Author : Arya Roy Bardhan

Expert Speak Raisina Debates
Published on Apr 30, 2024 Updated 0 Hours ago

भारत और यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (EFTA) ने व्यापार और आर्थिक साझेदारी के समझौते पर मुहर लगा दी है. दोनों पक्षों ने बौद्धिक संपदा के अधिकारों और स्थायी विकास के मानकों का पालन करते हुए व्यापार और निवेश को बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है.

भारत और EFTA के बीच व्यापार और आर्थिक साझेदारी का समझौता: सही वक़्त पर बनी मिसाल

भारत ने 10 मार्च 2024 को यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (EFTA) के साथ व्यापार और आर्थिक साझेदारी के समझौते (TEPA) पर दस्तख़त कर दिए. EFTA में स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिखटेंस्टाइन शामिल हैं. 2008 से अब तक 21 दौर की वार्ताओं के बाद जाकर इस समझौते पर मुहर लग सकी है. इस समझौते से दोनों पक्षों के बीच व्यापार, निवेश को बढ़ावा देने, बौद्धिक संपदा के अधिकारों की रक्षा और टिकाऊ विकास समेत तमाम क्षेत्रों में सहयोग बढ़ने की उम्मीद है. इस समझौते की सबसे बड़ी ख़ूबी यूरोपीय देशों द्वारा भारत में 100 अरब डॉलर के निवेश का वादा है. ये निवेश वो अगले 15 साल में करेंगे, जिससे सीधे तौर पर दस लाख से ज़्यादा रोज़गार पैदा होंगे. TEPA में दोनों पक्षों की तरफ़ से जो वादे किए गए हैं, उनका आकलन करने की ज़रूरत है, जिससे ये पता लगाया जा सके कि इससे सभी पक्षों को क्या फ़ायदे होंगे और भारत इस समझौते से किस तरह अपना व्यापारिक संतुलन और मज़बूत कर सकेगा.

 भारत द्वारा किए जाने वाले आयात में कमी को हम भारत की आयात कम करने की योजनाओं के नतीजे के तौर पर देख सकते हैं, जो मेक इन इंडिया और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजनाओं के ज़रिए घरेलू निर्माण को बढ़ावा देती हैं.

व्यापार के आयाम

 

2022-23 तक भारत के कुल व्यापार में EFTA के सदस्य देशों की हिस्सेदारी महज़ 1.6 प्रतिशत थी और दोनों के बीच लगभग 18.6 अरब डॉलर का व्यापार हो रहा था. वैसे तो EFTA के देशों को भारत का निर्यात बढ़ा है. लेकिन, भारत के वस्तुओं के कुल व्यापार में इन देशों की हिस्सेदारी भारत द्वारा आयात कम किए जाने की वजह से लगातार घटती जा रही थी. इस वजह से भारत और यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन के देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा कम हुआ है. EFTA को भारत द्वारा जो चीज़ें बसे ज़्यादा निर्यात की जाती हैं, उनमें ऑर्गेनिक केमिकल, कपड़ों से जुड़े सामान और इलेक्ट्रिकल मशीनरी शामिल है. वहीं इन देशों से भारत ज़्यादातर मशीनरी और फार्मास्यूटिकल उद्योग के उत्पाद ख़रीदता है. ऐसे में भारत द्वारा किए जाने वाले आयात में कमी को हम भारत की आयात कम करने की योजनाओं के नतीजे के तौर पर देख सकते हैं, जो मेक इन इंडिया और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजनाओं के ज़रिए घरेलू निर्माण को बढ़ावा देती हैं.

 

Table 1: भारत के व्यापार में EFTA देशों की हिस्सेदारी (दस लाख अमेरिकी डॉलर में)

वर्ष

निर्यात

आयात

कुल व्यापार

भारत के व्यापार में हिस्सेदारी

2018-2019

1533.93

18466.32

20000.25

2.37

2019-2020

1636.1

17541.51

19177.59

2.43

2020-2021

1598.67

18911.17

20509.84

2.99

2021-2022

1742.02

25491.22

27233.24

2.63

2022-2023

1926.44

16738.93

18665.37

1.60

स्रोत: लेखक द्वारा EXIM Data Bank से किया गया आकलन

 

TEPA ने संबंधित पक्षों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए इस समझौते में कई नई शर्तें लगाई हैं. इनके अलावा व्यापार और दूसरे कर घटाने की किसी भी मुक्त व्यापार समझौते की आम शर्तें भी शामिल हैं. इसके तहत औद्योगिक और समुद्री उत्पादों पर मौजूदा शुल्क ख़त्म करना और सदस्य देशों के बीच व्यापार का अधिक उदार माहौल बनाने का प्रस्ताव है. यही नहीं, कृषि उत्पादों के संदर्भ में भारत, स्विट्जरलैंड और लिखटेंस्टाइन के बीच ऐसे समझौते हुए हैं, जिससे इन सबको एक दूसरे के बाज़ारों में पहुंच बनाना और सुगम होगा, और सभी देश बुनियादी और प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों पर सब्सिडी में भी भारी बढ़ोत्तरी कर सकेंगे. इसके अतिरिक्त TEPA के समझौते में व्यापार की आसान, अधिक पारदर्शी और तेज़ी से लागू की जाने वाली प्रक्रियाओं की गारंटी दी गई है, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप ही होगी.

 

Figure 1: EFTA के साथ भारत का व्यापार (दस लाख अमेरिकी डॉलर में)

 

Source: EXIM Data Bank

 

 

समझौते में इस गारंटी को कुछ अन्य शर्तों के साथ और मज़बूती दी गई है. इन शर्तों के तहत व्यापार की तकनीकी बाधाएं दूर करने के साथ साथ वस्तुओं और कृषि उत्पादों की स्वच्छता के मानकों में कमी लाना सुनिश्चित करने का वादा किया गया है. स्वच्छता का पहला मानक, व्यापार किए जाने वाले खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और मानक से जुड़ा है. वहीं, दूसरे का मक़सद बिना भेदभाव वाली व्यापारिक प्रक्रियाओं को अपनाना और घरेलू सुरक्षा से जुड़ा है. दोनों को मिलाकर देखें, तो ये मानक वाले और ग़ैर संरक्षणवादी व्यापारिक उपायों के दिशा-निर्देश देने वाले हैं. पारदर्शिता और प्रोटोकॉल पर इस ज़ोर के साथ साथ, मुक्त व्यापार समझौते में एक शर्त ऐसी भी है, जो पूरी तरह से वित्तीय, दूरसंचार, बीमा और बैंकिंग के क्षेत्रों में व्यापार को बढ़ावा देने से जुड़ी है. यह भारत के लिए बढ़िया मौक़ा है, ताकि वो अपने लगातार बढ़ रहे सेवा क्षेत्र का लाभ उठा सके और देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की आमद को बड़े स्तर पर प्रचारित कर सके.

 यह भारत के लिए बढ़िया मौक़ा है, ताकि वो अपने लगातार बढ़ रहे सेवा क्षेत्र का लाभ उठा सके और देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की आमद को बड़े स्तर पर प्रचारित कर सके.

निवेश में नई जान फूँकना

 

अप्रैल 2000 से दिसंबर 2023 के दौरान भारत में EFTA देशों का निवेश लगभग 10.8 अरब डॉलर का था. TEPA के तहत अगले पंद्रह वर्षों में ये निवेश बढ़ाकर 100 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा गया है. इससे भारत के FDI भंडार में EFTA देशों की हिस्सेदारी में भी काफ़ी इज़ाफ़ा होगा. फिर इस निवेश को अर्थव्यवस्था के अधिक कुशल क्षेत्रों में निवेश किया जा सकेगा. EFTA देशों द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था में अपनी उपस्थिति काफ़ी बढ़ाने की इस योजना के पीछे महामारी के बाद भारत की रिकॉर्ड विकास दर रही है, और EFTA के देश ये अपेत्रा करते हैं कि उन्हें भारत में अपने निवेश से अन्य देशों की तुलना में कम से कम 3 प्रतिशत अधिक निवेश मिलेगा. हालांकि, भारत में प्रत्यक्ष रोज़गार पैदा करने पर विशेष ज़ोर देने का मतलब है कि इससे दोनों पक्षों को लाभ होगा.

 

Table 2: अप्रैल 200 से दिसंबर 2023 के बीच EFTA के देशों द्वारा भारत में किया गया FDI निवेश

देश

FDI का निवेश( मिलियन डॉलर मेंi)

कुल FDI निवेश में हिस्सेदारी

स्विट्जरलैंड

9,946.02

1.49

नॉर्वे

721.52

0.11

आइसलैंड

29.26

0.004

लिखटेंस्टाइन

105.22

0.02

EFTA का कुल निवेश

10,802.02

1.62

स्रोत: DPIIT, भारत सरकार

 

भारत को जहां विदेशी निवेश के लिए उपयुक्त माहौल बनाने की ज़रूर है. वहीं, TEPA में सहयोग के ऐसे क्षेत्रों पर ज़ोर दिया गया है, जो इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को पूरक की तरह इस्तेमाल कर सकें. इनमें बाधाओं को दूर करना, अवसरों की पहचान करना, तकनीकी सहयोग बढ़ाने के साथ साथ मध्यम, छोटे और सूक्ष्म उद्यमों (MSME) के बीच साझा उद्यम को बढ़ावा देना शामिल है. बाज़ार में MSME की काफ़ी उपलब्धता और रोज़गार देने में उनकी मुख्य भूमिका को देखते हुए, इससे भारत को काफ़ी लाभ होगा. TEPA में निर्मित वस्तुओं की मांग में बढ़ोतरी करते हुए मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने का विकल्प भी शामिल है. इससे EFTA देशों के साथ व्यापार संतुलन सुधारने की अहमियत ज़ाहिर होती है.

 

FDI निवेश का रुख सेवा क्षेत्र की ओर मोड़ने से दो स्तर के लाभ होंगे. कारोबार की यथास्थिति में रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे और इसके साथ साथ स्विट्जरलैंड को आधार बनाकर संबंधित सेक्टर की गतिविधियां यूरोपीय संघ में भी बढ़ाई जा सकेगी. भारत और यूरोप के सेवाओं के बाज़ार के एकीकरण से भारतीय समाज में धनाढ्यता के स्तर पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि कुशल मध्यम वर्ग की तनख़्वाह में बढ़ोतरी होगी. इसके अलावा, रिसर्च और विकास जैसी सेवाओं की भी इस समझौते में अनदेखी नहीं गई है. TEPA में इसके लिए बौद्धिक संपदा के अधिकारों के संरक्षण को रेखांकित किया गया है. इस समझौते में भारत की प्राथमिकताओं को भी रेखांकित किया गया है और समझौते के एक हिस्से को स्थायी विकास के मसले से निपटने पर केंद्रित रखा गया है.

 

स्थायी विकास में सहायता

 

TEPA में साफ़ तौर पर कहा गया है कि सारा व्यापार स्थायित्व के नियमों का पालन करते हुए किया जाएगा. इसके तहत पर्यावरण के संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है और साथ ही साथ आर्थिक विकास में समावेश को सुनिश्चित करने की बात भी कही गई है. इस समझौते में शामिल पक्षों को इस बात की पूरी छूट होगी कि वो अपने पर्यावरण और श्रम कानून बना सकें. लेकिन, इससे व्यापार के बिना भेदभाव वाले पहलू पर असर नहीं पड़ना चाहिए. इसके अलावा लैंगिक नज़रिए की अहमियत भी रेखांकित की गई है और वादा किया गया है कि दोनों पक्ष अंतरराष्ट्रीय मज़दूर संगठन (ILO) के दिशा निर्देशों का पालन करेंगे. पेरिस समझौते और संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन से जुड़ी रूप-रेखा संधि (UNFCCC) द्वारा तय लक्ष्यों की बात करें, तो समझौते में शामिल सभी देशों ने इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति जताई है.

इस समझौते में भारत की प्राथमिकताओं को भी रेखांकित किया गया है और समझौते के एक हिस्से को स्थायी विकास के मसले से निपटने पर केंद्रित रखा गया है.

वस्तुओं और सेवाओं, निवेश को बढ़ाना देने, द्विपक्षीय सहयोग, पर्यावरण संरक्षण और श्रमिक कल्याण पर ज़ोर देकर TEPA किसी भी आर्थिक साझेदारी के सबसे अहम पहलू को ध्यान में रखकर चलता है. कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR), ज़िम्मेदारी भरी खपत और उत्पादन, न्यायोचित परिवर्तन और इकोसिस्टम के प्रबंधन के बेहतरीन उपायों पर ज़ोर देते हुए सामाजिक रूप से मूल्यवान सेवाओं को काफ़ी अहमियत दी गई है. अब तक होने वाले पारंपरिक व्यापारिक समझौतों में इन पहलुओं की अनदेखी की जाती थी. इस क़दम से निश्चित रूप से भारत के विकास के सफ़र को पारंपरिक माध्यमों से आगे बढ़ाने की गति तेज़ होगी. इसके अलावा, ये समझौता भविष्य के व्यापार समझौतों के लिए एक उदाहरण भी बन सकता है.

 

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