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समावेशी स्वास्थ्य समाधानों पर भारत का ध्यान, सहभागिता पर ज़ोर, और अनुसंधान और नवाचार के प्रति समर्पण, उसे वैश्विक स्वास्थ्य में आशा की किरण के रूप में स्थापित कर रहा है
अपनी ज़बरदस्त श्रमशक्ति और बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ भारत, वैश्विक स्वास्थ्य परिदृश्य में भी अपनी मौजूदगी का एहसास करा रहा है. देश में सबके लिए स्वास्थ्य सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता, मज़बूत फॉर्मास्यूटिकल विनिर्माण शक्ति और स्वास्थ्य से जुड़े बुनियादी ढांचे, शिक्षा और अनुसंधान में निरंतर निवेश की क़वायद ने भारत को एक अहम बाज़ार के साथ-साथ स्वास्थ्य से जुड़ी वैश्विक परिचर्चाओं का सक्रिय हिस्सेदार बना दिया है. पिछले वर्षों में स्वास्थ्य चुनौतियों के निपटारे को लेकर भारत के रुख़ (घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर) ने वैश्विक स्वास्थ्य इकोसिस्टम में उसकी भूमिका को रेखांकित किया है.
2023 भारत की कूटनीतिक और सामरिक यात्रा में एक अहम साल के रूप में उभरा है. इस वर्ष देश ने G20 और शंघाई सहयोग संगठन (SCO), दोनों में नेतृत्वकारी भूमिका संभाली है. ऐसे प्रभावशाली मंचों ने वैश्विक रंगमंच में भारत की आवाज़ और पुख़्ता कर दी है. इस तरह भारत वैश्विक स्वास्थ्य रणनीतियों की भावी दिशा-दशा तय करने और गहरी अंतरराष्ट्रीय सहभागिताओं की नींव रखने में सक्षम बन गया है. इन मंचों की अध्यक्षता, विश्व मंच पर भारत के प्रमुखता से उभार को दर्शाते हैं, जो महज़ सांकेतिक नहीं है. इसने भारत को सामूहिक स्वास्थ्य के एजेंडे को स्पष्ट करने और उसको प्रभावित करने का मंच प्रदान किया है. इससे समग्रतापूर्ण दृष्टिकोण को मज़बूती मिली है, जो चिकित्सा के क्षेत्र में पारंपरिक ज्ञान को स्वास्थ्य सेवा के आधुनिक तौर-तरीक़ों से सुचारू रूप से जोड़ता है.
G20 की अपनी अध्यक्षता के तहत भारत ने चिकित्सा के मोर्चे पर प्रतिरोधी उपायों के लिए समन्वयकारी मंच का सुझाव दिया है. इस सिलसिले में समानता, सार्वजनिक कल्याण के लिए मानकों और ग्लोबल साउथ के देशों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया गया है.
G20 के झंडे तले भारत ने पूर्व सक्रियता के साथ कई क़दम उठाए हैं. इस कड़ी में तमाम शहरों में स्वास्थ्य कार्यकारी समूह (HWG) की बैठकें आयोजित की गईं, और इस तरह अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य लक्ष्यों के निपटारे के लिए भारत की प्रतिबद्धता दिखाई दी है. साथ ही G20 की वचनबद्धताओं और घरेलू मोर्चे पर स्वास्थ्य से जुड़ी प्राथमिकताओं का भी प्रदर्शन हुआ है. G20 समूह, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP), व्यापार, और जनसंख्या के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है, ऐसे में वैश्विक स्वास्थ्य पहलों पर इसका संभावित प्रभाव चमत्कारिक हो सकता है. इस सिलसिले में भारत द्वारा शुरू किए गए कई कार्यक्रम, नेतृत्वकारी भूमिका निभाने की उसकी आकांक्षाओं को बल देते हैं. इनमें ‘वन हेल्थ’ और महामारी तैयारी और प्रतिक्रिया (PPR) को बढ़ावा देने, चिकित्सा संसाधनों तक समान पहुंच की वक़ालत करने और वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य कार्यक्रम को आगे बढ़ाने जैसे क़दम शामिल हैं. G20 की अपनी अध्यक्षता के तहत भारत ने चिकित्सा के मोर्चे पर प्रतिरोधी उपायों के लिए समन्वयकारी मंच का सुझाव दिया है. इस सिलसिले में समानता, सार्वजनिक कल्याण के लिए मानकों और ग्लोबल साउथ के देशों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया गया है. इस पूरी क़वायद का मक़सद अतीत से सबक़ लेते हुए भविष्य में महामारी से जुड़ी चुनौतियों के निपटारे का लक्ष्य तय करना है.
इसके समानांतर, SCO की अपनी अध्यक्षता के ज़रिए भारत ने वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों पर समग्र रुख़ को लेकर अपनी वचनबद्धता दोहराई है. इस सिलसिले में ये सुनिश्चित किया जा रहा है कि चिकित्सा से जुड़े परंपरागत ज्ञान के साथ समकालीन जानकारियों के मिश्रण से मानवता की बड़े पैमाने पर सेवा हो सके. समारोहों के ज़रिए भारत ने वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा हासिल करने के लिए ठोस निगरानी प्रणालियों, सहभागितापूर्ण अनुसंधान और विकास के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा से जुड़े प्रतिरोधी उपायों की अहमियत के बारे में सबको सूचित कर दिया है. स्वास्थ्य सेवा का समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए भारत ने टेक्नोलॉजी में हो रहे आधुनिकतम बदलावों को परंपरागत चिकित्सा प्रणालियों के साथ जोड़ने के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित किया है. इस संदर्भ में दिलचस्पी का एक और क्षेत्र चिकित्सा के लिहाज़ से मूल्यवान यात्राओं की संभावनाएं और ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण की अहमियत रही है, जो मानव कल्याण को पारिस्थितिकी तंत्र के व्यापक दायरे के साथ जोड़ती है. ऐसा सहभागितापूर्ण दृष्टिकोण, परंपरागत ज्ञान को सम-सामयिक तकनीक से और लोकल को ग्लोबल से जोड़ता है. यही रुख़ SCO के साथ-साथ G20 में भारत की अध्यक्षता का प्रतीक बन गया है. इस तरह भारत, स्वस्थ और एकीकृत वैश्विक समुदाय सुनिश्चित करने की दिशा में क़दम आगे बढ़ा रहा है.
वैश्विक स्वास्थ्य का समकालीन परिदृश्य चुनौतियों से भरा है, जिनमें से कई चुनौतियां कोविड-19 महामारी ने सामने लाकर खड़ी कर दी हैं. इन चुनौतियों की प्रतिक्रिया में भारत स्वास्थ्य प्रशासन को लेकर पहले से ज़्यादा ठोस और समन्वित अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण की पैरोकारी करता है. वैश्विक स्वास्थ्य प्रतिक्रियाओं में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निभाई गई निर्णायक भूमिका को भारत ने बख़ूबी पहचाना है. यही वजह है कि भारत इस संस्था को और मज़बूत बनाने वाली पहलों का ज़ोरदार समर्थन करता है. लक्ष्य एक ऐसा प्रशासनिक ढांचा तैयार करने का है जो चुस्त-दुरुस्त हो, स्वास्थ्य के क्षेत्र में सामने खड़ी चुनौतियों का पूर्व-सक्रियता से निपटारा करने और उसके हिसाब से ढलने में सक्षम हो, और ये सुनिश्चित करता हो कि एक समावेशी विश्व स्वास्थ्य संगठन, स्वास्थ्य को लेकर वैश्विक क़वायदों के केंद्र में बना रहे.
भारत के लिए, स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुपक्षीयवाद केवल संकटों से निपटने का ज़रिया नही है, बल्कि एक स्वस्थ, ज़्यादा लचीले वैश्विक भविष्य को आकार देने से जुड़ा है; एक ऐसा भविष्य, जहां हर देश की आवाज़ और भूमिका है.
वैसे तो भारत वैश्विक स्वास्थ्य में WHO की ऐतिहासिक भूमिका को स्वीकार करता है, लेकिन उसने स्वास्थ्य के मोर्चे पर आज के पेचीदा परिदृश्य को देखते हुए सुधारों की आवश्यकता को भी पूरी बेबाक़ी से सामने रखा है. इससे ये संस्था और ज़्यादा प्रभावी बन सकेगी. इन प्रस्तावित सुधारों में से प्रमुख है अंतरराष्ट्रीय चिंता वाली सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों (PHEIC) के एलान से जुड़ी प्रक्रिया को आगे बढ़ाना. इससे ये सुनिश्चित होगा कि ऐसी प्रक्रिया ना केवल मज़बूत हो बल्कि कार्यकुशल भी हो. इसके अतिरिक्त, भारतीय दृष्टिकोण ने सहभागिताओं का भरपूर लाभ उठाने और साझेदारियों को बढ़ावा देने के महत्व को भी रेखांकित किया है. इस कड़ी में ये सुनिश्चित करना ज़रूरी हो जाता है कि स्वास्थ्य से जुड़ी वैश्विक प्रतिक्रियाएं एकाकी (siloed) ना होकर समन्वित हों. इस परिप्रेक्ष्य की जड़ें प्रभावी बहुपक्षीयवाद को बढ़ावा देने के भारत के व्यापक दृष्टिकोण में गहराई से जमी हैं. भारत के लिए, स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुपक्षीयवाद केवल संकटों से निपटने का ज़रिया नही है, बल्कि एक स्वस्थ, ज़्यादा लचीले वैश्विक भविष्य को आकार देने से जुड़ा है; एक ऐसा भविष्य, जहां हर देश की आवाज़ और भूमिका है.
वैश्विक स्वास्थ्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं के क्रम में भारत ने महामारी संधि और महामारी कोष, दोनों की स्थापना से जुड़ी प्रक्रियाओं में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया है. महामारी संधि पर अब भी बातचीत चल रही है. इन पहलों को संभावित स्वास्थ्य संकटों से निपटने के प्रति वैश्विक तैयारी और तत्परता के साथ-साथ प्रतिक्रिया को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, भारत ने भी ऐसी ही कल्पना की है. दूसरी ओर हिंदुस्तान ने राष्ट्रीय संप्रभुता पर संधि के प्रभावों को लेकर कुछ चिंताओं को भी आवाज़ दी है. ग़ौरतलब है कि महामारी के दौरान भारत ने (दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर) दवाओं और टीकों पर बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) पर छूट दिए जाने की मांग को लेकर विश्व व्यापार संगठन से संपर्क किया था. इससे स्वास्थ्य सेवाओं तक समान रूप से पहुंच सुनिश्चित किए जाने के प्रति भारत का समर्पण जगज़ाहिर हो जाता है.
भारत के फार्मास्युटिकल क्षेत्र को अक्सर ‘दुनिया का दवाख़ाना’ कहा जाता है. ये आवश्यक दवाओं को विश्व स्तर पर उपलब्ध कराने और उन्हें किफ़ायती बनाने की क़वायद का आधार रहा है. जेनेरिक्स के मज़बूत बाजार के साथ भारत ने जीवन रक्षक दवाओं तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. तकनीक और फार्मा क्षेत्रों के बीच संभावित तालमेल, एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल समाधानों के लिए रास्ता साफ़ कर सकता है. इससे चिकित्सा के मोर्चे पर उन्नति का नया युग सामने आएगा. संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता के रूप में वैश्विक टीकाकरण की तमाम पहलों में भारत के उल्लेखनीय योगदान से इस प्रतिष्ठा में चार चांद लगे हैं. अफ्रीकी देशों को मलेरिया की सबसे पहली वैक्सीन का आवंटन वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने में भारत की निर्णायक भूमिका को रेखांकित करता है. ये टीका मुख्य रूप से भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया जैसे भारतीय दिग्गजों द्वारा तैयार किया जाएगा.
विशाल और प्रभावशाली होते हुए भी भारतीय फार्मास्युटिकल इकोसिस्टम को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. मिलावटी दवाओं से जुड़े कई प्रकरणों ने गुणवत्ता पर कठोर नियंत्रण और पारदर्शी नियामक तंत्रों के महत्व को रेखांकित किया है.
विशाल और प्रभावशाली होते हुए भी भारतीय फार्मास्युटिकल इकोसिस्टम को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. मिलावटी दवाओं से जुड़े कई प्रकरणों ने गुणवत्ता पर कठोर नियंत्रण और पारदर्शी नियामक तंत्रों के महत्व को रेखांकित किया है. चिकित्सा उत्पादों की सुरक्षा और प्रभावशीलता सुनिश्चित करना सर्वोपरि है, और भारत विश्व स्तर पर भरोसा बनाए रखने की गंभीरता को अच्छी तरह समझता है. नियामक प्रक्रियाओं को सुचारू बनाने के लिए अधिकारियों द्वारा कई क़दम उठाए गए हैं. हालांकि, इन चुनौतियों के निपटारे की क़वायद में केवल वैश्विक मानकों का पालन करना ही नहीं बल्कि नए मानक स्थापित करना भी शामिल है.
वैश्विक स्वास्थ्य परिदृश्य में भारत का प्रगति-पथ उम्मीदों से भरा है. भारत के कार्यों, नीतियों और रणनीतियों में वैश्विक स्वास्थ्य प्रतिमानों को नए सिरे से परिभाषित करने की क्षमता है. जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, समावेशी स्वास्थ्य समाधानों पर इसका ध्यान, सहभागिता पर ज़ोर, और अनुसंधान और नवाचार के प्रति समर्पण, इसे वैश्विक स्वास्थ्य में आशा की किरण के रूप में स्थापित कर रहा है. हालांकि, आगे की राह में चुनौतियों की कमी नहीं है. लिहाज़ा आत्मनिरीक्षण करना, ग़लतियों से सबक़ लेकर ज़रूरी सुधार लाना और सीखने की प्रक्रिया निरंतर जारी रखना आवश्यक हो जाता है. भारत ने अपनी प्राथमिकताएं साफ़ साफ़ ज़ाहिर कर दी हैं. दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने फार्मास्युटिकल उद्योग से ‘भारत में मंथन करने, भारत में नवाचार करने, भारत में निर्माण करने और दुनिया के लिए विनिर्माण करने’ का आह्वान किया है. आज जब भारत अपनी वैश्विक स्वास्थ्य आकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है तब उसे सतर्कता के साथ महत्वाकांक्षा का संतुलन बिठाना चाहिए. साथ ही ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उसका उभार समग्रतापूर्ण, टिकाऊ और संपूर्ण मानवता के लिए लाभदायक हो! इस लक्ष्य की ओर यात्रा आशाजनक तो है, मगर ये तेज़ दौड़ ना होकर लंबे समय तक चलने वाली मैराथन है. लिहाज़ा हरेक क़दम दूरदर्शिता और गहन विचार-मंथन के बाद ही उठाया जाना चाहिए.
उम्मेन सी. कुरियन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो और हेल्थ इनिशिएटिव के प्रमुख हैं.
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Oommen C. Kurian is Senior Fellow and Head of Health Initiative at ORF. He studies Indias health sector reforms within the broad context of the ...
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