Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को लेकर अपने रुख पर लैटिन अमेरिकी देश बंटे हुए हैं. रूस को अपने ‘पश्चिम-विरोधी’ एजेंडे पर क्यूबा, निकारागुआ, वेनेजुएला और ब्राजील के नेताओं से सहमति के सुर मिल रहे हैं.

यूक्रेन संकट और लैटिन अमेरिका की प्रतिक्रिया
यूक्रेन संकट और लैटिन अमेरिका की प्रतिक्रिया

21 फरवरी 2022 को, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन के दो क्षेत्रों लुहांस्क और दोनेत्स्क को स्वतंत्र राज्यों के रूप में मान्यता दी. दो दिन बाद, यूक्रेन ने रूसी टुकड़ियों द्वारा ‘बिना उकसावे’ की सैन्य कार्रवाई के जवाब में आपातकाल की स्थिति का ऐलान कर दिया. राजधानी कीव सहित यूक्रेन पर तीन दिशाओं से पूरे पैमाने पर हमले के बाद रूस के ख़िलाफ़ भारी प्रतिबंधों, अंतरराष्ट्रीय निंदा, और उसे आर्थिक रूप से अलग-थलग करने वाले क़दमों की झड़ी लग गयी. रूस को कूटनीतिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से अलग-थलग करने के वैश्विक संकल्प को आगे बढ़ाने की पश्चिमी कोशिशों के बावजूद, लैटिन अमेरिका के देश अपनी प्रतिक्रिया में बंटे हुए हैं. कुछ रूसी आक्रमण की निंदा कर रहे हैं, जबकि अन्य देश कार्यनीतिक रूप से रूस का समर्थन कर रहे हैं. रूसी आक्रमण को लेकर लैटिन अमेरिकी देशों की मिलीजुली प्रतिक्रिया इस महाद्वीप में शीत युद्ध के दिनों के जाने-पहचाने गठबंधनों को एकजुट करने की रूस की सॉफ्ट पॉवर रणनीतियों को दिखाती है. लैटिन अमेरिकी देशों ने 1960 और 1970 के दशकों में तत्कालीन सोवियत संघ के लिए एक जानी-पहचानी भूमिका निभायी थी, और मौजूदा यूक्रेन संकट साझा विचारधाराओं और साझा हितों पर आधारित इसी तरह की साझेदारी दिखाता है. पुतिन तत्कालीन समाजवादी एजेंडे को छोड़ चुके हैं, लेकिन दोनों पक्ष एक साझा एजेंडा रखते हैं. लैटिन अमेरिका के कुछ देश पश्चिमी वर्चस्व, ख़ासकर अमेरिकी, के ख़िलाफ़ रहते हैं. यूक्रेन में रूसी सैन्य कार्रवाई पर लैटिन अमेरिका की जटिल मिलीजुली प्रतिक्रिया एक विश्लेषण का मामला बनती है.

कुछ रूसी आक्रमण की निंदा कर रहे हैं, जबकि अन्य देश कार्यनीतिक रूप से रूस का समर्थन कर रहे हैं. रूसी आक्रमण को लेकर लैटिन अमेरिकी देशों की मिलीजुली प्रतिक्रिया इस महाद्वीप में शीत युद्ध के दिनों के जाने-पहचाने गठबंधनों को एकजुट करने की रूस की सॉफ्ट पॉवर रणनीतियों को दिखाती है. 

लैटिन अमेरिकी प्रतिक्रिया

a) कड़ी निंदा

अर्जेंटीना, कोलंबिया और चिली की सरकारों ने रूसी आक्रमण की कड़ी निंदा की. कोलंबियाई राष्ट्रपति इवान डुके रूस द्वारा सत्ता के प्राधिकारवादी दुरुपयोग के ख़िलाफ़ खुलकर बोले. अर्जेंटीना के विदेश मंत्री ने रूस से सभी सैन्य कार्रवाइयां रोकने की मांग की, जबकि चिली ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) द्वारा लगाये गये भारी प्रतिबंधों को अपना समर्थन दिया. इसके अलावा, कोस्टा रीका, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला, मैक्सिको, पनामा, पराग्वे, पेरू, डोमिनियन रिपब्लिक और उरुग्वे ने आक्रमण की निंदा करने वाले एक संयुक्त पत्र पर दस्तख़त किये. 24 फरवरी 2022 को, मेक्सिको के राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज ने रूस से ‘आक्रमण नहीं करने’ की मांग की. मेक्सिको की विदेश नीति के एस्ट्राडा सिद्धांत (Estrada Doctrine) के तहत संचालित होने के नाते, वह रूस पर प्रतिबंध लगाने या दख़ल देने में अक्षम है. हालांकि, रूस को क्यूबा, निकारागुआ, वेनेजुएला और ब्राजील जैसे लैटिन अमेरिकी देशों से कुछ समर्थन मिला है.

b) रूस को समर्थन

क्यूबा-रूस गठबंधन शीत युद्ध के ज़माने के हैं. 1962 के क्यूबाई मिसाइल संकट के दौरान, मॉस्को ने 1980 के दशक तक हवाना को 4 अरब अमेरिकी डॉलर की सालाना सब्सिडी मुहैया करायी. क्यूबा के राजनीतिक झुकाव और उसकी भूराजनीतिक स्थिति ने सोवियत इंटेलिजेंस को पूरे उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका में समाजवादी एजेंडे को समर्थन देने का मौक़ा प्रदान किया. जहां तक मौजूदा यूक्रेन संकट की बात है, तो क्यूबा ने अमेरिका पर ‘अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह’ करने का आरोप लगाते हुए उसे इस उथल-पुथल का दोषी बताया है और वह ‘रचनात्मक और सम्मानजनक संवाद’ का आह्वान कर रहा है. इसके अलावा, क्यूबा ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में रूस की निंदा वाले प्रस्ताव के खिलाफ़ वोट दिया है.

जहां तक मौजूदा यूक्रेन संकट की बात है, तो क्यूबा ने अमेरिका पर ‘अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह’ करने का आरोप लगाते हुए उसे इस उथल-पुथल का दोषी बताया है और वह ‘रचनात्मक और सम्मानजनक संवाद’ का आह्वान कर रहा है. 

निकारागुआ और रूस के बीच रिश्ते सोवियत काल के दौरान स्थापित उनके गठबंधन पर निर्भर हैं, जिसकी शुरुआत 1980 के दशक में सैंडिनिस्टा आंदोलन को समर्थन दिये जाने से हुई थी. हाल के वर्षों में, दोनों देशों ने राजनीतिक और सैन्य समर्थन में साझेदारी की है. निकारागुआ ने 2008 और 2015 में अपने क्षेत्रीय समुद्र में रूसी नौसैनिक अभ्यास को अनुमति दी. निकारागुआ के सैन्य आधुनिकीकरण में रूसी योगदान महत्वपूर्ण है. मॉस्को ने उसे बहुत सारे सैन्य उपकरण बेचे हैं, जिनमें बीएमपी-3 और बीटीआर-80 बख़्तरबंद वाहन, मिराज गश्ती जलयान, मोलिना मिसाइल नौका, टी-72 टैंक और खोज व बचाव अभियानों के लिए परिवहन विमान शामिल हैं. अभी चल रहे यूक्रेनी संकट पर, निकारागुआ ने यूएनएचआरसी में यूक्रेन पर बहस शुरू करने के पक्ष में वोट दिया, जबकि रूस की निंदा के प्रस्ताव पर उसने विरोध में वोट डाला. निकारागुआ की सरकार ने यूक्रेन में इस त्रासदी के लिए उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) को दोषी ठहराया है.

यूक्रेनी संकट पर वेनेजुएला का रुख सबसे ज्यादा उम्मीद के मुताबिक़ रहने वाला था, क्योंकि काराकास इस क्षेत्र में मॉस्को के सबसे मज़बूत सहयोगियों में से एक है. वेनेजुएला के अघोषित नेता निकोलस मादुरो ने यह कहते हुए पुतिन को अपना पूरा समर्थन दिया कि यूक्रेनी लड़ाके विफल होंगे, क्योंकि रूस इस लड़ाई से एकजुट और विजयी होकर निकलेगा. चूंकि दोनों देशों के बीच तेल, सैन्य, और वित्तीय प्रणालियों जैसे क्षेत्रों में मज़बूत संबंध हैं, वेनेजुएला की सरकार का नेटो को दोषी बताने वाला रुख क़तई प्रत्याशित है.

निकारागुआ की सरकार ने यूक्रेन में इस त्रासदी के लिए उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) को दोषी ठहराया है.

c)  तटस्थ रुख

ब्राजील के राष्ट्रपति जाएर बोलसोनारो ने यूक्रेनी संघर्ष में अपनी स्थिति बतौर ‘तटस्थ’ बनाये रखी है. हालांकि, एक आर्थिक आकलन से, यह समझ में आता है कि रूस अगर यूक्रेन में अपनी आक्रामक कार्रवाई जारी रखता है, तो उर्वरक और तेल के लिए ब्राजील की निर्भरता को नुक़सान पहुंच सकता है. शायद इसी तरह के डर के चलते ब्राजीलियाई विदेश मंत्रालय ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस के ख़िलाफ़ ज़्यादा कड़ा रुख अपनाया है. ऐसी ही एक घोषणा पर चिंतन-मनन के दौरान, संयुक्त राष्ट्र में ब्राजील के प्रतिनिधि रोनाल्डो कोस्टा ने ब्राजील के रुख को ‘यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के उल्लंघन की कड़ी निंदा’ करने वाला बताया. ब्राजील रूस के साथ अपने रिश्ते को लेकर सावधान होगा, जो द्विपक्षीय व्यापार तथा ब्रिक्स जैसे बहुपक्षीय मंचों के ज़रिये सहयोग पर केंद्रित है. हालांकि, अतीत की बात करें, तो 2014 में क्रीमिया में रूसी कार्रवाई की निंदा वाले संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव में रूस के ख़िलाफ़ मतदान से ब्राजील अलग रहा था.

ब्राजील के राष्ट्रपति जाएर बोलसोनारो ने यूक्रेनी संघर्ष में अपनी स्थिति बतौर ‘तटस्थ’ बनाये रखी है. हालांकि, एक आर्थिक आकलन से, यह समझ में आता है कि रूस अगर यूक्रेन में अपनी आक्रामक कार्रवाई जारी रखता है, तो उर्वरक और तेल के लिए ब्राजील की निर्भरता को नुक़सान पहुंच सकता है. 

लैटिन अमेरिका में रूसी रणनीति

जहां तक लैटिन अमेरिका में रूस की व्यापक रणनीति की बात है, तो पुतिन ने 2000 के दशक की शुरुआत से ही लैटिन अमेरिका में सॉफ्ट पॉवर नीतियों की पूरी श्रृंखला लागू की है, जिसने अब रूसी फेडरेशन को यहां की क्षेत्रीय राजनीति में संभावित फ़ायदे की स्थिति में रखा है. रूस इस क्षेत्र में बेहतर संबंधों और प्रभाव के लिए लैटिन अमेरिका के कुछ देशों की ओर मुड़ सकता है, जो इस पर निर्भर करेगा कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण किस तरह ख़त्म होता है.

रूस की विदेश नीति वैश्विक प्रभाव हासिल करने और पश्चिमी शक्तियों को चुनौती देने की पुतिन की महत्वाकांक्षा को दिखाती है. रूसी मीडिया द्वारा तैयार किया गया नैरेटिव वाशिंगटन पर रूसी क्षेत्र के मामलों में नाक घुसेड़ने का आरोप लगाते हुए, इस आक्रमण के लिए अमेरिका को जिम्मेदार बताता है. रूस पर लगाये गये भारी प्रतिबंधों ने रूसी रूबल को पंगु बना दिया है. 124 रूसी रूबल के बदले केवल 1 अमेरिकी डॉलर मिल रहा है. चूंकि लैटिन अमेरिका के साथ रूस की राजनीतिक सद्भावना बनी हुई है, रूसी फेडरेशन ने समर्थन के लिए कमज़ोर राजनीतिक बुनियाद वाले देशों को लक्ष्य बनाया है. वेनेजुएला, क्यूबा और निकारागुआ जैसे देश वैश्विक मामलों में अलगाव की स्थिति का सामना कर रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय जगत में अमेरिकी मौजूदगी का मुक़ाबला करने के लिए रूस ऐसे देशों के साथ गुटबंदी कर सकता है. 2018 में क्यूबा, वेनेजुएला, कोलंबिया, मेक्सिको और ब्राजील बड़े राजनीतिक बदलावों से गुज़रे, जिसने रूस के लिए साझेदारी के मौक़ों का सृजन किया और अमेरिका से उनके संबंध कमज़ोर किये. क्षेत्र की आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों के चलते, यह लैटिन अमेरिकी कमज़ोरी रूस के लिए एक अनुकूल परिस्थिति पैदा करती है. रूसी सरकार ने इस क्षेत्र में मुख्यत: हथियारों की बिक्री, तेल आपूर्ति, और विस्तृत राजनीतिक पहुंच के ज़रिये भारी निवेश किया है. भले ही रूस को इस क्षेत्र से आर्थिक लाभ होता दिखता है, लेकिन यह लैटिन अमेरिका में पुतिन के क़द को भी बढ़ाता है, जिससे भू-राजनीति में महत्वपूर्ण प्रभाव हासिल होता है. रूसी फर्मों ने बोलीविया, मेक्सिको और वेनेजुएला में तेल व गैस क्षेत्र में निवेश किया है. 2016 में, रूस ने आयातित पोर्क का 90 फ़ीसद ब्राजील से और आयातित बीफ का 55 फ़ीसद ब्राजील और पराग्वे से ख़रीदा, जो इस क्षेत्र में रूस की व्यापारिक पकड़ को दिखाता है.

रूसी सरकार ने इस क्षेत्र में मुख्यत: हथियारों की बिक्री, तेल आपूर्ति, और विस्तृत राजनीतिक पहुंच के ज़रिये भारी निवेश किया है. भले ही रूस को इस क्षेत्र से आर्थिक लाभ होता दिखता है, लेकिन यह लैटिन अमेरिका में पुतिन के क़द को भी बढ़ाता है, जिससे भू-राजनीति में महत्वपूर्ण प्रभाव हासिल होता है. 

हितों में बढ़ते मेल के बावजूद, रूसी प्रभावों ने इस क्षेत्र के नेताओं के पहले से मौजूद ‘पश्चिम-विरोधी’ एजेंडे को अपने अनुरूप पाया है. ब्राजील के राष्ट्रपति जाएर बोलसोनारो और वेनेजुएला के नेता निकोलस मादुरो यूक्रेन संकट में अमेरिकी दख़लअंदाज़ी के ख़िलाफ बोल चुके हैं. बोलसोनारो को वाशिंगटन से न्योता मिलना अभी बाक़ी है, क्योंकि बाइडन प्रशासन ब्राजीलियाई नेता से कन्नी काटता दिख रहा है. मेक्सिको-रूस के रिश्ते अपेक्षाकृत तटस्थ हैं. हालांकि, नाफ्टा (NAFTA) को समाप्त करने पर अमेरिकी रुख और मेक्सिको सिटी पर लगायी गयी कठोर आप्रवासन (इमीग्रेशन) नीतियों ने शायद एक मौक़ा पैदा किया है, जिसका फ़ायदा रूस उठा सकता है. रूस के ख़िलाफ़ लगे मौजूदा प्रतिबंधों को देखते हुए, उसकी व्यापारिक पहुंच शायद सीमित रहेगी. दूसरी तरफ़, यूक्रेनी संकट कुछ लैटिन अमेरिकी देशों के साथ ज़्यादा मज़बूत धुरी के निर्माण की ओर ले जा सकता है. रूस के ख़िलाफ़ खड़े होने और यूरोपीय संघ (ईयू) को मज़बूत करने के अमेरिका के वैश्विक आह्वान ने रूस पर बड़ा दबाव बनाया है कि वह राजनीतिक और आर्थिक रिश्ते के वैकल्पिक चैनलों को खोले और सशक्त बनाए. चीन के साथ रूस का बढ़ता रिश्ता एक उदाहरण है, लेकिन लैटिन अमेरिकी देशों के साथ उसके संबंधों पर कड़ी नज़र रखी जायेगी.

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