पिछले दिनों पत्रकारों से अपनी एक बातचीत के दौरान भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कहा कि बांग्लादेश और भूटान के अलावा नेपाल के साथ भारत की कनेक्टिविटी भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार बनने के बाद बेहतर हुई. लेकिन हाल के वर्षों में हवाई रास्ते, सड़क, रेल और सीमा पार पेट्रोलियम उत्पादों को ले जाने के लिए पाइपलाइन की बेहतर होती कनेक्टिविटी के बावजूद 100 रुपये से ज़्यादा की भारतीय करेंसी पर नेपाल में पाबंदी, 100 नेपाली रुपये से ज़्यादा के सामान को भारत से नेपाल ले जाने पर कस्टम शुल्क लगाने के प्रावधान और नेपाल में भारतीय रुपये की गिरती कीमत दोनों देशों के बीच बढ़ते संपर्कों से हासिल फायदों को ख़त्म कर रही है.
2019 में जब केपी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री थे तो वहां के केंद्रीय बैंक नेपाल राष्ट्र बैंक ने 2,000 रुपये, 500 रुपये और 200 रुपये के भारतीय नोट के प्रचलन पर प्रतिबंध लगा दिया था.
2019 में जब केपी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री थे तो वहां के केंद्रीय बैंक नेपाल राष्ट्र बैंक ने 2,000 रुपये, 500 रुपये और 200 रुपये के भारतीय नोट के प्रचलन पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसकी वजह से भारतीय पर्यटकों की मुश्किलें तो बढ़ी ही, साथ ही 100 रुपये से ज़्यादा मूल्य की भारतीय करेंसी लेकर नेपाल में दाखिल होने वाले नेपाली और भारतीय नागरिकों को भी दिक्कत होने लगी. लेकिन इसकी वजह से लोगों की ज़िंदगी पर बहुत ज़्यादा असर नहीं पड़ा क्योंकि अधिक मांग की वजह से गैर-आधिकारिक तौर पर सभी तरह के भारतीय नोट को नेपाल में लेन-देन के लिए स्वीकार किया जाता रहा.
लेकिन पिछले कुछ समय से नेपाल में भारतीय करेंसी की वैल्यू गिरने के साथ ये हालात बदल रहे हैं. भारत के 100 रुपये की वैल्यू अब नेपाल में कम हो गई है और ये 135 नेपाली रुपये से 150 नेपाली रुपये के बीच है जबकि आधिकारिक तौर पर 100 भारतीय रुपये की वैल्यू अभी भी 160 नेपाली रुपये है. नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों से आप जितना दूर जाएंगे, भारतीय रुपये की वैल्यू उतनी ही कम होती जाएगी. 1963 में नेपाली करेंसी को भारतीय करेंसी से जोड़ा गया था और उस समय से दोनों मुद्राओं के बीच आधिकारिक विनिमय दर (एक्सचेंज रेट) में कोई बदलाव नहीं हुआ है और 100 भारतीय रुपये की कीमत 160 नेपाली रुपये बनी हुई है.
कुछ समय पहले तक नेपाल के लिए भारतीय करेंसी अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण था क्योंकि नेपाल राष्ट्र बैंक भारतीय करेंसी ख़रीदने के लिए भारत को अमेरिकी डॉलर दिया करता था. भारतीय मुद्रा के लिए नेपाल में मांग इतनी ज़्यादा थी कि असंगठित बाज़ार में 100 भारतीय रुपये के लिए 165 नेपाली रुपये भी चुकाना पड़ता था.
नेपाल में भारतीय मुद्रा की कीमत में अचानक गिरावट के पीछे एक बड़ी वजह ये है कि वहां ये एहसास बढ़ रहा है कि भारत की सरकार एक बार फिर 2016 की तरह नोटबंदी करेगी.
लेकिन बदले हुए हालात में नेपाल के दुकानदार और यहां तक कि नेपाल के पेट्रोल पंपों ने भी 100 भारतीय रुपये के बदले 160 नेपाली रुपये के आधिकारिक एक्सचेंज रेट को स्वीकार करने से इनकार करना शुरू कर दिया है. अगर भारतीय रुपये को स्वीकार किया भी जाता है तो कम रेट पर. इसकी वजह से कम रेट पर भारतीय रुपये को नेपाली रुपये में बदलने के लिए नेपाल-भारत के सरहदी इलाकों में बड़ी संख्या में अनधिकृत एजेंट काम करने लगे हैं.
भारतीय मुद्रा में गिरावट
नेपाल में भारतीय मुद्रा की कीमत में अचानक गिरावट के पीछे एक बड़ी वजह ये है कि वहां ये एहसास बढ़ रहा है कि भारत की सरकार एक बार फिर 2016 की तरह नोटबंदी करेगी. इसके अतिरिक्त, नेपाल से भारत तक शराब के अलावा बड़े पैमाने पर सोने की तस्करी की वजह से भी नेपाल में भारतीय करेंसी का अवमूल्यन हो गया है. चूंकि शराब और सोना गैर-कानूनी तरीकों से भारत में भेजा जाता है, इसलिए नेपाल में भारतीय रुपये बड़ी मात्रा में भेजे जाते हैं. इस तरह नेपाल में भारतीय रुपये की ज़्यादा सप्लाई और कम डिमांड की वजह से इसकी कीमत का गिरना जारी है.
हालात को और बिगाड़ते हुए नेपाल में पुष्प कमल दहल की नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार ने एक नियम बनाया है जिसके तहत 100 नेपाली रुपये (62.5 भारतीय रुपये) से ज़्यादा कीमत के सामान को भारत से नेपाल में लाने पर कस्टम शुल्क चुकाना होगा. इस तरह की पाबंदी को देखते हुए माना जाता है कि ये नियम इसलिए बनाया गया है कि दोनों देशों के बीच लोगों का आना-जाना और मुश्किल बन जाए. इस नियम ने सीमावर्ती क्षेत्रों में गंभीर मुश्किलें पैदा कर दी हैं, ख़ास तौर पर बॉर्डर पर रहने वाले नेपाली लोगों के लिए जो अपने दिन-प्रतिदिन की ज़रूरतों जैसे कि चावल, गेहूं, दाल, चीनी, दूध, कपड़े, खाना बनाने के तेल, कपड़े धोने की टिकिया, आलू, इत्यादि जैसे आवश्यक सामान ख़रीदने के लिए सीमा पार करके भारत जाते हैं. अफ़सोस की बात है कि ये लोग अब सीमा पार जाकर भारत से ऐसे सामान ख़रीदने में काफी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं क्योंकि भारतीय 100 रुपये से ज़्यादा का सामान लाने पर इन्हें कस्टम शुल्क चुकाने के लिए मजबूर किया जाता है.
इनमें से कुछ घटनाक्रम चिंता के विषय हैं क्योंकि इनकी वजह से लोगों के आने-जाने और रोटी-बेटी की ठोस बुनियाद के आधार पर नेपाल और भारत के बीच परंपरागत सौहार्दपूर्ण संबंधों पर भी असर पड़ना शुरू हो चुका है.
सीमा पार कर भारत जाकर अपने इस्तेमाल के लिए बुनियादी ज़रूरत के सामान ख़रीदना नेपाल के लोगों की पसंद नहीं बल्कि मजबूरी है. इसकी वजह ये है कि सीमा के दोनों तरफ इन सामानों की कीमत में बहुत ज़्यादा अंतर है. उदाहरण के तौर पर, नेपाल के सीमावर्ती इलाकों में एक लीटर दूध की कीमत 5 भारतीय रुपये या उससे भी ज़्यादा है. इसी तरह दूसरे ज़रूरी सामानों के दाम में भी दोनों देशों में फर्क है.
रोटी-बेटी का रिश्ता
लेकिन नेपाल में कुछ सरकारी अधिकारियों का मानना है कि जब तक सीमा पार से सामान ख़रीदने को हतोत्साहित नहीं किया जाता है, तब तक नेपाल के सरहदी इलाकों के स्थानीय व्यवसाय तरक्की नहीं करेंगे. दूसरी तरफ, आम लोगों की ये धारणा है कि सरकारी अधिकारियों ने सीमा के ज़रिए भारत से नेपाल ले जाने वाले सामानों पर सीमा शुल्क लगाकर जान-बूझकर गैर-ज़रूरी दिक्कतें खड़ी की हैं. लोगों को ये शक है कि कस्टम विभाग और नेपाल के व्यापारियों के बीच सांठगांठ है क्योंकि सीमा शुल्क लगा कर नेपाल में भारतीय सामानों की कीमत बढ़ाने के कदम से दोनों को फायदा होगा.
इनमें से कुछ घटनाक्रम चिंता के विषय हैं क्योंकि इनकी वजह से लोगों के आने-जाने और रोटी-बेटी की ठोस बुनियाद के आधार पर नेपाल और भारत के बीच परंपरागत सौहार्दपूर्ण संबंधों पर भी असर पड़ना शुरू हो चुका है. दोनों देशों को काफी आर्थिक नुकसान हो रहा है क्योंकि सरहद पर दोनों तरफ के स्थानीय बाज़ार तेज़ी से ख़त्म हो रहे हैं. इसलिए संबंधित संस्थानों के लिए ये समझदारी नहीं होगी कि वो सभी समस्याओं के लिए कनेक्टिविटी को रामबाण मान कर सपना देखते रहें और अपनी उपलब्धियों को लेकर आत्मसंतुष्ट बने रहें.
हरि बंश झा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में विज़िटिंग फेलो हैं.
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