही रखा है. भारत बार बार ज़ोर देकर ये कहता रहा है वो अमेरिका और रूस के साथ अपने संबंधों को बिल्कुल अलग अलग तौर पर देखता है, और वो इनमें से किसी भी एक देश को अपनी विदेश नीति तय करने की इजाज़त नहीं दे सकता है. इसमें कोई शक नहीं कि रूस, पिछले पांच दशकों से भी ज़्यादा वक़्त से भारत का सबसे भरोसेमंद साझीदार रहा है. लेकिन, हाल के वर्षों में अमेरिका के साथ अपने ख़राब होते रिश्तों के चलते रूस ने चीन के साथ नज़दीकी बढ़ा ली है. ऐसे में भारत के नीति निर्माताओं के ज़हन में इस बात को लेकर सवाल उठने लगे हैं कि क्या चीन के साथ तनाव के बीच रूस, भारत के साथ संतुलन बना सकेगा.

इसमें कोई शक नहीं कि रूस, पिछले पांच दशकों से भी ज़्यादा वक़्त से भारत का सबसे भरोसेमंद साझीदार रहा है. लेकिन, हाल के वर्षों में अमेरिका के साथ अपने ख़राब होते रिश्तों के चलते रूस ने चीन के साथ नज़दीकी बढ़ा ली है.

भारत, इस सदी की शुरुआत के साथ ही अमेरिका के साथ अपने रिश्ते बेहतर बनाने में जुटा हुआ है. अब वो ख़ास तौर से आक्रामक चीन को देखते हुए संतुलन बनाने के लिए अमेरिका के साथ अपने बहुआयामी संबंध को कई गुना अधिक बेहतर बनाने का प्रयास कर रहा है. इन बदलती भू-राजनीतिक परिस्तितियों ने रूस और भारत के रिश्तों में दरार की अटकलों को भी बल मिल रहा है और ये सवाल उठ रहा है कि भारत, दोनों प्रतिद्वंदी ताक़तों के साथ अपने संबंध में संतुलन बनाए रखने में सफल होगा या नहीं.

पश्चिमी देशों और रूस के बीच बढ़ते तनाव के बीच भारत ने दिसंबर 2021 में रूस के साथ हर दूसरे साल होने वाली शिखर वार्ता के तहत, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मेज़बानी की थी. दिसंबर में ही भारत और रूस के बीच पहली 2+2 की बैठक भी हुई थी. इससे ये संकेत मिला था कि जिस तरह भारत के लिए क्वॉड के साझीदार देश अहम हैं. उसी तरह रूस भी उसके लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसके साथ पहले ही इस तरह के संवाद की व्यवस्था है. CAATSA के तहत अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने की आशंका के बावजूद, भारत ने न सिर्फ़ रूस के साथ S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम के उस सौदे को आगे बढ़ाया, जिस पर 2018 में दस्तख़त किए थे, बल्कि रूस के साथ 7.5 लाख AK-203 राइफलें, भारत में बनाने का पांच हज़ार करोड़ का समझौता भी किया. इसी तरह, हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत, अमेरिका के साथ भी बहुत नज़दीकी तालमेल से काम कर रहा है. रूस ये कहकर इसकी कड़ी आलोचना करता है कि, इसके ज़रिए अमेरिका, भारत के साथ उसके संबंधों को कमज़ोर करने में जुटा है. रूस के कड़े ऐतराज़ के बाद भी भारत, क्वाड और इसके अलावा अन्य माध्यमों से अपनी हिंद प्रशांत रणनीति पर आगे बढ़ रहा है, जो ये साबित करता है कि भारत सिर्फ़ अपने हितों की पूर्ति के हिसाब से काम करेगा.

रूस के साथ ‘रक्षा’ और अमेरिका के साथ ‘व्यापारिक’ रिश्ते

अगर अमेरिका और भारत के व्यापार के आंकड़े देखें, तो इसकी तुलना में रूस के साथ उसके व्यापारिक रिश्ते बहुत कम हैं. लेकिन, रूस के साथ भारत के रक्षा और ऊर्जा संबंध सबसे ज़्यादा अहमियत रखते हैं. दूसरी बात ये कि रूस, भारत का सबसे भरोसेमंद सामरिक साझीदार रहा है. दोनों ही देश लंबे समय से राजनीतिक, सुरक्षा और अन्य सामरिक मामलों में एक दूसरे के साथ सहयोग करते आए हैं और अभी भी कर रहे हैं.  वहीं अमेरिका, भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझीदार देशों में से एक है; लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग (LEMOA), कम्युनिकेशन कॉम्पैटिएबिलिटी ऐंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA), इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी एनेक्स (ISA), बेसिक एक्सचेंज ऐंड को-ऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA), डिफेंस टेक्नोलॉजी ट्रेड इनिशिएटिव (DTTI) जैसे कई संस्थागत समझौतों के ज़रिए भारत के अमेरिका के साथ मज़बूत रक्षा संबंध भी विकसित हुए हैं. इसके अलावा, भारत ने अमेरिका को प्रमुख रक्षा साझीदार का भी दर्जा दिया है. आख़िर में भारत और अमेरिका, दोनों ही चीन को सबसे बड़े ख़तरे के तौर पर देखते हैं, और वो हिंद प्रशांत क्षेत्र में सहयोग करके चीन के उभार से निपटने को लेकर प्रतिबद्ध हैं. दोनों ही देश क्वाड के भी सदस्य हैं, जिसमें जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं.

दिसंबर में ही भारत और रूस के बीच पहली 2+2 की बैठक भी हुई थी. इससे ये संकेत मिला था कि जिस तरह भारत के लिए क्वॉड के साझीदार देश अहम हैं. उसी तरह रूस भी उसके लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसके साथ पहले ही इस तरह के संवाद की व्यवस्था है.

राजनीतिक मोर्चे पर भी अमेरिका और रूस के पास, संयुक्त राष्ट्र में वीटो का अधिकार है. दोनों देश सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता और न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) में भारत के शामिल होने का समर्थन करते हैं. चूंकि, भारत ख़ुद को प्रमुख वैश्विक शक्ति बनाने के लिए सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता और NSG की सदस्यता को ज़रूरी मानता है. ऐसे में अमेरिका और रूस के साथ उसके सामरिक संबंध और भी अहम हो जाते हैं. ऐसे में ये कहने की ज़रूरत नहीं रह जाती है कि मतभेद तो हर द्विपक्षीय रिश्ते का एक हिस्सा होते हैं. अहमियत, उन मतभेदों से पार पाकर रिश्ते मज़बूत बनाए रखने की होती है.

भारत ख़ुद को प्रमुख वैश्विक शक्ति बनाने के लिए सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता और NSG की सदस्यता को ज़रूरी मानता है. ऐसे में अमेरिका और रूस के साथ उसके सामरिक संबंध और भी अहम हो जाते हैं.

हर गुज़रते दिन के साथ यूक्रेन के हालात गंभीर होते जा रहे हैं और ये साफ़ नहीं है कि अगर युद्ध शुरू हो जाता है, तो भारत की प्रतिक्रिया क्या होगी. लेकिन कम से कम अब तक तो भारत अपने प्रमुख सामरिक साझीदारों के साथ रिश्तों का संतुलन बनाने में सफल रहा है. आज भारत अपनी विदेश नीति के फ़ैसले अपने हित के हिसाब से ले रहा है, फिर चाहे इसे रूस या अमेरिका पसंद करें या न करें.

ओआरएफ हिन्दी के साथ अब आप FacebookTwitter के माध्यम से भी जुड़ सकते हैं. नए अपडेट के लिए ट्विटर और फेसबुक पर हमें फॉलो करें और हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें. हमारी आधिकारिक मेल आईडी [email protected] के माध्यम से आप संपर्क कर सकते हैं.


The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.