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बदलते क्षेत्रीय समीकरणों के बीच सुरक्षा, संपर्क और रणनीतिक तकनीकी सहयोग को प्राथमिकता देते हुए भारत और अमेरिका हिंद-प्रशांतक्षेत्र में अपने सरोकार को और गहरा कर रहे हैं.
Image Source: Getty
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस के अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुआती दिनों में और तेजी से बदलते रणनीतिक समीकरणों के बीच पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा संपन्न हुई. दोनों नेताओं के बीच के दोस्ताना रिश्ते जगजाहिर हैं और इन रिश्तों की गर्माहट ने ही बहुत हद तक नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच के संबंधों को दिशा भी प्रदान की है. ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान, भारत और अमेरिका ने हिंद-प्रशांतक्षेत्र में तालमेल को आगे बढ़ाने के मामले में महत्वपूर्ण प्रगति की थी. हालांकि, अमेरिका ऐतिहासिक रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र की भू-राजनीतिक और सिक्योरिटी आर्किटेक्चर में भारी निवेश करता रहा है, हाल की चीन की बढ़ती पैठ ने वाशिंगटन को नई दिल्ली के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के लिए निश्चय ही बाध्य किया है. जहां तक भारत का सवाल है, अपने भू-राजनीतिक हितों को सुरक्षित करने की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण इलाका होने के कारण इस क्षेत्र ने हिंद-प्रशांत पर हमेशा से अपना ध्यान केंद्रित रखा है. प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा कई मायनों में हिंद-प्रशांत के प्रति अमेरिका की निरंतर प्रतिबद्धता को फिर से रेखांकित करने वाली रही. पहली बात, ट्रंप के एजेंडे में शामिल अन्य चीज़े, जिसमें अभी चल रहे दो युद्धों का समाधान ढूंढ़ना और इमीग्रेशन जैसे घरेलू मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है, इसके अलावा, ट्रंप के नेतृत्व वाले नए प्रशासन ने द्विपक्षीय बैठकों के लिए दो प्रमुख हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों - जापान और भारत को प्राथमिकता दी है. दूसरी बात, ट्रंप के शपथ ग्रहण के ठीक एक दिन बाद आयोजित Quad देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक ने मजबूत क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की निरंतरता का स्पष्ट संकेत दिया है. तीसरी बात, अमेरिका और चीन के बीच की प्रतिस्पर्धा विदेशों में अमेरिका की भूमिका को आकार देने में मार्गदर्शक शक्ति का काम करती रहेगी.
जहां तक भारत का सवाल है, अपने भू-राजनीतिक हितों को सुरक्षित करने की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण इलाका होने के कारण इस क्षेत्र ने हिंद-प्रशांत पर हमेशा से अपना ध्यान केंद्रित रखा है. प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा कई मायनों में हिंद-प्रशांत के प्रति अमेरिका की निरंतर प्रतिबद्धता को फिर से रेखांकित करने वाली रही.
दोनों नेताओं के बीच के संयुक्त वक्तव्य ने भले ही हिंद-प्रशांत सुरक्षा के संदर्भ में द्विपक्षीय प्रतिबद्धता की सोच में निरंतरता को मजबूत किया हो, लेकिन यह भी सच है कि ट्रंप प्रशासन का दृष्टिकोण अतीत से अलग हो सकता है. अपने सहयोगियों से बढ़ती अपेक्षाओं की व्यापक भावना वर्तमान ट्रंप प्रशासन की कार्यप्रणाली का एक प्रमुख हिस्सा हो सकती है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोगियों, मित्रों और भागीदारों के मुकाबले स्ट्रेट ऑफ़ मलक्का के दोनों किनारों के देशों के मामले में यह अलग तरह से हो सकता है. पैसिफिक क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र बना है जो संघर्ष और तीव्र संघर्ष की संभावना से बहुत अधिक निकटता से जुड़ा हुआ है. दूसरी ओर, हिंद महासागर कनेक्टिविटी परियोजनाओं, मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR), ख़ोज और बचाव (SAR) और ख़ुफ़िया, निगरानी और सर्वेक्षण (ISR) द्वारा समर्थित मानव और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए एक दूसरी परत बनाएगा.
उद्योग साझेदारी और सह-उत्पादन को बढ़ाने के लिए संयुक्त वक्तव्य में घोषित ऑटोनॉमस सिस्टम इंडस्ट्री अलायन्स (ASIA) की पहल हिंद महासागर में क्षेत्रीय सुरक्षा की इस दूसरी परत के लिए सबसे महत्वपूर्ण है. अत्याधुनिक समुद्री प्रणालियों और उन्नत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस काउंटर अनमैन्ड एरियल सिस्टम (UAS) और टोड ऐरे सोनार का सह-विकास और सह-उत्पादन, जो एंटी-सबमरीन युद्ध (ASW) में और सूचना एकत्र करने के लिए उपयोग की जाने वाली कम आवृत्ति प्रणाली हैं, हिंद महासागर और हिंद-प्रशांतमें क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए अब तैयार हैं. इसके अलावा, US -इंडिया ट्रांसफॉर्मिंग द रिलेशनशिप यूटिलाइजिंग स्ट्रेटेजिक टेक्नोलॉजी (TRUST) नामक पहल की परिकल्पना सेमीकंडक्टर, महत्वपूर्ण खनिजों, उन्नत सामग्रियों और फार्मास्यूटिकल्स जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिए भरोसेमंद और लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं का एक इकोसिस्टम बनाने के लिए की गई है.
भारत के लिए, हिंद महासागर हिंद-प्रशांत में अपनी सुरक्षा के लिए केंद्रीय बिंदु है, जबकि, अमेरिका के लिए, हिंद-प्रशांतसुरक्षा के मायने ताइवान स्ट्रेट और दक्षिण चीन सागर जैसे महत्वपूर्ण थिएटरों पर महत्वपूर्ण ध्यान केंद्रित करना है.
भारत और अमेरिका के बीच जिओ-पोलिटिकल तालमेल में निरंतर गति हमेशा रही है हालांकि हिंद महासागर क्षेत्र के प्रति नई दिल्ली और वाशिंगटन के नीति दृष्टिकोण के संबंध में कुछ रणनीतिक मतभेद अब भी बने हुए हैं. भारत के लिए, हिंद महासागर हिंद-प्रशांत में अपनी सुरक्षा के लिए केंद्रीय बिंदु है, जबकि, अमेरिका के लिए, हिंद-प्रशांतसुरक्षा के मायने ताइवान स्ट्रेट और दक्षिण चीन सागर जैसे महत्वपूर्ण थिएटरों पर महत्वपूर्ण ध्यान केंद्रित करना है. ऐसे में जबकि अमेरिका व्यापक हिंद-प्रशांत रूब्रिक के तहत हिंद महासागर की ओर रणनीतिक ध्यान केंद्रित करे हुए है, पश्चिमी हिंद महासागर INDOPACOM (US हिंद-प्रशांतकमांड) के भौगोलिक दायरे से बाहर बना हुआ है.
हालांकि, संयुक्त बयान में जो बात सामने आई, वह हिंद महासागर के संदर्भ में सामान्य से हटकर थी. प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच हाल ही में हुई बैठक के दौरान, एक नई पहल, जिसका नाम इंडो पेसिफिक स्ट्रेटेजिक वेंचर है, उसकी घोषणा की गई. इसके अलावा, हिंद महासागर में कनेक्टिविटी के एजेंडे को एक अंडर सी केबल परियोजना के क्रियान्वयन में कई अरब डॉलर की लागत वाली कई साल की निवेश की घोषणा के साथ इसे बढ़ावा मिला है. यह कदम इस क्षेत्र में डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देगा.
प्रधानमंत्री मोदी की हाल की अमेरिका यात्रा के दौरान कई अन्य नई पहलों से मोदी और ट्रंप के नेतृत्व में भारत-अमेरिका संबंधों की एक आशाजनक भविष्य का स्पष्ट संकेत मिलता है. नई कनेक्टिविटी योजनाओं की मूल सोच में हिंद महासागर पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा इस क्षेत्र में नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच सार्थक तालमेल की कमी को दूर करना भी है. जबकि दोनों देशों के लिए आर्थिक और डिजिटल कनेक्टिविटी महत्वपूर्ण है, लेकिन हिंद महासागर में मजबूत सुरक्षा साझेदारी के लिए सहयोग और साझेदारी को मजबूत करने के एक नए दृष्टिकोण के लिए आवश्यक है.
हिंद महासागर, जो मध्य पूर्व क्षेत्र और पूर्व में पैसिफिक क्षेत्र तक फ़ैला हुआ है, ये वही दो क्षेत्र हैं जहां ट्रंप अपने दूसरे प्रशासन के तहत अपनी स्थिति को फिर से स्थापित करना चाहता है और मोदी और ट्रंप की बैठक के बाद घोषित योजना इसके लिए महत्वपूर्ण होगी.
हिंद महासागर को दी जा रही यह बढ़ती प्राथमिकता व्यापक हिंद-प्रशांतक्षेत्र के भीतर इस क्षेत्र के स्ट्रेटेजिक महत्व के मुद्दे पर भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती आम सहमति को भी दर्शाती है. भारत और अमेरिका के नेताओं के बीच हाल ही में हुई द्विपक्षीय बैठक से ऐसा लगता है कि कनेक्टिविटी का मुद्दा भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती समुद्री साझेदारी के भविष्य का आधार बनेगा और दोनों देशों को अपना ध्यान सुरक्षा पर केंद्रित करना होगा. हिंद महासागर में रिसर्च वेसल भेजकर और हिंद महासागर के तटवर्ती राज्यों के बीच अपने राजनीतिक प्रभाव का विस्तार करके क्षेत्र में चीन की बढ़ती सरगर्मी से उत्पन्न व्यापक ख़तरों के कारण हिंद महासागर की सुरक्षा स्थिति अस्थिर बनी हुई है. इसके अलावा, पश्चिमी हिंद महासागर में समुद्री डकैती और समुद्री आतंकवाद की बढ़ती घटनाएं क्षेत्र में कनेक्टिविटी बढ़ाने के प्रयासों के लिए भी ख़तरा बनी हुई हैं.
मोदी और ट्रंप बैठक के बाद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में 'शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और आर्थिक गलियारों में निवेश' करने की योजना की घोषणा की गई. हिंद महासागर, जो मध्य पूर्व क्षेत्र और पूर्व में पैसिफिक क्षेत्र तक फ़ैला हुआ है, ये वही दो क्षेत्र हैं जहां ट्रंप अपने दूसरे प्रशासन के तहत अपनी स्थिति को फिर से स्थापित करना चाहता है और मोदी और ट्रंप की बैठक के बाद घोषित योजना इसके लिए महत्वपूर्ण होगी. चूंकि भारत और अमेरिका अगले छह महीनों में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर और I2U2 (भारत, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका) समूह के भागीदारों को बुलाकर एक अंतर-क्षेत्रीय संपर्क परियोजना पर काम करना चाहते हैं, इसलिए हिंद महासागर में भारत की भागीदारी व्यापक और अधिक होने की संभावना है. इस क्षेत्र में भले ही भारत अमेरिका के साथ साझेदारी कर रहा हो लेकिन उसके लिए अपने अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों लक्ष्यों के प्रति सचेत रहना महत्वपूर्ण है. हिंद-प्रशांत इलाक़े के सबसे बड़े देश के रूप में, इस क्षेत्र में आपसी हितों और संवेदनशीलताओं को संतुलित करना भारत के लिए महत्वपूर्ण है. यह भी ज़रूरी है कि भारत डिजिटल हाइवेज के माध्यम से विशाल हिंद महासागर को जोड़ने और निजी निवेश लाने के अपने प्रयास में निरंतर लगा रहे. इस क्षेत्र को आसपास के डोमेन के साथ जोड़ने में अपनी स्थिति का लाभ उठाना भी शायद भारत के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है.
सायंतन हलदर ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रेटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
विवेक मिश्रा ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रेटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में डेप्युटी डायरेक्टर हैं.
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Sayantan Haldar is a Research Assistant at ORF’s Strategic Studies Programme. At ORF, Sayantan’s research focuses on Maritime Studies. He is interested in questions of ...
Read More +Vivek Mishra is Deputy Director – Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. His work focuses on US foreign policy, domestic politics in the US, ...
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