Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

यूएनजीए की बैठक में रूस के ख़िलाफ़ संयुक्त अरब अमीरात के हालिया रुख़ को विदेश नीति और कई तरह के कई घरेलू कारकों ने कैसे प्रभावित किया?

यूक्रेन युद्ध के सिलसिले में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की दुविधा: वोट डालें या न डालें
यूक्रेन युद्ध के सिलसिले में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की दुविधा: वोट डालें या न डालें

यह लेख यूक्रेन संकट: कारण और संघर्ष नामक हमारी श्रृंखला का एक हिस्सा है.


प्रस्तावना


हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों के ख़िलाफ़ भारी संख्या में मतदान देखा. इस मायने में यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि संयुक्त अरब अमीरात जो रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) दोनों का एक मज़बूत सहयोगी रहा है उसने रूस के ख़िलाफ़ मतदान किया. इससे पहले उसने उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने रूस के मसले पर हुए मतदान से परहेज किया था. संयुक्त अरब अमीरात के रुख़ में यह बदलाव वैश्विक संकटों से निपटने को लेकर यूएई के लिए पैदा हुए नाज़ुक हालात को उजागर करता है, और यह भी कि कैसे संयुक्त अरब अमीरात अपने क्षेत्र से आगे बढ़कर दूसरे देशो के मद्देनज़र उसने जुड़ने के लिए मजबूर हुआ है. इस लेख के अंतर्गत संयुक्त अरब अमीरात की नाज़ुक स्थिति और यूक्रेन में रूस की आक्रामकता के संबंध में इसकी रणनीतिक गणना की पड़ताल की गई है.

वैश्विक शक्तियों के साथ संयुक्त अरब अमीरात का जुड़ाव: बदलते समीकरण

संयुक्त अरब अमीरात जहां एक ओर अपने पड़ोसियों जैसे सऊदी अरब, इराक़, ईरान और अन्य मध्य पूर्वी देशों की तुलना में सीमित भूमि पर दावा करता है, वहीं  इसने तेल, धन-धान्य पर्यटन और वित्तीय केंद्र के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत कर अपने आकार के अनुपात में बाकि देशों के बीच प्रभुत्व हासिल किया है. विशेष रूप से,  इसके संस्थापक शेख जायद की मौत के बाद से, संयुक्त अरब अमीरात ने मध्य पूर्व क्षेत्र पर अपनी ताकत को प्रदर्शित करने के लिए कड़ी मेहनत की है. इस के साथ ही वह वौश्विक स्तर पर प्रभाव रखने वाली विभिन्न ताकतों जैसे अमेरिका व रूस के साथ भी जुड़ा हुआ है. ऐतिहासिक रूप से, संयुक्त अरब अमीरात अमेरिका का कट्टर सहयोगी रहा है, जिसने देश को तेल के बदले सुरक्षा आश्वासन प्रदान किया है. इससे दोनों देशों को विभिन्न तरह के लाभ हुए हैं, संयुक्त अरब अमीरात ने 2020 में इसरायल के साथ आधिकारिक संबंध स्थापित किए हैं. यह एक ऐसा संबंध है जिसकी कल्पना भी मुश्किल थी.

संयुक्त अरब अमीरात जहां एक ओर अपने पड़ोसियों जैसे सऊदी अरब, इराक़, ईरान और अन्य मध्य पूर्वी देशों की तुलना में सीमित भूमि पर दावा करता है, वहीं  इसने तेल, धन-धान्य पर्यटन और वित्तीय केंद्र के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत कर अपने आकार के अनुपात में बाकि देशों के बीच प्रभुत्व हासिल किया है. 

पिछले एक दशक में, राष्ट्रपति ओबामा के कार्यकाल के बाद से, अमेरिका ने धीरे-धीरे खुद को मध्य पूर्व से निकालने के लिए काम किया है, और खुद को एक तेल खरीदार और सुरक्षा प्रदाता के बजाय एक हथियार विक्रेता के रूप में सीमित कर दिया है. इस पृष्ठभूमि में, संयुक्त अरब अमीरात को अपनी विदेश नीति को नए सिरे से परिभाषित करना पड़ा. मोटे तौर पर संयुक्त अरब अमीरात ने यह काम अमेरिका की वापसी को रूस और चीन जैसे अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाकर संतुलित करने के ज़रिए किया. यह दोनों ही देश अमेरिका के हितों के प्रतिद्वंदी थे.

संयुक्त अरब अमीरात और रूस के संबंध

इस प्रकार, विशेष रूप से रूस के मामले में, संयुक्त अरब अमीरात ने लगभग चार बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार संबंधों में काफ़ी हद तक वृद्धि देखी है, जिससे यह पश्चिम एशिया व मध्य पूर्व क्षेत्र में रूस के सबसे बड़े व्यापार भागीदारों में से एक बन गया है. हाल के सालों में, संयुक्त अरब अमीरात ने कुछ मध्य पूर्वी संघर्षों में रूस के साथ सहयोग करना शुरू किया. उदाहरण के लिए, सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद का विरोध करने के वर्षों के बाद, संयुक्त अरब अमीरात अब इस देश के साथ अपने संबंधों को सामान्य करने की कोशिशों में जुटा है. यही नहीं उसने इस मामले में रूस के दृष्टिकोण को अपनाया भी है जिसमें – विपक्षी समूहों को हथियार देने के साथ-साथ बशर अल असद को सत्ता में रखने पर आपत्ति जैसे रुख शामिल हैं. कथित तौर पर, इस तरह का रुख मुख्य रूप से इस क्षेत्र से अमेरिका की वापसी के जवाब में और रूस के साथ संयुक्त अरब अमीरात की बढ़ती हुई भागीदारी के चलते समाने आया है. इसी तरह, संयुक्त अरब अमीरात ने युद्धग्रस्त लीबिया के मसले पर भी रूस का साथ दिया है, जहां वह अमेरिका के उलट सैन्य जनरल खलीफ़ा हफ्त़ार और सैफ़ गद्दाफी का समर्थन कर रहा है, जबकि अमेरिका दूसरे घटकों के साथ है. साल 2020 की यूएस-पेंटागन की एक रिपोर्ट में यहां तक कहा गया कि संयुक्त अरब अमीरात लीबिया में रूसी अर्धसैनिक संगठन, वैगनर ग्रुप को फंडिंग कर रहा था. मौजूदा परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह वही वैगनर समूह है जिसने यूक्रेनी संकट के दौरान यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलिंस्की की हत्या के अपने कथित प्रयासों को लेकर वैश्विक स्तर पर सामने आया है.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के वोट में संयुक्त अरब अमीरात के अनुपस्थित रहने के बाद, रूस ने हूतियों को एक आतंकवादी समूह के रूप में चिन्हित न करने के अपने स्पष्ट रुख को बदल दिया. 

इसके अलावा, केवल राजनीतिक रूप से सहयोग करने के अलावा, अमीरात के शेख रूस के साथ सहयोग करने में एक मज़बूत वित्तीय हिस्सेदारी भी रखते हैं. यूएई अब बड़ी संख्या में रूसी पर्यटकों का घर है, जो कोविड के बाद उनकी अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख ज़रूरत है – साथ ही साथ वह अपने आसान वित्तीय क़ानूनों के कारण कई तरह के रूसी निवेश के लिए एक पसंदीदा विकल्प भी है. निस्संदेह, यूक्रेन के आक्रमण के कारण तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी ने भी कोविड-19 संकट के बाद वित्तीय संकट से उबरने में अमीराती राष्ट्र के लिए सकारात्मक रूप से काम किया है.

मतदान का खेल- यूएनएससी-यूएनजीए


इन सभी उपरोक्त कारकों को देखते हुए, यह समझ में आता है कि संयुक्त अरब अमीरात ने रूस की निंदा करने वाले यूएनएससी प्रस्ताव में मतदान से परहेज किया. इसके अलावा, कई तात्कालिक कारकों ने भी इस निर्णय में योगदान दिया जैसे संयुक्त अरब अमीरात का उद्देश्य यमन के हूती विद्रोदियों को एक आतंकवादी संगठन के रूप में चिन्हित करने में रूसी समर्थन प्राप्त करना है – संयुक्त अरब अमीरात पर हूतियों द्वारा रॉकेट दाग़े जाने के बाद यह यूएई का एक बहुत वांछित क़दम है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के वोट में संयुक्त अरब अमीरात के अनुपस्थित रहने के बाद, रूस ने हूतियों को एक आतंकवादी समूह के रूप में चिन्हित न करने के अपने स्पष्ट रुख को बदल दिया. संयुक्त अरब अमीरात के एक प्रवक्ता के अनुसार, सुरक्षा परिषद में रूस की वीटो शक्ति के मद्देनज़र संयुक्त अरब अमीरात ने भी इस प्रकिया में भाग नहीं लिया था.

इस सबके बावजूद, कुछ ही समय बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा के वोट में, संयुक्त अरब अमीरात ने रूस के ख़िलाफ़ मतदान किया और कई अन्य मध्य पूर्वी देशों के साथ अपने रुख में बदलाव किया. कई कारक हैं जो इस बदलाव का पड़ताल करते हैं और उनकी व्याख्या कर सकते हैं.

सबसे पहले, यूएनजीए यानी  संयुक्त राष्ट्र महासभा यूएनएससी यानी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कू तरह एक आधिकारिक निकाय नहीं है और यही वजह है कि संयुक्त अरब अमीरात ने रूस के ख़िलाफ़ एक गैर-परिणामी मंच पर मतदान करने को उपयुक्त समझा. दूसरा, अमेरिका ने संयुक्त अरब अमीरात और अन्य अरब देशों के लिए यह सुनिश्चित करने को लेकर काफी प्रयास किए कि यूएनजीए वोट का परिणाम भारी संख्या में रूस के ख़िलाफ़ है. तीसरा, कुछ विश्लेषकों के अनुसार, संयुक्त अरब अमीरात ने यूएनएससी वोट के बहिष्कार को लेकर वैश्विक मीडिया की कवरेज को देखते हुए भी अपनी प्रतिक्रिया में बदलाव किया होगा. सिनजिया बियान्को के अनुसार, इस बदलाव ने संयुक्त अरब अमीरात (और अन्य अरब देशों के) द्वारा अमेरिका और रूस के बीच अपनी स्थिति का संतुलन बनाए रखने की कोशिशों को भी सामने रखा है.

निष्कर्ष

कई मायनों में, संयुक्त अरब अमीरात ने यह महसूस किया है कि अपने विशाल वित्तीय (और हालिया रक्षा) संसाधनों से सहायता प्राप्त कर क्षेत्रीय शक्ति बनने की उसकी महत्वाकांक्षाएं भी नई चुनौतियां ला रही हैं. यूक्रेन संकट, जिसके बारे में कुछ लोगों ने सोचा था कि ऐसा कभी नहीं होगा, उसने भारत जैसे बड़े राष्ट्रों सहित विभिन्न ताकतों के साथ जुड़ने की कई देशों की क्षमता का परीक्षण किया है. संयुक्त राज्य अमेरिका और बाकि पश्चिमी देशों द्वारा रूस का विरोध लेकिन सैन्य क़दमों से बचने का दृष्टिकोण देखते हुए संयुक्त अरब अमीरात इसका अपवाद नहीं है.

कोविड-19 की महामारी के कारण वैश्विक आर्थिक मंदी की पृष्ठभूमि में, यूएई का प्रमुख अल्पकालिक लक्ष्य अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना और वित्तीय स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है

कोविड-19 की महामारी के कारण वैश्विक आर्थिक मंदी की पृष्ठभूमि में, यूएई का प्रमुख अल्पकालिक लक्ष्य अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना और वित्तीय स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है, इसलिए यह रूस को नाराज़ करने से बचने के लिए हर संभव क़दम उठा रहा है. हालाँकि, एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में अपनी पहचान स्थापित के उसके दीर्घकालिक लक्ष्य ने वर्तमान संकट के मद्देनज़र अमीरात के लिए कई चुनौतियां पैदा की हैं. इसमें पश्चिम बनाम रूस जैसी चुनौती प्रमुख है. इन कई कारकों ने संयुक्त राष्ट्र में संयुक्त अरब अमीरात के मत को निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाई है.

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