Author : Ramanath Jha

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

बेहतर जीवन शैली के लिए, शहर योजनाकार के लिए अतिरिक्त आबादी को ध्यान में रखने की जरूरत है जो सार्वजनिक हरे भरे स्थानों के आवंटन के दौरान, विशाल शहरीकरण की वजह से प्रवाहित होगी. 

सार्वजनिक हरे भरे स्थानों और शहरी जनसंख्या के बीच के संबंध
सार्वजनिक हरे भरे स्थानों और शहरी जनसंख्या के बीच के संबंध

शहरों के सार्वजनिक स्थलों पर हरे भरे स्थानों के आवंटन के प्रमुख तरीके की मदद से शहरी योजनाकार, शहरों में, बेहतर गुणवत्तापरक जीवन देने की कोशिश कर रहे है. हर भर स्थान अर्थात ग्रीन स्पेस शहरी पर्यावरण की सहायता करती है, और शहर के सौंदर्यशास्त्र, मनोरंजन, स्वास्थ्य, और समग्र शहरी स्थिरता को और भी बेहतर करती है. निजी ग्रीन स्पेस के इतर, ये क्षेत्र सभी नागरिकों के मनोरंजन हेतु सुलभ है. इनकी सार्वभौमिक उपलब्धता और बेहतर हो सकती है अगर इन क्षेत्रों को शहर के चारों ओर फैला दिया जाए और ये विभिन्न रूप ले लें – वॉकवे, क्रीडा क्षेत्र, बच्चों के लिए क्षेत्र, पालतू जानवरों के लिए, और ऐसे ही अन्य खुले और सुलभ क्षेत्र जिन्हें विभिन्न मानवीय मनोरंजन योग्य ज़रूरतों के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके. एक पदानुक्रम का पालन करते हुए, वे विभिन्न आकार के भी हो सकते है; एक बड़े शहरी क्षेत्र की सेवा हेतु डिजाइन किए गए बहुत बड़े पार्क, काफी कम संख्या में हो सकते है; प्रांतीय पब्लिक के लिए बने ग्रीन क्षेत्रों का उद्देश्य सिर्फ एक खास प्रांत के लिए भर हो सकता है और पड़ोसी क्षेत्र का निर्माण छोटे छोटे पड़ोसियों को ध्यान में रख कर किया गया हो. और पब्लिक ग्रीन क्षेत्र के जरिए समीपता की अवधारणा और विविध जनसंख्या समूह में ऐसे विभेदित योजनाओं द्वारा निर्विवाद रूप से उसकी उपयोगिता पर जोर दिया जाता है.

जनसंख्या या फिर भौगोलिक क्षेत्र के परिमाप आधारित स्थानिक आवश्यकताओं को उचित तरीके से परिभाषित किया जाना चाहिए.

हालांकि, एक सवाल जिसका जवाब सभी शहरी योजनाकारों को देना चाहिए वो है – कि एक शहर के भीतर किस हद तक हरे क्षेत्रों को स्थापित किए जाने का प्रावधान किया जाना चाहिए. शहरी योजनाकारों ने विस्तृत रूप से इस हेतु दो रास्ते सुझाए है – जनसंख्या या फिर भौगोलिक क्षेत्र के परिमाप आधारित स्थानिक आवश्यकताओं को उचित तरीके से परिभाषित किया जाना चाहिए. अर्जित करने और बनाए रखने के लिए, बाद वाला तरीका ज्यादा सरल है. उदाहरण के लिए, अगर किसी शहर का भौगोलिक विस्तार 100 वर्ग किलोमीटर की परिधि मे फैला हुआ है और ग्रीन एरिया के लिए अधिग्रहित जगह कुल उपस्थित क्षेत्र का 10 प्रतिशत है तो, शहर योजना के अंतर्गत पब्लिक ग्रीन क्षेत्र के लिए 10 स्क्वायर किलोमीटर ज़मीन अधिग्रहित की जाएगी. समय के साथ ये प्रतिशत पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता है, चूंकि ये भूगोल से संबंधित है और मानव घनत्व से किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं होता है,चाहे शहर में कितने भी व्यक्ति ही क्यों ना आ जाए. अगर की शहर अपने भौतिक क्षेत्र को और विस्तार देता हो, तो फिर नए नए अधिग्रहित भूगोल में, उसी निर्धारित बेंचमार्क अनुपात के आधार पर और भी ग्रीन क्षेत्रों का निर्धारण किया जा सकता है. हालांकि, इस बेंचमार्क के निर्धारण की पद्धति की कमजोरी यही है कि अधिक जनसंख्या के साथ, पब्लिक ग्रीन क्षेत्रों को और भी ज्यादा आबादी घनत्व के साथ बांटा जा सकता है. अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस मनोरंजन का एक छोटा खंड प्राप्त होता है.

भारत का अर्बन और रीजनल डेवलपमेंट प्लांस और फॉर्म्यूलैशन एण्ड इम्प्लीमेंटेशन (यूआरडीपीएफआई) गाइडलाइंस के प्रस्तावना के अनुसार प्रति व्यक्ति 10-12 स्क्वायर मीटर के पब्लिक ओपन स्पेस का प्रावधान किया जाना चाहिए.

पब्लिक ग्रीन क्षेत्र को परिभाषित करने का एक अलग तरीका है. संयुक्त राष्ट्र, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य इस पद्धति  का अनुपालन करते है. भारत का अर्बन और रीजनल डेवलपमेंट प्लांस और फॉर्म्यूलैशन एण्ड इम्प्लीमेंटेशन (यूआरडीपीएफआई) गाइडलाइंस के प्रस्तावना के अनुसार प्रति व्यक्ति 10-12 स्क्वायर मीटर के पब्लिक ओपन स्पेस का प्रावधान किया जाना चाहिए. सैद्धांतिक रूप से ये काफी तार्किक और टिकाऊ प्रतीत होता है. इसके द्वारा यह अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रति व्यक्ति कितना खुला पब्लिक क्षेत्र की ज़रूरत है. और उस अनुसार उक्त मापदंड को पूरा किया जा सके. अब जो सवाल यहाँ उत्पन्न होता है वो ये की इस मापदंड को अर्जित करने के लिए, यहाँ ज्यादातर जनसंख्या स्वचालित रूप से निर्धारित हो जाती है. इसलिए अगर शहर में प्रति व्यक्ति 10 स्क्वायर मीटर जगह के प्रावधान निर्धारित की जाती है, और अगर शहर 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई हो तो, शहर में अगर ज्यादा से ज्यादा 1,000,000 लोगों की आबादी है तो इस आदर्श प्रमाणक का अनुपालन आसानी से किया जा सकता है. ज्यों ही जनसंख्या अगर उपरोक्त आंकड़ों से ऊपर जाती है, तो तय किए गए मानक बिखर जाते है और प्रति व्यक्ति ये और भी छोटे पड़ जाते है. इसलिए अगर, इस आवंटित क्षेत्र के सामने, शहर की आबादी 2,000,000 व्यक्ति के अनुसार बढ़ जाए तो, पब्लिक ग्रीन स्पेस की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 5 मीटर से भी कम हो जाएगी. इस होने वाली कमी की भरपाई को शहर में अतिरिक्त ग्रीन स्पेस मुहैया करा कर पूरा किया जा सकता है. हालांकि, अतिरिक्त पब्लिक ग्रीन क्षेत्रों के पुनरावंटन के लिए जरूरी खाली एरिया ढूँढने की गुंजाइश काफी कम है चूंकि शेष बचे जमीन को पहले ही समान रूप से अन्य नागरिक उद्देश्यों के लिए चिन्हित किया जा चुका होगा.

महानगरों में योजना

भारतीय महानगर और मेगा सिटी के परिप्रेक्ष्य में, पिछले कई दशकों से यही होता आ रहा है. ज्यों ज्यों शहरीकरण बढ़ती जा रही है और शहरों मे रहने वाले लोगों का घनत्व बढ़ता जा रहा है, तो पोषित मानकों का अपने पूर्वस्थापित मापडंडों को अर्जित कर पाना काफी दुष्कर होता जा रहा है. ये घटनाएं निश्चित तौर पर जीवन मानकों की गुणवत्ता मापदंडों के साथ मात्र एक समझौता ही है. दुर्भाग्य से, इस वक्त पर, प्रतीत होता है कि शहरी योजनाकारों नें अबतक इस पहेली को सुलझाने की दिशा में कोई पहल नहीं की है. हर दो दशक में जो योजना अभ्यास, शहरी योजनाकार बनाते है, वो अगले दो दशक में, शहर में आने वाले अतिरिक्त आबादी को ध्यान में रखते हुए, उसकी गणना हेतु वही पुरानी पद्धति का अनुपालन करते है, और फिर उसके अनुसार इन अतिरिक्त आबादी को योजना के मानक अनुकूल सुविधाएं प्रदान करने की योजना बनाते है. शहर के भीतर बाकी अन्य सेवाओं की व्यवस्था को भली भांति प्रबंधित किया जा सकता है चूंकि लोग इस आवंटित स्थानों में और भी ज्यादा और ऊंचा निर्माण कर सकते है. व्यावसायिक प्रतिष्ठान, ऑफ़िस, स्कूल और अस्पताल आदि और भी जगह प्रदान करके और ऊंची और लंबी इमारतों का निर्माण करके और अधिक लोगों को समायोजित कर सकते है. हालांकि, पब्लिक ग्रीन क्षेत्र, अपने स्वभाव के अनुकूल, क्षैतिज क्षेत्र से संबंधित है और इसलिए वे लम्बवत नहीं जा सकते हैं. कुछ शहरों नें, रुफ टॉप गार्डन या पोडियम ग्रीन स्पेस के जरिए भी ग्रीन क्षेत्र जोड़ने की चेष्टा की हैं. ये हालांकि, उन समुदाय द्वारा काफी पसंद किया गया है जो इन संरचनाओं में रहते हैं, जिनमे ये सुविधाएं है परंतु ऐसे क्षेत्रों को सही मायने में, पब्लिक ग्रीन स्पेस नहीं कहा जा सकता है.

तार्किक निष्कर्ष जो निकलता है वो ये कि शहरों को पब्लिक ग्रीन क्षेत्र के परिप्रेक्ष्य में एक निर्धारित मानक का अनुपालन करना चाहिए, उन्हें या तो उच्च प्रतिशत से शुरुआत करनी चाहिए

तार्किक निष्कर्ष जो निकलता है वो ये कि शहरों को पब्लिक ग्रीन क्षेत्र के परिप्रेक्ष्य में एक निर्धारित मानक का अनुपालन करना चाहिए, उन्हें या तो उच्च प्रतिशत से शुरुआत करनी चाहिए , बोले तो 10 वर्ग मीटर के बजाय 15 वर्ग मीटर प्रति व्यक्ति दिए जाने का प्रावधान होना चाहिए और मानक को समाप्त होने देना चाहिए और एक समय के बाद बढ़ती जनसंख्या के आधार पर निर्धारित मानक के करीब समायोजित की जाए. हालांकि, अगर आबादी इसी तरह से अपने अपेक्षित संख्या से भी ज्यादा तीव्रतर रूप से बढ़ना जारी रखे तो इस चाल की भी खुद की सीमाएं हो सकती है.

जो एक चीज़ आधुनिक शहरों को अपने ज़हन में रखनी चाहिए वो सिर्फ जीवन की गुणवत्ता की जरूरत ही नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन जैसे नए कारक भी है जो शहरों को अत्याधिक प्रभावित कर रहे है. इसे हम कम समय में होने वाली अत्याधिक बारिश के रूप में भी देख सकते है जिस वजह से अतीत में शहरी बाढ़, असामान्य रूप से बहती गरम हवा (लू) आदि देखे गए है, और स्वास्थ्य आपात स्थिति जैसे महामारी, जिनमें कोविड 19 के लगातार बढ़ते प्रकोप से जूझते शहर भी देखे हैं. ऐसे चंद केसों में, जलवायु परिवर्तन की अनिवार्यता ये सुझाव देती है कि उच्च जनसंखिकीय और बढ़ते घनत्व, शहर की स्थिरता के लिए हानिकारक होगा.जल निकासी को और भी बड़ी पारगम्यता की आवश्यकता पड़ती है, और इसलिए, भरपूर हरे भरे स्थान; गर्मी की लहर को कम निर्मित घनत्व की आवश्यकता है और बड़ा हरा आवरण जो गर्मी को फैलने देगी और महामारी और भी पतली जनसांख्यिकी की मांग करती है, ताकि दो परस्पर लोगों के बीच एक सुरक्षित दूरी का ध्यान रखा जा सके ताकि लोगों से लोगों तक रोग के हस्तांतरण को रोका जा सके. जैसे जैसे शहर में लोगों की संख्या और जनसंख्या घनत्व भी बढ़ता जाता है वैसे वैसे जलवायु परिवर्तन की घटनाएं और भी मुश्किल होती जाती है.

शहरों के विकास की योजनाओं को बनाते बनाते, जहां हर 20 वर्षों के दरम्यान अनुमानित मानव जनसंख्या के ऊपर की ओर होने वाले संशोधन की योजना पद्धति को अब पूरी तरह से त्याग दिया जाना चाहिए. 

इसलिए, अंततः ,काफी वक्त हो चुका है, शहरों के विकास की योजनाओं को बनाते बनाते, जहां हर 20 वर्षों के दरम्यान अनुमानित मानव जनसंख्या के ऊपर की ओर होने वाले संशोधन की योजना पद्धति को अब पूरी तरह से त्याग दिया जाना चाहिए. अंत जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए, नए सिरे से शहरी योजना की शुरुआत की जानी चाहिए. अगर शहर को ऐसा महसूस होता है कि वो  जनसंख्या की उस निर्धारित संख्या तक शीघ्र ही पहुँच रहा है तो शहर में ऐसी किसी भी गतिविधि को तुरंत प्रभाव से रोक दिया जाना बल्कि विशेष परिस्थिति में उसे फ्रीज़ कर दिया जाना चाहिए जो और नागरिकों को जोड़ता हो. स्वाभाविक रूप से इसके माने ये बिल्कुल ही नहीं कि शहरीकरण  को रोक दिया जाए. इसका मतलब ये है कि किसी अन्य शहर की अर्थव्यवस्था में बड़े निवेशों और भौतिक और सामाजिक संरचनाओं की मदद से शहरीकरण को बल देना. किसी शहर की गतिशीलता, हो सकता है कि किसी योजना के अमलिकारण को रोक दें और इस धारा के साथ समायोजन करने की जरूरत पड़े. हालांकि, ये कोई कठिन कार्य नहीं हैं.  ना ही कोई स्थायी विकल्प नजर आता है. जलवायु परिवर्तन की जरूरत और गुणवत्तापरक जीवें के लिए, ऐसे कई प्रयास किए जाने की जरूरत है. बढ़ते शहरों का घनत्व अब किसी भी हाल में, अब कोई विकल्प नहीं लगता है, अगर शहरी लचीलापन एक उद्देश्य बना हुआ हो तो.

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