Published on Dec 15, 2022 Updated 1 Days ago

उत्तर कोरिया जिस रफ़्तार से मिसाइल और परमाणु हथियारों का विकास कर रहा है, उससे उसके पड़ोसी देशों के लिए ख़तरा बढ़ गया है.

उत्तर कोरिया का ख़तरा: कोरियाई प्रायद्वीप में शांति स्थापना के लिए रूपरेखा 2.0 की ज़रूरत!

रूस और यूक्रेन के युद्ध के बीच ही, ऐसा लग रहा है कि दुनिया में एक और बड़ा संकट पैदा होने का ख़तरा मंडरा रहा है. उत्तर कोरिया लगातार मिसाइलें दाग रहा है. तनाव उस वक़्त और बढ़ गया जब उत्तर कोरिया ने 2 नवंबर 2022 की सुबह, दक्षिण कोरिया की तरफ़ एक दर्जन से ज़्यादा मिसाइलें दाग दीं. इनमें से एक मिसाइल तो दक्षिण कोरिया के इलाक़े में जा गिरी. कोरियाई युद्ध (1950-53) के बाद ये पहली बार था, जब उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया की सरज़मीं पर इस तरह का हमला किया था. उत्तर कोरिया के मिसाइलें दागने के बाद, दक्षिण कोरिया की सरकार को उल्लेयुंगडो द्वीप पर हवाई हमले की चेतावनी जारी करनी पड़ी. इसके अलावा, दक्षिणी कोरिया ने भी उत्तरी कोरिया की पूर्वी समुद्री सीमा की ओर तीन हवा से ज़मीन पर मार करने वाली मिसाइलें लॉन्च कीं. इसके अलावा, हाल ही में 18 नवंबर को उत्तर कोरिया ने अपनी अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) ह्वासॉन्ग-17 का भी परीक्षण किया था. इससे दक्षिण कोरिया में फिर हंगामा मच गया. उत्तर कोरिया की सरकार के मुताबिक़, ये मिसाइल 6040.9 किलोमीटर की ऊंचाई तक गई और 69 मिनट में इसने 999.2 किलोमीटर का सफ़र तय किया और अंत में पूर्वी सागर में जा गिरी. हालांकि, एक विश्लेषण के मुताबिक़ उत्तर कोरिया की ये लंबी दूरी की मिसाइल, अमेरिका तक मार करने में सक्षम है और सामान्य कक्षा से फायर करने पर ये 15 हज़ार किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है.

Table 1: उत्तर कोरिया द्वारा 2022 में किए गए सफल मिसाइल परीक्षण

तारीख़ मिसाइल का नाम किस तरह की मिसाइल है
10-1-2022 Hwasong-8 MARV मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल
14-1-2022 Rail-Mobile KN-23 कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल
16-1-2022 KN-24 कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल
26-1-2022 KN-23 कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल
29-1-2022 Hwasong-12 औसत दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल
27-2-2022 Unknown जानकारी नहीं
24-3-2022 Hwasong-17 Iअंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल
16-4-2022 Unnamed Small Solid Propellant SRBM कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल
24-5-2022 Unknown कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल
25-9-2022 Navalized KN-23 कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल
28-9-2022 Unnamed Large Solid Propellant SRBM (KN-23 Mod) कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल
29-9-2022 KN-25 कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल
4-10-2022 New IRBM औसत दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल
6-10-2022 KN-23 कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल
9-10-2022 KN-25 कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल

Source: स्रोत NTI (इस सारणी में वो मिसाइलें शामिल नहीं हैं जो उत्तर कोरिया ने जापान या दक्षिण कोरिया के तट की ओर फायर कीं बल्कि इनमें केवल कामयाब मिसाइल परीक्षण शामिल हैं)

परमाणु हमले का बढ़ता ख़तरा

वैसे तो उत्तरी कोरिया ये दावा करता है कि उसने जो लगातार मिसाइल परीक्षण और लॉन्च किए, वो अमेरिका और दक्षिणी कोरिया के साझा युद्धाभ्यास के जवाब में किए. लेकिन दक्षिण कोरिया ये कहता है कि अमेरिका के साथ उसके युद्धाभ्यास हमेशा से ही दोनों देशों के संबंध का अटूट हिस्सा रहे हैं और इनमें केवल महामारी और दक्षिणी कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति द्वारा उत्तर कोरिया के साथ कूटनीतिक बातचीत शुरू करने की कोशिशों के दौरान ख़लल पड़ा था. इससे पहले, उत्तर कोरिया ने कहा था कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वो परमाणु मिसाइलों का भी इस्तेमाल करेगा, इसमें पहले से हमला करने का विकल्प भी शामिल होगा. इस बयान के तुरंत बाद उत्तर कोरिया ने एक दर्जन से ज़्यादा मिसाइलें दक्षिणी कोरिया की ओर दागी थीं. अब उत्तर कोरिया ये धमकी दे रहा है कि वो अमेरिका को दक्षिणी कोरिया को परमाणु हमले से बचाने का कवच देने से रोकेगा. इसीलिए वो अमेरिका के ख़िलाफ़ मिसाइल हमले की अपनी ताक़त का प्रदर्शन कर रहा है. अब जबकि उत्तर कोरिया के परमाणु हमले करने का ख़तरा लगातार बढ़ रहा है, तो दक्षिणी कोरिया भी इससे निपटने के लिए ‘सभी तरह के परमाणु विकल्पों’ के इस्तेमाल की ओर बढ़ रहा है. चूंकि कोरियाई प्रायद्वीप केवल उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच का द्विपक्षीय विवाद नहीं है. या फिर ये जापान और उत्तर कोरिया का मसला भी नहीं है. ऐसे में अन्य देश, विशेष रूप से अमेरिका और चीन इस प्रायद्वीप का भविष्य तय करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

अब जबकि उत्तर कोरिया के परमाणु हमले करने का ख़तरा लगातार बढ़ रहा है, तो दक्षिणी कोरिया भी इससे निपटने के लिए ‘सभी तरह के परमाणु विकल्पों’ के इस्तेमाल की ओर बढ़ रहा है

इंडोनेशिया के बाली में हुए G20 शिखर सम्मेलन के दौरान चीन, अमेरिका और दक्षिण कोरिया के नेता भी आपस में मिले थे. दक्षिण कोरिया इस शिखर सम्मेलन में इस उम्मीद के साथ शामिल हुआ था कि, हाल के दिनों में उत्तर कोरिया के बढ़ते मिसाइल परीक्षणों के बीच वो अमेरिका की मदद से अपने लिए उपयोगी नतीजे तक पहुंच सकेगा. हालांकि, अमेरिका और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच पहली आमने सामने की मुलाक़ात के दौरान दोनों नेताओं के बीच ताइवान और उत्तर कोरिया के परमाणु मसले को लेकर मतभेद बिल्कुल स्पष्ट दिखे. उत्तर कोरिया का परमाणु मसला, शी जिनपिंग और दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-इयोल के बीच भी असहमति का बड़ा कारण बना. दक्षिण कोरिया और अमेरिका, दोनों ये चाहते हैं कि चीन, उत्तर कोरिया के परमाणु विवाद को हल करने में सक्रिय भूमिका अदा करे. हालांकि, चीन ने इसके जवाब में ‘उत्तर कोरिया की वाजिब चिंताओं’ का हवाला देते हुए ज़ोर देकर कहा कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया को चाहिए कि वो अपने सामरिक हथियारों की तैनाती और साझा युद्धाभ्यास से बाज़ आएं. चीन को पूरी तरह अपने पाले में देखकर, उत्तर कोरिया ने G20 शिखर सम्मेलन के बाद ही अपनी अंतर महाद्वीपीय मिसाइल ह्वानसॉन्ग-17 का परीक्षण किया था. किम जोंग उन ने फिर से दोहराया कि उत्तर कोरिया, ‘परमाणु हथियारों का जवाब परमाणु हमले से देगा और संपूर्ण युद्ध का जवाब चौतरफ़ा हमले से देगा.’ 

बदलती विश्व व्यवस्था

वर्तमान अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, किम जोंग उन जैसे तानाशाही शासकों के लिए कोई अच्छी मिसाल नहीं पेश कर रही है. यूक्रेन पर रूस का हमला और चीन द्वारा बार बार ताइवान को अपने में मिलाने की धमकी ऐसे नेताओं को ये संकेत देती है कि साम्राज्यवाद की दुनिया में वापसी हो रही है, जहां बड़ी सैन्य ताक़तें अपने क्षेत्र के विस्तार के लिए पड़ोसी देशों पर हमले कर रही हैं. यहां पर ध्यान देने वाली एक अहम बात ये है कि चीन, कोरियाई प्रायद्वीप को लेकर अपनी रणनीति में बदलाव कर रहा है. कोरियाई युद्ध (1950-53) के दौरान युद्ध विराम के समझौते पर हस्ताक्षर के बाद, चीन की मुख्य भूमिका कोई युद्ध होने से रोकने की रही है. हालांकि, आज जब शी जिनपिंग के नेतृत्व में ताइवान का विलय चीन का प्रमुख एजेंडा बन गया है, तो वो ताइवान के हालात से निपटने के लिए उत्तर कोरिया को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. इस तरह चीन ने इस क्षेत्र को परमाणु हथियारों से मुक्त करने का रास्ता छोड़ दिया है. परमाणु हथियारों के मुद्दे पर चीन ने उत्तर कोरिया के साथ एक मज़बूत गठबंधन का विकल्प चुना है, ताकि दोनों देशों को फ़ायदा हो. मिसाल के तौर पर अगर चीन, ताइवान पर हमला करना चाहता है, तो वो ये चाहेगा कि उत्तर कोरिया उसकी तरफ़ से एक और मोर्चा खोल दे, ताकि दक्षिणी कोरिया और अमेरिका के लिए सैन्य ख़तरा पैदा हो जाए, जिससे आख़िर में ताइवान पर आक्रमण के दौरान अमेरिका को इस मामले में दख़ल देने से रोका जा सके. इसी बीच ख़राब होती ये विश्व व्यवस्था दक्षिण कोरिया की सुरक्षा के लिए ख़तरा बनती जा रही है, और इससे एक महत्वपूर्ण सवाल ये पैदा होता है कि ‘हालात इस क़दर कैसे बिगड़ गए कि अब कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त करने का विचार ग़लत लगने लगा है?’ इसके दो प्रमुख कारण हैं:

दक्षिण कोरिया और अमेरिका, दोनों ये चाहते हैं कि चीन, उत्तर कोरिया के परमाणु विवाद को हल करने में सक्रिय भूमिका अदा करे. हालांकि, चीन ने इसके जवाब में ‘उत्तर कोरिया की वाजिब चिंताओं’ का हवाला देते हुए ज़ोर देकर कहा कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया को चाहिए कि वो अपने सामरिक हथियारों की तैनाती और साझा युद्धाभ्यास से बाज़ आएं.

पहला, दक्षिण कोरिया की बड़ी कूटनीतिक ग़लती थी. वो उत्तर कोरिया के ख़तरे से निपटने के लिए अमेरिका पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भर रहा. शीत युद्ध के दौरान अमेरिका ने साम्यवादी पड़ोसी से दक्षिण कोरिया को बचाने के लिए वहां परमाणु हथियारों से लैस मिसाइलें तैनात कर रखी थीं. हालांकि, जब शीत युद्ध समाप्त हो गया, तो मिसाइलें हटा ली गईं, जिससे उत्तर कोरिया के परमाणु शक्ति हासिल करने की गति तेज़ हो गई. इसके साथ साथ, दक्षिणी कोरिया ने चीन के साथ इस उम्मीद में आर्थिक संबंध बढ़ाए कि कूटनीतिक और आर्थिक रिश्तों में विविधता आने से कोरियाई प्रायद्वीप में शांति स्थापित करने में सहायता मिल सकेगी. हालांकि, चाहे अमेरिका के साथ गठजोड़ करना हो या फिर अमेरिका और चीन के बीच संतुलन बनाना हो, दक्षिण कोरिया को दोनों ही मामलों में अपने लक्ष्य में सफलता नहीं मिल सकी.

दूसरा, 1990 के दशक की शुरुआत में उत्तर कोरिया ने धोखे में रखने की रणनीति अपनाई थी. उसके बाद से उत्तर कोरिया की परमाणु नीति में पूरी तरह बदलाव आ गया है. परमाणु हथियार विकसित करने में ज़रा भी दिलचस्पी न होने का दावा करने से लेकर, अपने लिए केवल बिजली बनाने की परमाणु क्षमता विकसित करने और फिर आख़िर में परमाणु हथियार से लैस होने की बात स्वीकार करने तक उत्तर कोरिया ने सिर्फ़ समय हासिल करने के लिए दुनिया को धोखे में रखा. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और दक्षिणी कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति मून जाए-इन के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण की वार्ता करने के दौरान भी किम जोंग उन अंतर महाद्वीपीय मिसाइल परीक्षण करने में सफल रहे थे. इससे पता चलता है कि दुनिया को धोखे में रखने की उत्तर कोरिया की रणनीति और अमेरिका और दक्षिण कोरिया द्वारा कोई कड़ा क़दम न उठाने की ग़लती की मदद से किम जोंग उन, परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाने का सपना पूरा करने में सफल रहे हैं.

निष्कर्ष

इसमें कोई शक नहीं है कि किम जोंग उन ने उत्तर कोरिया को इराक़ और लीबिया जैसा बनने से बचाने का विकल्प चुना. इसके साथ साथ ये मिसाइल लॉन्च ये सवाल भी उठा रहे हैं कि अमेरिका के विरोधियों को डरा पाने की शक्ति कितनी असरदार और व्यवहारिक है. इस वक़्त ऐसा कोई नहीं है, तो कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु संकट का समाधान कर सके. इस संकट का मूल तत्व वो ख़ास परिस्थितियां नहीं हैं, जिनसे ऐसे हालात बन गए, बल्कि एक ऐसे पक्ष की कमी है, जो इस संकट का निपटारा कर सके. समस्या परमाणु युद्ध नहीं बल्कि वैसी सीमित टक्कर की आशंका है, जो हम कई बार भारत और पाकिस्तान के बीच होते हुए देख चुके हैं. कोई भी ग़लत आकलन तबाही लाने वाला साबित हो सकता है. किम जोंग उन जैसे नेता के साथ निपटने के दौरान ऐसा ख़तरा तो और भी अधिक होता है. आज साझा रूपरेखा 2.0 की ज़रूरत है, जिसके तहत उत्तर कोरिया, सभी परमाणु शक्तियों और आसियान के सदस्य देशों के बीच बात-चीत होनी चाहिए और इसके साथ साथ उत्तर कोरिया पर लगे कुछ प्रतिबंध हटा लिए जाने चाहिए. किम जोंग उन अपने परमाणु कार्यक्रम का पूरी तरह परित्याग नहीं करेंगे. इसीलिए इस रूपरेखा में शांति के ज्ञापन के साथ साझा बिंदु शामिल होने चाहिए. अब सही समय आ गया है कि कोरियाई प्रायद्वीप में शांति स्थापित की जाए.

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