Author : Apoorva Lalwani

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Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

यूएई और भारत सीईपीए मंच का अधिकतम लाभ उठाने के लिए, भारत और यूएई को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में अपनी भागीदारी को मज़बूत बनाना होगा.

India–UAE CEPA: कैसे अपनाया जाए एक समग्र दृष्टिकोण!
India–UAE CEPA: कैसे अपनाया जाए एक समग्र दृष्टिकोण!

हाल ही में भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच ऐतिहासिक व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते, सीईपीए (Comprehensive Economic Partnership Agreement, CEPA) पर हस्ताक्षर किए गए. यह एक ऐतिहासिक समझौता है क्योंकि यह किसी भी देश के साथ संयुक्त अरब अमीरात की पहली व्यापक रणनीतिक साझेदारी है, और यह एक दशक में भारत का पहला मुक्त व्यापार समझौता, एफटीए (Free Trade Agreement, FTA) है. यह साझेदारी कई उद्देश्यों और पहलों के साथ सामने आई है, और इसका सबसे पहला मक़सद अगले पांच सालों में द्विपक्षीय गैर-तेल व्यापार को 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाना है. मौजूदा दौर में दोनों देशों के बीच 60 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार है. संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है. यह समझौता भारत को मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका (MENA) क्षेत्र में अधिक पहुंच प्रदान करेगा. यह अन्य गल्फ कॉरपोरेशन काउंसिल, जीसीसी (Gulf Corporation Council, GCC) के देशों- सऊदी अरब, क़तर, कुवैत, ओमान और बहरीन के साथ इसी तरह के समझौते के लिए एक टेम्पलेट  के रूप में भी काम करेगा. इस मायने में दोनों देश नए युग की साझेदारी के लिए आगे बढ़ रहे हैं.

दोनों देशों ने हरित हाइड्रोजन पर विशेष ध्यान देने के साथ एक संयुक्त हाइड्रोजन टास्क फोर्स  (joint hydrogen task force) की स्थापना की घोषणा की है. दोनों देशों ने अंतरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (International Renewable Energy Agency) और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) जैसी विभिन्न एजेंसियों के तहत प्रौद्योगिकियों को बढ़ाकर, पेरिस समझौते को लागू करने में सहयोग करने का दृढ़ संकल्प किया है. इसके अलावा, वे इनोवेशन यानी नवाचारों को और प्रोत्साहित करने और समर्थन देने के लिए शिक्षा क्षेत्र में सहयोग करने पर सहमत हुए हैं. इस के आलावा भारत पहली बार संयुक्त अरब अमीरात में एक विदेशी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology, IIT) की स्थापना भी करेगा. इसके अलावा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में, भारत के दवा निर्माण उद्योग को संयुक्त अरब अमीरात में एक उद्यम मिलेगा. यह समझौता स्वचालित पंजीकरण (automatic registration) और मार्केटिंग यानी विपणन से जुड़े अधिकार प्रदान करता है जो एक विकसित देश द्वारा अनुमोदित दवाओं के लिए समय की बाधा को 90 दिनों तक कम कर देगा. इसके अलावा, खाद्य सुरक्षा के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भी दोनों देश एक साथ आए हैं. संयुक्त अरब अमीरात के पास कृषि योग्य और गैर-कृषि योग्य भूमि है जो देश को खाद्य आयात पर निर्भर बनाती है. इस साझेदारी में ‘खाद्य सुरक्षा कॉरिडोर पहल’ (Food Security Corridor Initiative) के माध्यम से यूएई की खाद्य सुरक्षा चिंता को कम करने की परिकल्पना की गई है, जिसके तहत देश बुनियादी ढांचे और समर्पित लॉजिस्टिक सेवाओं का निर्माण करेंगे, जो खेतों को यूएई के अंतिम गंतव्यों पर स्थित बंदरगाहों से जोड़ेंगी.

दोनों देशों ने अंतरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (International Renewable Energy Agency) और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) जैसी विभिन्न एजेंसियों के तहत प्रौद्योगिकियों को बढ़ाकर, पेरिस समझौते को लागू करने में सहयोग करने का दृढ़ संकल्प किया है.

भारत में 10 लाख नौकरियां पैदा होंगी

इसके अलावा, समझौता भारत द्वारा संयुक्त अरब अमीरात को निर्यात किए जाने वाले 90 प्रतिशत उत्पादों के लिए टैरिफ शुल्क को शून्य तक कम कर देगा, जो कपड़ा, परिधान, चमड़ा, आभूषण, इंजीनियरिंग सामान, दवा, दवाएं और कृषि जैसे श्रम प्रधान क्षेत्रों के लिए फायदेमंद होगा और इससे भारत में 10 लाख नौकरियां पैदा होंगी. सीईपीए से भारत के आभूषण क्षेत्र को भी फायदा होने का अनुमान है. भारतीय आभूषण बाज़ार मौजूदा दौर में संयुक्त अरब अमीरात को पांच फीसदी शुल्क का भुगतान करता है, और इस समझौते के तहत, भारत को संयुक्त अरब अमीरात में शुल्क मुक्त बाज़ार तक पहुंच मिलेगी, जिससे 2023 तक आभूषण निर्यात 10 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाएगा.

भारत के प्लास्टिक उद्योग के लिए भी अच्छी खबर है। वर्तमान में, संयुक्त अरब अमीरात भारत से केवल यूएस $ 400 मिलियन मूल्य के प्लास्टिक का आयात करता है, जबकि इसकी आवश्यकता 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर है. प्लास्टिक एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (PLEXCONCIL) के कार्यकारी निदेशक श्रीबाश दासमोहपात्रा के अनुसार, इस समझौते से भारत के प्लास्टिक उद्योग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.

हालांकि, भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच व्यापक साझेदारी से लाभ को अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए दोनों देशों को वैश्विक मूल्य श्रृंखला, जीवीसी (Global Value Chain) में अपनी भागीदारी को बढ़ाने की ज़रूरत है. दोनों देशों के बीच सबसे पहले 10 व्यापारिक उत्पादों को देखते हुए, यह पता चला है कि शीर्ष उत्पाद की यह श्रेणी साल 2018-2020 से नहीं बदली है और व्यापार सामान्य उत्पाद लाइनों जैसे यांत्रिक उपकरणों, विद्युत उपकरण, लोहा और इस्पात, कीमती और अर्ध-कीमती धातुओं, और खनिज व ईंधन के क्षेत्र में ही हो रहा है. यह उत्पादों के सीमित विविधीकरण को दर्शाता है, और यह भी कि मूल्य श्रृंखला एकीकरण केवल शीर्ष कारोबार वाले उत्पादों तक ही सीमित है.

इस साझेदारी में ‘खाद्य सुरक्षा कॉरिडोर पहल’ (Food Security Corridor Initiative) के माध्यम से यूएई की खाद्य सुरक्षा चिंता को कम करने की परिकल्पना की गई है, जिसके तहत देश बुनियादी ढांचे और समर्पित लॉजिस्टिक सेवाओं का निर्माण करेंगे, जो खेतों को यूएई के अंतिम गंतव्यों पर स्थित बंदरगाहों से जोड़ेंगी.

LPI सूचकांक में भारत 44वें स्थान पर

भारत के जीवीसी एकीकरण पर 2020 में इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (आईसीआरआईईआर) द्वारा किए गए एक अध्ययन में जीवीसी में भारत की सीमित भागीदारी के बारे में बात की गई है. भारत का जीवीसी भागीदारी सूचकांक लगभग 40 प्रतिशत है, और इसकी पिछड़ी और आगे की भागीदारी भी कम है यानी क्रमशः 22 और 19 प्रतिशत. भारत लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक, एलपीआई (Logistics performance index-LPI) जैसे अंतरराष्ट्रीय दक्षता सूचकांकों में भी ख़राब प्रदर्शन करता है, जो वैश्विक बाज़ार में इसकी प्रतिस्पर्धात्मकता में रुकावटें पैदा करता है. भारत एलपीआई के संबंध में 160 देशों में 44वें स्थान पर है, जो चीन, ताइवान, वियतनाम, थाईलैंड आदि जैसे अपने कई प्रतिस्पर्धियों से नीचे है. एशिया डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) द्वारा किए गए एक समान अध्ययन से पता चलता है कि भारत के शीर्ष जीवीसी निर्यात गंतव्य हैं यूएसए, सिंगापुर, चीन, इंडोनेशिया, जापान, जर्मनी, फ्रांस, तुर्की, इटली और दक्षिण कोरिया.

संयुक्त अरब अमीरात, भारत के लिए सबसे बड़े निर्यात स्थलों में से एक होने के बावजूद, इस सूची में नहीं आता है. इंडिया मार्ट की स्थापना और अबू धाबी में विशेष औद्योगिक और उन्नत प्रौद्योगिकी क्षेत्रों के लिए संयुक्त अरब अमीरात और भारतीय कंपनियों द्वारा निवेश को प्रोत्साहित करना और लॉजिस्टिक व सेवाओं, फार्मास्यूटिकल्स, चिकित्सा उपकरणों, कृषि व कृषि के क्षेत्रों, तकनीक और स्टील व एल्युमीनियम के क्षेत्र में मौजूदा और भविष्य के विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थानीय मूल्य श्रृंखलाओं को एकीकृत करना दोनों देशों के बीच मूल्य श्रृंखला को एकीकृत करने की दिशा में सराहनीय कदम हैं.

इस समझौते से पहले और आगे की भागीदारी बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन भारत के लिए ज़रूरी है कि वह अपनी जीवीसी भागीदारी को बढ़ाने के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण के अपनाए इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस के उपरोक्त अध्ययन के अनुसार, भारत को न केवल घरेलू बाज़ार के लिए, बल्कि अधिक से अधिक जीवीसी लिंकेज बनाने के लिए भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, एफडीआई (FDI) को बढ़ावा देने से जुड़ी नीतियों की ज़रूरत है. यह अध्ययन नीतियों को तैयार करने पर ज़ोर देता है जो देश की प्रमुख फर्मों का पोषण करें. इस अध्ययन में सुझाए गए सुधार से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कस्टम क्लीयरेंस से जुड़े प्रशासनिक बोझ में कमी, उत्पादों का पता लगाने की क्षमता और मूल्य श्रृंखला के साथ मानकों की पारस्परिक मान्यता शामिल है. इसलिए, व्यापक साझेदारी का पूरा लाभ उठाने के लिए, भारत को बेहतर मूल्य श्रृंखला एकीकरण के लिए तत्काल में अपनाए जाने वाले दृष्टिकोण के बजाय एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है.

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Apoorva Lalwani

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Apoorva Lalwani was an Associate Fellow with ORFs Geoeconomic Studies Programme. Her research focuses on data localisation multi-modal connectivity and WTO issues and their impact ...

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