जैसे-जैसे साल 2023 अपने अंत की ओर बढ़ रहा है, यह साफ दिखने लगा है कि युद्ध फिर से अंतरराष्ट्रीय संबंधों का केंद्र बनता जा रहा है. ताकत के संसाधन अब न सिर्फ समकालीन वैश्विक व्यवस्था का अहम हिस्सा बनते दिख रहे हैं, बल्कि इनकी क्षमता यह याद भी दिला रही है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति की अराजक प्रकृति राष्ट्रों के व्यवहार पर अपना दबाव डालती है. इसमें संस्थाएं, बाजार और मानदंड कोई राहत नहीं देते. ताकतवर देश अपनी इच्छानुसार काम करते हैं, जबकि कमजोर राष्ट्रों को सबसे ज्यादा कष्ट सहना पड़ता है. आज की दुनिया का यही ‘न्यू नॉर्मल’ है. रूसी आक्रामकता के खिलाफ यूक्रेन की जवाबी कार्रवाई से ऐसा गतिरोध पैदा हो गया है, जिसका कोई समाधान मिलता नहीं दिख रहा है. सर्दियों की दस्तक के साथ यह जंग भी लंबी खिंच गई है, क्योंकि दोनों पक्ष इसे जीतने की उम्मीद में ड्रोन पर अधिक से अधिक भरोसा करने लगे हैं, जबकि इन दोनों में से किसी का सपना फिलहाल पूरा होता नहीं दिख रहा. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दो दशकों तक सत्ता संभालने के बाद फिर से सत्तारूढ़ होने का अभियान चला रहे हैं, और रूस को पश्चिम के सामने एक संप्रभु-आत्मनिर्भर शक्ति बनाने का वायदा कर रहे हैं. पुतिन यह तर्क भी दे रहे हैं कि रूस अपनी संप्रभुता से कतई समझौता नहीं कर सकता.
सर्दियों की दस्तक के साथ यह जंग भी लंबी खिंच गई है, क्योंकि दोनों पक्ष इसे जीतने की उम्मीद में ड्रोन पर अधिक से अधिक भरोसा करने लगे हैं, जबकि इन दोनों में से किसी का सपना फिलहाल पूरा होता नहीं दिख रहा.
यूक्रेन के लिए कूटनीतिक चुनौतियां
इन सबसे यूक्रेन के लिए राजनीतिक व कूटनीतिक चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. हालांकि, हंगरी के विरोध के बावजूद यूरोपीय संघ ने यूक्रेन के साथ सदस्यता-वार्ता शुरू करने का फैसला किया है, लेकिन इसके नेता कीव को सहायता पैकेज देने पर सहमत नहीं हो पा रहे, जिसकी यूक्रेन को सख्त जरूरत है. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने हाल ही में अमेरिका का दौरा भी किया था, लेकिन यूक्रेन को 61 अरब डॉलर की सैन्य सहायता देने के मुद्दे पर बुरी तरह विभाजित अमेरिकी रिपब्लिकन को मनाने में वह सफल नहीं हो सके. यदि कीव को मॉस्को के खिलाफ मैदान में डटे रहना है, तो अमेरिकी मदद उसके लिए काफी अहमियत रखती है, लेकिन अमेरिकी कांग्रेस (संसद) इसके लिए एक वाजिब गारंटी और स्पष्ट रूप से परिभाषित लक्ष्य की मांग कर रही है. इससे व्लादिमीर पुतिन को यह यकीन हो गया है कि उन्हें सफलता के लिए पश्चिमी एकता के पूरी तरह से खत्म होने तक इंतजार करना होगा. परिणामस्वरूप, उन्होंने यूक्रेन के बिना शर्त आत्म-समर्पण के बारे में अपना रुख और सख्त कर लिया है. वह साफ-साफ बताना चाहते हैं कि यूक्रेन में तभी शांति आएगी, जब रूस अपना लक्ष्य हासिल कर लेगा. इससे यूक्रेन को उसकी हैसियत दिखाने की पुतिन की इच्छा बेशक पूरी होती नजर आ रही हो, लेकिन इसके लिए उन्होंने रूस की अर्थव्यवस्था को खोखला कर दिया है.
यूक्रेन को उसकी हैसियत दिखाने की पुतिन की इच्छा बेशक पूरी होती नजर आ रही हो, लेकिन इसके लिए उन्होंने रूस की अर्थव्यवस्था को खोखला कर दिया है.
यूरेशिया की यह जंग ही मानो काफी न थी कि 7 अक्तूबर को हमास के लड़ाकों ने पश्चिम एशिया में युद्ध भड़काने का काम कर डाला. इजरायल अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पाने के लिए मैदान में उतर तो गया है, लेकिन जैसे-जैसे यह युद्ध लंबा खिंचता जा रहा है, वह अपने सहयोगी देशों का समर्थन भी गंवाता हुआ दिख रहा है. फ्रांस ने जहां इजरायल-हमास युद्ध में तत्काल संघर्ष-विराम की वकालत की है, तो वहीं ब्रिटेन व जर्मनी ने स्थायी संघर्ष-विराम का आह्वान किया है. इससे इजरायल पर दबाव बढ़ रहा है कि वह अपने कदम वापस खींच ले, क्योंकि आम नागरिकों के मरने की खबरें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं. इजरायल ने अब तक पीछे हटने से साफ इनकार किया है. उसने युद्ध-विराम को एक गलती बताया है, जो हमास के लिए एक उपहार होगा. मगर इजरायल के भीतर भी गतिरोध तेज है, खासकर आईडीएफ (इजरायली सेना) द्वारा गाजा में अपने अभियान के दौरान गलती से तीन इजरायली बंधकों को ही मार डालने के बाद से.
इजरायल की चिंता
हालांकि, इजरायल की सबसे बड़ी परेशानी तेल अवीव और बाइडन प्रशासन के बीच बढ़ती दरार है. इसने बाइडन पर अपनी ही पार्टी के भीतर से इजरायली सैन्य अभियान को नरम करने का दबाव बढ़ा दिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने यह सुझाव देकर अपनी प्राथमिकताएं भी स्पष्ट कर दी हैं कि इजरायल ने गाजा पर अंधाधुंध बमबारी करके वैश्विक समर्थन खोना शुरू कर दिया है. लगता यही है कि अमेरिकी सरकार पर बढ़ते स्थानीय दबाव के कारण राष्ट्रपति बाइडन शायद ही इजरायल के सैन्य अभियानों के लिए लंबे समय तक कूटनीतिक कवच बने रह सकेंगे. इन सबके कारण इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए उम्मीदें कमजोर पड़ती जा रही हैं. बेशक उनकी मंशा एक सैन्य ताकत और शासक के रूप में हमास का समूल नाश करना है, लेकिन हमास की विचारधारा हर गुजरते दिन के साथ मजबूत होती दिख रही है. हालिया सर्वेक्षणों के मुताबिक, वेस्ट बैंक में हमास के लिए समर्थन बढ़ता जा रहा है, जिसको काटने का कोई विश्वसनीय हथियार फिलवक्त इजरायल के पास नहीं दिखता.
ये तमाम टकराव ऐसे समय पर हो रहे हैं, जब अमेरिका और चीन के बीच श्रेष्ठ बनने की होड़ बढ़ती जा रही है. कई मायनों में, इस संघर्ष का केंद्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र है, जहां तनाव अभी चरम पर है. हालांकि, परदे के पीछे से एक अन्य जंग भी छिड़ी है, जिससे अंतरराष्ट्रीय जगत में काफी उथल-पुथल है. आज बड़ी शक्तियां परोक्ष युद्ध में भी शामिल हैं, जिसका एक महत्वपूर्ण हथियार है, जहर देकर या किसी अन्य तरीके से अपने दुश्मनों की हत्या. इस साल अगस्त में उस वैगनर आर्मी के प्रमुख की विमान हादसे में मौत हो गई, जिसने जून में रूसी सेना के खिलाफ विद्रोह किया था. इसमें शक की सुई राष्ट्रपति पुतिन की तरफ उठी. कनाडा में खालिस्तानी आतंकी की मौत के बाद भारत की खुफिया एजेंसियों पर भी कुछ इसी तरह के आरोप उछले. अभी पाकिस्तान में दाऊद इब्राहिम को जहर देने की चर्चा जोरों पर है. ये खबरें इशारा कर रही हैं कि अब ये तरीके युद्ध के ‘हथियार’ बनते जा रहे हैं.
आज बड़ी शक्तियां परोक्ष युद्ध में भी शामिल हैं, जिसका एक महत्वपूर्ण हथियार है, जहर देकर या किसी अन्य तरीके से अपने दुश्मनों की हत्या.
जाहिर है, अपनी ताकत दिखाना अब अंतरराष्ट्रीय जगत में रोजमर्रा की चीज हो गई है. इस वैश्विक अव्यवस्था को खत्म करने के लिए सामूहिक नेतृत्व की जरूरत है, जिसका फिलहाल अभाव दिखता है. इसका सीधा मतलब है कि दुनिया 2024 का स्वागत अनिष्ट की आशंकाओं के साथ करेगी, जहां अतीत की धारणाओं से भविष्य का अनुमान नहीं लगाया जा सकेगा.
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