ये लेख रायसीना क्रॉनिकल्स 2024 श्रृंखला का हिस्सा है
रायसीना डायलॉग अब भारत का रूपक बनकर उभरा है. इसने अपना नाम उस रायसीना की पहाड़ी से लिया है, जहां से भारत सरकार संचालित होती है. जहां भारत सरकार के ऑफिस हैं. जहां भारत की विराटता का प्रतीक राष्ट्रपति भवन स्थित है. पिछले आठ साल में रायसीना डायलॉग के नाम से होने वाले इस सालाना सम्मेलन का आकार और अहमियत उसी तेज़ी से बढ़ी है, जैसे इस दौरान भारत का क़द बढ़ा है.
पहले भारत ये चाहता था कि वैश्विक मुद्दों पर उसे सम्मान दिया जाए लेकिन अब भारत चाहता है कि उसकी बात सुनी जाए. भारत अब मुखर होकर वैश्विक मुद्दों पर अपनी बात रखने लगा है.
मैं पिछले कई साल से रायसीना डायलॉग में शामिल होता रहा हूं. निजी तौर पर भी और कोविड-19 महामारी के दौरान वर्चुअल तरीके से भी मैं इसमें शामिल हुआ हूं. ये मेरा सौभाग्य है कि इस दौरान मुझे इन दोनों, रायसीना डायलॉग और भारत, को तरक्की करते हुए देखने का करीब से मौका मिला. रायसीना डायलॉग की शुरुआत 2016 में हुई. तब इसका फोकस क्षेत्रीय स्तर पर ही था. पहले रायसीना डायलॉग में महज 100 वक्ता और सम्मेलन कक्ष में 600 लोग थे लेकिन पिछले कुछ साल में इस सम्मेलन का आकार तेज़ी से बढ़ा है. अब इसमें उपस्थित होने वालों की संख्या 2,600 तक पहुंच गई है. करीब 100 देशों के वक्ता इसमें शामिल होते हैं. अपने इस सफ़र के दौरान रायसीना डायलॉग अब एक ऐसा मंच बन चुका है जिसमें दुनियाभर के नीति निर्माता, बड़े कारोबारी, विचारक, सैनिक कमांडर्स और छात्र शामिल होना चाहते हैं. खास बात ये है कि इसी अवधि में भारत ने भी तेज़ आर्थिक वृद्धि की है और वैश्विक स्तर पर भारत का प्रभाव बढ़ता जा रहा है.
भारत का बढ़ता कद
इस तरह अगर देखा जाए तो रायसीना डायलॉग अब भारत का प्रतिबिंब बन चुका है. रायसीना डायलॉग ने भारत का प्रचार भी किया है और भारत की बढ़ती हैसियत से रायसीना डायलॉग को फ़ायदा भी हुआ है. भारत ने वैश्विक स्तर पर स्वघोषित "संशय" से घिरे से लेकर "आत्मविश्वास" से भरे देश का सफर तय कर लिया है. अब भारतीय नेता भी ये बात कहने लगे हैं कि पहले भारत ये चाहता था कि वैश्विक मुद्दों पर उसे सम्मान दिया जाए लेकिन अब भारत चाहता है कि उसकी बात सुनी जाए. भारत अब मुखर होकर वैश्विक मुद्दों पर अपनी बात रखने लगा है. हालांकि इसके साथ ही कई लोग ये भी कह रहे हैं कि भारत को अति आत्मविश्वास से बचने की ज़रूरत है. फिर भले ही वो दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन गया है. चीन को पीछे छोड़कर दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है. ब्रिटेन को पीछे छोड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. राजनयिक तौर पर उसका प्रभाव बढ़ता जा रहा है. सिर्फ 2023 में ही भारत ने जी-20 सम्मेलन, त्रिपक्षीय आयोग और क्रिकेट वर्ल्ड कप का आयोजन किया.
अंगर संक्षेप में कहें तो ये भारत के लिए रोमांचक वक्त है और ये सही भी है. रायसीना डायलॉग भी वैश्विक स्तर पर प्रभावशाली तरीके से बढ़ रही भारत अहमियत में उसके साथ है. दोनों का एक साथ बढ़ना इस बात की पुष्टि करता है. जैसे-जैसे दुनियाभर में भारत का महत्व और नेतृत्व बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ही रायसीना डायलॉग का प्रभाव तो और भी ज़्यादा बढ़ा है.
2023 के संस्करण में तो रायसीना डायलॉग ने इतने बेहतर तरीके से इस बात के सबूत पेश किए कि वैश्विक स्तर पर अब "भारत का समय आ गया है". ऐसा इससे पहले कभी नहीं देखा गया था. रायसीना डायलॉग के उस आंकलन को बड़े मीडिया संस्थानों की रिपोर्ट्स में प्रमुखता से दिखाया गया था और उनके साथ क्वाड देशों (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत)के विदेश मंत्रियों की तस्वीर प्रकाशित की गई. रायसीना में उनके साथ दुनियाभर के कई मौजूदा और पूर्व राष्ट्राध्यक्ष, विदेश मंत्री, सैनिक कमांडर्स, विचारक, खुफिया एजेंसियों के अधिकारी, पत्रकार, संपादक शामिल थे. करीब 100 लोगों के पैनल ने अलग-अलग मुद्दों पर सार्थक चर्चा की.
रायसीना डायलॉग में ना सिर्फ भारत का प्रतिबिंब दिखता है बल्कि इसने ही ये संकेत दिया था कि वैश्विक स्तर पर भारत का प्रभाव बढ़ने वाला है.
अब ये बताने की ज़रूरत तो है नहीं कि वैश्विक स्तर पर कभी-कभार भारत की अनूठी और और कुछ लोगों के हिसाब से भारत की अस्पष्ट भूमिका पर चर्चा भी रायसीना डायलॉग में शामिल रही. उदाहरण के लिए 2016 में मैंने भारत के तत्कालीन विदेश सचिव एस जयशंकर को ये सलाह दी थी कि भारत को अब ये तय कर लेना चाहिए कि वो दुनिया में किसके साथ है. तब इसका जवाब देते हुए जयशंकर ने कहा था कि "हमने तय कर लिया है. हम भारत के साथ हैं". इन दो वाक्यों से भारत की उभरती हुई वास्तविकता स्पष्ट और सारगर्भित रूप से ज़ाहिर हो जाती है. ऐसे में इस बात पर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि वैश्विक मुद्दों पर एस जयशंकर अब भी भारत के इसी रूख को दोहराते हैं. एस जयशंकर फिलहाल भारत के विदेश मंत्री हैं और वो हर साल रायसीना डायलॉग को संबोधित भी करते हैं.
इसका मतलब ये है कि भले ही भारत ने क्वाड में अपनी सदस्यता को पूरी तरह स्वीकार लिया है, भले ही वो भारत में अमेरिका के बढ़ते निवेश का स्वागत कर रहा, भले ही अमेरिका के साथ भारत का व्यापार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है, भले ही भारत ने लोकतांत्रिक मूल्यों और कानून के शासन को स्वीकार कर लिया है, फिर भी स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करते हुए भारत ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस , इंडिया, चीन और साउथ अफ्रीका)संगठन का सदस्य है. यूक्रेन पर रूस के हमले के बावजूद भारत सस्ती दर पर रूस से तेल खरीद रहा है. बहुपक्षीय मंचों पर भारत ग्लोबल साउथ देशों का अगुआ और उनकी आवाज़ बनने की कोशिश कर रहा है. ये सब कुछ रायसीना डायलॉग में भी दिखता है. यही वो नीतियां है जो वैश्विक स्तर पर भारत की नई पहचान को आकार दे रही हैं. इनमें से कुछ नीतियां की अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा सराहना की जाती है, कुछ नीतियों को ब्रिक्स और बाकी देश अपनाते हैं. अब भारत ये सुनिश्चित करना चाहता है कि ग्लोबल साउथ की आवाज़ और 'बाकी देशों के उदय' को पश्चिमी देशों के नेता भूलें नहीं.
कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि रायसीना डायलॉग भी अब दुनियाभर में प्रतिष्ठित म्यूनिख सिक्योरिटी फोरम और शंगरी-ला डायलॉग के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है. ये भी एक ऐसा सम्मेलन बन गया है, 'जहां सब आना चाहते हैं' क्योंकि रायसीना डायलॉग में ना सिर्फ भारत का प्रतिबिंब दिखता है बल्कि इसने ही ये संकेत दिया था कि वैश्विक स्तर पर भारत का प्रभाव बढ़ने वाला है. खास बात ये है कि रायसीना डायलॉग को दुनिया में भारत के उदय का लाभ मिला और इसने भी दुनिया में भारत का प्रभाव बढ़ाने में योगदान दिया. इसके अलावा रायसीना डायलॉग ने भारत को दुनिया में वो जगह हासिल करने में मदद की, जहां भारत खुद को देखना चाहता है. ऐसे करते हुए रायसीना डायलॉग सच्चे अर्थों में एक प्रेरक, जानकारी से भरा और आनंद देने वाला मंच बन चुका है. मुझे उम्मीद है कि आने वाले कई साल तक मैं इसमें शामिल होता रहूंगा.
डेविड पेट्रियस अमेरिकी ख़ुफिया एजेंसी के पूर्व निदेशक और अमेरिकी सेना के सेवानिवृत जनरल हैं
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